नागपुर में हिंदू विरोध की आग इस प्रकार भड़की की उसकी आग में मुसलमान इस्लाम धर्म की रोटियां सेंकने लगे। यह जगजाहिर है कि जहां मुसलमान होंगे वहां दंगे होंगे हीं। दंगों के मूल कारण क्या है इसके लिए इस्लाम की ‘स्कैनिंग’ करना आवश्यक है।
नागपुर में विगत सोमवार को हुए दंगे के संदर्भ में, एक हिंदू युवक का वीडियो वायरल हुआ है। उस वीडियो में युवक कह रहा है कि मेरे अगल-बगल जितनी भी मुसलमानों की दुकानें हैं वे सभी सुरक्षित हैं, लेकिन मैं हिंदू हूं, इसलिए मेरी दुकान तोड़ी गई है। आगे उस युवक का कहना है कि सवाल पैसे का नहीं है बल्कि हम हिंदुओं के सम्मान का है। इस घटना से युवक इतना विक्षिप्त था कि वह अपनी दुकान के सामने बिलख रहा था और उपरोक्त वाक्य कह रहा था, जो सचमुच हद्धयविदारक था। वास्तव में, वह युवक बांग्लादेश अथवा पाकिस्तान का पीड़ित हिंदू नहीं है, बल्कि वह तो हिंदुस्तान की भूमि पर स्थित नागपुर शहर में धर्मांध मुसलमानों के उत्पीड़न का शिकार हुआ हिंदू व्यक्ति है। दंगाइयों ने नागपुर शहर को ही क्यों चुना? इस बात के पीछे भी बहुत गहराई है। नागपुर संघ की कर्मभूमि है, नागपुर महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की भूमि है।
क्या नागपुर में घटी इस घटना को क्या दंगल कह सकते हैं? दंगल तो दोनों तरफ से होता है, यह तो हिंदुओं पर हमला करने की एक पूर्व नियोजित साजिश थी। हमारे देश में दो समुदायों, हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे होना आम बात हो गई है। जब दंगा होता है तो गोलीबारी, धारा 144, कर्फ्यू, रिजर्व पुलिस, आगजनी, राहत कार्य आदि सारी बातें राजनीतिक एवं सामाजिक स्तर पर चलते रहते हैं। जब भी कोई दंगा होता है तो उस दंगे को दबाकर वहां शांति बहाल करने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन प्रयास करती है। ये सारी बातें लगगभ सामान्य हो गई हैं। लेकिन इन प्रयासों के बाद हर साल शिव जयंती, रामनवमी, हनुमान जन्म उत्सव, क्रिकेटमैच में भारत का विजय होने पर अथवा हिंदुओं के उत्सव के दिन कोई दंगा तो नहीं होगा इस बात का डर भी सभी के मन में बैठा हुआ है। कोई भी गारंटी नहीं दे सकता कि अगले साल ही नहीं बल्कि अगले दो महीनों में भी कोई दंगा नहीं होगा।
दुराचारी-धर्मांध औरंगजेब के महिमा मंडन के यह नागपुर में हुए दंगे के पीछे का पूर्ण सत्य कारण नहीं है। नागपुर और समय-समय पर भारत के अलग-अलग शहरों में होने वाले दंगों के पीछे की वास्तविक मानसिकता और कारण क्या हैं? इसके बारे में सोचना अत्यंत आवश्यक है। मूल कारणों का विश्लेषण किए बिना परिवर्तन का रास्ता नहीं निकल पाएगा।
केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के हर उस देश में जहां-जहां मुसलमान हैं, वहां-वहां दंगे होते हैं। इसका अर्थ यह है कि मुसलमानों का दंगों से सीधा सम्बंध है। भारत में जगह-जगह होने वाले प्रत्येक दंगेें के बाद हिंदू -मुस्लिम सद्भावना बिठाने का गलत प्रयास होता है, जबकि आज की आधुनिक निदान पद्धति में दंगों के मूल कारण के लिए इस्लाम की ‘स्कैनिंग’ करना आवश्यक है। स्कैनिंग की प्रक्रिया शरीर में छिपे प्रत्येक अणु की जांच करती है। इस्लाम क्या है, हमें इस बात की स्कैनिंग करना आवश्यक है।
