वाशिंगटन के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में राहुल गांधी एक चर्चा कार्यक्रम में आमंत्रित थे। इस दौरान उनकी जुबान कई बार विभिन्न मुद्दों पर फिसल गई, जिससे कुछ लोगों में नाराजगी दिखी तो कुछ लोगों ने अपने होठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान भी बिखेरी। आखिर ये मुद्दा क्यों गरमाया, इस आलेख में हम विस्तार से चर्चा कर रहे हैं।
जॉर्जटाउन में राहुल गांधी के वक्तव्यों का खूब विश्लेषण हुआ। जबकि विश्लेषण कुछ दूसरी बातों का भी होना चाहिए था। जिसकी तरफ स्तम्भ लेखकों का ध्यान नहीं गया। उन्होंने जॉर्जटाउन में क्या कहा, इस पर पर्याप्त चर्चा हो चुकी है। इसके अलावा और क्या है, जिसे एक आम भारतीय को जानना चाहिए।
प्रारम्भ जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में वॉल्श स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस से करते हैं, जिसे एसएफएस भी पुकारा जाता है। 10 सितम्बर, 2024 को चर्चा के लिए राहुल गांधी यहां आमंत्रित थे। इस कार्यक्रम का संचालन एडवर्ड लूस ने किया था। यह बात एसएफएस के सम्बंध में गूगल करके कोई भी जान सकता है कि इसे सीआईए की जासूसी फैक्ट्री कहा जाता है। ऐसी कई खोजी रिपोर्ट लिखी गई हैं, जिसमें एसएफएस को केंद्रीय खुफिया एजेंसी, रक्षा विभाग, विदेश विभाग और राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ बताया गया है।
एसएफएस पर आगे बढ़ने से पहले थोड़ा पत्रकार एडवर्ड लूस के सम्बंध में जान लेते हैं। लूस उपनिवेशवादी मानसिकता वाले परिवार से सम्बंध रखते हैं। वह 2001 से 2006 के बीच नई दिल्ली में स्थित एफटी फाइनेंशियल टाइम्स के दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख थे। 1999-2000 तक, लूस ने क्लिटंन प्रशासन में ट्रेजरी सचिव लैरी समर्स के भाषण लेखक के रूप में काम किया। उनकी शिक्षा दीक्षा ऑक्सफोर्ड में हुई और उन्होंने एक भारतीय परिवार में शादी की। लूस अब वाशिंगटन, डीसी में रहते हैं और फाइनेंशियल टाइम्स में मुख्य अमेरिकी टिप्पणीकार हैं। सीआईए का कारखाना कहे जाने वाले संस्थान में राहुल को आमंत्रित किया जाता है और वहां उनसे बातचीत के लिए जो पत्रकार मौजूद होता है, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से उसकी नफरत कोई छुपी हुई बात नहीं है। जो लोग भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सक्रिय हैं, वे लूस को जानते होंगे और यह भी जानते होंगे कि उसने कई भाजपा समर्थकों को सिर्फ समर्थन के लिए सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर दिया है। अब इस बात को आप संयोग की श्रेणी में रखना चाहें या प्रयोग की, आप तय कीजिए। एडवर्ड लूस जिस फाइनेंसियल टाइम्स की नौकरी करते हैं, वह लगातार अडानी के ऊपर हमलावर रहा है। एसएफएस, फाईनेंसियल टाइम्स, एडवर्ड लूस, गौतम अडानी। सब स्पष्ट है ना! उत्तर प्रदेश में में इसी को ‘खुला खेल फर्रुखाबादी’ कहा जाता है।
लूस का बीजेपी विरोधी होना या फिर एसएफएस का सीआईए का अड्डा होना या फिर फाईनेंसियल टाइम्स का लगातार गौतम अडानी पर हमला करना, किसी भी तरह से चिंता की बात नहीं थी। भारत सक्षम है, इस तरह के हमलों का जवाब देने के लिए लेकिन जब इस गिरोह के साथ देश के नेता विपक्ष (एलओपी) राहुल गांधी दिखाई देते हैं तो देश का चिंतित होना एकदम सही है। बांग्लादेश में अराजकता की स्थिति पैदा करने में सीआईए की भूमिका अब छुपी हुई बात नहीं रही। मोडस आपरेंडी (कार्यप्रणाली) बांग्लादेश में सीआईए की यही रही कि पहले उन्होंने विपक्ष के नेताओं से मेल मुलाकात की। उन्हें विश्वास में लिया और फिर पूरे बांग्लादेश में हर तरफ अराजकता की स्थिति रही और हिन्दुओं का वहां नरसंहार हुआ। सीआईए इको सिस्टम में राहुल का स्वागत हो रहा था, इसीलिए जब एक भारतीय पत्रकार ने बांग्लादेश के हिन्दुओं से जुड़ा प्रश्न कांग्रेस से पूछा तो ना सिर्फ उसका मोबाइल छीन लिया गया बल्कि वह सारा डाटा डीलीट कर दिया गया। जो उसने वहां रिकॉर्ड किया था। बांग्लादेश के हिन्दुओं के प्रश्न पर अमेरिका में कांग्रेस की ‘बौखलाहट’ की वजह वे आंखें तो नहीं हैं, जो अमेरिका में लगातार उन पर नजर रखे हुईं थी। कुछ कुछ बिग बॉस की तरह। बिग बॉस सब देख रहे हैं। बिग बॉस चाहते हैं कि राहुल गांधी अब भारतीय सिखों पर हो रहे अत्याचार की झूठी कहानी सुनाएं। यदि यूएस में कोई दबाव उन पर नहीं था फिर सिखों पर हो रहे अत्याचार वाला झूठ उन्होंने क्या इंडिया में अपनी थू-थू कराने के लिए बोला था? राहुल के इस बयान भारतीय सिख से अधिक खुश सीआईए और खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू हुआ। फिर कांग्रेस ही बताए कि यह बयान राहुल ने किसके कहने पर और किसके लिए दिया था?
