संख्याबल और क्षेत्रफल में कम होने के बाद भी इजराइल अपना अस्तित्व बचाने के लिए साहस और इच्छाशक्ति के बल पर हमास, हिजबुल्लाह, हुती और ईरान के साथ चौतरफा युद्ध लड़ रहा है। उसके लिए यह युद्ध ‘लड़ो या मरो’ वाला है।
हिजबुल्लाह के विरुद्ध इजरायल की सैनिक कार्यवाही निरंतर जारी है। इजराइली सेना ने दक्षिणी लेबनान में हिजबुल्लाह के अंडरग्राउंड सेंटर पर एक जोरदार एयर स्ट्राइक की और अनेक प्रक्षेपास्त्रों से प्रहार किए। इजराइल के इस आक्रामक प्रतिकार और प्रतिशोध में हिजबुल्लाह के 50 से अधिक आतंकवादी मारे गए। एक बड़ी संख्या में हिजबुल्लाह के सदस्यों का सफाया किया जा चुका है। इस अभियान में समूह के मारे गए नेता नसरल्लाह का सम्भावित उत्तराधिकारी हासेम सर्फादीन भी शामिल है। इजराइली रक्षा बल (आई.डी.एफ.) के प्रवक्ता डैनियल हंगारी के अनुसार इस कार्यवाही में है हिजबुल्लाह के दक्षिणी फ्रंट ऑफ राडवान फोर्सेस के 6 सीनियर कमांडर मारे गए। इसके साथ ही हिजबुल्लाह के दर्जनों कमांडर सेंटर बुरी तरह से ध्वस्त कर दिए गए हैं। इजराइल द्वारा हिजबुल्लाह के विरुद्ध लेबनान में अपनी जमीनी घुसपैठ बढ़ाई जा रही है और ईरान के हाल ही में किए गए बैलेस्टिक मिसाइल हमले का जवाब देने के बारे में भी गम्भीरता से विचार कर रहा है। इजराइल द्वारा जहां लेबनान और सीरिया में जोरदार हमला किया गया है, वहीं उत्तरी गाजा की घेराबंदी भी अनवरत जारी है। इजराइल वायु सेवा के लगभग 100 जेट विमानों ने दक्षिणी मोर्चे पर हिजबुल्लाह के अंडरग्राउंड सेंटरों पर अपना जोरदार हमला किया। इजराइली वायु सेवा ने विगत एक दिन में लेबनान और गाजा में 230 से अधिक हमले किए। आई.डी.एफ. ने विगत 24 घंटे के दौरान के इस एयर स्ट्राइक में 50 से अधिक हिजबुल्लाह लड़ाकुओं को मारा और इसके साथ ही अनेक बुनियादी ढांचे भी ध्वस्त कर दिए गए। उल्लेखनीय है कि हिजबुल्लाह एक लेबनानी उग्रवादी संगठन है, जिसने हमास यानी ‘फिलिस्तीन सुन्नी उग्रवादी संगठन’ तथा ‘फिलिस्तीन के इस्लामिक जेहाद’ के साथ मिलकर 7 अक्टूबर 2023 को इजराइल पर हमला किया जिसमें 1200 लोग मारे गए और 2500 को बंदी बनाकर युद्ध की पहल की थी। वास्तव में है हिजबुल्लाह का अभिप्राय है ‘खुदा या ईश्वर का संगठन’। इसकी स्थापना 1980 के दशक के आरम्भ में लेबनान द्वारा की गई। यह ‘एविसस ऑफ रेजिस्टेंस’ का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली सदस्य है। यमन का एक आतंकवादी संगठन हूती भी इसके साथ मिलकर इजराइल के विरुद्ध मोर्चा खोलने में निरंतर लगा हुआ है। इस समय हिजबुल्लाह (लेबनानी) हमास (फिलिस्तीनी) तथा हुती (यमन) उग्रवादी समूह एक साथ इजराइल के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं।
दूसरी ओर ईरान की ओर से इजराइल पर बैलेस्टिक मिसाइलों के हमलों के बाद से पश्चिम एशिया में युद्ध का संकट बेहद गहरा गया है। अब बेहद विचारणीय एवं गम्भीर चिंता का विषय यह है कि ईरान एवं इजराइल का सीधा टकराव आखिर किस अंजाम तक पहुंचेगा? कहीं यह विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा संकट बनकर तो नहीं खड़ा हो जाएगा। यह सुनिश्चित है कि इजराइल प्रतिकार स्वरूप और प्रतिशोध की भावना से ईरान पर कई अधिक मारक हमला करेगा। इसमें इजराइल को अपना सक्रिय सहयोग देने के लिए अमेरिका ने भी स्पष्ट घोषणा कर दी है अगर इजराइल एवं ईरान के बीच बड़े पैमाने पर युद्ध आरम्भ हो जाता है तो इस बात की भी एक बड़ी सम्भावना है कि इसमें अमेरिका भी प्रत्यक्ष रूप से अपनी सक्रिय सहभागिता करेगा। विगत 1 वर्ष के दौरान ईरान का परमाणु कार्यक्रम कितनी प्रगति कर चुका है, इसकी मात्र परिकल्पना की जा रही है, किंतु यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि पश्चिम एशिया के इस संघर्ष में परमाणु हथियारों का नाम आ जाने से मानवीय मूल्यों की सुरक्षा एवं उत्तरजीविता के सामने एक अभूतपूर्व संकट उत्पन्न हो गया है। यदि ईरान अपने परमाणु हथियारों का प्रयोग करने का दुस्साहस करता है तो भावी युद्ध और अधिक भयावह और विनाशकारी सिद्ध होगा। जैसा की प्रसिद्ध सैन्य विचारक जनरल जे.