जिस धर्म का, धर्म संस्थापकों के फतवे का हमारे देश और हमारे सामाजिक, धार्मिक जीवन पर स्थायी प्रभाव पड़ रहा है। उस धर्म की स्कैनिंग करके सही अनुमान करना जरूरी है। इस्लाम की धार्मिक शिक्षा यहां के सामाजिक जीवन, शांति और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है अत: हिंदुओं और सभी बुद्धिजीवियों को दंगों के पीछे के वास्तविक कारणों का पता लगाने के लिए आगे आना चाहिए।
पैगंबर मुहम्मद ने लगभग 610 ई. में एक नए धर्म की घोषणा की। पहले अरब में दो धर्म थे, यहूदी धर्म और ईसाई धर्म। जिनमें कई छोटे-छोटे सम्प्रदाय थे। धार्मिक जीवन, धार्मिक मतभेदों पर संघर्ष के बिना आपसी सद्भाव से रहता था। हालांकि, इस्लाम की स्थापना के बाद, वहा का धार्मिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। इसका कारण यह है कि पैगंबर मुहम्मद अल्लाह को छोड़कर किसी भी ईश्वर के सख्त विरोधी थे। इस सृष्टि के रचयिता केवल और केवल अल्लाह हैं, उनके साथ किसी और का कोई भी साझीदारी नहीं है।
इस तरह से अल्लाह के नाम का प्रचार करके, उन्होंने पिछले सभी धर्मों को समाप्त कर दिया। उनके संदेशों की एक और विशेषता यह है कि जो कोई भी इस्लाम का अनुयायी नहीं बनेगा, वह जीने योग्य नहीं है। उसका अंत नरक में होगा। जब कोई भी दंगा होता है, तो धर्मनिरपेक्षतावादी कहते हैं कि हिंदुओं को अपने धर्म का पालन करना चाहिए और मुसलमानों को अपने धर्म का पालन करना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि मुसलमान किसी दूसरे धर्म को अपने धर्म की तुलना में बर्दाश्त नहीं कर सकते। इस्लाम की स्थापना काल से ही गैर-मुसलमानों के विरुद्ध निरंतर युद्ध करना मुसलमानों का पवित्र कर्तव्य माना जाने लगा। इस धर्मांध नीति के कारण इस्लामी तलवार और दमन से भारतवर्ष के हिंदू भी प्रभावित हुए हैं। सैकड़ों वर्षों से इस्लाम की तलवार से प्रभावित देश के हिंदुओं को तो इस बात का विश्लेषण और सही निदान पर विचार करना ही चाहिए।
अब कोई कहेगा कि आप सैकड़ों साल पहले की कहानी क्यों बोल रहे हैं? तो देश में 200 सालों में निरंतर हिंदू-मुस्लिम दंगे होते रहे हैं? मस्जिद के सामने हिंदू संगीत वाद्ययंत्र बजाना कुरान को मान्य नहीं है। वंदे मातरम् को यह कहते हुए खारिज कर देते हैं कि यह उनकी धार्मिक उपदेशों के अनुरूप नहीं है। आज पश्चिम बंगाल, केरल जैसे मुस्लिम बहुल स्थानों पर हिंदुओं को मूर्ति पूजा करने से मना किया जाता है, क्योंकि यह कुरान सम्मत नहीं है। अभी-अभी कुछ महीने पहले बांग्लादेश से हिंदुओं को हिंदू धर्म त्याग करो, इस्लाम स्वीकार करो, नहीं तो मौत स्वीकार करो की धमकी दी जा रही है। बांग्लादेश में सैकड़ों हिंदू अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। इस्लाम की विभिन्न मान्यताओं के कारणों से मुसलमान आए दिन भारत के किसी नगर में, किसी जिले में, किसी प्रांत में हिंसक दंगा कर रहे हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था व आध्यात्मिक व्यवस्था को मुसलमान खतरे में डाल रहे हैं। ऐसी स्थिति में इस रोग का इलाज करने का हिंदुओं को कोई अधिकार नहीं? निरंतर हिंदुओं को अपनी सहनशीलता बढ़ाने का उपदेश देने वाले बुद्धिजीवियों को इस प्रश्न का उत्तर देना चाहिए। साथ में स्वयं हिंदू समाज को भी ऐतिहासिक काल से चली आ रही इस आपत्ति का ठीक-ठाक उपचार करने संदर्भ में गहराई से सोचना चाहिए।
