समाज का मार्ग प्रशस्त करना और समाज को राह दिखाना ही साहित्य का दायित्व है। साहित्य के सामने यह चुनौती होती है कि वह देश, काल, परिस्थिति के अनुसार समाज के गुणों-अवगुणों का अध्ययन व विश्लेषण करने की अनवरत प्रक्रिया का हिस्सा बना रहे। साहित्य अपने चिंतन, अपनी प्रखरता, तीव्रता और जीवंतता के अनुरूप समाज की चेतना में परिवर्तित हो जाता है। इसका एक सम्यक व सटीक उदाहरण हिंदी विवेक मासिक पत्रिका है, जो विगत 15 वर्षों से अपने साहित्य निर्माण से समाज को निरंतर नई चेतना देने और सामाजिक दृष्टि को व्यापक व विस्तारित करने का प्रयास कर रहा है।
हिंदी विवेक राष्ट्र एवं समाज को समर्पित, साहित्य निर्माण का गुण विकसित करने और वैचारिक अभिव्यक्ति का ऐसा संसाधन है। जिनका मूल्य वर्तमान बाजारवाद के प्रचलित सिद्धांतों से भिन्न है क्योंकि इनमें प्रकाशित विषयवस्तु का ज्ञान अनमोल होता है। हालांकि, हिंदी विवेक मासिक पत्रिका ने 15 वर्ष की अपनी गौरवमयी यात्रा में अपने व्यापक दृष्टिकोण व समग्र चिंतन से समाज में परिवर्तन लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। हिंदी विवेक द्वाराप्रकाशित साहित्य में वर्तमान के ज्वलंत, अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास निरंतर किया जाता है। लोकरंजन के साथ लोकमंगल का वैचारिक समन्वय कितना प्रभावी हो सकता है, इसका अनुभव हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के अब तक किए प्रयोग के परीक्षण द्वारा सहज ही हो सकता है।
वर्तमान में समाज एकवैचारिक अंधेरे की ओर बढ़ रहा है। चारित्रिक भटकाव और धार्मिक टकराहटें भी बढ़ी हैं। समस्याओं के इस जाल में नित्य नूतनता, विचारों की नवीनता एवं सृजनता भी चाहिए। आज पहले से कहीं अधिक सामाजिक विवेक अपेक्षित है। आज लोगों की बुद्धि प्रखर है परंतु प्रखर बुद्धि दिशा भटक गई है। इस भटकाव को फिर से सही राह पर लाना है। समाज को नई और मौलिक राह का सटीक व सही मार्गदर्शन देने की आवश्यकता है। वर्तमान समस्याओं को समझने के साथ उन समस्याओं के समाधान को भी सुलझाना है। ऐसी स्थिति में हमें शब्दशिल्पी बनकर शब्दब्रह्म को हमारे पाठकों तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। कठिन प्रयास, निरंतर साधना से समाज में नवजीवन का, नवीन चेतना का संचार करने में हमें गिलहरी की तरह अपना योगदान देना है। लोकरंजन के साथ लोकमंगल का समन्वय निर्माण करते रहना है।
दीपावली का उत्सव हर वर्ष आता है और चला जाता है। शत्-शत् दीप जलाकर हम अपने घरों को सजाते हैं, सुशोभित करते हैं। माता लक्ष्मी की आराधना करते हैं कि वे अपनी कृपा से हमारा उद्धार करें, हम पर असीम कृपा करें। हर वर्ष, हम इस पुण्य पर्व को नवीन आशा के साथ मनाते हैं। आज समाज में बिखराव है, राष्ट्र को समझने की अज्ञानता है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध हो रहे हैं, सर्वत्र हिंसा का तांडव है और मनुष्य विनाश के मुंह में जा रहे हैं। तृष्णा अनंत है अतृप्त है। वह निरंतर बढ़ती रहती है। ऐसी दशा में कौन आशा करेगा कि मां लक्ष्मी हमसे प्रसन्न होंगी? कार्तिक अमावस्या के अंधकार में टिमटिमाने वाले दीपकों से, एक रात्रि की शोभा से संतुष्ट हुआ जा सकता है? राष्ट्र एवं समाज जागरण की विशाल दृष्टि रखने वाले दीपक के कर्त्तव्य की संतुष्टि तो इतने मात्र से नहीं होती। इन दीपकों की भूमिका तो लम्बी होती है।
