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प. पू. सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी की जयंती

प. पू. सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी की जयंती

by हिंदी विवेक
in संघ
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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में प्रतिपदा के दिन हुआ था। वर्ष प्रतिपदा को महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पड़वा’ के नाम से जाना जाता है। ‘यह दिन हिंदू मन, हृदय और विवेक को भारत के इतिहास के घटनाचक्र, राष्ट्र की अस्मिता, सांस्कृतिक परंपराओं एवं वीर तथा वैभवशाली पूर्वजों की विरासत का यशस्वी बोध कराता है’।

डॉक्टर साहब स्वभाव से अजातशत्रु थे। उनके विरोधी भी उनके चरित्र पर कोई छींटाकशी नहीं कर सकते थे। उनका इस बात पर बड़ा जोर रहता था कि कार्यकर्ता का चरित्र बिल्कुल साफ होना चाहिए। चरित्र के बारे में उन्होंने कभी भी ढिलाई नहीं बरती है। व्यक्तियों में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण उनके जीवन का पहला काम था, किंतु मनुष्य इसकी सीख किसी के बोलने भर से नहीं बल्कि उसके स्वयं चरित्र को देखकर लेता है। इसके लिए डॉक्टर साहब का चलता फिरता उदाहरण स्वयंसेवकों के सामने रहता था। उनके नेतृत्व की विशेषता यह थी कि जितने उनके पास जाओ उतने ही वे महान लगते थे, इससे उनका आकर्षण बढ़ता जाता था। एक मोहक मधुरता उनके साथ रहने में थी। साथ ही उनमें न तो बड़प्पन की भावना थी और न ही अनावश्यक शिष्टाचार।

डॉक्टर जी की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी हिंदू धर्म संस्कृति में दृढ़-मूल उनका स्वयं प्रभुत्व। संघ की कार्यपद्धति में इसका दर्शन हमें होता है। यह कार्यपद्धति न किसी पश्चिमी कार्यपद्धति की नकल है, न किसी भारतीय संस्था तथा दल की कार्यपद्धति की। यह सर्वविदित है कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर का विदर्भ, मध्य प्रदेश का दौरा डॉक्टर जी ने ही आयोजित किया था। डॉक्टर जी की इन भूमिकाओं का अन्वयार्थ जो नहीं समझ सकते उनका बालासाहब के विजयादशमी भाषण का अन्वयार्थ समझने में असमर्थ होना स्वाभाविक है।
आचार्य अत्रे डॉक्टर साहब के स्वभाव के गुणों को बताते हुए एक प्रसंग का उल्लेख करते हैं जिसमें वह बताते हैं कि डॉक्टर साहब जैसे नेता उनके घर आने वाले हैं, इस बात का पहले उनके मन पर बड़ा दबाव था। पर जब वे सामने आए तो उनका बोलना-चलना देखकर वह दबाव एकदम दूर हो गया और ऐसा लगा जैसे परिवार के ही कोई बड़े व्यक्ति घर में घूम रहे हैं। अपनी सादगी, प्रसन्नता, स्नेहशीलता और सहज रूप से घुलमिल जाने की आदत के कारण डॉक्टर साहब कहीं भी अनचाहे नहीं हुए। डॉ. साहब स्वयंसेवकों में भी यही गुण देखना चाहते थे।

डॉ. हेडगेवार : देशभक्ति जीवन का स्वर

डॉक्टर हेडगेवार जी के जीवन में बचपन से ही हमेशा कर्म के रूप में देशभक्ति का भाव बिना किसी समय छूटे बना रहा, जिससे उनका जीवन हमेशा प्रकाशित होता रहा। जब वे नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल में पढ़ रहे थे तब अंग्रेज सरकार ने बदनाम रिस्ले सर्क्युलर जारी किया। इस आदेश के द्वारा अंग्रेज सरकार विद्यार्थियों को स्वतंत्रता आंदोलन से दूर रखना चाहती थी। नेतृत्व का गुण केशवराव में विद्यार्थी जीवन से ही था। विद्यालय की जांच के दौरान डॉक्टर हेडगेवार ने हर एक कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा जांच करने वालों का स्वागत वंदे मातरम से करवाया। विद्यालय में खलबली मच गई, यह मामला फैल गया और अंत में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त विद्यालय से उन्हें निकाल दिया गया। फिर यवतमाल की राष्ट्रीय शाला में उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई की, किंतु परीक्षा देने से पहले ही वह विद्यालय भी अंग्रेज सरकार द्वारा बंद कर दिया गया। अब परीक्षा देने उन्हें अमरावती जाना पड़ा। जब कोई राष्ट्र गुलाम होता है तब देशभक्ति की भावना रखने वाले हृदय बहुत ही भावुक हो जाते हैं।

केशव निडर और साहसी थे तथा देश के लिए किसी भी प्रकार का त्याग करने के लिए तैयार थे। अपने लिए पैसा, सम्मान, ख्याति और आराम आदि किसी बात की इच्छा उनके मन में कभी पैदा नहीं हुई। उन्होंने सन 1910 में कोलकाता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में डाक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया ताकि बंगाल के क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित हो और वैसा ही कार्य विदर्भ में भी कर सके। वहां पुलिनबिहारी दास के नेतृत्व में ‘अनुशीलन समिति’ नाम की क्रांतिकारियों की एक टोली काम कर रही थी। इस समिति के साथ केशवराव गहरा संबंध जोड़कर बहुत मजबूती से जुड़ गए।

-विचार विनिमय न्यास, केशव कुंज, झंडेवाला -दिल्ली 

 

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