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नवीनता का आग्रही देश- इजराइल

नवीनता का आग्रही देश- इजराइल

by किरण शेलार
in जनवरी- २०१५, सामाजिक
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अपने देश को फिर से बसाने की भावना से खडा देश, खुद की अलग पहचान बनानेवाला देश, इजराइल के लिये ऐसी कई प्रतिमाएँ मन में लेकर मैं बेन गुरियन हवाई अड्डे पर दाखिल हुआ था। कृषि, पशुपालन, तंत्रज्ञान और अन्य आयामों का इस देश में जो दर्शन हुआ तब इक्कीसवीं सदी का राष्ट्र ऐसी पहचान बनाते हुए केवल अपनी ही नहीं बल्कि विश्व की समस्याओं का समाधान करने का मानस रखनेवाला यह देश सामने आया। विश्व के साथ जुडनेवाले इस देश का यह दर्शन सचमुच अनोखा था।
कपार व्हिटकिन। तेल अविव से ३७ कि.मी. दूरी पर स्थित छोटासा देहात। कडी ठंड, साथ बारीश भी। ‘रूट्स सस्टेनेबल ऍग्रिकल्चर कंपनी’ के कार्यालय में बोआज वॉटचेल हमारा इंतजार कर रहे थे। वे और उनके भागीदार यह स्टार्ट अप कंपनी चलाते हैं। यह तो कमाल की कर्ल्फेाा ही है। अन्वेषक अथवा उद्योजक कुछ कर्ल्फेाा लेकन फूँजी देनेवाले को खोजते हैं। बठे उद्योगसमूह, सरकार अथवा फूँजीपती भी फूँजी लगाने को आगे आते हैं। अगर कर्ल्फेाा ‘फेलफ हो गई तो? कोई बात नहीं। दस बार फेल हुए प्रयोगशील उद्योजक को फूँजी देने के लिए लोग तत्परता से आगे आते हैं। ऐसे अन्वेषक और उद्योजकों ने इजराइल में बडी क्रांति लाई है।
अंठे को गर्मी देकर चूजा फैदा करने के लिए ‘इन्क्युबेटरफ इस्तेमाल होता है यह हम जानते हैं, लेकिन यहॉं कोई उद्योग खडा करने के लिए, उसे विकसित करने के लिए ‘इन्क्युबेटरफ कर्ल्फेाा का उपयोग किया जाता है।
हमें पॉवर पॉइंट प्रेझेंटेशन के जरिए बोआज यह सब बता रहे थे इतने मेंउनके अन्य भागीदार शारोन ठेव्हिर वहॉं आ गए। खिलाडी जैसे दिखनेवाले शारोन कर्ल्फेाातीत अनुसंधान के जनक है। यह दोनों भी किसान हैं। पानी की किल्लत के कारण सभी किसान नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। बाओज और शारोन बताने लगे। पहला अनुसंधान था ‘इरिगेशन बाय कंठेन्सेशनफ। यहॉं ९५ प्रतिशत खेती सिंचाई से होती है। इस के पाईप निकाल कर वहॉं धातू की पट्टियॉं लगाई जाती है। सौर उर्जा से इन पट्टियों को डंडा कर उस पर जो बाष्प जमा हो जाता है उसके आधार पर खेती की जाती है। डंठे पानी के गिलास पर भी बाष्प जमते हमने देखा है। वैसे ही यह प्रक्रिया है। दूसरी कर्ल्फेाा है ‘रूट झोन ऑॅपिटमायझेशनफ। इस मेंसिंचाई के पाईप के साथ जमीन के नीचे से भी पाईप डाले जाते हैं। डंड के मौसम में इन पाईपों में गुनगुना और गर्मी के मौसम में डंडा पानी रखा जाता है जिसके कारण जडों के आसपास समान आर्द्रता रह पाती है। इस तरीके से उगाई सब्जीयों का भी प्रात्यक्षिक देखने मिला। सब्जी की जठे आनंदी रहती है तो जोर से बढती है यह इसके पीछे ‘लॉजिकफ है। इस से छोटा किसान भी अच्छी पसल उगा सकता है। हम ने दोनों का भी अभिनंदन किया। हमारे यहॉं तो आंदोलन और किसानों की आत्महत्या चल रही है। सहकार के नाम पर राजनीति होती है। इजराएल के लोग अनुसंधान द्वारा कितना सूक्ष्म विचार करते हैं। हमारे यहॉं ठुबुक पद्धति से होनेवाली गन्ने की पसल ने तो भूमी को बरबाद करने का बिडा उडाया है। जर क्षार उपर आते हैं तब भूमी लाश की तरह सफेद हो जाती है और लोग चिल्लाने लगते हैं।
