हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
आखिर क्या है भूकंप के पीछे का विज्ञान?

आखिर क्या है भूकंप के पीछे का विज्ञान?

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
0

7.7 तीव्रता के भूकंप के झटकों ने म्यांमार में भारी तबाही मचाई है। म्यांमार में शुक्रवार सुबह आए भूकंप के झटके थाईलैंड से लेकर भारत, बांग्लादेश और चीन तक महसूस किए गए। भारत में कोलकाता, इंफाल, मेघालय, ईस्ट कार्गो हिल से लेकर दिल्ली-एनसीआर तक भूकंप के झटके महसूस हुए जबकि बांग्लादेश में ढ़ाका, चटगांव सहित कई हिस्सों में 7.3 तीव्रता के झटके आए। म्यांमार में 12 मिनट बाद 6.4 तीव्रता का आफ्टरशॉक भी आया। भूकंप से म्यांमार और थाईलैंड में जान-माल का बड़ा नुकसान हुआ है, जहां 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, सैंकड़ों घायल हुए और कई इमारतें जमींदोज हो गई। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और जर्मनी के जीएफजेड भूविज्ञान केंद्र के अनुसार भूकंप का केंद्र म्यांमार में सागाइंग शहर से 16 किलोमीटर (10 मील) उत्तर-पश्चिम में 10 किलोमीटर (6.2 मील) की गहराई पर था, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर बैंकॉक में देखने को मिला। बैंकॉक में एक निर्माणाधीन 30 मंजिला इमारत तो देखते ही देखते ताश के पत्तों की भांति ढ़ह गई।

Myanmar's earthquake death toll jumps to 1,644 as more bodies are recovered from rubble - The Hindu

म्यांमार में भूकंप के केंद्र को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि म्यांमार में धरती की सतह के नीचे की चट्टानों में मौजूद एक बहुत बड़ी दरार है, जो देश के कई हिस्सों से होकर गुजरती है। यह दरार म्यांमार के सागाइंग शहर के पास से गुजरती है, इसीलिए इसका नाम ‘सागाइंग फॉल्ट’ पड़ा, जो म्यांमार में उत्तर से दक्षिण की तरफ 1200 किलोमीटर तक फैली हुई है। इसे ‘स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट’ भी कहते हैं, जिसका अर्थ है कि इसके दोनों ओर की चट्टानें ऊपर-नीचे नहीं बल्कि एक-दूसरे के बगल से क्षैतिज (हॉरिजॉन्टल) दिशा में खिसकती हैं। यह दरार अंडमान सागर से लेकर हिमालय की तलहटी तक जाती है और पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेट्स के हिलने-डुलने से बनी है। भारतीय प्लेट उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है, जिससे सागाइंग फॉल्ट पर दबाव पड़ता है और चट्टानें बगल में सरकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार म्यांमार में कई बड़े भूकंप इसी सागाइंग फॉल्ट के कारण आए हैं। सागाइंग फॉल्ट के पास 1930 से 1956 के बीच 7 तीव्रता वाले 6 से ज्यादा भूकंप आए थे जबकि 2012 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आ चुका है।

 

