पश्चिमी कच्छ के पाकिस्तान सीमा से सटे इलाकों में वर्षों से मुस्लिम बहुल आबादी के प्रभाव के कारण हिंदू वाडा समुदाय की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान धीरे-धीरे लुप्त हो रही थी। पूजा की जगह नमाज पढ़ी जाने लगी थी, शादी-विवाह में निकाह की परंपरा अपनाई जा चुकी थी, यहाँ तक कि मृतकों का अंतिम संस्कार भी हिंदू रीति से न होकर इस्लामिक ढंग से दफनाने की परंपरा बन चुकी थी। नाम, पहनावा, भाषा और जीवनशैली तक इस्लामी हो गई थी।
लेकिन यह तस्वीर अब बदल रही है और इसका श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रयासों को जाता है। संघ के सेवा विभाग द्वारा चलाए गए विशेष अभियान के तहत इन समुदायों में पुनः हिंदू परंपराओं की ओर लौटने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। वर्षों से उपेक्षित और दिशाहीन हो चुके समुदाय में एक बार फिर पूजा-पाठ, हिंदू रीति से विवाह, यज्ञ, संस्कार जैसे तत्व लौटने लगे हैं।
सामूहिक विवाह और मंदिर निर्माण से शुरू हुआ बदलाव-
संघ के प्रयासों से पिछले वर्ष 8 दिसंबर को पहली बार इस क्षेत्र में हिंदू रीति से सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन न केवल एक सामाजिक पुनरुद्धार का प्रतीक था, बल्कि इससे समुदाय में एक नई चेतना का संचार हुआ। इसके बाद लगातार विभिन्न धार्मिक संस्कारों को पुनर्स्थापित किया गया। सेवा विभाग ने यहां मंदिर निर्माण, संस्कारशाला और शिक्षा के केंद्रों की स्थापना भी शुरू की।
प्रतिनिधि सभा में प्रस्तुत हुआ विशेष विवरण-
यह जानकारी संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में भी प्रस्तुत की गई, जो हाल ही में आयोजित हुई। इस बैठक में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने विस्तार से बताया कि किस प्रकार इस सीमावर्ती क्षेत्र के चार गांवों में सेवा कार्यों की शुरुआत की गई। उन्होंने बताया कि समुदाय के जीवन स्तर को सुधारने के लिए 65 परिवारों को पक्के मकान उपलब्ध कराए गए हैं। साथ ही मंदिरों के निर्माण और शिक्षा की सुविधा देकर सामाजिक जागरूकता का माहौल तैयार किया गया है।
प्रतिनिधियों को बताया गया कि पहले इस क्षेत्र में अधिकांश लोगों ने मुस्लिम प्रभाव के कारण इस्लामिक परंपराएं अपना ली थीं, लेकिन अब संघ के सेवा कार्यों से बदलाव की लहर शुरू हो चुकी है। समुदाय के लोग स्वयं आगे आकर हिंदू परंपराएं अपनाने को तैयार हैं।
समाज में जागरूकता का प्रसार-
संघ द्वारा चलाए जा रहे इन सेवा कार्यों में शिक्षा, स्वावलंबन और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को प्राथमिकता दी गई है। ग्रामीणों को धार्मिक महत्व, रीति-रिवाज और वैदिक परंपराओं की जानकारी दी जा रही है। इसका परिणाम यह है कि अब वहाँ हवन-पूजन, संस्कार, गोदान आदि हिंदू परंपराओं का फिर से अनुसरण हो रहा है।
-तुलसीराम लोहार