मौजूदा वक्त में जब सारे कामकाज इंटरनेट पर आधारित तकनीकों और उपकरणों के हवाले करने की बात हो रही है, ऐसे में अगर नौबत किसी तात्कालिक शटडाउन की आती है तो दुनिया का क्या होगा। इंटरनेट और कंप्यूटरों के संजाल पर टिकी व्यवस्था को जरूरी नहीं कि कोई हैकर या साइबर हमला पंगु बना दे। बल्कि हो सकता है कि उसके अंदर स्वतः संचालित होने वाली कोई दोषपूर्ण व्यवस्था ही ऐसा कारनामा कर दे और दुनिया ठगी रह जाए। आज जिस तरह से पूरी दुनिया में इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों के नेटवर्क से अस्पताल चलाए जा रहे हैं, ट्रैफिक नियंत्रण किया जा रहा है, शेयर बाजार, आरक्षण प्रणालियां और यहां तक देशों के सुरक्षा तंत्र उन पर कायम हैं- ऐसे में कोई तकनीकी खामी ही सारे प्रबंधों को एक ही पल में तबाह कर डाले।
यह कहावत इंटरनेट के दौर से काफी पहले की है कि विज्ञान वरदान भी है और अभिशाप भी। विज्ञान की देन तकनीक भी इसी के दायरे में आती है। यह कहावत इधर एक बार फिर तब सच साबित हुई, जब 19 जुलाई 2024 को माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ पर चलने वाले दुनिया भर के कंप्यूटर अचानक ठप पड़ गए। इस मुसीबत की वजह माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम को साइबर हमलों से बचाने वाला एक सॉफ्टवेयर अपडेट था, जिसे एक अन्य कंपनी क्राउडस्ट्राइक ने जारी किया था। यह अपडेट त्रुटिपूर्ण था, इसलिए जैसे ही यह स्वतः ही संचालित हुआ, एक वैश्विक तकनीकी आपदा का कारण बन गया।
यह एक कंप्यूटरीकृत प्रबंध था, जो शायद बेहद मामूली कहा जा सकता है, लेकिन उसका असर ऐसा था, जिसने साबित कर दिया है कि तकनीकी प्रबंधों के मामले में किसी एक कंपनी और उसके उत्पादों पर निर्भरता दुनिया को कितनी भारी पड़ सकती है। यह तकनीकी आपदा कितनी बड़ी थी, इसका अंदाजा इससे लग सकता है कि माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ पर चलने वाले लाखों कंप्यूटर ठप्प हो गए। इससे हवाई अड्डों पर विमान का संचालन रुक गया, टीवी प्रसारण थम गए, आपातकालीन सेवाओं में गड़बड़ी पैदा हो गई, बैंक और शेयर बाजारों में सन्नाटा छा गया। यही नहीं, दुनिया भर के हजारों कार्यालयों का कामकाज प्रभावित हुआ। सिर्फ वही देश और कंप्यूटर इस आपदा से बचे जिनका ऑपरेटिंग सिस्टम कोई और है, माइक्रोसॉफ्ट नहीं। जैसे कि चीन इससे अप्रभावित रहा। आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपनी ओर से जारी बयान में पूरी दुनिया के 85 लाख कंप्यूटरों के प्रभावित होने की बात स्वीकारी है, लेकिन बहुत संभव है कि इसका असर कहीं ज्यादा बड़ा हुआ है। अब सवाल है कि कैसे एक बेहद छोटी सी घटना तकनीकी आपदा बन गई और क्या इससे बचाव संभव है।
असल में, इस समस्या को ब्लू डेथ ऑफ स्क्रीन (बीडीओएस) नाम से पुकारा जा रहा है।
इसके तहत किसी कंप्यूटर वायरस के हमले, हैकिंग या अंदरूनी हार्डवेयर की गड़बड़ी होने पर माइक्रोसॉफ्ट विंडोज से चलने वाले कंप्यूटरों की पूरी स्क्रीन अचानक आसमानी नीले रंग की हो जाती है और उन पर एक त्रुटि (एरर) का संदेश आने लगता है। यही सब कुछ 19 जुलाई को दोषपूर्ण सॉफ्टवेयर अपडेट के दौरान हुआ क्योंकि कंप्यूटरों ने गलत अपडेट को एक साइबर हमला समझ लिया। गौरतलब है कि कंप्यूटरों पर विभिन्न गतिविधियों के कारण त्रुटियों के ऐसे संदेश स्थानीय स्तर पर आते रहते हैं, लेकिन इस बार यह समस्या विश्वव्यापी थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ज्यादातर कंप्यूटर क्लाउड नेटवर्क से जुड़े थे। इन कंप्यूटरों के नीले स्क्रीन ने साफ कर दिया कि उनका सिस्टम क्रैश हो गया है। क्राउडस्ट्राइक फाल्कन नामक यह सॉफ्टवेयर अपडेट दरअसल एक साइबर सुरक्षा टूल है जो कंप्यूटरों को विभिन्न साइबर हमलों से बचाने के लिए बनाया गया है, लेकिन इसमें तकनीकी खामी थी। इसलिए जहां-जहां माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ से लैस कंप्यूटर चल रहे थे, उन सभी का संचालन एक झटके में रुक गया।
