हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
एक साथ चुनाव की ओर अग्रसर हुआ देश

एक साथ चुनाव की ओर अग्रसर हुआ देश

by अवधेश कुमार
in राजनीति
0

 

एक देश एक चुनाव विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किए जाने के समय विपक्षियों का विरोध अनअपेक्षित नहीं है। जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका विचार देश के समक्ष रखा विरोधी पार्टियां तभी से इसके विरुद्ध रहीं हैन। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने हालांकि प्रस्तुत करते समय विपक्ष की अनेक आशंकाओं का उत्तर देते हुए स्पष्ट किया यह किसी तरह न राज्यों की शक्तियों के साथ छेड़छाड़ करता है न संघीय ढांचा को कमजोर करता है और न ही संविधान की सर्वोच्चता या मूल ढांचे के ही विपरीत है। विपक्ष को इसे स्वीकार नहीं करना था और फिर मत विभाजन , जिसमें विरोध में 198 और पक्ष में 269 मत के बाद ही विधेयक पेश किया गया। पहले से माना जा रहा था कि सरकार तत्काल इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजेगी और यही हुआ। विधेयक पेश होने के बाद भी यह मानने वाले लोग ज्यादा नहीं होंगे कि आगामी कुछ वर्षों में एक निश्चित अवधि के भीतर लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव कराए जा सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा इस दिशा में दिखाई गई प्रतिबद्धता और तत्परता निस्संदेह उम्मीद जगाती है कि चुनावों का बिगड़ा हुआ क्रम पटरी पर आएगा। हालांकि व्यावहारिक प्रारूपों के साथ लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत होने के बाद इसे अव्यावहारिक व असंभव मानने वालों की सोच में बदलाव आएगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित 8 सदस्यीय समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही मान लिया जाना चाहिए था कि मोदी सरकार विरोधियों द्वारा उठाई जा रही आशंकाओं और आलोचनाओं के बावजूद एक साथ चुनाव करने के अपने लक्ष्य को साकार करना चाहती है। पिछले 12 दिसंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इसकी स्वीकृति के बाद अगला कदम विधेयक पेश होना था। इसके बाद इसका पारित होना ही शेष है।

चुनाव के लिए 129 वें संशोधन विधेयक में स्पष्ट रूप से संविधान संशोधनों से लेकर उन सभी बातों का रेखांकन है जिनसे यह साकार हो सकता है। इसमें दो विधेयक हैं। एक संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए और दूसरा विधानसभाओं वाले तीन केंद्र शासित प्रदेशों के एक साथ चुनाव कराने के संबंध में। स्थानीय निकाय चुनावों को भविष्य के लिए छोड़ा गया है। संविधान संशोधन के द्वारा एक नये अनुच्छेद जोड़ने और तीन अनुच्छेदों में संशोधन करने का प्रस्ताव है। एक, अनुच्छेद- 82(ए) जोड़ा जाएगा, ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित हो जाएं। दो, अनुच्छेद- 83 संसद के सदनों के कार्यकाल से संबंधित अनुच्छेद 83 तथा राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल से संबंधित अनुच्छेद 172 और विधानसभाओं के चुनाव से संबंधित कानून निर्मित करने में संसद की शक्ति वाला अनुच्छेद 327 में संशोधन किया जाएगा। इसके द्वारा यह प्रावधान किया जाएगा कि आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तिथि के लिए राष्ट्रपति अधिसूचना जारी करेंगे। अधिसूचना की तिथि को नियुक्ति तिथि माना जाएगा और लोकसभा का कार्यकाल नियुक्ति तिथि से पूरे 5 वर्ष का होगा।

Assam, West Bengal, Kerala, Tamil Nadu, Puducherry: Indian State Assembly  Elections keep the Flame of Democracy Burning

केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े जिन तीन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव हैं, वे हैं द गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज एक्ट- 1963, द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली- 1991 और द जम्मू एंड कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन एक्ट- 2019 शामिल हैं। यह प्रश्न उठाया जाता रहा है कि अगर बीच में किन्हीं कारणों से सरकार गिर गई तो क्रम कैसे बनाए रखा जाएगा? इसका उत्तर यह है कि लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा समय से पहले भंग होने पर बचे हुए कार्यकाल के लिए ही चुनाव कराए जाएंगे। वास्तव में विधेयक पारित हो जाएं तो 2034 से देश में एक साथ चुनाव संपन्न हो जाएगा।

जिन लोगों ने कोविंद समिति की रिपोर्ट पढ़ी उन्हें इन सारी बातों की जानकारी होगी। ये विधेयक उस रिपोर्ट के अनुरूप ही हैं। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर, 2023 को गठित समिति ने 191 दिनों में विशेषज्ञों से लेकर संबंधित सभी स्टेकहोल्डरों से चर्चा के बाद 14 मार्च, 2024 को पूरी विस्तृत रिपोर्ट राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी। उसमें उठाए जा रहे सारे प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश थी। कोविंद समिति ने यह रेखांकित किया था और सच भी है कि अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम ऐसे राज्य जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के चुनाव लोकसभा चुनाव कुछ पहले होते हैं तो लोकसभा चुनाव खत्म होने के छह महीने के भीतर हरियाणा, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में। इसके बाद दिल्ली और फिर बिहार। तो 15 राज्यों को उनकी विधानसभाओं का कार्यकाल थोड़ा आगे बढ़ाने या पीछे करने से ज्यादा समस्या नहीं होगी।

