पहले की तुलना में आज के युवाओं के पास अत्यधिक साधन-संसाधन, विकल्प-अवसर उपलब्ध हैैं, जिसे वे भुना रहे हैं और सफलता प्राप्त कर रहे हैं, किंतु असफल होने पर वे मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद के शिकार भी हो रहे हैं। युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता की कमी चिंतनीय है।
केवल परिवर्तन ही स्थायी है। यह कथन युवाओं के जीवन पर पूर्णतः लागू होता है। समय के साथ-साथ युवा अपनी जीवनशैली, अभिरुचियों और दृष्टिकोण में परिवर्तन करते रहते हैं। ये परिवर्तन समाज, तकनीक और वैश्विक घटनाओं के प्रभाव के कारण होते हैं। वर्तमान में युवाओं के पास पहले की तुलना में अधिक विकल्प और अवसर उपलब्ध हैं। तकनीकी प्रगति, वैश्वीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में हुए परिवर्तनों ने युवाओं को अपने कौशल और क्षमताओं को प्रदर्शित करने के अनगिनत अवसर दिए हैं। डिजिटल युग में इंटरनेट और सोशल मीडिया ने उन्हें अपने कौशल को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाने का माध्यम दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में विविधता और नए पाठ्यक्रमों ने उनके सामने विभिन्न करियर विकल्प खोल दिए हैं। अब युवा केवल पारम्परिक करियर जैसे डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक तक सीमित नहीं हैं बल्कि स्टार्टअप, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, खेल, मनोरंजन, फ्रीलांसिंग और डिजिटल कंटेंट क्रिएशन जैसे क्षेत्रों में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जैसे स्टार्टअप इंडिया और स्किल इंडिया भी उन्हें आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण प्रदान कर रही हैं। इस बदले हुए परिदृश्य में भारतीय युवा इन अवसरों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। अपने परिश्रम, रचनात्मकता और नवाचार के बल पर वे न केवल अपने जीवन को सर्वोत्तम बना रहे हैं बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित भी कर रहे हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि आज के युवा अपनी प्रतिभा के बल पर ऊंचे लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भारत के युवा आज वैश्विक मंच पर अपनी सशक्त और प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एडोबी जैसी अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों में शीर्ष पदों पर भारतीयों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि भारतीय प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता का लोहा पूरी दुनिया मान रही है। यह न केवल भारत के लिए गर्व का विषय है, बल्कि भारतीय युवाओं की क्षमताओं और परिश्रम का परिचायक भी है। वहीं, पारम्परिक नौकरी वाली मानसिकता से आगे बढ़ते हुए अब युवा नवाचार, स्टार्टअप और नए उद्यमों में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। डिजिटल युग में तकनीकी प्रगति और सरकारी योजनाओं, जैसे स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया ने उन्हें नए क्षेत्रों में कदम रखने के लिए प्रेरित किया है। युवा अब केवल नौकरी पाने की बजाय रोजगार सृजन और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में भारतीयों की महत्वपूर्ण भूमिका भारत की साख को बढ़ाने का काम कर रही है। युवा भारत अपने तकनीकी ज्ञान, रचनात्मक सोच और नेतृत्व कौशल के जरिए विश्व मंच पर भारत को एक आर्थिक और बौद्धिक शक्ति के रूप में स्थापित कर रहा है। भारत के युवाओं का यह नवाचार और उत्पादन के प्रति रुझान न केवल देश की अर्थव्यवस्था को गति दे रहा है बल्कि भारत को आत्मनिर्भर और वैश्विक नेतृत्व के लिए तैयार कर रहा है। उनकी यह ऊर्जा और दृष्टिकोण भारत की प्रगति में एक बड़ी भूमिका निभा रही है।
उज्ज्वल सम्भावनाओं से जुड़े इस दृश्य का एक दूसरा पहलू भी है, जो चिंता बढ़ाने वाला है। आज की तेज गति और प्रतिस्पर्धात्मक जीवनशैली में सफलता की चाह ने युवाओं पर भारी मानसिक दबाव डाला है। जल्दी कुछ बनने या पाने की हड़बड़ी में वे अत्यधिक तनावग्रस्त हो रहे हैं। करियर की दौड़, सामाजिक-पारिवारिक अपेक्षाओं और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिखावे की संस्कृति ने उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। जब युवा अपने तय किए हुए लक्ष्यों को तुरंत प्राप्त नहीं कर पाते तो वे स्वयं को असफल मानने लगते हैं। यह अस्थिरता उन्हें मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद की ओर धकेल रही है। समाज में असफलता को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी इस स्थिति को और निकृष्ट कर रही है। छोटी-छोटी चुनौतियां, असफलताएं या आलोचना उन्हें आहत कर देती हैं और कुछ मामलों में यह निराशा उन्हें आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर कर देती है।
युवा आदर्श स्वामी विवेकानंद कहा करते थे, युवा वही होता है, जिसके हाथों में शक्ति, पैरों में गति, हृदय में ऊर्जा और आंखों में सपने होते हैं। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि युवा ही किसी समाज और राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति होते हैं। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि सशक्त, ऊर्जावान और स्वप्नदर्शी युवा ही किसी देश के उज्ज्वल भविष्य का आधार बन सकते हैं। हाथों में शक्ति से विवेकानंद का तात्पर्य है कि युवा कठोर परिश्रम और अपने कार्यों से समाज और देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में सक्षम हों। पैरों में गति का अर्थ है कि वे अपनी रचनात्मकता और तेजी से बदलते समय के साथ तालमेल बिठाकर आगे बढ़ें। हृदय में ऊर्जा इंगित करता है कि युवाओं को आत्मविश्वास और उत्साह के साथ कार्य करना चाहिए। वहीं, आंखों में सपने यह बताता है कि युवाओं को बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए समर्पित होना चाहिए। आज भारतीय युवा तकनीकी नवाचार, शिक्षा और उद्यमिता में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। यदि वे विवेकानंद के आदर्शों को अपनाएं और अपने सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करें तो भारत न केवल विकसित राष्ट्र बनेगा बल्कि दुनिया में नेतृत्व करने वाली शक्ति भी होगा।
भारत ने वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें युवा शक्ति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। भारत की 65 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या युवा है, जो इस लक्ष्य को साकार करने में निर्णायक योगदान दे सकती है, परंतु यह तभी सम्भव है, जब युवा न केवल सफल हों बल्कि शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक रूप से भी सशक्त बनें। शारीरिक रूप से स्वस्थ युवा ही निरंतर परिश्रम और उत्पादकता में योगदान दे सकता है। इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता, पोषण और खेल-कूद को बढ़ावा देना आवश्यक है। मानसिक रूप से सशक्त युवा जीवन की चुनौतियों का सामना आत्मविश्वास और धैर्य के साथ कर सकता है। इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता, तनाव प्रबंधन के उपाय और सकारात्मक जीवन दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। बौद्धिक सशक्तिकरण के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, नवीनतम तकनीकी ज्ञान और रचनात्मकता को प्रोत्साहन देना आवश्यक है। साथ ही उन्हें नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से भी जोड़ा जाना चाहिए, जिससे वे दुनिया में भारत का सक्षम नेतृत्व कर सकें। यदि युवा शक्ति को सही दिशा में प्रशिक्षित और प्रेरित किया जाए तो यह न केवल भारत को विकसित राष्ट्र बनाएगा बल्कि वैश्विक स्तर पर नेतृत्व प्रदान करने में भी सक्षम होगा।