रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरे विश्व को दो भागों में बांट दिया है, परंतु भारत किसी खेमे में न होकर शांति का पक्षधर रहा है। पश्चिम के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस का झुकाव चीन की ओर हुआ है। भारत, चीन व रूस के बीच बढ़ती नजदीकियों से बेहद चिंतित है। ऐतिहासिक रूप से चीन के विरुद्ध भारत का सबसे बड़ा समर्थक रूस ही रहा है, परंतु पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस व चीन के सम्बंध ‘कोई सीमा नहीं’ तक गहरे हो गए हैैं। मोदी की मॉस्को की यह यात्रा, चीन की कूटनीति के बेलगाम सहयोग पर अवरोध का काम करती है।
मध्य-पूर्व की स्थिति, रूस-चीन की गहरी होती दोस्ती और यूक्रेन युद्ध के कारण उत्पन्न संघर्ष, प्रतिस्पर्धा, तनाव के समय में भू-राजनीतिक हलचल पैदा तब हो गई, जब भारत-रूस सम्बंधों के 22वें शिखर सम्मेलन के लिए 8 व 9 जुलाई 2024 को भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी मॉस्को की यात्रा पर गए और उसी समय अमेरिका में नाटो का 75वां वर्षगांठ मनाया जा रहा था। जिसमें यूक्रेन के लिए सहयोग और नाटो में उसकी सदस्यता अहम मुद्दा शामिल था।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरे विश्व को दो भागों में बांट दिया है, परंतु भारत किसी खेमे में न होकर शांति का पक्षधर रहा है। पश्चिम के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस का झुकाव चीन की ओर हुआ है। भारत, चीन व रूस के बीच बढ़ती नजदीकियों से बेहद चिंतित है। ऐतिहासिक रूप से चीन के विरुद्ध भारत का सबसे बड़ा समर्थक रूस ही रहा है, परंतु पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस व चीन के सम्बंध ‘कोई सीमा नहीं’ तक गहरे हो गए हैैं। मोदी की मॉस्को की यह यात्रा, चीन की कूटनीति के बेलगाम सहयोग पर अवरोध का काम करती है।
वर्ष 2020 में गलवान घाटी के संघर्ष के बाद से चीन के विरुद्ध अमेरिका ने भारत को पूर्ण समर्थन दिया, जिससे भारत व अमेरिका के सम्बंधों में निकटता आई। भारत और अमेरिका के हित एक दूसरे से जुड़े हुए भी हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका को भारत की जरूरत है तथा व्यापार और रक्षा प्रौद्योगिकी के लिए भारत को अमेरिका की आवश्यकता है। इन सभी कारण से अमेरिका को पूरी उम्मीद थी कि भारत का झुकाव अमेरिका की तरफ होगा। बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच भारत व अमेरिका के बीच सम्बंधों में काफी सम्भावनाएं तो दिखी हैं, परंतु वह अपनी धरती पर भारत विरोधियों का संरक्षक बनकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है। खालिस्तानी निज्जर-पन्नु मामले सामने आने के बाद से अमेरिका का रुख भारत के विरुद्ध रहा और भारतीय व्यवसाई निखिल गुप्ता पर हत्या का आरोप गढ़ा, परंतु उन्हें सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं किया। पिछले महीने विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने व्यक्तिगत रूप से विदेश विभाग की ‘धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2023’ जारी की। इसमें मुसलमानों और ईसाइयों पर हिंसक हमलों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ‘भारत में हम धर्मांतरण विरोधी कानूनों, अभद्र भाषा, अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के सदस्यों के घरों और पूजा स्थलों को ध्वस्त करने में चिंताजनक वृद्धि देखते हैं।’ यह अमेरिका के द्वारा भारत के आंतरिक मामलों पर सीधा हमला था, जिसे भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि रिपोर्ट बहुत पक्षपातपूर्ण है और इसमें अमेरिका को भारत के सामाजिक ताने-बाने की समझ का अभाव है। इसी प्रकार चीन भारतीय सीमाओं की घेराबंदी में लगा है तथा पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का समर्थन कर कश्मीर में आतंकवाद फैला रहा है, जबकि अमेरिकी और पाकिस्तानी नौसेनाओं ने कराची में चार दिवसीय द्विपक्षीय प्रशिक्षण अभ्यास ‘इंस्पायर्ड यूनियन 2024’ का आयोजन किया। वास्तव में अमेरिका भारत की विदेश नीति के विकल्पों को सीमित करना चाहता है। यदि नाटो चीन के साथ रचनात्मक जुड़ाव का इच्छुक हो सकता है, तो भारत का रूस के साथ इसी तरह की रणनीति अपनाने में पश्चिम के देशों को परेशान नहीं होना चाहिए।
