आपके व्यवहार के ‘पैटर्न’ यानि आवृत्ति की कुछ सेकंड में गणना, उसकी समालोचना और फिर उसके आधार पर कुछ निश्चित निष्कर्ष निकालना। सिर्फ निष्कर्ष निकाल कर रह जाना नहीं, बल्कि उस निष्कर्ष के आधार पर कुछ एक्शन लेना। यही तो है आर्टिफिशियल इटेलिजेंस। यह आदमी के लिए कल्पवृक्ष बनेगा अथवा उसकी नींव को ही हिला देगा?
अगस्त 2022
कंधे पर ऑफिस का बैग लटकाए सुशांत न्यूयार्क के अपमार्केट ईस्टविलेज की अपनी सोलहवीं मंजिल के फ्लैट के बाहर पहुंचा ही था कि अंदर से मीठी सी आवाज आई, आ गए सुशान्त! आज थोड़ी देर हो गई?
सुशान्त ने बाहर से ही कहा, हां, लक्षणा, आज ऑफिस में कुछ ज्यादा ही काम था।
इतना कहते ही दरवाजा अपने-आप खुल गया। बैग को सोफे के बगल वाली मेज पर रखकर सुशान्त जूते उतार ही रहा था कि फिर से आवाज आई आज कुछ ज्यादा ही थके हुए लग रहे हो। सुशान्त तुम्हारा शुगर लेवल भी कम है। टी मेकर के नीचे आज तुम्हारी थोड़ी अधिक चीनी वाली चाय तैयार है।
सुशान्त उठा और अपने स्टूडियो अपार्टमेंट की किचनेट से जाकर टी मेकर के नीचे ताज़ा तैयार की गई गरमागरम चाय का प्याला उठा लाया। चाय एकदम परफेक्ट थी। चाय की एक बड़ी सी सुकून भरी चुस्की लेने के बाद ज्यों ही उसने अपने सिर को सोफे के सिरहाने टिकाया, उसके म्यूजिक सिस्टम से मद्धम आवाज में लता मंगेशकर का गीत बज उठा तुम न जाने किस जहां में खो गए…
सुशान्त जब भी थका होता तो 50 के दशक का एस डी बर्मन का ये गाना उसे बड़ा सुकून देता था। आज उसे यों भी लक्षणा की बहुत याद आ रही थी। ‘लक्षणा’उसकी पत्नी जो न्यूयार्क से हज़ारों मील दूर भारत के शहर गुड़गांव में बच्चों के साथ रह रही हैं। सुशान्त एक आई टी इंजीनियर है और काम के कारण कई बार महिनों न्यूयॉर्क में रहना उसकी मजबूरी है। लक्षणा दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाती है सो पति के साथ आ नहीं सकती।
तो फिर जब वह दरवाजे के बाहर खड़ा था तो उसे लक्षणा की आवाज कैसे सुनाई दी?
वो कौन था जिसने उसकी चाय तैयार की और उसके मन की स्थिति को पढ़कर उसके अनुकूल गाना भी चला दिया?
इसका एक ही उत्तर है ‘आर्टिफिशियल इटेंलिजेंस’ यानि ‘मशीनी बुद्धि’ पर आधारित उसके घर के स्वचलित सिस्टम। सुशान्त के घर आने के क्रम को अगर सिलसिलेवार तरीके से देखा जाए तो आप पाएंगे कदम-कदम पर कम्प्यूटर उसके घर को संचालित कर रहा था।
जैसे ही वह कार पार्किंग में पहुंचा, तो फोन के जी.पी.आर.एस. से जुड़े उसके घर के कम्प्यूटर को पता चल चुका था कि सुशान्त पहुंचने ही वाला है। दरवाजे के बाहर खड़े हुए सबसे पहले कम्प्यूटर ने वहां के कैमरे को आदेश दिया था कि चेहरे का स्कैन करे और बताए कि दरवाजे पर खड़ा व्यक्ति सुशान्त ही है। स्कैन से जब पता चल गया कि वह चेहरा तो सुशान्त का ही था तो दूसरी परत की सुरक्षा जांच के तहत कम्प्यूटर ने ही लक्षणा की आवाज में उससे पूछा था “आ गए, सुशान्त?‘’ और जब सुशान्त ने जवाब दिया था तो उसकी आवाज का ध्वनि परीक्षण करने के बाद ही कम्प्यूटर ने दरवाजे पर लगे स्वचालित मैकेनिकल सिस्टम को आदेश दिया था और बगैर चाबी के ही दरवाजा खुल गया था।
सुशान्त की आंखों की पुतली और उसकी त्वचा का स्कैन उसके सोफे पर बैठते ही हो गया था। जिससे कम्प्यूटर को पता चला था कि सुशान्त का एनर्जी लेवल उसके खून में शुगर का स्तर कम होने से नीचे चला गया है।