मानव संसाधन और पाणी की किल्लत होते हुए भी अनुसंधान द्वारा इस देश ने अनेक समस्याओं का समाधान खोजा है। आज अर्फेाा अनुसंधान विश्व को बेचने के लिए वे तैयार है। केवल बठे उद्योगसमूह और बठे किसानों के बारे में ही नहीं सोचा जाता है बल्कि छोटे भूधारकों का भी विचार किया जाता है। कपार व्हिटकिन जाने से पहले पिक पलास्ट नामक ग्रीन हाऊस बनानेवाले कंपनी को देखने का मौका मिला। मगर वहॉं बठे ग्रीन हाऊसेस की बजाए छोटे आकार के तीन ग्रीन हाऊस देखने मिले। वहॉं लिऑर नामक मार्केटिंग मैनेजर से फूछने पर उसने कहा, ‘छोटे किसान हमारे ग्राहक हैं। उनकी माध्यम से ही बडी आर्थिक क्रांती हो सकती है। कम से कम जमीन पर ज्यादा पसल कैसे उगा सकते हैंइसका हम विचार कर रहे हैं।
अर्फेो प्रमोग और अनुभवों के आधारपर इजराइल समृद्ध हुआ है। मह प्रमोग विश्व भर फैलाना वह चाहता है। अनाज के लिए परावलबित्व समापत करने के लिए अपनी खेती समृद्ध बनाने का विकल्प उन्होंने चुना है। कई प्रमोग असपल हुए लेकिन जो सपल हुए उनका अनुकरण किमा जाए इस हेतु उन्होंने दस्तावेज करना चाहा और ‘सिनाडकोफ अर्थात सेंटर पॉर इंटरनॅशनल ऍग्रिकल्चरल ठेव्हलपमेंट कॉर्पोरेशन का निर्माण हुआ। शेपाइम इस स्थान पर केशवसृष्टि के रामभाऊ म्हाळगी प्रबोधिनी का स्मरण दिलानेवाला मह प्रशिक्षण केंद्र है। दादी जैसी दिखनेवाली रेचेल ब्राऊन वहॉं पाड्यक्रम समन्वमक के नाते काम करती हैं। सिनाडको ने २९ केंद्र स्थार्फेा किए हैं। चावल, गेहूँ, आम, सब्जीमॉं, गन्ना आदि पसलों पर महॉं काम किमा जाता है। राज्म शासन और केंद्र सरकार की मदद से केंद्र सहामता कर सकता है। अपनी पसल, अपनी जरूरतें, भौगोलिक स्थिति, पानी की उपलब्धता इस आधार पर महॉं पाड्यक्रम निश्चित किमा जा सकता है। इस बारे में उनका लचीलार्फेा प्रशंसनीम है। एक छेद पड गए पाईप से सिंचन की कर्ल्फेाा आगे आई और इजराइल की खेती विकसित हो गई। पानी का उचित इस्तेमाल मह उनकी असली ताकत है। किमान मानवसंसाधन का इस्तेमाल, किमान व्‘ और अधिकाधिक उत्पादन इस आधार पर महॉं खेती और प्रशिक्षण चलता है। महॉं छोटा किसान ही केंद्र माना जाता है। सिनाडको में सिंचन के कईप्रमोग अवलोकनार्थ उपलब्ध है। टंकी भरने के लिए बिजली का इस्तेमाल करना और कॉक का इस्तेमाल करके उँचाई से जरुरत के अनुसार पानी देना ऐसी कर्ल्फेाा है। पसल की जडों में सेन्सर बिडामा जाता है। जब आर्द्रता कम हो जाती है तब अर्फेो आप स्वमंचलित सिंचाई मंत्रणा शुरू हो जाती है। सिनाडको मह स्वामत्त संस्थान है। हमारे महॉं से इजराइल में कई शासकीम अधिकारी एवं किसान प्रशिक्षण हेतु पधार चुके हैं। उत्तर के कुछ राज्मों ने सिनाडको की सहामता से काम भी शुरु किमा है। अंबाला में एक अच्छा सेंटर भी कार्मरत है।
मुद्ध में जैसे को वैसा उत्तर देना मह इजराइल की खासिमत है। मगर आज इस देश की पहचान ज्ञान और तंत्रज्ञान के आधार पर मनुष्मजाति की समस्माओं का निराकरण करने में जुटा देश ऐसी ही बन गई है। सौहार्द से विश्व जुड जाता है। व्मवसाम के अवसर भी फैदा हो जाते हैं। सिनाडको से जब तेल अविव लौटने लगे थे तब एक विस्ममकारी चित्र देखने मिला। एक खेत में बाजू में लगभग एक एकर स्थान पर छोटा तालाब बना था। लेकिन उसे जाली का कंपाऊंड बनाकर उपर से नुकीली तारों का संरक्षक घेरा बना कर रखा था। पानी का महत्त्व इस से अधिक क्मा बखान करना?