एफ.सी. फुलर ने कहा था कि ‘यदि विश्व शांति की स्थापना सम्भव नहीं हुई तो सम्पूर्ण मानवता आधुनिक भीषणतम विनाशक शस्त्रों की ज्वालामुखी के कारण विनष्ट होकर खंड-विखंड हो जाएगी। इसमें सर्वाधिक विनाशक शस्त्र होगा परमाणु बम।
पश्चिम एशिया का यह युद्ध यदि भयावह स्वरूप धारण करता है तो इजराइल टैक्टीकल परमाणु बम (सीमित, विध्वंसक क्षमता वाला) का उपयोग कर सकता है। इजराइल अपने घातक तथा विनाशकारी हथियारों का प्रयोग पश्चिम एशिया के अनेक देशों में स्थित अमेरिकी सैनिक अड्डों के माध्यम से भी कर सकता है। वास्तव में ईरान ने इजराइल को प्रतिकार व प्रतिशोध का एक बड़ा बहाना अवश्य दे दिया है। इजराइल अब ईरान के परमाणु स्थल व सैन्य अड्डों पर हमला करके या ईरान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ अर्थात उसके तेल स्रोतों पर हमला करके उसे कभी भी विनाश की कगार पर खड़ा कर सकता है।
वर्तमान समय में ईरान एवं इजराइल के बीच जारी अनवरत तनाव एवं तनातनी ने भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर सोचने, समीक्षा करने, सतर्कता होने पर विवश कर दिया है। इजराइल भारत का एक बड़ा सहयोगी एवं साथी है। वहीं दूसरी ओर ईरान भी भारत के साथ अपने ऐतिहासिक एवं व्यापारिक सम्बंध निरंतर बनाए हुए है। मध्य एशिया में भारत की सही एवं सरल पहुंच बनाने के लिए ईरान का सहयोग महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि भारत ईरान में बहुत चर्चित चाबहार बंदरगाह को विकसित कर रहा है। इससे कच्चे तेल का आयात बढ़ने के बावजूद भी भारत कच्चे तेल और गैस निर्यात हेतु अभी भी पश्चिम एशिया पर बहुत हद तक निर्भर है। भारत के लिए पश्चिमी एशिया का संकट नई आर्थिक समस्या खड़ी कर सकता है।
यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जहां एक ओर मिस्त्र, जॉर्डन और कतर ने सामूहिक रूप से इजराइली हमले की निंदा की, वहीं दूसरी ओर लेबनान और गाजा के समर्थन में इजराइल की सैन्य कार्यवाही के विरुद्ध अब अरब जगत एकजुट होता नजर आ रहा है। लेबनान में इजराइली हमले द्वारा इस हिजबुल्लाह का गजर सेक्टर प्रभारी हसन तलाल, मूसा दीव बाराकत, महमूद मूसा कार्निव, बिन्ट जेबिल सेक्टर में तोपखाने का प्रभारी अहमद इस्माइल तथा अब्दुल्ला अली डिकिक मारे गए। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के पूर्व सलाहकार एवं सी.एफ.आर. प्रेसिडेंट रिचर्ड हास का कहना है कि ‘इजराइल द्वारा ईरान पर हमला तय है लेकिन उसका परिणाम अनिश्चित है।’ इजराइल के रक्षा मंत्री योआब गैलेंट कहते हैं कि ‘ईरान के विरुद्ध हमला घातक, सटीक और आश्चर्यजनक होगा। जो कोई भी हम पर हमला करेगा उसे चोट पहुंचेगी और उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। वे समझ नहीं पाएंगे कि क्या हुआ और कैसे हुआ, वे परिणाम देखेंगे। अंततः इजराइल का आक्रामक प्रतिकार एवं प्रतिशोध यदि ईरान पर होता है तो विश्व शांति एवं माननीय मूल्यों की सुरक्षा हेतु एक बड़ा संकट अवश्य खड़ा हो जाएगा। यह बड़ी चिंता व चुनौती का विषय है।
–डॉ. सुरेंद्र कुमार मिश्र