इस्लामी कट्टरवाद एक ज्वलंत समस्या के रूप में सामने खड़ा है। जिससे वैश्विक शांति पर संकट मंडराने लगा है। मस्जिदों और मदरसों के माध्यम से कट्टरपंथी विचारधाराओं का प्रचार-प्रसार भी हो रहा है। हमें इस्लामी कट्टरवाद से निपटने के लिए एकजुट होकर कदम बढ़ाना होगा।
आधुनिक काल में इस्लामी कट्टरवाद एक वैश्विक समस्या के रूप में उभरा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव न केवल मुस्लिम बहुल देशों में, बल्कि पूरे विश्व में देखा जा रहा है।
यह कट्टरवाद राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों से प्रेरित होता है जिसका परिणाम आतंकवाद, अस्थिरता और मानवाधिकारों का उल्लंघन जैसी गम्भीर समस्या के रूप में चुनौती दे रहा है।
आज यूरोप हो या अफ्रीका, एशिया हो या अमेरिका विश्व का हर एक हिस्सा इस्लामी कट्टरवाद से उपजी गम्भीर समस्याओं और चुनौतियों से जूझ रहा है। इसका प्रमुख कारण वैश्विक इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार वैश्विक शांति व सुरक्षा का विषय है।
मध्य पूर्व में इस्लामी कट्टरवाद का इतिहास काफी पुराना है, विशेष रूप से ईरान की 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से। इस क्रांति ने देश में एक इस्लामी गणराज्य की स्थापना की और पूरे क्षेत्र में एक नया आदर्श प्रस्तुत किया। इसके बाद सऊदी अरब में वहाबी विचारधारा, जो 18वीं शताब्दी से प्रभावी रही है, ने इस्लामी कट्टरवाद को और प्रोत्साहन दिया। सऊदी अरब के कट्टरपंथी तत्व, जो इस्लाम की एक शुद्ध और कठोर व्याख्या का समर्थन करते हैं, ने पूरे क्षेत्र में और दुनिया भर में कई चरमपंथी आंदोलनों को प्रभावित किया है।
मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड, जो 1928 से सक्रिय है, ने भी इस्लामी कट्टरवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संगठन कई बार सरकार के विरोध का शिकार हुआ, लेकिन इसके कट्टरपंथी विचारधारा के अनुयायियों ने मिस्र और अन्य अरब देशों में राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन शुरू किए, जिससे इन देशों की स्थिरता पर गहरा असर पड़ा। मुस्लिम ब्रदरहुड के विचारों ने न केवल मध्य पूर्व बल्कि उत्तरी अफ्रीका और यहां तक कि यूरोप में भी कई इस्लामवादी समूहों को प्रेरित किया।
दक्षिण एशिया में इस्लामी चरमपंथ का प्रभाव भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अफगानिस्तान में तालिबान का उदय और उसका शासन (1996-2001) इस्लामी कट्टरवाद का एक प्रमुख उदाहरण है। 2021 में तालिबान के पुनरुत्थान ने इस क्षेत्र में फिर से अस्थिरता पैदा की है। तालिबान शासन ने न केवल अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का गम्भीर उल्लंघन किया, बल्कि पूरे क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया। पाकिस्तान में जमात-ए-इस्लामी और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे संगठनों ने कट्टरपंथी विचारधाराओं को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन संगठनों ने न केवल पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित किया है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी संकट पैदा किया है।
