भारत व ब्रिटेन के बीच व्यापारिक आधार पर ही नहीं अपितु हिंद-प्रशांत क्षेत्र से सम्बंधित वैश्विक स्थिति को लेकर भी दोनों देशों को अब समन्वय, सूझबूझ, सहयोग, सहानुभूति एवं समझदारी से काम लेने की सामयिक आवश्यकता है। चूंकि दोनों देशों को अपने लोगों की प्रगति और समृद्धि के साथ-साथ वैश्विक भलाई हेतु अपनी व्यापक रणनीतिक समझदारी के आधार पर कार्य करने की भी जरूरत है।
विगत माह ब्रिटेन, फ्रांस और ईरान में संसदीय चुनाव सम्पन्न हुए, जिसमें सत्ताधारियों को जोर का झटका बड़े धीरे से लगा। ब्रिटेन में ऋषि सुनक की जहां कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता से बाहर हुई, वहीं फ्रांस में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां की रेनेशां को वामपंथी झुकाव वाले गठबंधन की जीत के बाद प्रधान मंत्री गैब्रियल एटल ने अपने पद से त्यागपत्र देने की घोषणा की। इधर ईरान में भी सुधारवादी नेता मसूद पेजेशकियान ने कट्टरपंथी सईद जलीली को हराकर राष्ट्रपति चुनाव जीता। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह प्रश्न उठने लगे हैं कि भारत के प्रति इन नए सत्ताधारी देशों की सरकार आखिर क्या रुझान रखेंगी? क्या सम्बंधों के नए समीकरण होंगे? ब्रिटेन के नवनिर्मित प्रधान मंत्री किएर स्टार्मर ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफ.टी.ए.) अनवरत जारी रहेगा। वह भारत ब्रिटेन के बीच ऐसा मुक्त व्यापार समझौता करेंगे, जिससे दोनों देशों को लाभ मिलें। उन्होंने भारत के साथ मिलकर वैश्विक चुनौतियों पर साथ काम करने की इच्छा प्रकट की है।
फ्रांस में हुए संसदीय चुनाव में वामपंथी गठबंधन ‘न्यू पॉपुलर फ्रंट’ को 180, मैक्रोनीत मध्यमार्गी गठबंधन को 160 और धुर दक्षिण पंथी ‘नेशनल रैली’ को 140 सीटों के साथ संसदीय चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला। इस बीच धुर-दक्षिण पंथी नेशनल पार्टी के नेता मरीन ली पेन ने देश में राजनीतिक गतिरोध के लिए राष्ट्रपति मेक्रों को उत्तरदायी ठहराया। उन्होंने कहा कि इसी कारण आज हम राजनीतिक दलदल में फंसे। कोई नहीं जानता कि कौन प्रधान मंत्री बनेगा? आधुनिक फ्रांस में पहली बार संसद की स्थिति त्रिशंकु बनी है। इस स्थिति के बावजूद भारत के साथ राजनीतिक, राजनयिक, सामरिक तथा आर्थिक सम्बंधों में कोई बड़े पैमाने पर बदलाव की सम्भावनाएं नहीं हैं। चूंकि कोई भी नवनिर्मित नेता देश के प्रतिकूल सम्बंधों से समझौता नहीं करेगा। भारतीय विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने एक्स पर जानकारी दी कि ‘ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड लमी से बात करके अच्छा लगा और हमने समग्र रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत बनाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है, विश्वास है कि उनसे यथाशीघ्र मुलाकात होगी।’
उल्लेखनीय है कि मुक्त व्यापार समझौतों (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) के लिए लम्बित मुद्दों को सुलझाने और वार्ता को अंतिम रूप देने के लिए इसी महीने अगले दौर की वार्ता होगी। दोनों देश के बीच प्रस्तावित एफ.टी.एफ. वार्ता जनवरी 2022 से शुरू हुई थी। मुक्त व्यापार संधि के सम्बंध में कहा जाता है कि यह सभी के लिए लाभदायक है, किंतु यदि हम इसके इतिहास से सबक ले तो हम यह पाते हैं कि मुक्त व्यापार संधियां भी हाथी दांत की तरह खाने के और दिखाने के कुछ और जैसी ही हैैं। भारत और ब्रिटेन के बीच 2021 में 2030 का रोड मैप तैयार किया गया था और इसमें 2030 तक स्वास्थ्य, जलवायु, व्यापार, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा रक्षा पर सहयोग को गहरा करने की प्रतिबद्धताएं शामिल की गई थी।