सुशान्त अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता है। इसी कारण उसने अपने स्वचलित न्यूयार्क वाले घर में कम्प्यूटर का नाम भी लक्षणा ही रख दिया था। पत्नी की आवाज के नमूने कम्प्यूटर में फिट कर दिए थे इसलिए उसे वही आवाज कम्प्यूटर से भी सुनाई देती थी। पत्नी से हजारों मील दूर सुशान्त को पत्नी का वर्चुअल साथ लगातार मिल रहा है। ये अलग बात है कि ये ‘वर्चुअल’ नजदीकी लक्षणा के प्रति उसकी चाहत को अकेलेपन के पलों में और बढ़ा देती है। और उसे लगता है कि वह उसी पल दौड़ कर पत्नी को गले लगा ले।
आपको शायद लग रहा है कि ये कोई साइन्स फिक्शन की कल्पना है। जी नहीं, ये सब अब किसी कवि की ख्यालों की उड़ान नहीं है। ये आज नहीं तो बल्कि अगले दो चार बरसों में यथार्थ रूप में होने जा रहा है। आपको यकीन नहीं होता तो फिर 2022 से लौट आते हैं अगस्त 2018 पर। आज की सचाई को जानने के लिए ये़ जरूरी भी है।
अगस्त 2018
कम्पनी के काम से सुशान्त गुड़गांव से चेन्नई आया हुआ है। इसी महीने जन्माष्टमी और रक्षाबंधन के त्यौहार आने वाले हैं। छह महीने पहले उसकी शादी हुई थी। पर उसके बाद से आज तक सुशान्त ने लक्षणा के लिए अकेले जाकर कभी साड़ी नहीं खरीदी। उसे लगा कि चटकीले रंग की कांजीवरम साड़ी में उसकी गौरवर्णा लक्षणा खूब जंचेगी। टी नगर के नल्ली साडीज के शोरूम पर चटख लाल और पीले रंग वाली पारम्पारिक पटोला डिजाइन की साडी को लेकर सुशान्त ने अपना क्रेडिट कार्ड स्वाइप किया ही था कि उसके फोन की घंटी बज उठी।
सुशान्त अभी स्टोर के अंदर ही था। दूसरी तरफ से आवाज सुनाई दी सर ये ए बी सी बैंक से कॉल है। क्या आपने अभी चेन्नई में नल्ली साड़ीज में कुछ पेमेंन्ट किया है?
एक हाथ से साड़ी के पैकिट को संभालता हुआ और दूसरे हाथ से अपने पर्स में क्रेडिट कार्ड को रखता हुआ सुशान्त हल्का सा झल्ला उठा था। उसे एयरपोर्ट जाने में देर जो हो रही थी।
हां भई! मैंने अभी पेमेंन्ट किया है। तकरीबन चिल्ला कर सुशान्त बोला।
दूसरी तरफ से आवाज आई- थैंक यू फॉर कन्फर्मिंग। हैप्पी शापिंग एंड ए गुड डे।
ऐसे कॉल आना अब सामान्य सी बात है। सामान्य से दिखने वाले इस कॉल के पीछे एक पूरा का पूरा स्वचालित सिस्टम काम करता है जो कुछ ही पलों मे आपके खरीद व्यवहार की विवेचना करके आपको आगाह करने की कोशिश करता है। इसमें कम्प्यूटर और इंटरनेट का एक पूरा जाल सक्रिय होता है। आर्टिफिशियल इटेलिजेंस यानि मशीनी बुद्धि का इस्तेमाल करके कम्प्यूटर ये पता कर लेता है कि आपने रूटिन से हटकर कुछ असामान्य किया है। इसी कारण आपको अक्सर बैंक से फोन तभी आता है जब आप ‘पैटर्न’ से हटकर कोई खरीददारी करते हैं। ‘पैटर्न’ यानि आवृत्ति की कुछ सेकंड में गणना, उसकी समालोचना और फिर उसके आधार पर कुछ निश्चित निष्कर्ष निकालना। सिर्फ निष्कर्ष निकाल कर रह जाना नहीं, बल्कि उस निष्कर्ष के आधार पर कुछ एक्शन लेना। यही तो है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।
वैसे आप थोड़ा गहराई से सोचकर देखें तो हमारे आसपास हो रही घटनाओं की हमारी बुद्धि अपने स्मृतिकोष में संचित अनुभवों के आधार पर गणना करती है। वह निष्कर्ष ही हमारी क्रिया अथवा प्रतिक्रिया का आधार बनता है। क्रिया-प्रतिक्रिया की इसी आवृत्ति में हमारे सामान्य जीवन का अधिकांश समय निकल जाता है। शरीर की तंत्रिकाओं के माध्यम से हमारी बुद्धि और इंद्रियों में लगातार संवाद बना रहता है। कई क्रियाकलाप तो सिर्फ आवृत्तियों पर आधारित है। इनके लिए बुद्धि को कोई जोर नहीं लगाना पड़ता और वे स्वयमेव ही हो जाते दिखाई देते हैं। जैसे ब्रश करना, मख्खी आने पर हाथ का चलाना और भोजन आने पर मुंह का खुलना आदि।
