राष्ट्रीय मूल प्रवाह में शामिल होने पर ही युवा स्वयं को सम्पूर्ण बना सकते हैं और अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग राष्ट्र निर्माण में कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर दिशाहीन युवा स्वयं के साथ ही राष्ट्र के लिए भी घातक सिद्ध हो सकते हैं। अत: दायित्ववान युवा होने का बोध प्रत्येक युवा में होना आवश्यक है।
एक दीपक अपनी छोटी सी लौ से अंधेरे को नष्ट कर सकता है। विश्व के समक्ष आज भारत का युवा इसी ऊर्जावान दीपक का स्वरूप है। जिसके तेज, पौरुष और क्षमताओं को यदि सही दिशा प्रदान की जाए तो वे न केवल अपने जीवन को संवार सकते हैं बल्कि राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, परंतु जब यही युवा दिशाहीन हो जाएंगे तो न केवल मृत्युंजय भारत की शक्ति कमजोर पड़ जाएगी बल्कि विश्व की एक बड़ी जनसंख्या पर इसका सीधा प्रभाव देखने को मिलेगा।
भारत के युवा की तेजस्वी ऊर्जा से आज दुनिया आस लगाए बैठी है और विभिन्न क्षेत्रों में हमारे युवा न केवल मृत्युंजय भारत बल्कि विश्व के समक्ष रोल मॉडल बनकर उभर रहे हैं। हाल ही में शतरंज जैसे तीक्ष्ण बुद्धि कौशल वाले खेल में सबसे युवा विश्व विजेता बने डी. गुकेश इसके सर्वोत्तम उदाहरण हैं। हमारे राष्ट्र का भविष्य इन्हीं युवाओं के हाथों में है और यदि यह युवा राष्ट्र के प्रति जागरूक और समर्पित हैं तो कोई भी चुनौती उसे जीतने से रोक नहीं सकती। आज के युवा डिजिटल रूप से साक्षर, वैश्विक दृष्टिकोण रखने वाला और तेजी से बदलते हुए समाज में अपनी पहचान बनाने की चाहत रखने वाला है।
पर क्या हम इस युवा ऊर्जा का सही दिशा में उपयोग कर पा रहे हैं? क्या हम उन्हें देश की संस्कृति, इतिहास और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक कर रहे हैं? सबसे पहला प्रश्न यह आता है कि क्या हमारे राष्ट्र के युवा मुख्य धारा का हिस्सा हैैं? यदि नहीं है तो क्या समाज इसके लिए तैयार नहीं है या स्वयं युवा? इस स्थिति को लेकर यहां पर मुझे दोनों के ही प्रयासों में कमी का अनुभव होता है। जहां समाज युवाओं को नेतृत्व एवं जिम्मेदारी देने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है तो वहीं युवा भी अपनी रुचि राष्ट्र सेवा और राष्ट्र निर्माण की जगह आधुनिकीकरण की दौड़ में अधिक दिखता है। परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर वह बुरी आदतों का शिकार हो जाता है। जिसका परिणाम न केवल उसे अकेले या उसके परिवार को भुगतना पड़ता है बल्कि पूरा समाज उससे प्रभावित होता है। देखने में आया है कि कई परिस्थितियों में तो वह समाज के साथ-साथ देश के लिए भी संकट की स्थिति पैदा कर देता है।
19वीं सदी में स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवाओं को अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति जागरूक करने के लिए शिक्षा को एक सशक्त माध्यम माना था। उन्होंने युवाओं से यह आह्वान किया था कि वे केवल अपने लिए नहीं बल्कि पूरे समाज और देश के लिए काम करें। युवाओं को यह समझने की आवश्यकता है कि उनका देश के प्रति कर्तव्य क्या है और किस तरह से वे अपने समाज की भलाई एवं जीवन उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काम कर सकते हैं। इसके लिए बहुत आवश्यक है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में भी आवश्यक बदलाव किए जाएं। जिससे विद्यालय और महाविद्यालय से वह न केवल एक शिक्षित बल्कि एक दायित्ववान भारतीय नागरिक बनकर निकलें। जिसे अपने अच्छे बुरे की समझ हो और वह किसी के हाथ की कठपुतली न बनकर रह जाए।