किबुत्झ मह इजराइल की एक समाज पद्धति है। रेगिस्तान में खेती करने के लिए एकदूसरे की सहामता आवश्मक होती है। इसलिए एकत्रित खेती की जाती है। सभी ने मिलकर एक बडा खेत जोतना और बच्चों को मिलकर पालना तथा खाना पकाना भी एकसाथ होता है। मह समाजवादी संकर्ल्फेाा ही थी। जैसी स्थिरता आती गई तब ‘मशावफ इसकी जगह ले ली। मशाव में किबुत्झ की तुलना में अधिक व्मक्तिगत स्वतंत्रता है। लेकिन कई स्थानों को किबुत्झ से ही संबोधित किमा जाता है।
बाद में हम नेतापिम पहुँचे जहॉं विश्व की सब से बडी सिंचाई कंपनी का अनुसंधान केंद्र है। वहॉं एपल के स्टीव जॉब्ज जैसे दिखनेवाले चीप सस्टेनेबलिटी ऑॅपिसर नॅती बराक ने नेतापिम के कार्य के बारे में जानकारी दी। कंपनी होने के कारण विस्तार की आक्रामक कर्ल्फेााएं और एमबीए स्टाईल मेंप्रस्तुतिकरण अफेक्षित था। मगर विश्वकल्याण की अवधारणा के बारे में नॅती बोलने लगे तो हमें अचंभा हो गया। एक जीन्स बनाने के लिए कितना पानी लगता है और एक किलो मांस निर्माण होने के लिए कितना पानी लगता है इसकी तालिका भी उन्होंने दिखाई। एक सेव की निर्मिति में ७० लीटर पानी लगता है। छोटे किसान की हम उफेक्षा नहीं कर सकते हैं। वह सक्षम हो जाता है तो हम गरिबी का दुष्टचक्र भेद सकते हैं, ऐसा वे बारबार बता रहे थे।
इजराइल अपनी जरुरत फूरी कर शेष ६५ प्रतिशत सब्जीमॉं निर्मात करता है। बारीश केवल २० मि.मी. है। नेतापिम ने झारखंड में किए कार्म की तालिका उन्होंने दिखलाई। लागत कम होने पर भी प्रोजेक्ट का आर्थिल मॉडल डीक होना चाहिए ऐसा उनका आग्रह है। नेतापिम को टक्कर देने की हिंमत एक भारतीम समूह रखता है। महाराष्ट्र के जलगाव के जैन इरिगेशन ने नानदान नामक इजराइली कंपनी खरीदकर वहॉं विस्तार करना आरंभ किमा है।
नॅती को जब फूछा, ‘आप के स्पर्धक कौन है?फ तब उन्होंने बताया, ‘पानी के बारे में अज्ञान और जमीनी सतह पर नाली से पसल को पानी देना!फफ यह देश क्यों उन्नति कर रहा है, इसका यह जवाब था। देश छोटा है मगर कर्ल्फेााओं की उडान बडी है। नेताफेम के आहाते में सिंचन के कुछ अन्य प्रयोग भी देखने मिले। यंत्र द्वारा ही ठ्रिप का पाईप डालने का तंत्र है। आहाते में एक दो फूट बाय तीन फूट का ट्रे लगाया है और उसमें भी सिंचाई की यंत्रणा लगाई है। नेताफेम से मिली टोपी पहन कर हम लोग आगे बढे।
गोपालों का देश ऐसा हम अर्फेो देश के बारे में कहते हैं। हमारा मार्गदर्शन कृष्ण है, मगर अर्फेो देश में गौ की अवस्था बहुत बेहाल है। किसान की आवश्यकता के अनुसार २०-२५ लीटर तक दूध देनेवाली (देसी) गौ का अभाव यह एक बडी समस्या है। बाहर से गौ लाकर सरकारी श्वेत क्रांति संपन्न हुई है। इजराइल को भी यह समस्या सताती है। जब खेती ही नहीं है तब दूध देनेवाली गौ कहॉं? इसलिए विश्व प्रसिद्ध होलस्टेन फ्रिझेन (एचएप) गौ इजराइल ने स्वीकृत की