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गीता प्रेस के संस्थापक – हनुमान प्रसाद पोद्दार

गीता प्रेस के संस्थापक – हनुमान प्रसाद पोद्दार

by मृत्युंजय दीक्षित
in विशेष
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श्रीमद्भागवत गीता के अनन्य भक्त व प्रचारक जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने 1923 में गीता प्रेस की स्थापना की। हनुमान प्रसाद पोद्दार ने आध्यात्मिक विषयों पर ही लेखन किया। उन्होंने निबंधों एवं लेखों के अलावा विभिन्न टीका साहित्य का भी सृजन किया। उन्होंने रामचरित मानस, विनयपत्रिका, दोहावली की विषद टीका प्रस्तुत की।

भारतीय संस्कृति की सेवा करते हुए भारत के समृद्ध ग्रंथों एवं परंपराओं की व्याख्या कर गीताप्रेस के माध्यम से उनको जन -जन तक पहुंचाने का कार्य करने वाले हनुमान प्रसाद जी पोद्दार एक महान क्रांतिकारी भी रहे। वीर सावरकर के विचारों से प्रभावित पोद्दार ने भारतीय संस्कृति, साहित्य, पुराणों और आध्यात्मिक ज्ञान को संरक्षित करने में महती भूमिका निभाई। पोद्दार जी ने घर- घर तक रामायण, महाभारत व अन्य समस्त हिंदू धर्म साहित्य को बहुत ही कम मूल्य में घर-घर तक पहुंचाकर भारतीय जनमानस को पश्चिमी संस्कृति के विचारों का गुलाम बनाने से रोका। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को जीवित रखा।

“कल्याण मासिक पत्रिका” के संपादक के रूप में पोद्दार जी का पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है। ”कल्याण“ के संपादक के रूप में उन्हें विश्व भर में लोकप्रियता मिली। हनुमान जी की पत्रकारिता  भारत की महान सनातन संस्कृति के यशोगान को समर्पित थी। श्रीमद्भागवत गीता के अनन्य भक्त व प्रचारक जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने 1923 में गीता प्रेस की स्थापना की।हनुमान प्रसाद पोद्दार ने आध्यात्मिक विषयों पर ही लेखन किया। उन्होंने निबंधों एवं लेखों के अलावा विभिन्न टीका साहित्य का भी सृजन किया। उन्होंने रामचरित मानस, विनयपत्रिका, दोहावली की विषद टीका प्रस्तुत की। सन1927 में गीता प्रेस से ही कल्याण का प्रकाशन होने लगा।

कल्याण के लिए  हनुमान जी ने जो नीति बनाई उसमें विज्ञापनों के लिए कोई स्थान नहीं था। गीता प्रेस से ही आगे चलकर कल्याण कल्पतरू एवं महाभारत मासिक पत्रिका का प्रकाशन वर्ष 1955 से लेकर 1966 तक चलता रहा।

पोद्दार जी ने मात्र 13 वर्ष की अवस्था में ही बंग भंग आंदोलन से प्रभावित होकर स्वदेशी का व्रत ले लिया था। 1914 में महामना मदन मोहन मालवीय के साथ संपर्क में आने के बाद पोद्दार जी हिंदू महासभा में सक्रिय हो गये। हिंदू धर्मग्रंथों में त्रुटियों को देखकर उन्हें बहुत कष्ट होता था। उन्हाने तुलसीकृत श्री रामचरित मानस की जितनी हस्तलिखित प्रतियां मिल सकीं एकत्र कीं और विद्वानों को बिठाकर मानस पीयूष नामक उनका शुद्ध पाठ भावार्थ एवं टीकाएं तैयार करायीं।गीताप्रेस की स्थापना के साथ ही उन्होंने वंचितों की सेवा के लिए  “दरिद्र नारायण सेवा संघ” और ”गीता प्रेस सेवा संघ“ का गठन भी किया।

कहा जाता है कि 16 दिसंबर 1927 को जसीडीह में 15 लोगों की उपस्थिति में पोद्दार जी को भगवान शिव ने साक्षात दर्शन दिये थे।1936 में गीता वाटिका गोरखपुर में देवर्षि नारद और महर्षि अंगिरा ने भी उन्हें दर्शन दिये थे।गीता प्रेस से आज भी कल्याण मासिक पत्रिका का उन्हीं के द्वारा बनाये गये नियमों के अनुरूप प्रकाशन चल रहा है।

 

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