हालिया तकनीकी आपदा ने एक बड़ा सवाल यह पैदा किया है कि मौजूदा वक्त में जब सारे कामकाज इंटरनेट पर आधारित तकनीकों और उपकरणों के हवाले करने की बात हो रही है, ऐसे में अगर नौबत किसी तात्कालिक शटडाउन की आती है तो दुनिया का क्या होगा। इंटरनेट और कंप्यूटरों के संजाल पर टिकी व्यवस्था को जरूरी नहीं कि कोई हैकर या साइबर हमला पंगु बना दे। बल्कि हो सकता है कि उसके अंदर स्वतः संचालित होने वाली कोई दोषपूर्ण व्यवस्था ही ऐसा कारनामा कर दे और दुनिया ठगी रह जाए। आज जिस तरह से पूरी दुनिया में इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों के नेटवर्क से अस्पताल चलाए जा रहे हैं, ट्रैफिक नियंत्रण किया जा रहा है, शेयर बाजार, आरक्षण प्रणालियां और यहां तक देशों के सुरक्षा तंत्र उन पर कायम हैं- ऐसे में कोई तकनीकी खामी ही सारे प्रबंधों को एक ही पल में तबाह कर डाले। दावा किया जाता है कि कंप्यूटरों को वायरस से बचाने के लिए एंटी-वायरस उपलब्ध हैं, साइबर हमलों की रोकथाम के ढेरों प्रबंध हैं, लेकिन सॉफ्टवेयर अपडेट जैसी मामूली गतिविधि ही जब इतना बड़ा संकट पैदा कर सकती है तो शेष तकनीकी आपदाओं के बारे में क्या कहा जाए।
ऐसा नहीं है कि इंटरनेट पर आश्रित साइबर नेटवर्क के बैठ जाने की यह अकेली घटना हो।
बल्कि कई छोटे-मोटे तकनीकी हादसे तो अक्सर होते ही रहते हैं। कभी व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि संचालित करने वाली कंपनी- मेटा का सर्वर ठप्प पड़ जाता है तो कभी गूगल की चाल मंद पड़ जाती है। साइबर हमलों और हैकिंग ने दुनिया को अलग से हैरान-परेशान कर रखा है। हालांकि इंटरनेट और कंप्यूटरों ने बहुत से कामकाज सुविधापूर्ण बना दिए हैं। कोविड महामारी के दौरान जिस तरह से इन प्रबंधों ने दुनिया की चाल को कायम रखा, वह तो विशेष रूप से उल्लेखनीय है, लेकिन जैसे-जैसे चुनिंदा तकनीकी कंपनियों पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है, उसमें हमें ऐसी तकनीकी आपदाओं के लिए तैयार रहना होगा। तकनीकी प्रबंधों के बल पर जो दुनिया एक टापू में बदल गई है, उस टापू को कोई तकनीकी तूफान कैसे तबाह कर सकता है- इस सबक को याद रखने और इससे बचने के प्रबंध करने का वक्त अब आ चुका है। इससे भी ज्यादा जरूरत इस बात की है कि सारा कामकाज मशीनों और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को सौंपने की बजाय इंसानी हाथ पर भी भरोसा किया जाए।
आखिर जब हवाई अड्डों पर कंप्यूटर काम नहीं कर रहे थे, तो यात्रियों को हाथ से लिखे बोर्डिंग पास थमाए जा रहे थे। डिजिटल बोर्ड की जगह व्हाइट बोर्ड पर विमानों के आवागमन की सूचना दी जा रही थी। यह मानकर चलना होगा कि इंटरनेट और क्लाउड नेटवर्क जैसे उपायों को कोई साइबर हमला, शत्रु देश की हैकिंग या फिर मामूली तकनीकी गड़बड़ी ही एक झटके में ध्वस्त कर सकती है। ऐसे में उन सभी त्वरित गैर-मशीनी विकल्प तैयार करने की जरूरत है जिन्हें किसी इंटरनेट या कंप्यूटर के बिना भी जरूरत के समय चलाया जा सकता है।