भूकंप विशेषज्ञों के अनुसार वैसे तो धरती पर हर साल करीब पांच लाख भूकंप आते हैं, लेकिन उनमें से करीब एक लाख ही महसूस हो पाते हैं और इनमें से भी करीब 100 भूकंप ही बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं। 1920 में चीन के कांसू प्रांत में भूकंप से सबसे खतरनाक भूस्खलन (लैंडस्लाइड) हुआ था, जिससे करीब दो लाख लोग मारे गए थे। वहीं 1970 में पेरू में भूकंप से सबसे खतरनाक हिमस्खलन (एवलांच) हुआ था, जिसकी रफ्तार 400 किलोमीटर प्रतिघंटा थी और उस दौरान करीब 18 हजार लोगों की मौत हुई थी। 26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया में भूकंप से हिंद महासागर में सुनामी आ गई थी, जिससे करीब 2.3 लाख लोगों की मौत हुई थी। 1811 में उत्तरी अमेरिका में इतना जोरदार भूकंप आया था कि मिसिसिपी नदी उल्टी दिशा में बहने लगी थी। भारत में 8.1 तीव्रता का सबसे विनाशकारी भूकंप 15 जनवरी 1934 को बिहार में आया था, जिससे करीब 30 हजार लोग मारे गए थे। एक शोध के अनुसार हरिद्वार के निकट लालढ़ांग में 1344 तथा 1505 में तो 8 से ज्यादा तीव्रता के भूकंप आने के संकेत मिले हैं, जिनसे एक इलाके में तो जमीन 13 मीटर ऊपर उठ गई थी तथा रामनगर, टनकपुर और नेपाल तक जमीन पर करीब दो सौ किलोमीटर लंबी दरार भी पड़ गई थी। वैसे 9.1 तीव्रता का अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप 11 मार्च 2011 को जापान में आया था, जिसने न केवल बहुत बड़ी संख्या में लोगों की जान ली थी बल्कि धरती की धुरी को भी 4 से 10 इंच तक खिसका दिया था। हालांकि तीव्रता के लिहाज से 9.5 तीव्रता का अभी तक का सबसे खतरनाक भूकंप 22 मई 1960 को चिली में आया था, जिसके कारण आई सुनामी से दक्षिणी चिली, हवाई द्वीप, जापान, फिलीपींस, पूर्वी न्यूजीलैंड, दक्षिण-पूर्व आस्ट्रेलिया सहित कई देशों में भयानक तबाही मची थी और हजारों लोगों की मौत हुई थी। सर्वाधिक जानलेवा भूकंप चीन में 1556 में आया था, जिसमें 8.3 लाख लोगों की मौत हुई थी।

5.1 magnitude aftershock rattles Myanmar as residents struggle to clear rubble | PBS News

पृथ्वी के अंदर टेक्टोनिक प्लेट्स पिघले लावे पर तैरती हैं, जिनकी टक्कर से भूकंप आते हैं। ज्वालामुखी, परमाणु बम अथवा खदानों में होने वाले धमाके से भी भूकंप आ सकते हैं। हाल के वर्षों में भूकंप की स्थिति को लेकर पूरी दुनिया से जो आंकड़े सामने आ रहे है, वे चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं। इन आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में आए बड़े भूकम्पों की औसत संख्या दो दशकों के औसत से भी ज्यादा थी। हालांकि भूकंप की सटीक भविष्यवाणी तो संभव नहीं है, लेकिन यह अवश्य पता लगाया जा सकता है कि धरती के नीचे किस क्षेत्र में किन प्लेटों के बीच ज्यादा हलचल है और किन प्लेटों के बीच ज्यादा ऊर्जा पैदा होने की आशंका है। भूकंप धरती की प्लेटों के टकराने से आते हैं। दरअसल पूरी पृथ्वी कुल 12 टैक्टॉनिक प्लेटों पर स्थित है, जो पृथ्वी की सतह से 30-50 किलोमीटर तक नीचे हैं और इनके नीचे स्थित तरल पदार्थ (लावा) पर तैर रही हैं। ये प्लेटें काफी धीरे-धीरे घूमती रहती हैं और इस प्रकार प्रतिवर्ष अपने स्थान से 4-5 मिलीमीटर खिसक जाती हैं। कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है और ऐसे में कभी-कभी टकरा भी जाती हैं। इन प्लेटों के आपस में टकराने से जो ऊर्जा निकलती है, वही भूकंप है। विशेषज्ञों के अनुसर भूकंप तब आता है, जब ये प्लेटें एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसने की कोशिश करती हैं। प्लेटों के एक-दूसरे से रगड़ खाने से बहुत ज्यादा ऊर्जा निकलती है, उसी रगड़ और ऊर्जा के कारण ऊपर की धरती डोलने लगती है। कई बार यह रगड़ इतनी जबरदस्त होती है कि धरती फट भी जाती है।

Myanmar: Latest News and Updates | South China Morning Post

किसी भी जगह भूकंप को लेकर हालांकि कोई सटीक भविष्यवाणी तो अब तक संभव नहीं हैं, लेकिन अधिकांश भूकंप विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप से होने वाले नुकसान से निपटने के लिए जरूरी उपाय किया जाना जरूरी है। दरअसल लोगों की मौत प्रायः भूकंप की वजह से कम, बेहद पुरानी इमारती संरचनाओं के अलावा खराब तरीके से निर्मित इमारतों के कारण ज्यादा होती है। भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएं पृथ्वी की आंतरिक संरचना के कारण भूगर्भ में विशिष्ट स्थानों पर संचयित ऊर्जा के विशेष परिस्थितियों में उत्सर्जित होने से घटती हैं। भूकम्पीय तरंगों के माध्यम से जब यह ऊर्जा चारों ओर प्रवाहित होती है तो इससे सतह पर बनी इमारतों में कंपन होता है और जब ये इमारतें इस कंपन को झेलने में समर्थ नहीं होती, तभी जान-माल का भारी नुकसान होता है। यही कारण है कि विशेषज्ञों का कहना है कि नई बनने वाली इमारतों को भूकंपरोधी बनाकर तथा पुरानी इमारतों में अपेक्षित सुधार कर आने वाले वर्षों में जान-माल के बड़े नुकसान से बचा जा सकता है।

रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता और उसके असर को समझना भी आवश्यक है। भूकंप के दौरान धरती के भीतर से जो ऊर्जा निकलती है, उसकी तीव्रता को इसी से मापा जाता है और इसी तीव्रता से भूकंप के झटके की भयावहता का अनुमान लगाया जाता है। 1.9 तीव्रता तक के भूकंप का केवल सिस्मोग्राफ से ही पता चलता है। 2 से कम तीव्रता वाले भूकम्पों को रिकॉर्ड करना भी मुश्किल होता है और उनके झटके महसूस भी नहीं किए जाते हैं। सालभर में आठ हजार से भी ज्यादा ऐसे भूकंप आते हैं। 2 से 2.9 तीव्रता का भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है जबकि 3 से 3.9 तीव्रता का भूकंप आने पर ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई भारी ट्रक नजदीक से गुजरा हो। 4 से 4.9 तीव्रता वाले भूकंप में खिड़कियों के शीशे टूट सकते हैं और दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं। रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकम्पों को हल्का माना जाता है और वर्षभर में करीब छह हजार ऐसे भूकंप आते हैं।

5 से 5.9 तीव्रता के भूकंप में भारी फर्नीचर भी हिल सकता है और 6 से 6.9 तीव्रता वाले भूकंप में इमारतों की नींव दरकने से ऊपरी मंजिलों को काफी नुकसान हो सकता है। 7 से 7.9 तीव्रता का भूकंप आने पर इमारतें गिरने के साथ जमीन के अंदर पाइपलाइन भी फट जाती हैं। 8 से 8.9 तीव्रता का भूकंप आने पर तो इमारतों सहित बड़े-बड़े पुल भी गिर जाते हैं जबकि 9 तथा उससे तीव्रता का भूकंप आने पर हर तरफ तबाही ही तबाही नजर आना तय होता है। भूकंप वैज्ञानिकों के अनुसार 8.5 तीव्रता वाला भूकंप 7.5 तीव्रता के भूकंप के मुकाबले करीब 30 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है। रिक्टर स्केल पर 5 तक की तीव्रता वाले भूकंप को खतरनाक नहीं माना जाता लेकिन यह भी क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। भूकंप का केन्द्र अगर नदी का तट हो और वहां भूकंप रोधी तकनीक के बिना ऊंची इमारतें बनी हों तो ऐसा भूकंप भी बहुत खतरनाक हो सकता है।

भूकंप विशेषज्ञों के अनुसार जिन क्षेत्रों में भूकंप का खतरा ज्यादा होता है, उसका कारण सैंकड़ों वर्षों में धरती की निचली सतहों में तनाव बढ़ना होता है। दरअसल भूकंप आने का मुख्य कारण टेक्टॉनिक प्लेटों का अपनी जगह से हिलना है, लेकिन तनाव का असर अचानक नहीं बल्कि धीरे-धीरे होता है। भूकंप की गहराई जितनी ज्यादा होगी, सतह पर उसकी तीव्रता उतनी ही कम महसूस होगी। भूकंप का केन्द्र वह स्थान होता है, जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। उस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है और जैसे-जैसे कंपन की आवृत्ति दूर होती जाती हैं, उसका प्रभाव कम होता जाता है। अधिकांश भूकंप विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में इमारतों को भूकंप के लिए तैयारी करना शुरू कर देना चाहिए ताकि बड़े भूकंप के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।

 

-योगेश कुमार गोयल

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #mayanmaar #india #world #wide #earthqueke #cyclone #hit #heat #disaseter#viral #share

हिंदी विवेक

Next Post
साधु भद्रेशदास होंगे सरस्वती सम्मान 2024 से सम्मानित

साधु भद्रेशदास होंगे सरस्वती सम्मान 2024 से सम्मानित

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0