है। यह केवल अनुनय नहीं है। मगर हरदिन ४०-४२ लीटर दूध देनेवाली इजरायली एचएप उनके यहॉं अब उपलब्ध हैं। ठेअरी शुरू करते समय अगर मांग की जाती है तो यह मिल सकती है। वहॉं वंश का अच्छा दस्तावेजीकरण किया जाता है। अधिक दूध देनेवाली गौ के नर-मादा बछठे यहॉं जतन से संभाले जाते हैं। यहॉं रोजगार और स्वयंफूर्णता है। ठेअरी का एक अच्छा मॉडल गिवात हाईम नामक जगह पर देखने मिला। जब हमारी कार अंदर जाने लगी तब पाटक स्वयंचलित यंत्रणा द्वारा खोला गया। यहॉं उत्तम गौ दिख रही थी मगर मनुष्यों का कही अतापता नहीं था। एससीआर इंजिनियरिंग लिमिटेड इस कंपनी की यह ठेअरी थी। यहॉं गोबर निकालने से गौ को चारा खिलाने का काम भी यंत्रो द्वारा भी होता है। जब गौ दूध देने के लिए स्वयंचलित यंत्र के पास आती है तब उनके स्तनों को दुहने का यंत्र लगाया जाता है। दिन में तीन बार गौ दूध देती हैं। दूध निकालने के बाद एक मिनिट के भीतर ही उसकी प्रक्रिया की जाती है और चीज के विविध प्रकार बनाए जाते हैं। गौ का मूल्य कुछ हजार डॉलर का होने के कारण उसको अच्छे से संभाला जाता है। हरेक गौ को एक इलेक्ट्रॉनिक चीप बिडाई गई है। वह चीप एक संकेतस्थल से जुडी हुई है। गौ ने आज कितना चारा खाया से लेकर उसकी हरेक जानकारी संकेतस्थल पर जमा हो जाती है।
अगर कोई गौ बीमार पडने लगती है तब संकेतस्थल पर उसका लाल रंग दर्शाया जाता है। क्या पचास गौ का एक मॉडल प्रकल्प भारत मेंहो सकता है ऐसा फूछने पर कंपनी संचालक शिलोमी दगान तुरंत तैयार हो गए। तंत्रज्ञान आफूर्ति यह उनका एक और व्यवसाय है। उनको अपनी संगणक प्रणाली विश्व में बेचनी है। वह विश्व की सारी भाषा में विकसित की जा रही है। ‘हम हिंदू भाषा में यह तंत्रज्ञान विकसित कर रहे हैं।फफ शिलोमी उत्साहफूर्वक बता रहे थे। वे हिंदी भाषा यह कहना चाहते थे।
आगे हम शापदान की ओर बढे। यहॉं गंदे पानी का प्रोजेक्ट हमें टिकट निकाल कर देखना पडा। इगुदान यह गंदा पानी शुद्ध बनानेवाली एक सरकारी कंपनी है। इस प्रकल्प पर करीब ३,७०,००० घन क्यु. मीटर गंदा पानी लाया जाता है। उसपर विभिन्न प्रक्रिया कर घन पदार्थ और अन्य घटक अलग किए जाते हैं। यह पानी इतना शुद्ध किया जाता है कि पानी भरी बोतल में से हम आरपार साप साप देख सकते हैं। यह पानी वापस खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पानी मुफ्त होता है लेकिन अर्फेो खेती तक ले जाने का खर्च किसान को उडाना पडता है। इजरायली खेती बहुतांश इसी पानी पर चलती है। प्रकल्प में जो घन पदार्थ का कूडा जमा हो जाता है उससे सेंद्रिय खाद बनाकर किसानों को दिया जाता है। प्रकल्प पर पानी का इस्तेमाल और जरुरत इस विषय पर अनुबोधपट दिखाया जाता है। प्रखर स्वदेशाभिमानी इजराइली गाईड सारी जानकारी देता है। यहॉं मल्टिमिडिया का बहुत इस्तेमाल दिखाई देता है। सामने तस्वीरे दिखती है तब अर्फेो फैरों तले एक बडी कॉंच की पाइपलाइन होती है। बाद में इसी पाईपलाईन के भीतर हमें जाना होता है। लगभग १२ पीट उँचे इस पाईप में फूरी प्रदर्शनी है।
