पिछले तीन दशकों से आतंकवाद की समस्या झेल रहा है और इस समस्या का सक्षम एवं उचित समाधान खोजने में वह विफल रहा है। यह कटु सत्य है। पाकिस्तान समर्थक प्रबल अतिरेकी संगठन आतंकवाद फैलाकर भारत में अस्थिरता पैदा करने के प्रयत्न वर्षों से कर रहे हैं और अब तो नए-नए आतंकवादी खतरे भारत की दहलीज पर आ धमके हैं। मुंबई से सटे कल्याण से पांच माह पूर्व अचानक गायब होकर इराक के आतंकवादी बागी संगठन ‘इसिस’ में शामिल हुआ आरिफ माजिद नामक युवक भारत में लौटा है। रक्षा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि आरिफ के लौटने को इतना सरल-सहज नहीं समझा जाना चाहिए।
आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट(आयएस) का बंगलुरू से ट्विटर अकाउंट चलानेवाले मेंहदी मसरूर विश्वास नामक मुस्लिम युवक को पुलिस ने पकड लिया है। कल्याण का आरिफ माजिद हो या बंगलुरु का मेंहदी मसरूर विश्वास, दोनों से ही भारतीय मुस्लिम युवकों की आतंकवादी मानसिकता का वैश्विक स्तर पर जिहाद से संबंध स्पष्ट हो रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत की गुप्तचर एजेंसियों ने जो जानकारी एकत्र की है उसके अनुसार अब आतंकवादी संगठन अल-कायदा अथवा लष्कर-ए-तैयबा की भारत पर सीधे ध्यान केंद्रित करने अथवा प्रत्यक्ष स्वयं कार्रवाई करने की अपेक्षा अपने पैर भारत के ग्राम-देहातों में फैलाने की साजिश है। भारत में होने वाली आतंकवादी घटनाओं से इसका हमें अनुभव हो रहा है। आतंकवादी संगठनों के अनुसार भारत में आतंकवादी गतिविधियों में अल-कायदा या लष्कर-ए-तैयबा अब बहुत सहभाग नहीं लेंगे। बहुत जरूरत पड़ी तो वे प्रशिक्षण व जरूरी सहायता करेंगे। शेष सारा आतंकवादी अभियान स्थानीय लोगों के सहयोग से ही चलाया जाएगा। आतंकवादी गतिविधियों में भारत के मुस्लिम युवकों का बढ़ता सहभाग इसी साजिश का अंग है।
भारत के साथ पूरी दुनिया में आर्थिक उदारीकरण की हवा बह रही है। इससे धार्मिक व वांशिक आतंकवाद कमजोर होगा ऐसा लगता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बाजार में उदारीकरण का प्रभाव दिखाई दे रहा है। लेकिन आतंकवाद कमजोर होने की अपेक्षा अधिक बढ़ता दिखाई दे रहा है। कई बार आतंकवादियों के अड्डे ध्वस्त किए जाते हैं, उनका हथियारों का जखीरा, बम कब्जे में लिए जाते हैं। संदेहास्पद लोगों को पकड़ा जाता है। फिर भी, आतंकवादी गुट उतनी ही ताकत से बार-बार हमले करते हैं। किसी राष्ट्र की समाज व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था हिला देते हैं। संख्या, शस्त्रास्त्र की दृष्टि से अल्पसंख्य इन आतंकवादी गुटों के पास धनाढ्य राष्ट्रों को चुनौती देने की क्षमता कहां से आती है? उनमें ऐसा कौनसा ‘स्पिरिट’ होता है कि ये आतंकवादी अपनी आतंकवादी कार्रवाइयां उतनी ही तत्परता से, उतनी ही जिद से करते हैं? ऐसे असंख्य प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए इस्लामी युवाओं एवं आतंकवादी संगठनों की कार्यप्रणाली को समझना होगा।