प्रधान मंत्री मोदी की मॉस्को यात्रा रूस के लिए महत्वपूर्ण है, जो चीन को यह संकेत देने के लिए पर्याप्त है कि रूस के पास अन्य दोस्त भी हैं और वह बीजिंग पर निर्भर नहीं है। इसके साथ ही मोदी का रूस दौरा पश्चिमी देशों के लिए इशारा है कि वह अपनी रक्षा और अन्य जरूरतों के लिए पूरी तरह पश्चिमी देशों पर निर्भर नहीं है। नई दिल्ली का मॉस्को के साथ एक लम्बा रिश्ता है और वह यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि रूस-चीन सम्बंध और अधिक गहरे न हों। हालांकि अभी भी रक्षा व ऊर्जा का प्रमुख आपूर्तिकर्ता रूस ही है। भारत को अपने रूसी हथियारों के विशाल भंडार को बनाए रखने के लिए आपूर्ति, स्पेयर पार्ट्स और तकनीकी सहायता तक पहुंच बनाए रखने की जरूरत है। भारत को सस्ते रूसी तेल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना अपने विकास को बढ़ावा देने वाला सबसे बड़ा साधन है। रूस ऐतिहासिक रूप से भारत का एक विश्वसनीय भागीदार रहा है तथा समय पर रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और उन्नत प्रौद्योगिकियां प्रदान की हैं। रूस ने भारत के आंतरिक मामलों में कभी हस्तक्षेप नहीं किया है। स्वतंत्रता के बाद दशकों से लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बदल गए हैं, कई देश गृह युद्ध में फंस गए और कई देशों के बीच रिश्तों में गिरावट भी आई, मगर भारत और रूस आज तक बिना किसी अविश्वास के मित्रता निभा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस ने अपने हिस्से की दोस्ती निभाई है।
यही कारण है कि भारत ने रूस और पश्चिमी देशों के मध्य संतुलित सम्बंधों पर जोर दिया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ने स्पष्ट कर दिया कि पश्चिमी देशों से मजबूत सम्बंधों के साथ रूस भारत की प्राथमिकता है। भारत ने युद्ध को लेकर रूस का प्रत्यक्ष विरोध तो नहीं किया, लेकिन विभिन्न मंचों से रूस और यूक्रेन से शांति वार्ता की अपील करता रहा है। पश्चिम के साथ भारत का जुड़ाव संरचनात्मक रूप से सुरक्षित, व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य है। आगामी कुछ वर्षों में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होने का अनुमान है। अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम या फिर चीन-रूस गठबंधन के साथ बहुत अधिक निकटता से जुड़ना भारत के दीर्घकालिक हित में नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस दोनों के साथ सम्बंध बनाने और दोनों रिश्तों को संतुलित करना ही भारत व विश्व के हित में है।
रूस यात्रा के तुरंत बाद भारत के प्रधान मंत्री आस्ट्रिया के दौरे पर चले गए, जो नाटो का सदस्य नहीं है। वर्ष 1949 में राजनयिक सम्बंध स्थापित हुए और यह यात्रा 41 वर्षों में किसी भारतीय प्रधान मंत्री की पहली ऑस्ट्रिया यात्रा है। इस वर्ष राजनयिक सम्बंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ भी है। समुद्री सुरक्षा व अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता के लाभ के लिए, सम्प्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और नेविगेशन की स्वतंत्रता के लिए, एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए दोनों देशों ने अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया। भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र में आईएसआर के लिए कैमकॉप्टर एस-100 रोटरी मानवरहित हवाई प्रणाली का उपयोग कर रही है, जो द्विपक्षीय तकनीकी सहयोग में एक मील का पत्थर है।
भारत ने अपनी विदेश नीति के माध्यम से वैश्विक स्तर पर स्पष्ट किया है कि भारत अपने हितों से समझौता भी नहीं करेगा तथा भारत रूस, अमेरिका और यूरोप के साथ संतुलन साधने का पक्षधर भी है।
डॉ. नवीन कुमार मिश्र