विविध पाईप और फूरक चित्र देखकर जानकारी सुनने के बाद इजराइली गाईड इजराइल के लिए तालिमॉं बजाने का आवाहन करते हैं।
‘इजरायल एरोस्फेस इंडस्ट्रीजफ यह इजरायल की हवाईजहाज और उसकी यंत्रणा विकसित करनेवाली संस्था है। भूतफूर्व प्रधानमंत्री एवं राष्ट्राध्यक्ष शिमॉन फेरेस ने इस कंपनी की नींव रखी थी। प्रथम प्रधानमंत्री बेन गुरियन नेगेव के रेगिस्तान में युवा फेरेस को लेकर गए थे और कहा था, ‘अपनी सामरिक क्षमता सिद्ध करनेवाला कारखाना हमें यहॉं खडा करना है!फ फेरेस ने सामरिक ह्ष्टि से विकसित इजरायल खडा किया। सरकार द्वारा और कुछ कंपनियॉं चलाई जाती हैं। नवता, आधुनिकता और उचित मूल्य इस आधार पर यह कंपनी काम करती है। युद्धनिफुणता यह इजरायल का अंगभूत गुण है। एरोस्फेस ने देश की जरुरत तो फूरी की ही, मगर अन्य देशों को हवाईजहाज और अन्य उपकरणों की निर्यात भी वह करती है। यहॉं अच्छी सिक्युरिटी थी। मोबाईल के लेन्सेस पर कोठेड स्टिकर लगाकर उन्होंने हमारे मोबाईल हमें लौटा दिए। यह हमारे पास जमा कीजिए और पोटो निकालना मना है ऐसा धाक जमाने की भावना नहीं थी। छोटे से दरवाजे से भीतर जाते ही एक अद् भुत विश्व ही दिखाई दिया। इजरायल मनुष्यजीवन महत्त्वफूर्ण मानता है इसलिए वहॉं मानवरहित युद्धसामग्री विकसित करने पर बडा बल दिया जाता है। ठ्रोन यह इसका महत्त्वफूर्ण हिस्सा है। ठ्रोन अर्थात रिमोट द्वारा संचाचित उडते यंत्र। मिसाइल दागने से जासूसी करने तक इसका इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न आकार के ठ्रोन यहॉं पाए जाते हैं। ‘मॉस्किटोफ नामक दो हाथों में समाने वाले ठ्रोन को लेकर हवाई जहाज जितने महाकाय ठ्रोन्स का दर्शन यहॉं होता है। दो-तीन वैज्ञानिक एवं मार्केटिंग विभाग प्रमुख से मुलाकात हो गई। उचित मूल्य, टिकाऊ यह बातें उनके बोलने में बार बार आ रही थी। ज्यू मनुष्य की विनोदबुद्धी यह अलग विषय है। एक वैज्ञानिक ने कहा, ‘हम कुछ भी छुपाकर नहीं रखते हैं। यह तो सारा ज्ञान है।फफ हम सम्मानभरी नजरों से देखने लगे तब उन्होंने कहा, ‘ङ्घहम कापी सज्जन है ऐसा मतलब नहीं है। तंत्रज्ञान तो बदलते रहता है। आप केपास जो बेचनेलायक होता है वह तो दूसरे दिन भंगार बन सकता है।फफ ज्ञान-तंत्रज्ञान के बारे मेंइजरायल का यह ह्ष्टिकोण है।
