सामूहिक खेल, सामूहिक समता, सामूहिक कवायद, सामूहिक संचलन, सामूहिक गायन, सामूहिक प्रार्थना ऐसा शाखा का स्वरूप होता है। संघ शाखा में भागीदार होने वाले बाल, तरुण, प्रौढ स्वयंसेवकों में “हम” यह भाव निर्माण हो, यह उद्देश्य होता है। “हम” यह शब्द ही आत्मविश्वास से भरा है। 1926 में संघ शाखा प्रारंभ हुई। नागपुर में कुछ तरूणों के मन में “हम” यह भाव निर्माण हो गया था इसलिए 1927 में नागपुर में हुए दंगों में हिंदुओं की रक्षा हो सकी। “हम” का दायरा कितना भी बड़ा हो सकता है। समाज में “हम” का भाव निर्माण करने वाली 80 हजार से अधिक संघ की शाखाएं हैं। अरुणाचल हो या गुजरात, उत्तराखंड हो या केरल सभी जगह यह प्रयत्न चल रहा है।
संघ निर्माता डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार 20वें शतक में हुए अनेक महापुरुषों में से एक थे, इतना ही उनका महत्व नहीं है। “समष्टि” का विचार लेकर ही उनका जन्म हुआ, ऐसा कहना होगा। परिस्थिति का सूक्ष्म निरीक्षण, घटित हो रही घटनाओं का विश्लेषण, सामाजिक दृष्टिकोण से उन घटनाओं का निष्कर्ष व मुझे क्या करना चाहिए, इसका विचार कर कृति करना, यह उनके कार्य शैली की विशेषता थी।
नागपुर से उस समय प्रकाशित होने वाले “महाराष्ट्र” इस समाचार पत्र में एक सभा का वृत्त छपा था वह इस प्रकार है – सभा में से कुछ लोग अचानक खड़े हो गए। देखते-देखते 5 सेकंड के अंदर वॉकर रोड के बाजू के सभी लोग बिजली का करंट लगा ऐसे खड़े हो गए और जैसे शेर उन्हें खाने दौड़ रहा है, फिर उस प्रकार से अपनी जान बचाते हुए भागने लगे। इसी बीच किटसन लाइट की बत्तियां भीड़ के धक्के से नीचे गिर गईं एवं बंद हो गईं। जो लोग दौड़ रहे थे उनकी भीड़ वेंकटेश थियेटर की दीवार से टकरा गई। इस धक्का-मुक्की में और अचानक लोगों के भागने के कारण कई लोगों की छड़ी (काठी) गुम हो गई, किसी के जूते, टोपियां, दुपट्टे, गुम हो गए। किसी की धोती छूट गई। 4000 लोग क्षण भर में डर के कारण अपना अवसान खो बैठे। इस घटना की जांच के अंत में यह समझ में आया कि सभा के मध्य में बैठे हुए एक व्यक्ति को ऐसे लगा कि उसके पैर के नीचे छोटा मेंढक है इसलिए वह खड़ा हुआ और नीचे देखने लगा। उसके आजू-बाजू के पास 5-10 लोग भी खड़े हो गए। उन्ही में से एक व्यक्ति सांप-सांप कहकर चिल्लाया, ऐसा सुनते ही लोग भागने लगे। एक को देखकर दूसरा भी डर के मारे भागने लगा। 99% लोगों को यह पता ही नहीं था कि वह क्यों भाग रहे हैं? परंतु भागने वालों के साथ वे भी डर के कारण भागने लगे।
यदि हम लोग उस समय होते तो यह खबर मिर्च मसाले सहित बताते और थोड़ी देर के लिए अपना मनोरंजन कर लेते। क्या है यह, एक मेंढक का पराक्रम! 4000 की सभा उसने भंग कर दी। जो सभा में नहीं थे वे यह समाचार पढ़कर हंसे होंगे। कैसी है हमारी जनता , ऐसा भी अनेक लोगों ने कहा होगा।
डॉ. हेडगेवार उस दिन नागपुर में नहीं थे। ‘महाराष्ट्र’ समाचार पत्र में सभा का यह वर्णन पढ़कर वे विचार मगन हो गए। सभा के संचालकों में से कुछ लोगों से वे जानबूझकर मिले। “श्रोताओं की बात तो छोड़ दें पर आप लोगों ने समय पर आगे आकर लोगों को नियंत्रित क्यों नहीं किया?” ऐसा पूछा। सबका एक ही उत्तर था “मैं अकेला क्या करता” यह वाक्य सबसे सुनना पड़ा।