बांग्लादेश में भी जमात-ए-इस्लामी और हिफ़ाजत-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी समूहों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर्स, लेखकों और अल्पसंख्यकों पर हमलों की संख्या में वृद्धि ने देश में धार्मिक कट्टरवाद और असहिष्णुता के बढ़ते संकटों को उजागर किया है। इन घटनाओं ने बांग्लादेश की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष परम्पराओं पर गम्भीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में इस्लामी कट्टरवाद के प्रभावी उदाहरण मिलते हैं। इंडोनेशिया में जेमाह इस्लामिया और इस्लामिक डिफेंडर्स फ्रंट जैसे समूहों ने धार्मिक आधार पर हिंसा और अशांति पैदा की है। इन संगठनों ने न केवल अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले किए हैं, बल्कि इंडोनेशिया के बहुलवादी चरित्र को भी चुनौती दी है। इसी तरह मलेशिया की इस्लामी पार्टी झअड का राजनीतिक प्रभाव देश में इस्लामी कट्टरवाद को बढ़ावा देता है। झअड ने शरिया कानून को लागू करने और इस्लामी मूल्यों को राज्य नीति में शामिल करने की मांग की है, जो मलेशिया के बहुसांस्कृतिक ताने-बाने के लिए चुनौती पेश करता है।
अफ्रीका में बोको हरम और अल-शबाब जैसे इस्लाम विद्रोही समूहों ने इस्लामी चरमपंथ को मजबूत किया है। नाइजीरिया में बोको हराम का विद्रोह और सोमालिया में अल-शबाब का प्रभाव क्षेत्रीय अस्थिरता और हिंसा का मुख्य कारण बन चुका है। इन समूहों के कारण लाखों लोगों को विस्थापन और मानवीय संकट का सामना करना पड़ा है। बोको हराम ने विशेष रूप से स्कूली बच्चों और महिलाओं को निशाना बनाया है, जबकि अल-शबाब ने केन्या और युगांडा जैसे पड़ोसी देशों में भी आतंकवादी हमले किए हैं। इन समूहों की गतिविधियों ने पूरे पूर्वी अफ्रीका क्षेत्र में आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति को बाधित किया है।
यूरोप में इस्लामी चरमपंथ एक नई चुनौती के रूप में उभरा है, जहां अल-कायदा और आईएसआईएस (खडखड) जैसे संगठनों ने अपने नेटवर्क फैला लिए हैं। घरेलू कट्टरपंथ के बढ़ते मामलों ने यूरोपीय देशों को चिंता में डाल दिया है। फ्रांस, बेल्जियम और यूके जैसे देशों में खडखड से प्रेरित हमलों ने इस बात की पुष्टि की है कि यूरोप भी इस्लामी चरमपंथ की चपेट में है। इन हमलों ने न केवल जान-माल का नुकसान किया है, बल्कि यूरोपीय समाज में साम्प्रदायिक तनाव और इस्लामोफोबिया को भी बढ़ावा दिया है। यूरोप में मुस्लिम अप्रवासियों के एकीकरण की चुनौतियां और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं भी कट्टरपंथ के उदय में योगदान दे रही हैं।
वैश्विक इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार
वैश्विक इस्लामवादी विचारधाराओं का प्रभाव भी एक महत्वपूर्ण कारक है। सोशल मीडिया, मस्जिदों और मदरसों के माध्यम से कट्टरपंथी विचारधाराओं का प्रचार-प्रसार हो रहा है। इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने कट्टरपंथी समूहों को अपने संदेश को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने का एक शक्तिशाली माध्यम प्रदान किया है। ये प्लेटफॉर्म न केवल प्रचार के लिए बल्कि नए सदस्यों की भर्ती के लिए भी प्रयोग किए जा रहे हैं।
कमजोर शासन और विफल राज्य भी इस्लामी कट्टरवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सीरिया, लीबिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में सत्ता का अभाव और अस्थिरता ने कट्टरपंथ को उभरने का मौका दिया है। जब राज्य अपने नागरिकों को बुनियादी सेवाएं और सुरक्षा प्रदान करने में विफल होता है, तो कट्टरपंथी समूह इस खाली स्थान को भरने का प्रयास करते हैं, जो उन्हें स्थानीय समुदायों में समर्थन और वैधता प्रदान करता है।
