प्रतिवर्ष 8 मार्च को महिलाओं के सम्मान, अधिकारों और उनकी प्रगति को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस 1975 से वैश्विक स्तर पर विभिन्न थीम के साथ आयोजित किया जाता रहा है, जिसमें महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों पर विमर्श किया जाता है। यह न केवल महिलाओं की उपलब्धियों को पहचानने का अवसर प्रदान करता है बल्कि उनके सशक्तिकरण और समानता की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों पर भी जोर देता है।
इस वर्ष, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 की थीम ‘तेजी से कार्रवाई करें’ (Accelerate Action) है, जो महिलाओं के लिए नए अवसरों के सृजन और लैंगिक समानता को गति देने पर केंद्रित है। यह विषय हमें प्रेरित करता है कि हम एक समावेशी और समानतापूर्ण समाज की दिशा में ठोस कदम उठाएं, जहां हर महिला को प्रगति और सफलता के समान अवसर मिलें। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस का आयोजन पांच दशक से निरंतर किया जा रहा है लेकिन चिंतनीय स्थिति यह है कि 50 साल से यह दिवस मनाए जाने के बावजूद महिलाओं के प्रति अपराधों और हिंसा को लेकर स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। जब हम महिलाओं के साथ अपराध और हिंसा की लगातार सामने आती घटनाओं को देखते हैं तो हमारा सिर शर्म से झुक जाता है।
सरकारों, निजी क्षेत्र और प्रबुद्ध समाज से यौन हिंसा और महिलाओं के उत्पीड़न के विरूद्ध कड़ा रूख अपनाने का आग्रह करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस का कहना है कि महिलाओं के प्रति हिंसा विश्व में सबसे भयंकर, निरन्तर और व्यापक मानवाधिकार उल्लंघनों में शामिल है, जिसका दंश विश्व में हर तीन में से एक महिला को भोगना पड़ता है। कानून के मुताबिक कार्यस्थल पर शोषण, दहेज उत्पीड़न, डिजिटल हिंसा, महिला तस्करी इत्यादि भी महिलाओं के साथ हिंसा की घटनाओं में शामिल किए जाते हैं। बलपूर्वक या धोखे से किसी महिला को बंधक बनाकर दूसरी जगह पर बेचना, उसे गलत अथवा यौन कार्य में लिप्त करना महिला तस्करी है, जो महिला के प्रति होने वाली बड़ी हिंसा है। इसी प्रकार सोशल मीडिया, मैसेज, ईमेल, कम्प्यूटर गेम अथवा अन्य किसी भी प्रकार से किसी महिला को अश्लील संदेश भेजकर धमकी देना डिजिटल हिंसा की श्रेणी में आता है।
वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ का गठन किया गया था। संयुक्त राष्ट्र महिला के आंकड़ों के अनुसार विश्व में 15-19 आयु वर्ग की करीब डेढ़ करोड़ किशोर लडकियां जीवन में कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं, करीब 35 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों को अपने जीवनकाल में शारीरिक एवं यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है, हिंसा की शिकार 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं की हत्या उनके परिजनों द्वारा ही की जाती है, वैश्विक स्तर पर मानव तस्करी के शिकार लोगों में 50 प्रतिशत व्यस्क महिलाएं हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिदिन तीन में से एक महिला किसी न किसी प्रकार की शारीरिक हिंसा का शिकार होती है। भारत के संदर्भ में महिला हिंसा को लेकर स्थिति काफी चिंताजनक है। राष्ट्रीय महिला आयोग के पास हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध की हजारों शिकायतें दर्ज होती हैं, जिनमें तेजाब हमले, महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध, दहेज हत्या, यौन शोषण और दुष्कर्म जैसी कई अलग-अलग 24 श्रेणियों में शिकायत दर्ज होती हैं।
सर्वाधिक शिकायतें गरिमा के साथ जीने का अधिकार को लेकर, उसके बाद घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, छेड़खानी, दुष्कर्म का प्रयास और दुष्कर्म की होती हैं। भारत में हर 16 मिनट में एक रेप का मामला सामने आता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में देश में कुछ 5824946 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें से महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 445256 मामले दर्ज किए गए यानी हर एक घंटे में 51 महिलाओं के साथ अपराध हुआ। 2021 में ऐसे 428278 मामले दर्ज हुए थे यानी 2022 में 2021 की तुलना में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4 प्रतिशत अधिक मामले दर्ज हुए। हैरान करने वाली बात यह सामने आई कि महिलाओं पर अपराध करने वाले मामलों में ज्यादातर पति-प्रेमी, रिश्तेदार या फिर कोई अन्य करीबी शख्स ही आरोपी निकले। महिलाओं के पति या रिश्तेदारों द्वारा 31.4 प्रतिशत क्रूरता, 19.2 प्रतिशत अपहरण, 18.7 प्रतिशत दुष्कर्म का प्रयास करने और 7.1 प्रतिशत दुष्कर्म करने के मामले शामिल हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में दुष्कर्म के कुल 31516 मामले दर्ज हुए, जिनमें सर्वाधिक 5399 मामले राजस्थान के, उसके बाद उत्तर प्रदेश में 3690, मध्यप्रदेश में 3029, महाराष्ट्र में 2904 और हरियाणा में 1787 दुष्कर्म के मामले दर्ज हुए। महिलाओं के लिए दिल्ली और राजस्थान सबसे असुरक्षित राज्य हैं लेकिन दहेज के लिए जान लेने वालों में पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश और दूसरे नंबर पर बिहार है। दहेज के लिए उत्तर प्रदेश में 2138 और बिहार में 1057 महिलाओं की हत्या कर दी गई, वहीं मध्यप्रदेश में 518, राजस्थान में 451 और दिल्ली में 131 महिलाओं की दहेज के लिए हत्या की गई।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में कम उम्र से ही बच्चियों को हिंसा का सामना करना पड़ता है। 18 से 49 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं के बीच किए गए इस सर्वे के अनुसार 2019 से 2021 के बीच 31.5 प्रतिशत महिलाएं कम से कम एक बार शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई और इन महिलाओं को 15 वर्ष की उम्र से ही हिंसा का सामना करना पड़ा था। हालांकि 2005 में ‘घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम’ बनाया गया था लेकिन फिर भी महिलाओं के प्रति हिंसा के निरन्तर सामने आते मामले काफी चिंताजनक हैं। वर्ष 2021 की ‘क्राइम ऑन इंडिया’ रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू हिंसा की श्रेणी में दर्ज मामलों में से 92.5 प्रतिशत मामलों में अदालतों के समक्ष आरोप तय किए गए थे लेकिन सजा सिर्फ 30.4 प्रतिशत मामलों में ही हुई। ऐसे अधिकांश मामलों में प्रायः पुलिस-प्रशासन का भी गैरजिम्मेदाराना और लापरवाही भरा रवैया सामने आता रहा है। बहरहाल, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने को लेकर यूएन महासचिव गुतारेस दुनियाभर की सरकारों से 2026 तक महिला अधिकार संगठनों और महिलाओं के हित में आन्दोलनों के लिए वित्त पोषण 50 प्रतिशत बढ़ाने का आह्वान कर चुके हैं।
– योगेश कुमार गोयल