राहुल गांधी की विदेश यात्राएं और उनके परिवार से जुड़ी कई ऐसी घटनाएं हैं, जिसे बार-बार संयोग कह कर टालने का प्रयास किया जाता है। उनका जवाब नहीं आता। भारत में कई बड़ी दुर्घटनाएं उस दौरान हुईं हैं, जब राहुल विदेश में थे। वे विदेश यात्रा पर बार बार जाते हैं लेकिन उसका कोई विस्तृत ब्योरा नहीं मिलता। इस बार भी 16 सितम्बर को राहुल गांधी तीन दिवसीय अमेरिकी दौरे से लौट आए हैं। इस यात्रा में उन्होंने अमेरिका में सिखों पर जिस तरह का बयान दिया है, उसके बाद भारतीय सिख समुदाय कांग्रेस से नाराज दिखा। सिखों का नरसंहार कराने वाली कांग्रेस पार्टी, सिखों के नरसंहार पर गलतबयानी कर रही है। इस बार राहुल गांधी की इस यात्रा में सिर्फ तीन दिन की खबर मीडिया में आई। वे 6 सितंबर को लंदन में थे और 15 सितंबर तक उन्होंने कुल 10 दिन विदेश में बिताए। ईद-ए-मिलाद के दिन वे भारत लौट आए। इतने पवित्र दिन वे विदेश में कैसे रह सकते हैं? राहुल गांधी एक पारसी पिता और ईसाई मां की संतान हैं, इसलिए वे अल्पसंख्यकों के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं। इसलिए उनके ईद-ए-मिलाद के दिन भारत लौटने पर कोई सवाल नहीं है। सवाल उनके अमेरिकी दौरे को लेकर उठ रहे हैं। बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय प्रश्न पूछ रहे हैं, राहुल गांधी अपनी नौवीं विदेश यात्रा के बाद स्वदेश वापस आ गए हैं। उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों में केवल पांच घंटे ही हिस्सा लिया। फिर दस दिन विदेश में क्या किया?
राहुल गांधी के व्यवहार और कामकाज को देखते हुए बार-बार डीप स्टेट का जिक्र आता है। पिछले कुछ समय से वे जिस तरह के बयान दे रहे हैं और सोशल मीडिया एक्स पर जिस तरह की टिप्पणी लिख रहे हैं, उसे पढ़कर बार-बार संदेह होता है कि वे किसी डीप स्टेट के कल पुर्जे की तरह काम तो नहीं कर रहे। जिन्हें डीप स्टेट नहीं पता, उन्हें समझना चाहिए कि यह इतनी ताकतवर अनधिकृत संस्था है जो पर्दे के पिछे रहकर सत्ता को अपने तरह से चलने के लिए मजबूर कर देती है। वह सत्ता में बैठी लोकतांत्रिक सरकार के छोटे- छोटे निर्णयों को प्रभावित करती है। वह इतनी ताकतवर है कि उनके मन का नहीं हुआ तो किसी भी क्षण तख्ता पलटने तक का खेल रच सकती है। हाल में ही इसका शिकार बांग्लादेश हुआ है। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान में आस्था रखने वाले नागरिकों के परिप्रेक्ष्य में डीप स्टेट की व्याख्या की जाए तो यह शब्द अत्यधिक नकारात्मक अर्थ रखता है और अधिकतर झूठ, फरेब और षडयंत्र से जुड़ा होता है।
जब राहुल गांधी अपने एक्स हैंडल से सरकार तुम्हारी और सिस्टम हमारा जैसी टिप्पणी करते हैं तो वह वास्तव में अपने सोशल मीडिया हैंडल से डीप स्टेट को व्याख्यायित कर रहे होते हैं। यदि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेता विपक्ष डीप स्टेट के पुर्जे की तरह व्यवहार करे तो वास्तव में यह सिर्फ विपक्ष नहीं बल्कि पूरे देश के लिए शर्मिंदा होने वाली बात है।
कांग्रेस पार्टी को सामने आकर सीआईए के साथ पार्टी के रिश्तों, डीप स्टेट की तरह काम करने के आरोपों और राहुल गांधी और सोनिया गांधी की विदेश यात्राओं पर प्रेस कॉन्फ्रेस करके विस्तार से अपना पक्ष रखना चाहिए। यदि इन सवालों पर वे चुप रहेंगे तो पार्टी की चुप्पी का दुनिया अपनी-अपनी तरह सुविधाजनक अर्थ लगाएगी और पूछेगी कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी से नफरत करते-करते कहीं भारत सरकार के विरुद्ध कोई युद्ध छेड़ने की योजना पर तो काम नहीं कर रही? कांग्रेस के अंदर इन सवालों पर चुप्पी का अर्थ कहीं ये तो नहीं कि बिग बॉस सब देख रहा है और बिग बॉस को नाराज नहीं करना क्योंकि उसे डीप स्टेट के इस गेम में अभी रहना है!