संगठित व योजनाबद्ध हिंसाचार के बल पर सामान्य शांतिप्रिय समाज को बंधक बनाकर अपना लक्ष्य पूरा करना ‘आतंकवाद’ की सामान्य परिभाषा हो सकती है। आतंकवादी संगठन अपने प्रचार-तंत्र में भारत की हिंदू वर्ण-व्यवस्था पर प्रहार कर इस्लामी राज्य की दृष्टि से अनुकूल माहौल बनाने की साजिश रखते हैं। उन्हें हिंदू-मुस्लिम भाईचारा और धर्मनिरपेक्षता जैसे विषय अर्थहीन लगते हैं। ये इस्लामी संगठन हमलावर टोलियों की तरह अपनी संस्कृति भारत में स्थापित करने के लिए हिंसा के किसी भी स्तर पर जाने के लिए तैयार होते हैं। ‘इस्लाम का राज्य’ स्थापित करने के लिए, इस्लाम के उत्थान के लिए, पुनरुज्जीवन के लिए और इस्लाम की रक्षा के लिए अपने को कुर्बान कर देने वाले के लिये जन्नत के द्वार खुलते हैं, यह झूठा प्रचार चल रहा है। इस तरह की झूठे सब्जबाग के बहाने इस्लामी आतंकवादी संगठन युवाओं के समक्ष ‘जिहाद’ और ‘जन्नत पाने का सपना’ परोसते हैं। फलस्वरूप हजारों युवा आतंकवाद पर जान फूंकने के लिए तैयार होते हैं। इस्लामी जगत के हजारों युवा इस ओर आकर्षित होते हैं। स्वयं ओसामा बिन लादेन पर भी इसका गहरा प्रभाव था। देश के समक्ष उत्पन्न विविध समस्याओं का सामना करने के लिए युवाओं को तैयार होना चाहिए यह अपेक्षा होते हुए भी देश का मुस्लिम युवा आतंकवादी संगठनों की ओर आकर्षित हो रहा है। यह गंभीर व चिंता का विषय है। आरिफ माजिद अपने तीन साथियों के साथ ‘इसिस’ नामक संगठन की ओर से लड़ने के लिए इराक गया था। ‘इसिस’ में शामिल होने के लिए भारत के बाहर जाने के इच्छुक १८ युवकों को रोकने में सफलता मिलने का गुप्तचर एजेंसियों का दावा है। इस पर गौर करें तो पता चलेगा कि देश में खतरे की घंटी बज रही है।
‘इसिस’ का जन्म सीरिया व इराक में होने पर भी भारतीय उपमहाद्वीप पर उसकी नज़र छिपी नहीं है। ऐसे समय में भारत के मुस्लिम युवाओं में धर्म के प्रति पागलपन तक की कट्टरता की भावना मजबूत कर उन्हें भड़काने के प्रयास ‘इसिस’ जैसे संगठनों की ओर से हो रहे हैं। इन संगठनों को प्रश्रय देने वाली देश में ही एक मजबूत व्यवस्था है। इस व्यवस्था के धोखे की बलि चढ़कर ये मुस्लिम युवा आतंकवाद की ओर मुड़ रहे हैं। इससे देश के भीतर ही एक नई चुनौती उत्पन्न हो रही है।
इस पार्श्वभूमि में भारत में मदरसों की स्थिति पर गौर करना होगा। पाकिस्तान की सीमा से लगे जिलों में मदरसों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। प. बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में यह तेजी से हो रहा है। ‘ई-खुदार-लानत’ (संगीत अल्लाह का अभिशाप) जैसी शिक्षा इन मदरसों में दी जाती है। वहां औरंगजेब, सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण गर्व के विषय होने की शिक्षा प्राथमिक अवस्था में ही दी जाती है। मदरसों में पढ़ने वाले छात्र को ‘तालिब’ कहा जाता है। इस तरह इन मदरसों से इस तरह भारतीय संस्कृति विरोधी शिक्षा पाकर ‘तालिब’ बाहर आते हैं व युवा होने पर ‘तालिबानी’ बन जाते हैं। सीमावर्ती जिलों में बेशुमार बढ़ते इन मदरसों व उनसे शिक्षा पाने वाले विद्यार्थी भारत को एक भयानक भविष्य की ओर ले जा रहे हैं और वह है भविष्य में बढ़ता ‘आतंकवाद।’