जिनने 1990 और सन 2000 के दशक की शर्मनाक अस्थिरता और उसके कारण उत्पन्न भयानक राजनीतिक, वैधानिक, नैतिक, आर्थिक, न्यायिक आदि बहु स्तरीय समस्याओं और जटिलताओं को देखा ध झेला है व निश्चित रूप से चाहेंगे कि एक साथ चुनाव संपन्न हो जाएं। हालांकि 2010 के बाद राज्यों में स्थिरता आई है किंतु उसके पहले की स्थितियां थी हमारे सामने हैं। केंद्र में भी 1999 से गठबंधन सरकारें भी स्थिर रहीं तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 2019 में देश ने एक पार्टी को बहुमत दिया। किंतु राजनीतिक स्थिति को देखते हुए वैसी अस्थिरता के खतरे को अभी भी टाला नहीं जा सकता। दूसरे, हर वर्ष कुछ विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव के कारण राजनीतिक दल जन समर्थन बनाए रखने के लिए आवश्यक देशहित और जनहित के मुद्दों पर चाहते हुए एकजुट नहीं होते, अपने मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसे स्टैंड लेते हैं जो जनहित और देश हित के विपरीत भी होता है। इनका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है। 1967 तक सारे चुनाव एक साथ होते थे। 1967 में आठ राज्यों में विपक्ष की संवित सरकारों के आने, कांग्रेस के अंदर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरुद्ध विद्रोह और विभाजन, कांग्रेस द्वारा समय पूर्व प्रदेश सरकारों को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने तथा लोकसभा का चुनाव निर्धारित समय से एक वर्ष पहले 1971 में करा लेने से पूरी चुनावी व्यवस्था पटरी से उतर गई। फिर आपातकाल में लोकसभा का कार्यकाल एक वर्ष बढ़ा दिया गया और 1977 में बनी हजनता पार्टी की सरकार 1980 में गिर गई। उसके बाद केंद्र से लेकर राज्यों तक अलग-अलग समय अस्थिरता का दौर रहा और भारत को जहां होना चाहिए वहां नहीं पहुंच सका, क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व की क्षमता देश की चिंता से ज्यादा सरकारों में आने उसमें बने रहने या बनाए रखने पर केंद्रित हो गया। इससे पूरे देश में ऐसे नेताओं और जनप्रतिनिधियों का आविर्भाव हुआ जिनके उद्देश्य में ही देशहित और जनहित नहीं था। तो राजनीतिक विकृतियों के कारण असहज और अस्वाभाविकता को ही सहज मान कर बनाए रखना और उसे पटरी पर नहीं लाने का क्या औचित्य है? यह पूरे देश के लिए अहितकर है। इसलिये एक साथ चुनाव का समर्थन करना चाहिए।One Nation, One Election: Understanding the Push for Simultaneous

रामनाथ कोविंद समिति ने रिपोर्ट तैयार करने के पहले कई देशों की चुनाव प्रक्रियाओं का अध्ययन किया। ये देश हैं , स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका। दक्षिण अफ्रीका में नेशनल असेंबली और प्रोविंशियल लेजिसलेच्योर के लिए एक साथ मतदान होता है। नगरपालिका चुनाव प्रांतीय चुनाव से अलग होते हैं। स्वीडन अनुपातिक चुनावी प्रणाली अपनाता है। यानी राजनीतिक दलों को उनके वोटों के आधार पर निर्वाचित विधानसभा में सीटें दी जाती हैं। उनकी प्रणाली में संसद (रिक्सडैग) , काउंटी और नगर परिषदों के लिए चुनाव एक ही समय हर वर्ष सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं। हर 5 वर्ष में एक बार सितंबर के दूसरे रविवार को नगरपालिकाओं व विधानसभाओं के चुनाव होते हैं। जापान में प्रधानमंत्री को पहले नेशनल डाइट सिलेक्ट करती है। उसके बाद सम्राट मुहर लगाते हैं। इंडोनेशिया 2019 से एक साथ चुनाव करा रहा है। यहां राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति दोनों एक ही दिन चुने जाते हैं। 14 फरवरी , 2024 को इंडोनेशिया ने एक साथ चुनाव कराए। इसे दुनिया का सबसे बड़ा एकदिवसीय चुनाव कहा जा रहा है क्योंकि लगभग 20 करोड़ लोगों ने सभी पांच स्तरों राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति , संसद सदस्य, क्षेत्रीय और नगर निगम के सदस्यों के लिए मतदान किया। तो जो ये देश कर सकते हैं हम क्यों नहीं कर सकते?

6 Datasets To Visualize Lok Sabha Election By Numbers

प्रश्न उठ सकता है कि आखिर इन संशोधनों को मोदी सरकार दोनों सदनों में पारित कैसे कराएगी क्योंकि इसके लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता है? तत्काल इसमें समस्या दिखती है क्योंकि विपक्ष सरकार के साथ हर विषय पर आर-पार के मूड में रहती है। सरकार ने विपक्ष से बात करने के लिए वरिष्ठ मंत्रियों को विशेष उत्तरदायित्व दिया है और सदन के बाहर नेताओं से वार्ता के साथ संयुक्त संसदीय समिति में भी सहमति बनाने का पूरा प्रयास होगा। राजनीति देशहित और जनहित में ही होनी चाहिए और इसमें यही मूल लक्ष्य निहित है। इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि अंततः दोनों सदनों में इतना समर्थन मिल जाएगा जिसे आप विधायक पारित हो जाए।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #onenation #oneelaction #india #world #modi #bjp

अवधेश कुमार

Next Post
शत्रुता की राजनीति का डरावना परिणाम

शत्रुता की राजनीति का डरावना परिणाम

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0