हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
केजरीवाल की हार पर जश्न क्यों?

केजरीवाल की हार पर जश्न क्यों?

by हिंदी विवेक
in राजनीति
0

अपने 50 वर्षों से ज्यादा के सार्वजनिक जीवन में मैंने लोगों को अपने पसंदीदा राजनीतिक दल या उसके नेता के विजय पर जश्न मनाते कई बार देखा है। परंतु किसी नेता या उसकी पार्टी की हार पर लोगों को नाचते-गाते और उत्सव मनाने का साक्षी दो बार रहा हूं। इस प्रकार का पहला मौका मेरे जीवन में 1975-77 के आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की पारंपरिक रायबरेली सीट से हारने और देश से कांग्रेस का जनता द्वारा सुपड़ा साफ करने के समय आया था। दूसरा अवसर गत 8 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के घोषित नतीजे के वक्त आया, जिसमें लोगों ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी सीट (नई दिल्ली) से, तो आम आदमी पार्टी (‘आप’) के पराजित होने की खबर सुनी। इंदिरा की हार को जहां अधिनायकवाद और वंशवाद के पराजय के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, वही केजरीवाल की शिकस्त को भारतीय राजनीति में एक गंभीर बीमारी के निदान के तौर पर देखा जा रहा है। आखिर इसका कारण क्या है?

चुनाव के दौरान लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां तरह-तरह के लोकलुभावन वादे और घोषणाएं करती है। दल अपने वैचारिक दृष्टिकोण को जनता के सामने रखते है। कई बार वादे-घोषणाएं पूरे नहीं होते। तब ऐसे नेताओं-दलों पर अक्सर वादाखिलाफी का आरोप लगाया जाता है। इस संबंध में ‘आप’ संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। वे न केवल जनता से किए वादों और घोषणाओं को पूरा करने से चूके, साथ ही वे अपने घोषित मूल्यों-विचारों के उलट भी काम करत रहे। केजरीवाल ने वो सब किया, जिसे वे 2011-12 के अपने राजनीतिक उद्गमकाल में अनैतिक और गैर-जरूरी बताते हुए उसे भारतीय राजनीति में कैंसर के रूप में परिभाषित करते थे। यूं कहे कि देश की राजनीति में जिस ‘कीचड़’ को साफ करने की घोषणाएं केजरीवाल किया करते थे, उसी ‘कीचड़’ में वे न सिर्फ बुरी तरह धंसते गए, बल्कि उसमें अन्य गंदगी को भी बढ़ा दिया। आधारहीन और बेतुके आरोपों की बौछार इस रूग्ण मानसिकता का एक हिस्सा है। मतदान से पहले स्वघोषित ‘अराजकतावादी’ केजरीवाल द्वारा सरेआम हरियाणा सरकार पर पवित्र यमुना नदी में जहर मिलाकर दिल्लीवासियों की सामूहिक हत्या करने के प्रयास का अतिरंजित आरोप— इसी विकृत मानसिकता की पराकाष्ठा थी।

जब ‘आप’ का जन्म हुआ, तब केजरीवाल सहित पार्टी के अन्य नेताओं ने दावा किया कि वे राजनीतिक शुचिता, नैतिकता, ईमानदारी के नए आयाम गढ़ेंगे, सुविधा युक्त सरकारी आवास-वाहन आदि नहीं लेंगे और भाजपा-कांग्रेस के साथ कोई राजनीतिक समझौता नहीं करेंगे। परंतु यह सब छलावा निकला। वे न केवल पहली बार कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने, साथ ही अन्य राजनीतिक दलों की भांति आप के मंत्रियों-विधायकों ने सरकारी आवास, वाहन-सुविधा और सुरक्षा आदि भी अंगीकार किया। बतौर मुख्यमंत्री, केजरीवाल ने अपने सरकारी आवास के लिए आसपास की सरकारी संपत्तियों को तोड़ने और उसके विलासी नवीनीकरण पर करोड़ों रुपये व्यय करने से भी गुरेज नहीं किया।