अमावस्या की रात्रि में टिमटिमाता एक समर्पित दीपक भी हजारों दीपकों को जलने की प्रेरणा दे सकता है। अंधकार, प्रकाश का अभाव मात्र है। यदि ऐसे समर्पित दीपकों की संख्या बढ़े, उनकी ज्योति निखरे तो फिर अमावस्या भी सुहावनी और दर्शनीय हो सकती हैं। समर्पित भाव रखने वाले दीपक जैसे व्यक्तित्वों का समाज में अभाव नहीं है। खोज करें तो बहुत सारे मिल सकते हैं। आवश्यकता यह है कि उन्हें जाग्रत किया जाए। उनके सुप्त संस्कार जागृत करके उनसे समाज को प्रकाशमान करने का कार्य करवाया जा सकता है।
अमावस की रात में पूरी पृथ्वी पर चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा होता है। ऐसी अंधेरी रात में एक छोटा सा मिट्टी का दीपक अपनी टिमटिमाती लौ से अंधकार के साथ संघर्ष करता है। यदि कहीं वह सोचे कि सर्वत्र अंधेरा छाया है और मैं तो बहुत छोटा हूं, ऐसी स्थिति में अंधकार को कहां तक खदेड़ सकूंगा? पर वह दीपक जलता है क्योंकि यदि नहीं जलता तो न उसका कोई महत्त्व होता और न ही उसके जीवन का। जीवन इस बात पर निर्भर नहीं है कि हम अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में कहां तक सफल होंगे, वरन वह तो इस बात पर निर्भर है कि हम अपने दायित्व को पूरा करने के लिए तैयार हैं या नहीं? तैयार हैं, तो ही अपने जीवन का मूल्य और महत्त्व है, अन्यथा कोई मूल्य नहीं। कार्तिक कृष्ण की अमावस्या को दीपावली में प्रकाश का यह पर्व मनाने की परम्परा इन अर्थों में गहरा महत्त्व रखती हैं।
दीपावली पर्व वस्तुतः राष्ट्र के उत्थान हेतु सामूहिक प्रयत्नों का प्रेरक पर्व है। केवल घर की सफाई कर लेना और कुछ दीपक जला लेना ही पर्याप्त नहीं है। मनुष्यों के मन:स्वास्थ्य पर जो गलत प्रभाव पड़ता है, उसके लिए विशेष रूप से विचारों की स्वच्छता की व्यवस्था करना भी इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है। दीपावली का यही तात्पर्य है कि हम अपने आस-पास की सब गंदगी को दूर करके लक्ष्मी के स्वागत के लिए तैयार हो जाएं। इसलिए दीपावली का सच्चा संदेश यही है कि यदि हम अपने राष्ट्र को, अपने समाज को समृद्धिशाली बनाना चाहते हैं तो हम सबको मिलकर गलत और दरिद्रता के कारणों को समूल नष्ट करना चाहिए।
दीपावली के स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ हिंदी विवेक के दीपावली विशेषांक का साहित्यिक स्वाद हमारे पाठकों को वैचारिक रूप में समृद्ध बनाता है। साहित्य की यह परम्परा 15 वर्षों से अविरल चल रही है। साहित्यिक, संस्कृति की समृद्धि में हिंदी विवेक ने सदैव योगदान दिया है। दीपावली से पहले हमारे सुधी पाठकों के मन में यह जिज्ञासा हमेशा रहती है कि इस वर्ष हिंदी विवेक द्वारा प्रकाशित दीपावली विशेषांक में क्या प्रस्तुत किया गया है? इस विशेषांक में प्रस्तुत विषयों की विशेषता क्या है? इस वर्ष प्रकाशित हो रहे दीपावली विशेषांक में बिहार राज्य के मैथिल प्रांत की बौद्धिक, सांस्कृतिक, समृद्धि और प्राचीन संस्कृति को दर्शाने वाला विशेष प्रयोजन है। अपने पाठकों को भारत के विभिन्न क्षेत्र की संस्कृति से परिचित कराने की हिंदी विवेक की अब तक की परम्परा रही है। मैथिली समाज की गौरवशाली और गरिमामय संस्कृति एवं परम्पराओं का सौंदर्य, पाठकों तक पहुंचाने हेतु सुप्रसिद्ध उद्योजक उद्यमी एवं समाजसेवी रामसुंदर झा और उनकी पत्नी श्रीमती मनोरमा झा का विशेष योगदान हिंदी विवेक को प्राप्त हुआ है। उनके सहयोग से हम विषय की प्रस्तुति में सुलभता महसूस कर रहे हैं। इसके साथ पाठकों को आनंद देने वाले और मन-मस्तिष्क को चालना देने वाले कई विषयों पर इस विशेषांक में चर्चा की गई है।