जब युवा जिम्मेदार नागरिक के रूप में समाज में होता है तो वह न केवल अपने क्षेत्र में बल्कि राष्ट्र स्तर पर भी प्रभावी तरीके से योगदान देता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान युवा पीढ़ी के नेतृत्व को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि किस प्रकार स्वतंत्रता केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं बल्कि आत्मनिर्भरता, अहिंसा और सामाजिक समरसता के लिए आवश्यक है। यह संदेश उन्होंने समाज के प्रत्येक केंद्र तक पहुंचाया। उनके नेतृत्व में न केवल स्वतंत्रता आंदोलन चला बल्कि वे समाज के हर वर्ग की समस्याओं को पहचानने और उनका समाधान निकालने के लिए सक्रिय रूप से सम्मिलित हुए।
समाज के प्रति दायित्व का बोध युवाओं को समाजहित में अग्रसर करेगा और राष्ट्र निर्माण में वे अपनी भूमिका का निर्वहन भी उचित दिशा में कर पाएंगे। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु इन युवा नायकों ने यह दिखाया कि समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी निभाने के लिए व्यक्तिगत सुख और समृद्धि का ध्यान नहीं किया जाता। उनका उदाहरण आज भी युवाओं को प्रेरित करता है कि वे अपने समाज की भलाई के लिए काम करें, परंतु सोशल मीडिया का प्रभाव इस स्थिति को विकटता की ओर ले जा रहा है। जहां एक ओर सोशल मीडिया ने सूचनाओं का आदान-प्रदान आसान बना दिया है, वहीं दूसरी ओर यह गलत सूचनाओं और फेक समाचारों के कारण युवाओं को भ्रमित भी कर रहा है। यहां यह महत्वपूर्ण बात है कि प्रतिदिन 4-5 घंटे सोशल मीडिया का उपयोग करने वाला व्यक्ति इसका प्रयोग राष्ट्रीय मुद्दों, राष्ट्रवाद और सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए करें। राष्ट्रवादी विचारों का सही तरीके से प्रसार करने से युवा अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक तो होंगे ही और दूसरों को भी उनकी जिम्मेदारी की अनुभूति कराएंगे।
सोशल मीडिया मुद्दों पर संवाद का माध्यम हो सकता है, परंतु राजनीति करने का साधन नहीं क्योंकि राजनीति का ध्येय बहुत पवित्र होता है। राजनीति में सक्रिय युवा राष्ट्र निर्माण की दिशा में परिवर्तन ला सकते हैं। यह आवश्यक है कि युवा राजनीतिक प्रक्रिया को समझें और उसमें अपनी भागीदारी बढ़ाएं। सही राजनीति और सकारात्मक नेतृत्व से मुद्दों का हल तो निकाला ही जा सकता है। राजनीति राष्ट्र निर्माण में भी हमारी भूमिका सुनिश्चित करती है। राजनीति संस्कार, संस्कृति और हमारे मूल्यों को बढ़ाने और बचाने का माध्यम है।
हमारी सांस्कृतिक धरोहर ही हमारी शक्ति है और इसे सही ढंग से समझाना और अपनाना युवाओं के लिए आवश्यक है। भारतीय संस्कृति न केवल हमारी पहचान है, बल्कि यह हमें सामूहिकता, शांति और एकता का संदेश देती है। जब युवा इस सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े रहेंगे तो वे न केवल अपनी पहचान को बनाए रखेंगे बल्कि भारतीय संस्कृति का गर्व से प्रचार भी करेंगे।
रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे महान साहित्यकारों ने भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता को दुनिया भर में प्रदर्शित किया। उन्होंने युवा पीढ़ी को यह समझाने का प्रयास किया कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति में एक गहरी आध्यात्मिकता और मानवता की भावना निहित है, जो केवल भारत को ही नहीं बल्कि पूरी मानवता को एक नई दिशा दे सकती है।
इसलिए युवाओं को यह समझने की आवश्यकता है कि राष्ट्र का अर्थ केवल राजनीति और सरकार नहीं है बल्कि यह समाज के हर एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रवाद एक संकीर्ण विचारधारा नहीं बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण है। यह देश के प्रत्येक नागरिक को जोड़ने का कार्य करता है और यह तभी सम्भव है जब युवा इस विचारधारा को पूरी तरह से समझें और अपनाएं। कोई भी व्यक्ति तभी राष्ट्र भक्त हो सकता है जब उसका समाज में समरसता, एकता, और राष्ट्र के प्रति अनन्य प्रेम हो।
-रोहन गिरि