जिस तरह मदरसों से आने वाले अल्पशिक्षितों के बल पर आतंकवाद खड़ा होने में सक्षम है, उसी तरह ‘जिहाद’ के नाम पर मुस्लिम युवाओं को आकर्षित किया जाता है। भारत में सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) की कार्रवाइयां इसी दिशा में चल रही थीं। दक्षिण में केरल से लेकर पूर्वोत्तर के असम तक ‘सिमी’ ने अपना जाल बिछाया था। ‘सिमी’ की स्थापना का उद्देश्य भारत को पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से मुक्त करना और भारत में इस्लामिक प्रभाव को बढ़ाना था। उसकी विचारधारा है कि ‘कोई भी राजनीतिक गुट धर्मनिरपेक्षता जैसी गलत विचारधारा के माध्यम से समाज में कोई भी ठोस परिवर्तन नहीं ला सकता और परिवर्तन का एकमात्र मार्ग इस्लामी जीवन प्रणाली ही है।’ इस तरह की विचारधारा रखने वाले आतंकवादी संगठन ‘सिमी’ ने अपराध से लेकर संगठित अपराधी संगठन, अल्पशिक्षित तालिब से लेकर उच्चशिक्षित लेकिन जिहाद से प्रभावित युवाओं के माध्यम से आतंकवाद को खड़ा किया। ‘सिमी’ पर पाबंदी लगाने के बाद उन्होंने ‘इंडियन मुजाहिदीन’ के नाम से आतंकवाद फैलाने की अपनी कारगुजारियां जारी रखीं। हमारी धारणा के अनुसार आतंकवादी गुमराह हुए युवा नहीं होते। वे पागल भी नहीं होते। मनोरुग्ण भी नहीं होते। नैराश्य से पीड़ित भी नहीं होते। उल्टे शांत दिमाग से विचार कर बाहरी दुनिया को भनक भी न लगे और जांच एजेंसियों को चकमा देकर वे अपना उद्देश्य पूरा करने का कौशल रखते हैं। कुछ युवा स्वयं आतंकवादी कार्रवाइयों में शामिल होते हैं। ये युवा सूत्रधार नहीं होते; फिर भी आतंकवाद के लिए जरूरी गुण उनके पास होते हैं। आतंकवाद की ओर आकर्षित होने वाला युवा कुछ करने की आकांक्षा रखने वाला, आक्रामक स्वभाव का, सीधे संवेदना अनुभव करने की इच्छा रखने वाला और ‘एक्साइटमेंट’ की खोज में होता है। इस्लाम के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने और मौका पड़ने पर जीवन का बलिदान करने की भावना उनके खून में इतनी घुली होती है कि कुछ समय में ही इसके प्रभाव में आतंकवादी युवक यांत्रिक रूप से काम करने लगता है।
आतंकवादी- जिहादी युद्ध प्रणाली का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि ‘एक को इस तरह मारो कि हजारों लोगों में आपके बारे में आतंक फैल जाए।’ इसीतिए ये आतंकवादी संगठन जिस मुस्लिम जिहादी युवा को मारना हो उसका चयन करते समय अत्यंत गहराई व सावधानी बरतते हैं।
इस तरह के युवाओं को आतंकवादी संगठनों में भर्ती करने पर भी आतंकवाद का जाल सफलता से फैलाने के लिए भारी मात्रा में पैसा खर्च करना होता है। एक मुजाहिदीन को प्रशिक्षित करने, हथियार मुहैया करने और आतंक फैलाने के लिए खड़े करने पर कुछ लाख खर्च होते हैं। इसके अलावा पुलिस कार्रवाई में मारे जाने पर उसके परिवार को १० लाख रु. मिलते हैं। आतंकवादी युवक यदि भारतीय सेना के अधिकारी को मारे तो पुरस्कार मिलते हैं। इसी तरह आतंकवादी हमले, बम विस्फोट कराने के लिए भारी खर्च करना होता है। यह प्रचंड धन खड़ा करने के लिए आतंकवाद व अपराध-जगत के बीच एक विलक्षण सांठगांठ होती है। इन आतंकवादी संगठनों को एक सब से बड़ा उद्योग है मादक पदार्थों का अवैध व्यापार और फर्जी मुद्रा को प्रचलन में लाना। इससे आतंकवादी कार्रवाइयों के लिए आवश्यक धन इकट्टा किया जाता है और इस कार्य में मुस्लिम अपराधी संगठनों की सहायता मिलती है।
इन आतंकवादी युवाओं का समर्थन करने वाले अनेक लोग हैं। अन्यथा इन युवाओं का इस तरह बाहर जाना संभव नहीं होता। उन्हें शहरी इलाकों में पनाह कौन देता है? उनके लिए जरूरी दस्तावेज कौन बनाकर देता है? विदेश जाने के लिए पैसा कौन देता है? इस तरह के सफेदपोश के बुरखे में रहने वाले आतंकवादियों को खोज कर उन्हें कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए।
