साइबर अपराध की यह एक झांकी मात्र है। मामले की थोड़ी सी गहराई में जाने के लिए हम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर मार सकते हैं। ब्यूरो की ओर से इस वर्ष फरवरी में जारी किए गए ये आंकड़े हालांकि करीब एक वर्ष पुराने हैं और सरकारी भी। फिर भी ये आईने की धूल हटाने के लिए पर्याप्त हैं। ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020, 21 और 22 में क्रमश: 50035, 52974 और 65893 साइबर अपराध के मामले दर्ज हुए हैं।
हरियाणा और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र में फैला मेवात इन दिनों सुर्खियों में है। इन सुर्खियों की वजह है ‘ऑपरेशन एंटी वायरस’। इस ऑपरेशन के तहत राजस्थान पुलिस ने 600 से अधिक साइबर ठगों को गिरफ्तार किया है। इन साइबर अपराधियों की वजह से अंग्रेजी शब्दकोष में एक नया शब्द जुड़ गया है और वह है- सेक्सटॉर्शन। दरअसल ‘सेक्सटॉर्शन’ साइबर अपराध की मात्र एक विधा है। इसके अलावा न जाने कितनी और करतूतों के माध्यम से ये अपराधी लोगों की गाढ़ी कमाई को निगल रहे हैं।
हरियाणा के मेवात, पलवल और राजस्थान के डीग व अलवर में फैले मकड़जाल से सिर्फ इस क्षेत्र के लोग ही लूट का शिकार नहीं हो रहे, बल्कि देश के कोने-कोने से पुलिस के पास शिकायतें आ रही हैं। अपराधियों ने इस क्षेत्र में यह धंधा इतने सुनियोजित ढंग से व बड़े स्तर पर स्थापित किया है कि लोग व्यंगात्मक भाषा में इसे ‘कुटीर उद्योग’ तक कहने लगे हैं।
साइबर ठगों ने इस क्षेत्र के अलग-अलग गांवों में अपने ठिकाने बनाए हैं। ये अश्लील चैट के जरिए लोगों को ब्लैकमेल करते हैं। लड़कियों के नाम से फर्जी फेसबुक पेज बनाते हैं और उन लोगों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं। आमतौर पर ये अमीर और बुजुर्ग लोगों को ज्यादा फंसाते हैं। उनकी अश्लील वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देकर उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे हड़पते हैं। राजस्थान पुलिस के अनुसार मेवात के साइबर ठग देश के लगभग 15 राज्य गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली के लोगों को सेक्सटॉर्शन का शिकार बना रहे हैं। इनमें से देश के 9 राज्य हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश समेत 8 प्रदेश में साइबर क्राइम के हॉटस्पॉट हैं।
साइबर अपराध की यह एक झांकी मात्र है। मामले की थोड़ी सी गहराई में जाने के लिए हम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर मार सकते हैं। ब्यूरो की ओर से इस वर्ष फरवरी में जारी किए गए ये आंकड़े हालांकि करीब एक वर्ष पुराने हैं और सरकारी भी। फिर भी ये आईने की धूल हटाने के लिए पर्याप्त हैं। ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020, 21 और 22 में क्रमश: 50035, 52974 और 65893 साइबर अपराध के मामले दर्ज हुए हैं। यानी कि तीन वर्षों में एक लाख 68 हजार 902 लोग अपने साथ हुई धोखाधड़ी के बाद न्याय मांगने पुलिस के दरवाजे तक पहुंचे। सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इसके कितने गुणा अधिक लोग अलग-अलग कारणों से ऐसी हिम्मत नहीं कर पाते होंगे। कुल मिलाकर साइबर अपराधों की तस्वीर बहुत भयावह हो चुकी है।
साइबर ठगी के लिए आमतौर पर सोशल मीडिया का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अपराधी मोबाइल और ईमेल के जरिए लोगों से सम्पर्क कर लॉटरी, पुरस्कार, शेयर ट्रेडिंग और विभिन्न योजनाओं में निवेश के साथ ही डरा-धमका कर अपने जाल में फंसाते हैं।