जहां एक ओर भारतीय उद्योग ब्रिटिश बाजारों से सूचना तकनीकी (आई.टी.) और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में अपने मेधावी तथा कुशल पेशेवरों के लिए अधिक से अधिक पहुंच और शून्य सीमा शुल्क पर अनेक वस्तुओं हेतु बाजार में पहुंच की मांग कर रहा है, वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन द्वारा भी स्कॉच-व्हिस्की, इलेक्ट्रिक वाहन, चॉकलेट और अन्य अनेक वस्तुओं पर आयात शुल्क में कटौती की मांग कर रहा है। भारतीय बाजारों में अपनी पहुंच को सीधी, सरल व सस्ती बनाने के लिए ब्रिटेन का व्यापार दूरसंचार, कानूनी और वित्तीय सेवा (विशेष रूप से बैंकिंग और बीमा) जैसे क्षेत्रों में अधिक अवसरों की तलाश में लगा हुआ है।
दोनों देश अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए द्विपक्षीय निवेश संधि (बिलेटरल इनवेस्टमेंट ट्रिटीज) पर भी बातचीत का सिलसिला निरंतर जारी है। थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जी.टी.आर.आई.) के अनुसार समझौते को लगभग अंतिम रूप दे दिया गया है और भारतीय पेशवरों के लिए विजिटर इंटरनेशनल स्टे एडमिशन (वीजा) की संख्या में कटौती जैसे कुछ समायोजन के साथ पूर्ण बहुमत वाली लेबर पार्टी की सरकार इसे मंजूरी दे सकती है। ब्रिटेन की नई संसद में भारतीय मूल के 26 सांसद शामिल हो रहे हैं, जिसमें 20 सांसद सत्ताधरी लेबर पार्टी के अलावा पूर्व प्रधान मंत्री ऋषि सुनक के अतिरिक्त 5 सांसद कंजर्वेटिव पार्टी के हैं। ब्रिटेन की नई सरकार ने भारतीय मूल की लिसा नंदी को संस्कृति मंत्री बनाया गया है।
भारत व ब्रिटेन के बीच व्यापारिक आधार पर ही नहीं अपितु हिंद-प्रशांत क्षेत्र से सम्बंधित वैश्विक स्थिति को लेकर भी दोनों देशों को अब समन्वय, सूझबूझ, सहयोग, सहानुभूति एवं समझदारी से काम लेने की सामयिक आवश्यकता है। चूंकि दोनों देशों को अपने लोगों की प्रगति और समृद्धि के साथ-साथ वैश्विक भलाई हेतु अपनी व्यापक रणनीतिक समझदारी के आधार पर कार्य करने की भी जरूरत है।
भारतीय राजनय की गहन परीक्षा ब्रिटेन के इस सत्ता परिवर्तन में होगी, क्योंकि भारत को यह आशा रहेगी कि लेबर पार्टी की सरकार खालिस्तान समर्थक संगठनों पर लगाम लगाने में अपनी प्रतिबद्धता दिखाएं। चूंकि विगत कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि भारतीय उच्च आयोग के सामने अनेक बार खालिस्तान समर्थकों ने हिंसक प्रदर्शन किए हैं, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव दोनों देशों के सम्बंधों पर पड़ा है। इस बार के ब्रिटेन के संसदीय चुनाव में 10 सिख सांसद लेबर पार्टी से चुने गए हैं। इनका समर्थन जहां भारतीय सम्बंधों को सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध हो सकेगा, वही इनका विरोध सम्बंधों के लिए एक संकट भी पैदा करेगा। देखना यह होगा कि भारतीय विदेश नीति व कूटनीति किस तरह से अपना सामंजस्य बैठाती हैं।
विश्वास है कि ब्रिटेन की पूर्ण बहुमत वाली लेबर पार्टी की सरकार भारत और ब्रिटेन के सम्बंधों के लिए शुभ सिद्ध होगी। चूंकि लेबर पार्टी के घोषणा पत्र में भारत के साथ एक नई रणनीतिक साझेदारी के विकास के लिए प्रतिबद्धता शामिल थी। मुक्त और खुला हिंद-प्रशांत समुद्री क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भारत के साथ काम करने की सकारात्मक योजना लेबर पार्टी बना रही है। इसके साथ ही लेबर पार्टी ने कश्मीर पर भी हस्तक्षेप न करने की बात कही है और कश्मीर को भारत तथा पाकिस्तान के बीच का आंतरिक मुद्दा बताया। वैश्विक स्तर पर ब्रिटिश सरकार ने जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विकास, प्रौद्योगिकी और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग गहरा करने की भी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। भारत-ब्रिटेन के घनिष्ठ सम्बंधों को भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक तथा भू-सामरिक दृष्टि के साथ ही जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से विश्लेषण किया जाना सम-सामयिक आवश्यकता है।
डॉ. सुरेंद्र कुमार मिश्र