नागपुर में जो दंगे हुए उस दंगे के वीडियो जब सोशल मीडिया पर प्रसारित हुआ तो वह पूर्णता एक तरफा दिखाई दे रहे थे। हिंदू अपने अपने घरों में खिड़कियों के आड़ से दंगाइयों की वीडियो शूटिंग कर रहे थे और मुसलमान दंगाई हिंदुओं की सम्पत्ति को खुलेआम आग के हवाले कर रहे थे। दंगे के समय पूरा नागपुर शहर ज्वालामुखी के मुहाने पर था। पुलिस का अभिवादन करना चाहिए कि उन्होंने अपनी जान खतरे में डालकर अपने कर्तव्य को सही तरह से निभाया और सम्पूर्ण नागपुर को जलने से बचाया। लेकिन नागपुर को बचाने में हिंदू समाज आगे नहीं था। नागपुर में दिखाई देने वाले इस दृश्य का अर्थ क्या है? हिंदू सहिष्णु हैं और मुस्लिम दंगाई है? मुस्लिम तो सदियों से अलग-अलग रूप में आतंक फैलाते ही रहे हैं पर क्या हिंदुओं का वर्चस्व समाप्त हो रहा है, क्या वे प्रतिकार भी नहीं करते? अपनी जलती हुई सम्पत्ति को खुली आंखों से देखकर सिर्फ वीडियो में रिकॉर्डिंग करते हैं। आने वाले भविष्य के लिए यह खतरे की घंटी है। अन्य धर्म के लोगों को भी सह-अस्तित्व से जीने का अधिकार है, यह बात इन्हें ठीक तरह से जब तक समझाई नहीं जाती तब तक सिर्फ नागपुर ही नहीं तो पूरा देश ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा रहेगा। कभी नागपुर, कभी दिल्ली, कभी सम्भल जैसे अनेक शहरों में जो धर्मांध मुस्लिम समाज के माध्यम से दंगे किए जा रहे हैं उसे देखते हुए यह लगता है कि धर्मांध मुसलमानों ने इस देश में जो समस्याएं पैदा की हैं, वे बहुत जटिल हैं।
धर्मांध मुसलमान यह चाहते हैं कि वे आज अपनी विरासत को आगे बढ़ाएंगे और भविष्य में जल्द ही पूरे भारत पर इस्लाम का शासन होगा, ऐसे में हिंदुओं को अपनी रक्षा के लिए कोई ठोस रास्ता खोजना ही होगा। धर्मांध इस्लामी सोच और अत्याचार का जवाब दिया जाना चाहिए। अगर हिंसा का प्रतिकार नहीं किया गया तो शांति से और हिंदू के रूप में जीने के अधिकारों को खतरा बना रहेगा। कोई कहेगा इसके लिए हिंदुओं में भी औरंगजेब पैदा करना चाहिए? बिल्कुल नहीं। उनके लिए शिवाजी महाराज ही बहुत हैं। औरंगजेब जरूरी नहीं है। पुनः शिवाजी के शौर्य और तेज को हिंदू धर्म में स्थापित करना चाहिए।
मुस्लिम समाज में समय-समय पर कट्टर जिहादी मानसिकता के व्यक्तित्व और संगठनों का गठन हुआ है। इन जिहादी मानसिकता वाले कट्टर इस्लामी नेताओं ने जिन्ना के पाकिस्तान की मांग को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वे चाहते थे कि पूरे देश पर इस्लाम का शासन हो। उनका उद्देश्य भारत में हुकमत-ए इलाहिया की स्थापना करना था। उनकी आपत्ति यह थी कि यदि जिन्ना की मांग के अनुसार पाकिस्तान बन गया तो शेष भारत में हिंदुओं का वर्चस्व बना रहेगा। पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी इस्लामी कट्टर पंथीयों ने हुकमत-ए-इलाहिया के सिद्धांत को नहीं छोड़ा। यह सच है कि कुछ लोगों का मानना है कि इस देश में हुकमत-ए-दीन की स्थापना तब तक नहीं होगी जब तक कि मुस्लिम सरकार स्थापित नहीं हो जाती। दिन का अर्थ धर्म होता है। इस लिए भारतीय मुसलमानों का कर्तव्य है कि वे अपनी जान जोखिम में डालकर धर्म विस्तार हेतु विभिन्न प्रकार के जिहाद के लिए खड़े हों। इस देश में मुसलमानों का इस्लामी राज्य अस्तित्व में आने पर ही शरिया के अनुसार कानून पारित किए जा सकेंगे। इसीलिए धर्मांध इस्लामियों का लक्ष्य भारत में इस्लामिक सरकार स्थापित कर भारत को इस्लामिक राज्य में बदलना है।
कट्टरपंथियों के अनेक संगठन आज मुसलमानों के बीच फल-फूल रहे हैं। इन संगठनों ने हिंदुओं और हिंदू धर्म पर इस्लाम के मनोवैज्ञानिक आक्रमण की रणनीति तैयार की है। यह याद रखना चाहिए कि वंदे मातरम् का विरोध करना, आए दिन हिंदुओं के धार्मिक तत्वों पर हमले करना, आए दिन कहीं ना कहीं दंगा करते रहना यह सारी कोई आकस्मिक घटित होने वाली घटनाएं नहीं हैं बल्कि पूरे देश को इस्लामी राज्य बनाने की योजना का एक अपरिहार्य हिस्सा है।