संसद के बीते सत्र में गृह राज्य मंत्री बंडी संजय कुमार ने बताया था कि ‘सिटीजन साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम के माध्यम से लोगों के 2,400 करोड़ रुपए से अधिक बचाए गए हैं। उनके अनुसार अब तक 7.6 लाख से अधिक साइबर अपराध के मामलों को सुलझाते हुए यह राशि वापस प्राप्त की गई है। मंत्री जिस ‘सिटीजन साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम’ की बात कर रहे हैं, वह घोर अंधियारे में उजाले की तनिक किरण तो निश्चित रूप से हैं। बशर्तें नागरिक भी इतने ही जागरूक हो, जितने कि सरकार उनसे अपेक्षा करती है।
दरअसल गृह मंत्रालय ने देश में सभी प्रकार के साइबर अपराध से समन्वित और व्यापक तरीके से निपटने के लिए ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ तैयार किया है। इसी केंद्र के तहत वित्तीय धोखाधड़ी की तत्काल रिपोर्टिंग और धोखेबाजों द्वारा धन की हेराफेरी को रोकने के लिए ‘सिटीजन साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम’ विकसित किया गया है। पीड़ित टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर ‘1930’ पर शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
गृह मंत्रालय की गम्भीरता का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि उसने देश भर में पुलिस व न्यायिक अधिकारियों की क्षमता निर्माण के लिए मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स, प्लेटफॉर्म, अर्थात् ‘साइट्रेन’ पोर्टल तैयार कर 76,000 से अधिक पुलिस अधिकारियों को पंजीकृत किया है। इस पोर्टल के माध्यम से 53000 से अधिक प्रमाणपत्र जारी किए जा चुके हैं। साइबर अपराधियों से अब तक 3.2 लाख से अधिक सिम कार्ड और 49000 आईएमईआई को केंद्र सरकार द्वारा ब्लॉक कर दिया गया है।
मामलों से त्वरित गति से निपटने के लिए अभी तक विभिन्न मंत्रालयों व विभागों के 6,000 से अधिक अधिकारियों को साइबर स्वच्छता प्रशिक्षण दिया जा चुका है। 23,000 से अधिक एनसीसी कैडेटों को अलग से यह प्रशिक्षण दिया गया।
हाल ही में सेंट्रल साइबर जांच एजेंसी ने 1 जनवरी से जुलाई 2024 के बीच 7 महीनों में हुए साइबर अपराध की घटनाओं का विश्लेषण करने के बाद देशभर की पुलिस को इनपुट दिया है। इसमें साइबर अपराध से जुड़े हुए विभिन्न जिलों की जानकारी दी गई है। साथ ही अपराध के नए ट्रेंड के बारे में भी बताया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बच्चों को साइबर ठगों से बचाने के लिए गाइड लाइन जारी की है। इस गाइड लाइन का पालन कर हमारी नई पीढ़ी काफी हद तक इन अपराधियों के शिकंजे से बचाया जा सकता है। गाइड लाइन इस प्रकार हैं –
सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अनजान व्यक्तियों की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार न करें। साइबर बुली अपने शिकार से दोस्ती करने के लिए जाली एकाउंट भी बना सकता है। उन्हीं लोगों को ऑनलाइन जोड़े जिन्हें आप ऑफ लाइन जानते हैं।
सोशल मीडिया या अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्म पर अपनी निजी सूचना जैसे जन्मतिथि, पता और फोन नम्बर साझा न करें। अपनी प्रोफाइल तक केवल आपके दोस्तों की पहुंच को ही सीमित करने का प्रयास करें, किंतु याद रखें सभी पोस्टों के लिए प्राइवेसी का विकल्प सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म प्रदान नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए किसी एक प्लेटफार्म पर पिक्चर स्टोरीज बाय डीफाल्ट ही पब्लिक होती हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कमेंट्स या पोस्ट में अपना फोन नम्बर और अन्य निजी ब्योरे साझा न करें।
कभी भी अनजान स्रोतों से अनावश्यक साफ्टवेयर और एप्स जैसे डेटिंग एप, ऑनलाइन गेम आदि को इंस्टाल न करें। चैट रूम में चैटिंग करते समय आपको विशेष रूप से सतर्क होना चाहिए। चैट रूम में अपने निजी ब्योरे कभी साझा न करें और अपनी पहचान को सीमित करें।
-दिनेश कुमार