व्यक्ति से लेकर समष्टि तक जीवन का सामान्य कार्य व्यवहार इंसान और प्रकृति की क्रिया-प्रतिक्रिया की आवृत्तियों से ही चलता है। यह भी कहा जा सकता है कि क्रिया और प्रतिक्रिया के क्रम की अनवरत आवृत्ति ही जीवन है। लेकिन मानव शरीर और मशीन में एक बुनियादी फर्क है; वह है मानव के पास इन्द्रियों के अतिरिक्त मन, भाव, हृदय और विचार जैसे तत्वों का होना। पर सवाल है कि ये तत्व आज तो मशीन के पास नहीं हैं पर क्या भविष्य में कभी कंप्यूटर के पास भी ये स्वतंत्र रूप से आ सकते हैं? इसका उत्तर विद्वान हां और नहीं दोनों में ही देते हैं। इस बड़ी बहस पर विचार बाद में करेंगे।
फिलहाल बात करते हैं मशीनी बुद्धि यानि आर्टिफिशियल इटेलिजेंस के मौजूदा या भविष्य में हो सकने वाले विभिन्न उपयोगों पर। अगर कल्पना शक्ति को अलग रख दिया जाए तो मशीन में इंसान से ज्यादा मेमोरी क्षमता और गणना शक्ति है। अब तो ऐसे कम्प्यूटर आ गए हैं जिनमें तकरीबन अपरिमित मात्रा में ऐसी ताकत है और जब ये कम्प्यूटर बड़े नेटवर्क से जुड़ जाते हैं तो इनकी गणना शक्ति विशालकाय हो जाती है। यानि कल्पनाशक्ति के अलावा वे सारे काम जिनमें स्मृति की गणना कर तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं; मशीन किसी भी मनुष्य से बेहतर कर सकती है। मशीन इटेलिजेंस सॉफ्टवेअर के उपयोग से ऐसे अनेकों कार्य पिछले कुछ वर्षों में आदमी से हटकर कंप्यूटर के पास चले गए हैं। मशीन के द्वारा किए गए ये कार्य कहीं अधिक बेहतर हो गए हैं, गलतियों की सम्भावना नगण्य हो गई है और इस कारण ये किफायती भी हो गए हैं।
अगर हम अपने आसपास देखेंगे तोे पाएंगे कि कुछ दशक पहले जो काम मनुष्यों के हाथ में थे अब उन्हें कम्प्यूटर कर रहे हैं। जैसे बैंकों में नोट गिनना, खाते से पैसे निकालना, रेलवे का आरक्षण, विमानों का परिचालन, सिनेमा टिकिटों की बिक्री, मतगणना, यहां तक कि अब आपके पंडित जी भी जब पंजियां मिलाते हैं तो वहां कम्प्यूटर ही काम कर रहा होता है। आने वाले समय में मीडिया, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और संवाद के मामले में मशीनी बुध्दि अधिकाधिक नजर आएगी। दो क्षेत्रों के उदाहरण से ये बात अच्छे से समझाई जा सकती है। छरीीलेा के द्वारा आयोजित एक स्पर्धा में हाल ही में सैमसंग ने एक ऐसे सेंसर का प्रदर्शन किया जो बिना आपकी जानकारी के आपके फोन के द्वारा ही लगातार आपका रक्तचाप ले सकता है। आपके रक्तचाप का उतार चढाव आपकी पुरानी स्वास्थ्य जानकारी के साथ अगर ऑनलाइन जोड़ दिया जाए तो यह हदय रोग के खतरों से आपको काफी पहले आगाह कर देगा। यही नहीं
इमर्जेंसी की अवस्था में स्वचालित सिस्टम आपकी जान की रक्षा के लिए एक वरदान साबित होगा। इसी तरह आपके ई.सी.जी. आदि टेस्ट को भी मशीनी दिमाग अधिक फुर्ती और कौशल के साथ पढ़ सकता है।
