अपनी अलौकिक आवाज के दम पर सात दशक तक लोगों के दिलों पर राज करने वाली लता मंगेशकर को ‘सम्पूर्ण पार्श्व गायिका’ इसलिए कहा जाता रहा है, क्योंकि उन्होंने अपने दौर की जितनी भी प्रमुख नायिकाओं के लिए गाया, अपनी ओर से उस नायिका के व्यक्तित्व को भी इतनी सम्पूर्णता के साथ समाहित किया कि श्रोता गीत सुनते ही ताड़ जाते थे कि यह गीत अमुक नायिका पर फिल्माया गया होगा। उनकी इस विशिष्टता को कई नायिकाओं के लिए गाए गीतों से समझा जा सकता है।
कहते हैं, मीना कुमारी के व्यक्तित्व में दर्द, सहिष्णुता, गरिमा और मादकता का समन्वय था। लता मंगेशकर ने मीना कुमारी के इस जटिल व्यक्तित्व को ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ फिल्म के शीर्षक गीत में तो थामा ही, इसी फिल्म के सदाबहार गीत ‘अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहां खत्म’ में तो जैसे सम्पूर्ण मीना को ही साकार कर दिया। मीना कुमारी के बारे में यह भी कहा जाता था कि प्रेम के प्रति उनका समर्पण अलौकिक है। लता मंगेशकर ने मीना कुमारी की इस अलौकिकता को ‘हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे हैं, तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाओ’ में लौकिक रूप में प्रस्तुत करती हैं।
इसी प्रकार महान नायिका नूतन की मुस्कान में चुम्बकीय आकर्षण था और समग्र व्यक्तित्व में दर्द भरी सादगी। लता मंगेशकर ने सादगी भरे दर्द को तो ‘छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए, ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए’ (सरस्वतीचंद्र) और ‘तेरा जाना दिल के अरमानों का लुट जाना’ (अनाड़ी) में बताया ही, उनकी मुस्कान भी ‘तेरे घर के सामने’ के ‘ये तन्हाई हाए रे हाए जाने फिर आए ना आए थाम लो बाहें’ में बड़े दिलचस्प तरीके से दर्शाई। दरअसल इस गीत में एक पंक्ति आती है, ‘आज समय आया, मैंने तुझे पाया, मैं लता हूं तेरे प्यार की’। अब लता मंगेशकर जैसी अंतर्मुखी गायिका को गीत में खुद अपना नाम लेना पड़े, तो वे मुस्कुराएंगी कि नहीं? उनकी यही सहज मुस्कान नूतन के चेहरे पर हूबहू चस्पा हो ही जाती है।
साठ के दशक की प्रमुख नायिका सायरा बानो थोड़ा नाक में बोलती थीं, थोड़ा चीखती थीं और निरंतर अपनी पतली गर्दन घुमाती थी। इन्होंने सायरा की गर्दन और नाक पकड़ी और पहली ही फिल्म ‘जंगली’ के ‘काश्मीर की कली हूं मैं’ गीत से लेकर ‘तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवाए, तुमको हमारी उमर लग जाए’ (आई मिलन की बेला), ‘दिल विल प्यार व्यार मैं क्या जानूं रे’ (शागिर्द), ‘उनसे मिली नजर के मेरे होश उड़ गए’ (झुक गया आसमान) और ‘भाई बत्तुर भाई बत्तुर अब जाएंगे कितनी दूर’ (पड़ोसन) तक में दर्शकों के सामने साक्षात उपस्थित कर दिया।
प्राय: लोग रेखा पर फिल्माए गानों में ‘उमराव जान’ में आशा भोसले द्वारा गाए कुछ महत्वपूर्ण लोकप्रिय गानों (दिल चीज क्या है/ ये क्या जगह है दोस्तों) को याद करते हैं, लेकिन लता मंगेशकर ने ‘घर’ फिल्म में रेखा की सुंदरता, चंचलता और गम्भीरता जैसे बहु-विध किरदारों को ‘तेरे बिना जिया जाए ना’ और ‘आजकल पांव जमीन पर नहीं पड़ते मेरे’ जैसे गीतों में उसी अंदाज में प्रस्तुत किया। यही नहीं नर्गिस की अल्हड़ता को ‘पंछी बनूं उड़ती फिरुं मस्त गगन में’ (चोरी चोरी) में, वहीदा रहमान की गरिमा को ‘फिर तेरी कहानी याद आई, फिर तेरा फसाना याद आया’ (दिल दिया दर्द लिया) में, वैजयंती माला की उदासी को ‘रुला के गया सपना मेरा’ (ज्वेल थीफ) में, आशा पारेख की पीड़ा को ‘वो दिल कहां से लाऊं, तेरी याद जो भूला दे’ (भरोसा) में, हेमा मालिनी की शोखी को ‘ए बी सी डी छोड़ो’ (राजा जानी) में, श्रीदेवी के जोश को ‘मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तू मेरा’ (नगीना) में, डिम्पल की मासूमियत को ‘अकसर कोई लड़की इस हाल में’ (बॉबी), काजोल की बेफिक्री को ‘मेरे ख्वाबों में जो आए’ (दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे) में दर्शाने में कहीं चूक नहीं की।
यहां यह बताना भी गैर-जरूरी न होगा कि सत्तर के दशक की प्रखर अभिनेत्री जया भादुड़ी को जब ‘अभिमान’ में एक गायिका का रोल मिला, तो शूटिंग से पहले वे लता मंगेशकर की रेकॉर्डिंग देखने गईं और वहां उन्होंने यह नोट किया कि ये कैसी दिखती हैं, क्या पहनती हैं और उनके हाव-भाव कैसे हैं। उसके बाद जया ने लता मंगेशकर की ही तरह सफेद साड़ी पहनीं, इनकी ही तरह लम्बी चोटी बनाई और एक गायिका के रूप में दर्शकों के समक्ष उतनी ही गरिमा से उपस्थित हुईं। फिल्म के ‘पिया बिना’, ‘अब तो है तुमसे’ और ‘तेरे मेरे मिलन की ये रैना’ गीतों में यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि लता मंगेशकर जया के लिए गा रही हैं या जया लता मंगेशकर के लिए अभिनीत कर रही हैं।
सच तो यह है कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में अच्छा गाने वाली गायिकाएं तो बहुत आई हैं, लेकिन सही अर्थों में यदि सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का खिताब किसी को देना होगा, तो वे लता मंगेशकर ही होंगी। शायद इसीलिए अनिल बिश्वास जैसे अग्रज संगीतकार उनके गीत सुनते हुए यही कहते थे कि लता तो लता है। उनके जन्मदिन 28 सितंबर पर उनकी स्मृति को विनम्र नमन।
– शशांक दुबे