दीपावली में चारों ओर पटाखों की आवाज और दूधिया प्रकाश से गांव, कस्बे, शहर और महानगर नहाया हुआ सा प्रतीत होता है। ऐसा लगता है मानो अम्बर ही धरती बन गया है और दीप सब तारे बन गए हैं।
अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश देता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैैं। लोगों में दीपावली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं। मिठाइयां एवं उपहार एक दूसरे को बांटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुंदर रंगोली बनाई जाती है, दिए जलाए जाते हैं और पटाखे फोड़े जाते हैं। बड़े व छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं।
कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला खुशियों और प्रकाश का त्योहार दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और प्राचीन त्योहार है। यह त्योहार मां लक्ष्मी के सम्मान में मनाया जाता है। कुछ जगहों पर इस त्योहार को नए साल की शुरुआत भी माना जाता है। दीपोत्सव से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं यह त्योहार भगवान राम और माता सीता के 14 वर्ष के वनवास के बाद घर आगमन की खुशी में मनाया जाता है। कथाओं के अनुसार दीपावली के दिन ही भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। यह भी कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया तब ब्रजवासियों ने इस दिन दीप प्रज्ज्वलित कर खुशियां मनाईं। जैन धर्म के लोग इस त्योहार को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। दीपावली की रात को इस रूप में जाना जाता है कि मां लक्ष्मी ने पति के रूप में भगवान विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह किया। दीपावली का त्योहार भगवान विष्णु के वैकुंठ में वापसी के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या के दिन मां लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुई थीं। इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। दीपावली की रात मां काली की पूजा का भी विधान है।
दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं। यह एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही इसकी तैयारियां आरम्भ हो जाती हैं। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाजारों में चारों तरफ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बर्तनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाजारों में खील-बताशे, मिठाइयां, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियां बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर पटाखों की दुकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-सम्बंधियों के घर मिठाइयां व उपहार बांटने लगते हैं। दीपावली की शाम माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियां जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाजार व गलियां जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियां, पटाखों व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अंधेरी रात पूर्णिमा से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती हैं। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन भाई और बहन की गांठ जोड़ कर यमुना नदी में स्नान करने की परम्परा है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी प्रत्युत्तर में उसे भेंट देता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। दीपावली के अवसर पर वे दुकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकम्पा रहेगी। कृषक वर्ग के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। खरीफ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता है।
दीपावली के अवसर पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके दीप प्रज्ज्वलित कर पूरे घर को सजाया जाता है ताकि चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश हो। इसके पीछे भी एक कथा प्रचिलित है, एक बार माता लक्ष्मी धरती पर विचरण करने आईं और अत्यधिक अंधकार होने के कारण वे मार्ग भटक गईं और उन्होंने किसी स्थान पर विश्राम करने का विचार किया। सम्पूर्ण स्थान पर घूमते हुए उन्हें कोई द्वार खुला नहीं मिला। हताश होकर माता लक्ष्मी आगे बढ़ ही रही थीं कि एक झोपड़ी का द्वार उन्हें खुला मिला वे उस द्वार की ओर बढ़ गईं। वहां एक छोटा सा दीपक जल रहा था और एक बूढ़ी स्त्री सूत की कताई कर रही थी, उसे सुबह बेचना जो था। माता लक्ष्मी ने बूढ़ी माई से सुबह तक विश्राम करने के लिए स्थान मांगा। बूढ़ी माई उनको जलपान, बिछावन वगैरह देकर अपने काम में लग गई। माता लक्ष्मी ने अच्छी तरह से विश्राम किया। भोर में जब वह बूढ़ी माई जागी तो उसने देखा कि वह सुंदर सौम्य स्त्री चली गई है और उसका घर धन धान्य से भरा हुआ है। जब आस पास के लोगों को पता चला कि लक्ष्मी मां उस बूढ़ी माई के घर आईं क्योंकि उसका ही घर खुला हुआ था और वहां प्रकाश था तो सभी ने माता लक्ष्मी के लिए दीपक जला कर द्वार खोल दिए ताकि माता इस बार उनके घर आएं।
तब से समस्त जनसाधारण अपने घरों में साफ सफाई कर, घर को सुसज्जित कर, अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार मिट्टी के ढेरों दीपक जला कर माता लक्ष्मी की प्रतीक्षा करते हैं। दीपक तेल या घी से जलाए जाते हैं जिनसे वातावरण शुद्ध हो जाता है। मिट्टी के दीपक सभी की पहुंच में होते हैं चाहे वो गरीब हो या अमीर। इनकी सुंदरता ही अलग है। सजे हुए दीपकों की वलियां मन को मोहित करती हैं। आज भी इनकी सुंदरता का कोई मोल नहीं है।
दीपक जलाते समय अकसर इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है। इसमें दीपक से प्रार्थना की जाती है,
शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्यम् धन सम्पदा।
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते॥
‘हे सुंदर और कल्याणकारी, आरोग्य और सम्पदा को देने वाले दीप, शत्रु के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं।’
तेल का दीपक जलाया जाए तो उससे उत्पन्न होने वाली तरंगें दीपक बुझने के आधा घंटे बाद तक वातावरण को पवित्र बनाए रखती हैं। लेकिन घी वाला दीपक बुझने के बाद चार घंटे से अधिक समय तक सात्विक ऊर्जा को बनाए रखता है। दीपक चाहे तेल का हो अथवा घी का, इससे वातावरण में सात्विक तरंगों की उत्पत्ति होती है और अंधकार दूर होता है, शुभ शक्तियां आकर्षित होती हैं, हानिकारक किरणों का नाश होता है, फलस्वरूप घर में सुख-समृद्धि आती है।
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