इस वर्ष विश्व हिंदू परिषद के 60 वर्ष पूरे हो रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद हिंदू एवं हिंदुत्व की सुरक्षा के साथ हजारों सेवा कार्यों के माध्यम से समाज की समस्याओं को हल करने का प्रयास कर रही है। विश्व हिंदू परिषद के अखिल भारतीय महासचिव विनायकराव देशपांडे का साक्षात्कार दीपावली विशेषांक का मुख्य आकर्षण है। विश्व में हो रही उथल-पुथल, राजनीतिक, धार्मिक तनाव और उसका जनमानस पर हो रहा प्रभाव इत्यादि विषयों पर सटीक भाष्य करने वाले आलेख पाठकों को जागृत करने में भी सहायक होंगे। दीपावली विशेषांक में वैचारिक साहित्य को प्राथमिकता दी गई है पर मनोरंजन के विषयों को भी सम्मानित पृष्ठ दिए गए हैैं।
लेखक, कवि, संपादक, कार्यकारी सम्पादक, उप-सम्पादक, प्रूफ रीडर, डिजाइनर, प्रिंटर, विज्ञापन विभाग के कर्मचारी, विज्ञापनदाता सभी पाठक और प्रकाशक इन सभी के परिश्रमों का और समर्पण एक अद्भुत मिश्रण हिंदी विवेक के इस दीपावली विशेषांक में हैं। इन सभी के समर्पण एवं संगठित प्रयासों के कारण ही हिंदी विवेक का अपने पाठकों के साथ संवाद और सुलभ होता है। हिंदी विवेक पिछले 15 वर्षों से लेखकों को नवप्रवर्तन के लिए प्रोत्साहित करने की जिम्मेदारी निभा रहा है। वास्तविक दीपोत्सव चार दिनों का होता है, परंतु हिंदी विवेक पत्रिका का यह शब्दोत्सव पिछले 15 वर्षों से समाज को प्रकाशमान करने हेतु मार्गदर्शन कर रहा है। समय की कितनी भी चुनौतियां क्यों न होें, यह शब्दोत्सव नई चेतना के साथ प्रस्तुत होता रहा है। यह रचनात्मकता, प्रतिभा को निखारने के साथ, नितनूतन विषयों पर नई सोच को बढ़ावा देती है। इन्हीं कारणों से हिंदी विवेक पढ़ने की संस्कृति व्यापक हो रही है।
नई तकनीक और नई पीढ़ी के बीच सम्बंध को समन्वित करने के लिए हिंदी विवेक ने हमेशा सकारात्मक कदम उठाए हैं। और देश भर में फैले हिंदी विवेक के सभी लेखकों, विज्ञापनदाताओं, शुभचिंतकों के समर्थन से हमें हमेशा अपनत्व व सहयोग प्राप्त हुआ है। हमें यह बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि हमें अपने सभी शुभचिंतकों का हमेशा समर्थन मिलता रहा है। सभी का सहयोग हेतु धन्यवाद। आशा करते हैं कि भविष्य में भी हमारे पाठकों को साहित्यिक स्वाद से समृद्ध करने के लिए आप सभी हमें सम्बल प्रदान करते रहेंगे। हम सभी के लिए दीपावली की सार्थकता का मर्म यही है कि हम अपनी आत्म ज्योति को प्रज्वलित करें। ऊर्जा प्रदान करनेवाली प्रेरणा एवं संकल्पना से दीपावली के महापर्व के शुभ अवसर पर हम सभी जुड़ सकें। दीपावली के दीपकों की प्रकाश ज्योति से हमारे जीवन में राष्ट्रीय, सामाजिक एवं धार्मिकता का जागरण हो। सुख, शांति, समृद्धि का लाभ सभी के जीवन में अभिव्यक्त हो। दीपावली के इस महापर्व को राष्ट्रीय, सामाजिक रूप में सार्थक बनाने में हम सभी अग्रसर रहें। आप सभी को शुभकामनाएं एवं धन्यवाद।