मैं अकेला क्या कर सकता हूं, यह वाक्य हमें भी अनेक बार सुनना पड़ता है। हिंदू व्यक्ति सभा में हो, यात्रा में हो, कुंभ मेले में हो, वह अकेला ही होता है, यह अकेलेपन की हीन भावना हिंदू समाज को आत्म विनाश की ओर ले जाएगी, ऐसा डॉक्टर जी को लगा। मैं अकेला नहीं आजू-बाजू का समाज मेरा है, ऐसा हमें लगना चाहिए। “मैं नहीं हम” यह भाव हिंदू समाज में अंदर तक पैठना चाहिए। इसका विचार कर डॉक्टर साहब द्वारा प्रारंभ किया गया कार्य यानी “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ”। संघ यानी रोज एक घंटा लगने वाली संघ की शाखा। शाखा यानी सामूहिकता का अनुभव। प्रतिदिन एकत्र कर हम अकेले ना होकर अनेकों में एक हैं। “सिंधु के एक बिंदु हैं” यह भावना पक्की हो जाए तो ही अकेलेपन से उत्पन्न होने वाली भयग्रस्तता दूर होगी।
संघ शाखा यानी व्यक्ति का अहम से वयम की ओर प्रवास। अहम का संकोच (झिझक) और वयम का विस्तार।
संघ शाखा में गाए जाने वाले गीत सरल और “हम” का भाव पुष्ट करने वाले होते हैं। उदाहरण- हम लोग “केवल मैं नहीं” पहाड़ पर रहने वाले, शिवाजी के अनुचर होकर ही रहेंगे। इत्यादि।
समाज संघ का, संघ समाज का ऐसी भूमिका पहले दिन से है। शाखा गांव की होती है, संपूर्ण बस्ती की होती है। शाखा चलाने वाला स्वयंसेवक चाहे वह किसी भी जाति का हो फिर भी विचार संपूर्ण गांव का होता है। समग्र बस्ती का होता है।
किसी व्यक्ति को महत्व देना, नेता बनाने की कार्य पद्धति का अवलंबन संघ ने कभी नहीं किया। संघ शाखा का आधार सामूहिकता है। सामूहिक खेल, सामूहिक समता, सामूहिक कवायद, सामूहिक संचलन, सामूहिक गायन, सामूहिक प्रार्थना ऐसा शाखा का स्वरूप होता है। संघ शाखा में भागीदार होने वाले बाल, तरुण, प्रौढ स्वयंसेवकों में “हम” यह भाव निर्माण हो, यह उद्देश्य होता है। “हम” यह शब्द ही आत्मविश्वास से भरा है। 1926 में संघ शाखा प्रारंभ हुई। नागपुर में कुछ तरूणों के मन में “हम” यह भाव निर्माण हो गया था इसलिए 1927 में नागपुर में हुए दंगों में हिंदुओं की रक्षा हो सकी। “हम” का दायरा कितना भी बड़ा हो सकता है। समाज में “हम” का भाव निर्माण करने वाली 80 हजार से अधिक संघ की शाखाएं हैं। अरुणाचल हो या गुजरात, उत्तराखंड हो या केरल सभी जगह यह प्रयत्न चल रहा है।
“हम” इस शब्द में अपनत्व का भाव है। भूकंप, बाढ़, चक्रवात, अकाल ऐसे संकटकाल में सहायता के लिए जाने की प्रवृत्ति सहज निर्माण होती है।
“हम” याने सह संवेदना। संवेदना उत्पन्न करने वाले गीत बड़े चाव से शाखा में गाए जाते हैं। उदाहरण-
1) जो भाई भटके-पिछड़े, हाथ पकड़ ले साथ चले।
भोजन कपड़ा घर की सुविधा, शिक्षा सबको सुलभ मिले।
ऊंच-नीच लवलेश न हो,
छुआछूत अवशेष ना हो।
एक लहू सबकी नस-नस में,
अपनेपन की रीत गहें।2) शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है,
कोटी आंखों से निरंतर आज आंसू बह रहे हैं।
आज अगणित बंधु अपनी यातनाए सह रहे हैं।
दुख हरे सुख दे सभी को
एक यह आचार है
एक यह आचार है।
10 भाषणों से जो नहीं होगा, वह एक गीत से होता है। ऐसा अनुभव संघ शाखा में आता है। वर्तमान में 1 लाख 60 हजार सेवा कार्य इस “हम” के भाव के कारण स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जा रहे हैं।