अगर मीडिया की बात करें तो हमारे देखते ही देखते यू ट्यूब, गूगल, फेसबुक आदि ने किस तरह से हमारी रूचियों पर आधारित कंटेेेट को हमें परोसना शुरू कर दिया है, जिसे हम सब जानते हैं। हमारी रूचि, पुरानी सर्च, आवृत्ति की आदतों के आधार पर अब कंटेट के अपडेट हमारे फोन और कम्प्यूटर पर इतनी सहजता से आते हैं कि अब हमें अटपटा भी नहीं लगता। थोड़ा जोर डालेंगे तो हम जान जाएंगे कि इसके पीछे कम्प्यूटर, डिजिटल नेटवर्क, मशीन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक जटिल तंत्र काम करता है। यह सब हमारी दिनचर्या और आदत का अंग कब बन गया, हमें पता ही नहीं चला। मीडिया में मशीन का यह दखल सिर्फ सर्च तक ही सीमित नहीं रहेगा। अब कंटेंट बनाने के मामले में भी मशीन इंटेलिजेंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका बढ़ने वाली है।
जानकारों के अनुसार एक न्यूज रूम में पत्रकारों के कई काम कम्प्यूटर अगले दो चार सालों में करने लगेगा। ये काम हैं- सब एडिटिंग, समाचार का सार लिखना, भाषाई रूपांतरण, लिखे शब्दों का आवाज में परिवर्तन या इसका विपरीत आदि। कम्प्यूटर इनमें से कई कार्यों को अधिक त्वरित गति से तथा और अधिक सफाई से कर पाएगा। हालांकि जानकारों का ये भी मत है कि कम्प्यूटर उसमें नई सोच या विचार नहीं डाल सकता। ये सही है कि फिलहाल मशीन में भाव, कल्पना और स्वतंत्र निर्णय क्षमता नहीं है। इसलिए कुछ काम ऐसे जरूर रहेंगे जो मशीन नहीं कर पाएगी। परन्तु न्यूज रूम में काफी सारे काम ऐसे हैं जो आवृत्ति आधारित यानि रिपीटेटिव हैं। यों भी नवीन कल्पनाशीलता वाले काम पूरे काम का महज एक छोटा ही हिस्सा होते हैं। इन्हें छोडकर बाकी सब काम धीरे-धीरे मशीनों पर स्थानान्तरित हो जाएंगे। इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। हम बैकिंग, टेलीकॉम, उड्डयन और वित्त आदि क्षेत्रों में अपनी आंखों के आगे ऐसा होते हुए देख चुके हैं।
यानी जिन क्रियाकलापों में बुध्दि के सिर्फ गणितीय आकलन की जरूरत होती है वे सभी काम कम्प्यूटर या तो कर रहा है या करने की क्षमता रखता है। मशीन इंटेलिजेंस का ये उपयोग बुद्धि आधारित गणनाओं में पिछले दो दशक में तेजी से बढ़ा है। पूरी दुनिया में काफी मात्रा में संसाधन अब मशीन इंटेलिजेंस से आगे जाकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर नई खोजों पर लग रहे हैं। 2017 में इस शोध पर 6.4 बिलियन डॉलर लगाए गए। उससे पिछले साल ये राशि सिर्फ 3.8 बिलियन डॉलर ही थी। भारत अभी इस शोध में पीछे है, पर 2017 में भारत में 73 मिलियन डॉलर इस शोध पर लगे जबकि 2016 में ये राशि 44 मिलियन ही थी। भारत इस तरह की शोध करने वाले देशों में अब दसवां देश बन गया है।
इन आकड़ों से हट कर एक बुनियादी सवाल पर चलते हैं। महशूर हिब्रू लेखक युवल नोव हरारी अपनी पुस्तक ‘सेपियन्स: अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मेनकाइन्ड’ में दो बुनियादी सवाल उठाते हैं। पहला ये कि जब ये तयशुदा है ही कि इंसान के द्वारा किए जाने वाले कई काम मशीनें करने लगेंगी तो फिर इंसान क्या करेगा? वे एक ऐसे समय की कल्पना करते हैं जब मशीनें आज से अधिक उत्पादन करेंगी यानि मनुष्य के पास खाने पीने और अन्य चीजों की कमी नहीं होगी। पर उसके पास व्यस्त रहने का कोई जरिया नहीं होगा। तो फिर आदमी क्या करेगा? वह कैसे व्यस्त रहेगा? क्या खाली दिमाग शैतान का घर नहीं हो जाएगा? ये बहुत सारे सवाल हैं जिनका उत्तर आज सम्भवतः किसी के पास नहीं है।