केजरीवाल गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल समर्थक आंदोलन (2011) के ‘सह-उत्पाद’ है। परंतु उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में गांधीवादी सिद्धांतों को कुचलते हुए न सिर्फ दिल्ली में नई आबकारी नीति के माध्यम से देश की राजधानी में शराब की दुकानों को 350 से बढ़ाकर लगभग दोगुना कर दिया। साथ ही इसी नीतिगत निर्णय में धांधली के आरोप में केजरीवाल अपने सहयोगी और तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के साथ लंबे समय तक जेल में भी रहे। इस दौरान केजरीवाल के अन्य साथी सत्येंद्र जैन भी वित्तीय कदाचार के मामले में जेल में बंद थे।

यह दिलचस्प है कि जो केजरीवाल अपनी राजनीति की शुरूआत में मात्र एक आरोप पर इस्तीफा मांग लेते थे, उन्होंने अपनी गिरफ्तारी के 180 दिन बाद न्यायिक-संवैधानिक बाध्यता के कारण मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया। इसपर मुझे तीन दशक पुराना घटनाक्रम याद आता है। जब 1990 के दशक में विपक्ष में रहते हुए जैन हवाला कांड में भाजपा के दीर्घानुभवी नेता लालकृष्ण आडवाणी का नाम जुड़ा, तब उन्होंने अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता को अक्षुण्ण रखने हेतु वर्ष 1996 में लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और निर्दोष सिद्ध होने तक संसद न जाने का प्रण लिया। जब अदालत ने आडवाणी को बेदाग घोषित किया, तब उन्होंने 1998 में चुनावी राजनीति में वापसी की। वही केजरीवाल-सिसोदिया है, जो शराब घोटाला मामले में जमानत पर बाहर होने पर फिर से क्रमश: मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री बनने की बात कर रहे थे।

लोकलुभावन घोषणाओं के बीच दिल्ली के मतदाताओं ने भाजपा पर अधिक विश्वास क्यों किया? अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में भाजपा की कथनी-करनी में फर्क कम दिखता है। मई 2014 से भाजपा ने जहां अपनी घोषणापत्र के अनुरूप धारा 370-35ए का क्षरण और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण आदि का वादा पूरा किया, वही बिना किसी मजहबी-जातिगत भेदभाव, भ्रष्टाचार और मौद्रिक-रिसाव के करोड़ों लाभार्थियों को विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंच रहा है।

दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस दुविधा में थी। उसे बहुत समय तक यह समझ नहीं आया कि ‘आप’ उसकी विरोधी है या सहयोगी। इसी भ्रम में वह एक कदम बढ़ाकर केजरीवाल को ‘राष्ट्रविरोधी’ कहती, तो एकाएक दो कदम भी पीछे खींच लेती। जितनी देर में कांग्रेस के शीर्ष नेता और लोकसभा में नेता-विपक्ष राहुल गांधी को ‘आप’ शासित पंजाब में कांग्रेस की बढ़ती संभावना के बारे में समझ आया और उन्होंने दिल्ली में ‘आप’ के खिलाफ प्रचार शुरू किया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। आम जनता ने कांग्रेस को ‘आप’ का कोई गंभीर विकल्प नहीं समझा।

नतीजों के बाद अधिकांश मोदी-विरोधियों का आकलन है कि यदि कांग्रेस-‘आप’ मिलकर चुनाव लड़ते, तो परिणाम कुछ और होते। यह धारणा ही गलत है कि जो वोट कांग्रेस को गए, वह गठबंधन की सूरत में ‘आप’ को स्वत: हस्तांतरित हो जाते। अधिकांश कांग्रेसी मतदाता ‘आप’ के खिलाफ अपनी पार्टी के विकल्प के रूप में संभवत: भाजपा को चुनते। आज जो मतदाता भाजपा को वोट देते है, उनमें बहुत से कभी कांग्रेस समर्थक थे। वर्ष 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस-‘आप’ द्वारा गठजोड़ के बाद भी भाजपा ने लगातार तीसरी बार दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटें प्रचंड बहुमत के साथ जीती थी। दिल्ली के हालिया जनादेश से स्पष्ट है कि जब करनी, कथनी के बिल्कुल विपरीत हो, तो जनता उसे बर्दाश्त नहीं करती।

-बलबीर पुंज

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #delhi #india #world #wide #work #sangh #hindivivek #kejriwal

हिंदी विवेक

Next Post
दिल्ली भाजपा की जीत में मुस्लिम मतों का मिथक

दिल्ली भाजपा की जीत में मुस्लिम मतों का मिथक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0