संघ की शाखा यानी समाज में कर्तव्य भाव जागृत करने वाला काम। भारत मेरा देश है, सारे भारतीय मेरे बंधु हैं, इस वाक्य से संविधान में दी गई प्रतिज्ञा प्रारंभ होती है। “भारत माता की जय” यह वाक्य पहले दिन से संघ ने स्वीकार किया है। संघ शाखा में उपस्थित सभी लोग सामूहिक रूप से भारत माता की जय कहते हैं। समूह कितना भी बड़ा हो, विविध भाषा भाषी हो, विविध संप्रदाय मानने वाला हो, विविध प्रांत का हो, सभी जब एक स्वर से भारत माता की जय कहते हैं तब भारत मेरा देश है, इस शब्द की गहनता अधिक बढ़ जाती है। ऊंच नीच, छुआछूत, भाषा भेद, प्रांत भेद, उत्तर-दक्षिण या पूर्व-पश्चिम ऐसा कोई भेद, एक माता की संतान कहने पर शेष नहीं रहता। सभी पर समान रूप से प्रेम करना, नियमों का पालन करना स्वाभाविक रूप से आता है। अधिकार बोध नहीं कर्तव्य का बोध जागृत होता है।
संघ का कार्य प्रारंभ होकर 99 वर्ष पूरे हो गए हैं। “हम” यह भाव भरने में संघ को अच्छी सफलता प्राप्त हुई है। शताब्दी वर्ष में वयम का दायरा और अधिक बढाने का संघ का विचार है। समाज हित के छोटे-बड़े काम करने वाले, काम करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति एवं संस्था बहुत हैं। इन सब तक पहुंचने का विचार है। योजनाएं बनाई जा रही हैं।
भारत के इस महारथ को सब मिलकर खींचे।
सबको याने कोई भी सहभागी हो सकता है, अपना योगदान दे सकता है। मतभेद या मनभेद होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता तथा वयम इस भावना का चमत्कार समाज को देखने को मिल सकता है। ऐसे पांच विषय शताब्दी वर्ष के निमित्त चुने गए हैं।
1. व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक व्यवहार समरसता पूर्ण होना चाहिए। किसी भी प्रकार के भेदभाव को जगह नहीं होना चाहिए। छुआछूत का भाव संपूर्ण तरीके से नष्ट होना चाहिए।
2. अपने परिवार की संस्कारक्षमता बढ़ानी चाहिए।
3. पर्यावरण शुद्ध रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को करने लायक कुछ बातें हैं। घर, उद्योग तथा खेती में पानी का उपयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए। जन्मदिवस एक पौधा लगाकर भी मनाया जा सकता है। प्रतिबंधित प्लास्टिक का उपयोग नहीं करना है। कचरे का योग्य निस्तारण करना आवश्यक है।
4. नागरी कर्तव्यों का पालन – इसमें यातायात के नियमों के पालन से लेकर उम्मीदवार चुनने के लिए मतदान आवश्यक रूप से करने तक अनेक बातें आती है। सभी को स्वतः का विचार करना चाहिए।
5. स्वदेशी का आचरण तथा स्वाभिमान से जीवन यापन करना। स्वदेशी का आचरण करने से रोजगार निर्मित होता है। प्रत्येक व्यक्ति यदि एक भी खादी का कपड़ा पहने तो भी बहुत से व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा। भजन, भोजन, भवन, भाषा, भूषा में हम कितना स्वदेशी का उपयोग कर सकते हैं? इसका विचार करें।
6. स्वाभिमान- अपने देश का, पर्वतों का, नदियों का, हमारे ऋषि मुनियों का, साधु साध्वियों का, संत, वैज्ञानिक, कलाकारों, वीर पराक्रमी पुरुषों का, वीरांगनाओं का, हमारी माता बहनों का सहभाग आवश्यक है। आने वाली नई पीढ़ी को भी यह विरासत हमें देनी है।
जितना “हम” का यह भाव जागृत होगा उतना भारत प्रगति पथ पर अग्रसर होता हुआ दिखेगा।
हम अमृत पुत्र हैं, हम इस धरती के पुत्र हैं। हम इस मातृभूमि का भविष्य आज प्रकाशित कर दिखाएं।
नागपुर की एक सभा में घटित घटना के पीछे यह डॉक्टर साहब का कितना गहन चिंतन था। “अकेलेपन“ का दोष नष्ट कर “हम” का भाव बढाने वाली संघ शाखा देश को मिली। यह व्यक्ति का और समाज का आमूलचूल परिवर्तन करने वाली बात नहीं है क्या?
-मधु भाई कुलकर्णी