संसार में परिवर्तन के लिए सबसे आवश्यक वस्तु यदि कोई है तो वह है विचार। विचार ही सर्वप्रथम परिवर्तनकर्ता के मन में आता है, पहले वह स्वयं उस मार्ग पर चलता है अर्थात उसे आचार में लाता है और फिर अन्य लोग भी उसके साथ जुड़ते चले जाते हैं। भारत में कई अवतारी पुरुष, महापुरुष, संत-महात्मा तथा दार्शनिक हुए हैं, जिन्होंने कालानुरुप तथा आवश्यकता के अनुसार भारत के सामान्य जनों का अपने विचार और आचार से मार्गदर्शन किया है। किसी ने धर्म का मार्ग दिखाया, किसी ने अध्यात्म की अलख जगाई, किसी ने सामर्थ्य तथा क्षात्रतेज जागृत किया और किसी ने हिंसा का अतिरेक होता देख अहिंसा का पाठ पढ़ाया। उनके द्वारा दिए गए विचारों को आत्मसात करने, उनके बताए गए मार्ग पर चलने अर्थात उसे आचरण में लाने और उनके अनुरूप अपने जीवन को ढ़ालने के लिए उनका निरंतर स्मरण करते रहना आवश्यक होता है और इसी हेतु से उनकी जन्मतिथि तथा पुण्यतिथि मनाई जाती है।
यह वर्ष भगवान महावीर के निर्वाण का 2550वां वर्ष है। जैन समाज के साथ ही पूरा विश्व उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं से अभिभूत है। उनके विचारों को कई लोग जानते हैं परंतु उसे आत्मसात करके उस पर चलने का, उसके अनुरूप आचरण करने का प्रयत्न कितने लोग कर रहे हैं? यह प्रश्न केवल भगवान महावीर से सम्बंधित नहीं है। हम जितने भी महापुरुषों की जयंतियां या पुण्य तिथियां मनाते हैं, उन सभी से सम्बंधित है। ‘मनाने’ के उत्साह में हम यह भूल जाते हैं कि किसी एक दिन उनके लिए इतना दिखावा करने के बजाय आजीवन उनके दिए गए विचारों पर चलना हमारे लिए अधिक श्रेयस्कर होगा।
एक और बात जो हमें महापुरुषों के विचारों पर चलते समय ध्यान रखनी चाहिए कि हम उनके विचारों की सही व्याख्या, सही विवेचन करें। विचारों का अतिरेक न हो, उनका वैज्ञानिक और तार्किक आधार हो। यह व्याख्या प्रश्नों का अपेक्षित उत्तर देने वाली होनी चाहिए, यह विवेचन मन के सम्भ्रम दूर करने वाले होने चाहिए। जब वे विचार दिए तब की परिस्थिति और वर्तमान परिस्थिति के अंतर को समझते हुए आचार में कालानुरूप परिवर्तन होेने चाहिए अन्यथा नई पीढ़ी उन विचारों को समझने का भी प्रयत्न नहीं करेगी, उन्हें अपनाने की बात तो बहुत दूर की कौड़ी होगी।
भगवान महावीर ने आज से 25 शतक पूर्व जो विचार दिए थे उनका तादात्म्य वर्तमान परिस्थिति के अनुरूप होना आवश्यक है। आज सम्पूर्ण संसार ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ की अंधी दौड़ में दौड़ रहा है। मनुष्य जंगल छोड़कर समाज में तो रहने लगा है परंतु जंगल का यह नियम अभी तक उसके दिमाग से नहीं निकला है। भारत भी इस दौड़ में तो है परंतु वह अंधे होकर नहीं दौड़ रहा है क्योंकि उसके पास भगवान महावीर तथा उनके जैसे अन्य महापुरुषों के विचार हैं जो विश्व शांति तथा वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देते हैं।
भारत की विविधता में एकता इसी बात का प्रमाण है कि हम अनेकांतवादी हैं। मोक्ष या ईश्वर प्राप्ति के लिए हम केवल किसी एक पंथ को चुनने के लिए बाध्य नहीं हैं। हमारे पास अनेक पंथ हैं, हमारे पास अनेक देवता हैं, हमारे पास अनेक विधियां हैं। केवल जैन समाज में ही देखें तो दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथ आदि विविध उपासना पंथ हैं, परंतु वे सभी भगवान महावीर तथा अन्य तीर्थंकरों के विचारों का ही अनुगमन करते हैैं।
हमारे सभी पंथ भौतिक जगत से परे जाकर आत्मावलोकन तथा आत्मशुद्धि करके हमें ईश्वर तक पहुंचाते हैं। अत: जब भौतिक जगत से निर्लेपता आ जाती है तो किसी से स्पर्धा की आवश्यकता नहीं जान पड़ती और जब स्पर्धा ही नहीं रहती तो हिंसा की बात ही नहीं आती और अपरिग्रह भी अपने आप हो जाता है। किसी दूसरे के पास जो है उसे प्राप्त करने का या उससे अधिक प्राप्त करने का लालच समाप्त हो जाता है और भगवान महावीर के विचार अपने आप ही आचार में आने लगते हैं, लेकिन मनुष्य मन के लिए ये इतना सरल नहीं होता। उसके लोभ, ईर्ष्या और द्वेष जैसे अवगुण उसे इस मार्ग पर चलने से परावृत्त करते रहते हैं। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि हम उनके विचारों का सतत मनन-चिंतन करें और उन्हें अधिकतम आचरण में लाने का अभ्यास करें तभी विचार प्रवाहमान होंगे और महापुरुषों ने जिस उद्देश्य से वे सम्पूर्ण मानव सृष्टि को दिए हैं उस उद्देश्य को प्राप्त करेंगे।
उद्देश्य प्राप्ति के इस प्रयास में हिंदी विवेक भी यह तीर्थंकर भगवान महावीर विशेषांक प्रकाशित कर रहा है। इस विशेषांक को आप सभी सुधि पाठकों तक पहुंचाने के लिए सुहाना मसाले (प्रवीण मसाले) के डायरेक्टर विशाल कुमार चोरडिया ने प्रायोजक तथा महती इंडस्ट्रीज प्रा. लि. के संचालक सुजय शाह के सहप्रायोजक के रूप में हमें सहयोग दिया। साथ ही हिंदी विवेक के शुभचिंतक परेश शाह का भी हमें सहयोग प्राप्त हुआ। हम इन सभी के आभारी हैं।