हिंदुओं को अब जिहादी मानसिकता वाले मुसलमानों के प्रयासों पर विचार कर, कम से कम अपनी आत्मरक्षा और प्रतिरोध के लिए खड़ा होना चाहिए। भारत के इस्लामीकरण के जटिल युद्ध में एक रणनीति की तहत धर्मांध मुस्लिम कार्य कर रहे हैं। इसके लिए राजनीतिक दलों की ओर देखना व्यर्थ है। अब हिंदुओं का काम मुसलमानों को सहिष्णुता भाव सिखाना और उनसे समन्वय की अपेक्षा करना नहीं है बल्कि उन्हें दंगे करने से निर्णायक रूप से रोकना यह है। उनका सारा ध्यान इस्लाम को फैलाने, इस्लाम की शक्ति बढ़ाकर भारत पर इस्लाम की पूर्ण शक्ति प्राप्त करने पर है। यह देश में इस्लामिक राज्य स्थापित करने की ओर उठाया हुआ कदम है। सारा इतिहास मुस्लिम अपनीे रणनीति के अनुरूप निर्माण कर रहे हैं। ऐसी भयानक स्थिति में हिंदू क्या कर रहे हैं? वास्तविक सवाल यह है कि क्या वे छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति सम्भाजी महाराज, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, स्वतंत्र वीर सावरकर का स्वाभिमान से युक्त मार्ग चाहते हैं या नहीं। इतिहास का सबक यह है कि इतिहास को भूलने वालों को वर्तमान माफ नहीं करता।
नागपुर में जहां पर दंगा हुआ वहां पर 12% मुसलमान हैं और 88% हिंदू हैं। फिर भी मुसलमान समाज कितना उग्र क्यों हुआ? हिंसा के लिए दंगाईयों ने नागपुर शहर को ही क्यों चुना? नागपुर तो एक झांकी है , हिंदुओं सम्भलो, नहीं तो तुम्हारा शहर भी बाकी है। 66 करोड़ हिंदू महाकुम्भ मेले में इकट्ठा होते हैं, अपनी अपार शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। सवाल यह है कि हिंदू अपने इस हुंकार को इतनी जल्द भूल कैसे जाता है?
छत्रपति शिवाजी महाराज बनो बघनख रक्खो फाड़ डालो विरोधियों को हिन्दू द्रोहियों को
हिन्दू बस्ती में 4 घर मुसलमान रहेंगे, घर के अंदर मस्जिद बना लेंगे ,घर के ऊपर भोपा लगा देंगे ,दिन में कई बार रोज से बेसुरी आवाज़ में चिल्लाएँगे, कोई हिन्दू विरोध नहीं करता है
अभी सभी को इनका विरोध करना पड़ेगा और इनका जवाब उनसे दुगुनी ताकत से हमें इन्ही की भाषा में देना है
औसतन 1 मुल्ले पर 5 हिन्दू आते हैं
छत्रपती शिवाजी महाराज बनो
फाड़ डालो
आपला लेख आवडला.
हा लेख सामान्य जनते पर्यंत पोहचला पाहिजे.
मुस्लिम समाजा बद्दल अजुनही हिंदू समाज निद्रिस्त आहे.
संघ शक्ती प्रभावीपणे देश भर आपले काम करत आहे म्हणून
मुसलमान आणि मुस्लिम समर्थक हिंदू जास्त प्रमाणात कारवाया करताना दिसत नाहीत.पोलिस प्रशासन काही भागात मुसलमानांना मदत करताना दिसत आहेत.ज्यांना दंगलीची भिती वाटते असे हिंदू हिंदू संघटनांना दोष देत आहेत.
धन्यवाद
अमोलजी अप्रतिम विश्लेषण…
मेरे मन की बात आपने कही…
जो मुसल को ही मानते है, उनको सहिष्णुता के पाठ पढाना मुर्खता होगी..
नागपूर में हर हिंदू घर से एक एक पत्थर भी उछालते तो दंगाई भाग खडे होते.
हमे बचाव छोडकर एसरटीव होना पडेगा.. आपको हमारे भगवान की आरती से नफरत है, तो हमे भी आपकी बेसुरी अजान से तकलिफ है.. हिंदू मोहल्ले से आपका ताबूत निकलेगा तो हमारे भगवान को भी कष्ट होंगे.. भक्त इस नाते हम अपने भगवान को कष्ट नही देना चाहते, इसलिये नो भाईचारा, नो ताबुत… छ. शिवाजी महाराज की जय….
श्री मोहन स्थालेकर जी धन्यवाद