खेद की बात यह है कि देशद्रोह व आतंक फैलाने वाले आतंकवादियों को सैनिकों द्वारा मार गिराए जाने पर अथवा अफज़ल गुरु जैसे आतंकवादी को फांसी दी जाने पर उनकी मौत या फांसी को साम्प्रदायिक रंग दिया जाता है। अफज़ल गुरु जैसे लोगों को ‘शहीद’ करार देने का काम पाखंडी मानवतावादी करते हैं। कुछ राजनीतिक नेता मुस्लिम वोटों की लाचारी के कारण इस तरह आतंकवादियों का समर्थन करते हैं। इन पाखंडी मानवतावादियों और राजनीतिक नेताओं ने देश को ज्वालामुखी के मुहाने लाकर खड़ा किया है। अफज़ल गुरू, कसाब को फांसी दिए जाने पर सारे भारत-विरोधी, हिंदू-विरोधी आतंकवादी संगठन ‘यूनाइटेड़ जिहाद कौंसिल’ के बैनर तले एकत्रित हुए हैं और भारत से बदला लेने की धमकियां देने लगे हैं।
ऐसे समय में मानवतावादियों का उनसे, राष्ट्रीय सुरक्षा से कुछ लेना-देना नहीं होता। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पीठ थपथपा लेना, पुरस्कार पा लेना और संभव हुआ तो लाखों डॉलर का दान अपनी संस्थाओं के लिए प्राप्त करना जैसे व्यक्तिगत स्वार्थों को साधने के लिए राष्ट्रीय हितों को तिलांजलि देने में भी ये मानवतावादी एक पैर पर तैयार होते हैं। राष्ट्र के लिए शहीद होने वाले सैनिकों, अधिकारियों को सम्मान देने का कार्य जब पूरा देश कर रहा होता है तब देशद्रोही आतंकवादियों को ‘हौतात्म्य’ बहाल करने की साजिश को खत्म किया जाना चाहिए। देशद्रोही कार्रवाई करते समय मारा गया आतंकवादी यदि शहीद माना गया तो वह भविष्य के लिए मुस्लिम युवकों को गुमराह होने का मार्ग दिखाएगा। इसीसे मुस्लिम युवाओं को आतंकवाद की ओर बेहिचक मुड़ने की ऊर्जा प्राप्त होती है। यह गलत है।
‘इसिस’ ने इराक व सीरिया के तेल व्यापार से, बैंकों की लूटपाट से प्रचंड धन प्राप्त किया है। दुनिया में स्वतंत्र इस्लामी राष्ट्र निर्माण करने की इस संगठन की मनीषा है। ब्रह्मदेश, बांग्लादेश, कश्मीर तथा गुजरात आदि इलाकों में अपना प्रभाव बढ़ाने की ‘इसिस’ ने घोषणा की है। संक्षेप में, इन इलाकों में अपना प्रभअव स्थापित करने का भविष्य में वे प्रयास करेंगे। यह भारत की दृष्टि से चिंता का विषय है। इस स्थिति में भारत के युवाओं का इस संगठन के प्रति आकर्षित होना कितना गंभीर है इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। ‘इसिस’ की सहायता करने वाले भारतीय संगठनों ने भारत के ग्राम-देहातों में विस्तार आरंभ कर दिया है। ग्रामीण भागों के युवाओं को बहला-फुसलाकर अपने राष्ट्रद्रोही कार्य में उन्हें शामिल करने की इन आतंकवादी संगठनों की साजिश है। युवा उनके बलि चढ़ रहे हैं। किसी अविचार से पीड़ित होकर आतंकवादी कार्रवाइयों में शामिल होने वाले इन युवाओं को मुख्य धारा में लाने की जरूरत है। सुशिक्षित युवाओं को आतंकवाद के आकर्षण से मुक्त करने के लिए नए कदम उठाने की चुनौती स्वीकार करनी होगी। यह केवल सरकार के समक्ष की चुनौती नहीं है, अभिभावकों को भी इसका भार उठाना होगा। मुस्लिम समाज का रुझान देखने का यह समय है। इसमें अभिभावक, सरकार, सामाजिक संस्थाओं आदि की जिम्मेदारी महतवपूर्ण है। इसीके साथ देश की सुरक्षा के लिए हरेक को सतर्कता बरतनी चाहिए। ऐसा होने पर देश के युवाओं को मोहरा बनाने का आतंकवादी संगठनों का स्वप्न खत्म करना संभव होगा।
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