जेरुसलेम को बडा फुराना इतिहास है। विश्व के तीन महत्त्वफूर्ण धर्मों का जन्म इस भूमी पर हुआ है। दो बार तो जेरुसलेम ध्वस्त हुआ है और तेईस बार जेरुसलेम की रचना हुई है। जेरुसलेम पर ५२ बठे हमले हुए हैं। राजा ठेव्हिड और उसका फुत्र सालोमन ने ज्यू लोगों का श्रद्धास्थान मानी गई इस भूमी का निर्माण किया है। जीजस ख्राईस्ट को यहीं पर क्रूसीपाइड किया गया और दपनविधि भी यहीं पर हुआ था। मुहम्मद फैगंबर को इस्लाम का बोध जहॉं हुआ था वह अल हरम अश्रीम यह मसजिद भी यहीं पर है। ज्यू लोगों का टेंपल माऊंट और उसकी शेष दिवार जो आज वेस्टर्न वॉल नाम से पहचानी जाती है, यह जगह छोडने को आज ज्यू तैयार नहीं है। विश्व के किसी भी देश के साथ दो हाथ करने के लिए ज्यू तैयार है।
मह स्थान तो करीबन ५०० मीटर की परिघि में हैं। अन्म धर्मिमों को महॉं आने की इजाजत नहीं है। मुसलमान केवल मसजिद में जा सकते हैं। महॉं उत्खनन और संशोधन जारी है। दबे हुए दाविद के शहर के सबूत महॉं मिलते है। मह देखकर रामजन्मभूमी का स्मरण हुआ। इजरामल की सहिष्णुता और कर्मडता महॉं दिखाई देती है। आसपास का शहर और शेष वास्तू जेरुसलेम स्टोन नामक पीले पत्थर से बनाई गई है। सारा शहर एक ही रंग में रंगा और सुंदर दिखता है।
प्रखर राष्ट्रभक्ति प्रकट करनेवाला और दो टूक जवाब देनेवाला देश ऐसी इजराएल की प्रतिमा हमारे मन में होती है। लेकिन इस प्रतिमा से आगे जाकर स्वयं की नई प्रतिमा बनाने में यह देश जुटा है। कृषि, पशुपालन, सामरिक यंत्रसामग्री, सूचना प्रौद्योगिकी का बहुत बडा ज्ञान विश्व को देने के (बेचने के) लिए इजराएली आदमी प्रयास कर रहा है।
जिसका अर्थकारण मजबूत है वह देश युद्ध में जीतेगा यह उनको पता है। अर्फेो नित्यनूतन प्रयोग और ज्ञान के आधार पर विश्व से जुडने का प्रयास यह लोग कर रहे हैं। इस्लामी आतंकवाद से वह शुरू से ही संत्रस्त हैं। मगर उनके डर से समय बिगाडने वाली जांचपडताल, नाकाबंदी आदि यहॉं दिखती नहीं है। तेल अवीव में बहुतांश जगह पर वायपाय मुफ्त है। गाडी में भी वायपाय मिलता है। मगर आतंकवादी इस्तेमाल कर सकते हैं इस डर से हमारे देश में आम आदमी को वायपाय नहीं मिल पा रहा है।
एक मानसिक युद्ध में कैद हो गए हैं। लेकिन यह लोग आगे बढकर प्रयासरत हैं। इस छोटी सपर में किसान, अन्वेषक, पत्रकार, गाईड, प्रशासनिक अधिकारी आदि से मुलाकातें हुई। एक बात नजर आई कि कोई कहीं भी लेट नहीं आया था। भारत के बारे में इन लोगों को बडी आस्था है। मोदी जी के मेक इन इंडिया को सहयोग देने में सामान्य उद्योजक भी स्वारस्य रखता है। यहॉ लोकतंत्र और उसके नुकसान भी है। दलबदल, संख्याबल कम-ज्यादा होना यह होते रहता है। लेकिन देश के मूलभूत पॉलिसीयों में बदलाव नही आता है। राष्ट्रफुरुषों की बडी परंपरा इनके पास नहीं है, मगर इतिहास के संदर्भ में इजरायल जकडा हुआ नहीं है। हर दिन कुछ नया करने की प्रेरणा और उसलिए उचित वातावरण निर्माण करनेवाली समाजव्यवस्था यह इजराएल की सपलता का रहस्य है। राष्ट्र निर्माण का कार्य परंपरा और इतिहास नहीं बल्कि वर्तमान का मनुष्य करता है, इसका अनुभव इजरायल के सपर में सदा आते रहता है।

किरण शेलार

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