विदेशी हस्तक्षेप और युद्ध ने भी इस्लामी कट्टरवाद को बढ़ावा दिया है। मुस्लिम देशों में पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप ने पश्चिम विरोधी भावना को बढ़ावा दिया, जिससे कट्टरपंथी आख्यानों को बल मिला। इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाले युद्धों ने इन देशों में अस्थिरता पैदा की, जिसने कट्टरपंथी समूहों को पनपने का अवसर दिया। इन युद्धों के दौरान हुए नागरिक नुकसान और संसाधनों के शोषण ने स्थानीय आबादी में गुस्से और निराशा की भावनाएं पैदा कीं, जिनका कट्टरपंथी समूहों ने अपने प्रचार के लिए प्रयोग किया।
शिक्षा और शिक्षा संस्थानों का दुरुपयोग भी इस्लामी कट्टरवाद के प्रसार में एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। कुछ धार्मिक शिक्षा संस्थानों ने इस्लामी कट्टरवाद को बढ़ावा दिया है, जिससे युवाओं के बीच कट्टरपंथी विचारधाराओं का विस्तार हुआ है। विशेष रूप से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मदरसों की भूमिका विवादास्पद रही है, जहां कुछ संस्थानों ने कट्टर इस्लामी विचारधारा का प्रचार किया और युवाओं को जिहाद के लिए प्रेरित किया।
इस्लामी चरमपंथ के कारण वैश्विक स्तर पर गम्भीर परिणाम देखने को मिले हैं। हिंसा और आतंकवाद इनमें सबसे प्रमुख हैं। दुनिया भर में हुए आतंकवादी हमलों ने कई देशों की सुरक्षा को चुनौती दी है और लाखों निर्दोष लोग मारे गए हैं। 9/11 के हमलों से लेकर पेरिस, ब्रुसेल्स, और मुंबई में हुए आतंकी हमलों ने दुनिया को दहला दिया और वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य को बदल दिया।
मानवाधिकारों का हनन इस्लामी कट्टरवाद का एक और गम्भीर परिणाम है। कई इस्लामी कट्टरपंथी समूहों ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन किया है, जिसमें महिलाओं के अधिकारों का विशेष रूप से हनन शामिल है। आईएसआईएस द्वारा यहुदी महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार और तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और काम पर लगाए गए प्रतिबंध इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
इस्लामी चरमपंथ के बढ़ते संकट ने वैश्विक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। इसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सैन्य हस्तक्षेप और आतंकवाद-रोधी उपायों पर जोर देने के लिए मजबूर किया है। इसके परिणामस्वरूप कई देशों ने अपने सुरक्षा कानूनों को कड़ा किया है और नागरिक स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं, जो कभी-कभी मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर ले जाते हैं।
इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी भावना का बढ़ना भी इस्लामी चरमपंथ का एक गम्भीर परिणाम है। इस्लामी चरमपंथ के कारण पश्चिमी देशों में इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी भावना बढ़ी है, जो समाज में और अधिक विभाजन पैदा कर रही है। यह न केवल मुस्लिम समुदायों के एकीकरण में बाधा डालता है, बल्कि कट्टरपंथी समूहों के लिए और अधिक लोगों को भर्ती करने का अवसर भी प्रदान करता है।
इस्लामी कट्टरवाद के उदय ने वैश्विक स्तर पर सुरक्षा, शांति और स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी की है। वैश्विक स्तर पर कट्टरपंथी विचारधारा के प्रसार से उपजी हिंसा मानवता के लिए गम्भीर चुनौती बनकर उभरी है। इससे निपटने के लिए सरकारों, समुदायों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। कठोर अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ विश्व समुदाय को इस गम्भीर समस्या से निपटने के लिए एकजुट हो कर लड़ने की आवश्यकता है। केवल एक समग्र दृष्टिकोण अपनाकर ही हम इस जटिल और गम्भीर चुनौती का सामना कर सकते हैं और एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित दुनिया की ओर बढ़ सकते हैं।
-डॉ. महेंद्र कुमार सिंह