युवाल नोव हरारी दूसरा और अधिक बुनियादी सवाल भी उठाते हैं। उनका सवाल है कि क्या ऐसा वक्त आ सकता है जब मशीनें बुध्दि के साथ-साथ मन का काम भी करने लगे। इसे ज़रा समझने की ज़रुरत है। आज कम्प्यूटर काम करते हैं मनुष्य द्वारा दी गई एल्गोरिदम के आधार पर। शुरू में सामान्य सी गणितीय गणनाओं के लिए बनाई गई ये एल्गोरिदम जटिल से जटिल होती गई है। पहले एल्गोरिदम सिर्फ गणना करती थीं और वैज्ञानिक उनका मतलब या अभिप्रेत निकाल कर निष्कर्ष पर पहुंचते थे। अब कम्प्यूटर आपको सिर्फ निष्कर्ष ही निकाल कर नहीं देते परन्तु उसके आधार पर होने वाली एक्शन या क्रिया भी संचालित करने लगे हैं।जटिलतम होती एल्गोरिदम के बीच क्या सुपर कम्प्यूटर स्वयं अपनी नई एल्गोरिदम नहीं विकसित कर सकते? अगर ऐसा हुआ तो एक सीमित मात्रा में कल्पनाशीलता का अंश कम्प्यूटर में विकसित होने की सम्भावना से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता। इसके परिणामों की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है। 1993 में स्टीवन स्पीलबर्ग की साइंस फिक्शन फिल्म जुरासिक पार्क का उदाहरण देना यहां ठीक रहेगा। शताब्दियों पहले लुप्त हो चुके डाइनासोर के डी.एन.ए. की खोज करके वैज्ञानिकों द्वारा फिर से डाइनासोर पैदा करने की कोशिश इस फिल्म में बखूबी दिखाई गई है। लेकिन अथक परिश्रम के बाद पैदा किए गए ये डाइनासोर किस तरह से उन्हें पुनर्जीवित करने वाले वैज्ञानिकों के लिए ही खतरा बन जाते हैं यह इस फिल्म में बेहद सजीव और प्रभावी ढंग से दिखाया गया है।
अब सोचिए कि अगर मशीनों में ऐसी क्षमता पैदा हो गई तो मानव सभ्यता का क्या होगा? यह शायद आज कपोल कल्पना लगे परन्तु आज से कुछ दशक पहले तो मोबाइल फोन भी एक कल्पना ही लगता था। कुछ साल पहले की ही बात है जब दो चार जीबी मेमोरी की क्षमता वाले एक कम्प्यूटर रखने के लिए कुछ सौ वर्ग फीट जगह की आवश्यकता पड़ती थी। परंतु आज आपकी जेब में रखा जाने वाला डेढ़ दो सौ ग्राम का मोबाइल फोन उन कम्प्यूटरों से ज्यादा प्रभावी तथा क्षमतावान हो गया है। इसलिए इन दोनों सम्भावनाओं को पूरी तरह से नकार देना सम्भवतः आगे वाली वास्तविकताओं से मुंह मोड़ना होगा। मशीन और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जिसे हम सुविधा के लिए मशीनी बुध्दि कह रहे हैं क्या-क्या कारनामे कर सकती है उसका पूरा अंदाजा लगाना आज मुश्किल है।
अब मानवता के लिए यह एक भस्मासुर साबित होगा या फिर कल्पवृक्ष; ये तो वक्त ही बताएगा। परन्तु हम अपने इस लेख में शुरू के किरदारों की तरफ लौटें तो सुशान्त और लक्षणा का जीवन अधिक सुविधायुक्त होने के साथ ही बहुत जटिलता की तरफ भी बढ़ रहा है।
क्या होगा जब मशीनी लक्षणा सुशांत की हाड़ मांस वाली पत्नी लक्षणा से स्पर्धा करने लगेगी?
पता नहीं ये होगा भी कि नहीं मगर ये सच है कि आगे आने वाले एक दो दशक मानवीय सम्यता के विकास क्रम में काफी दिलचस्प होने वाले हैं।
बहुत सुंदर चिंतन करणे लायक….
thanks for such description of AI in future.
सर,
अद्भुत लेख..यथार्थ का सटीक चित्रण..संवेदनशील और वर्तमान से भविष्य की तरफ़ बढ़ते समय के पदचाप सुनाता और सजग कराता लेख..
आभार
Excellent article. A clear window to understand man-machine interaction and its future projections. Thanks to learned author.
Prof Pramod K Verma
Thanks for taking time to read Prof Verma. I am happy that you liked it.