राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा चार सौ करोड़ का टैक्स भरा गया है। मुझे जानना है कि जामा मस्जिद और मजारे कितने रुपए का टैक्स भरती हैं?
मंदिर से किसकी रोटी चलेगी, यह पूछने वालों को इस खबर को देखना चाहिए लेकिन मेरी चिंता कुछ और है। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और अल्पसंख्यक सांस्कृतिक अधिकार के नाम पर हो रही लूट को कब तक सही ठहराया जाएगा। चार सौ करोड़ हिन्दू संस्कृति के उन्नयन के लिए खर्च करने की बजाय वे पैसे मदरसे में वजीफा और मौलवियों की तन्खाह में न खर्च कर दिए जाएं। सरकार सुनिश्चित करे कि इन पैसों का प्रयोग हज की सब्सिडी में नहीं होगा।
सरकारों को मंदिरों से खूब पैसा आता है एक उदाहरण कर्नाटक सरकार का है। इस सरकार में जो संशोधित बिल आया था उसके अनुसार जिन मंदिरों की सालाना आय एक करोड़ रुपये से ज़्यादा हैं, उन्हें अपनी कमाई का 10 फ़ीसदी ‘कॉमन पूल फंड’ में देना होगा। इसी तरह सालाना 10 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये तक की आय वाले मंदिरों को अपनी आय का 5 फीसदी उसी फ़ंड में जमा करना अनिवार्य कर दिया गया था।एक भगवान राम के मंदिर से चार सौ करोड़ साल आता है तो सोचिए भारत के सारे मंदिरों से कितना पैसा आता होगा।
यह पैसा दान है, परमार्थ के कार्य से दिया गया है सो इसका खर्च सेवा में ही होना चाहिए। सेवा कार्य उन्हीं के लिए हो जिनके स्वधर्मियों ने अपने बंधुओं के हित के लिए ये पैसे दिए हैं। एक काम और किया जा सकता है, सरकार जकात पर टैक्स लगा दे, चर्च पर टैक्स लगा दे तभी समझा जाएगा कि देश में लोकतंत्र है नहीं तो कबीलातंत्र ही हमें नियंत्रित कर रहा है यह मानने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
~ डॉ पवन विजय