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हर भारतीय दिल में जिंदा रहेंगे मनोज कुमार

हर भारतीय दिल में जिंदा रहेंगे मनोज कुमार

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
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बॉलीवुड के दिग्गज फिल्ममेकर और सदाबहार अभिनेता एक्टर मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं हैं। उनका 4 अप्रैल की सुबह 87 वर्ष की आयु में मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन हो गया। वह काफी समय से लिवर सिरोसिस की समस्या से जूझ रहे थे। उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें 21 फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विशेष रूप से अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए विख्यात रहे मनोज कुमार को ‘भारत कुमार’ के नाम से भी जाना जाता था, जिनकी ‘उपकार’, ‘पूरब-पश्चिम’, ‘क्रांति’, ‘रोटी-कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्में बॉलीवुड की बेहद सफल फिल्में रही। उनकी लीड रोल के तौर पर 1964 में आई राज खोसला की रहस्य थ्रिलर फिल्म ‘वो कौन थी?’ भी सुपरहिट साबित हुई थी।

लता मंगेशकर की मधुर आवाज में गाए उस फिल्म के गीतों ‘लग जा गले’ और ‘नैना बरसे रिमझिम’ को लोगों ने खूब प्यार दिया था। पद्मश्री और दादा साहब फाल्के पुरस्कार सहित कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजे गए मनोज कुमार देशभक्ति फिल्में बनाने वाले बॉलीवुड के पहले अभिनेता थे। अपनी फिल्मों के जरिए उन्होंने बच्चे-बच्चे के मन में देशभक्ति की भावना जगाई।
मनोज कुमार ने ही बॉलीवुड में देशभक्ति सिनेमा की एक नई शैली की शुरुआत की थी। उनकी फिल्‍में राष्ट्रवाद और सामाजिक मुद्दों पर होती थी। 1957 में उनकी पहली फिल्म ‘फैशन’ आई थी, जिसमें 19 वर्ष की उम्र में मनोज कुमार ने 80-90 वर्ष के भिखारी का छोटा सा रोल भी इतनी खूबसूरती से निभाया था कि हर कोई उनके लुक को देखकर दंग रह गया था। उसके बाद उनकी 1958 में ‘सहारा’, 1959 में ‘चांद’ और 1960 में ‘हनीमून’ फिल्में आई। 1961 में आई फिल्म ‘कांच की गुड़िया’ में वे पहली बार लीड रोल में दिखाई दिए। 1961 में ही उनकी कुछ और फिल्में ‘पिया मिलन की आस’, ‘सुहाग सिंदूर’ और ‘रेशमी रूमाल’ भी आई।

मनोज कुमार: जिन्होंने अपनी फिल्मों को बनाया देशभक्ति का मंचमनोज कुमार की पहली रिलीज देशभक्ति फिल्म थी ‘शहीद’, जो स्वतंत्रता सेनानी शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जीवन पर आधारित थी, वह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी। उस फिल्म को क्रिटिक्स और दर्शकों के साथ-साथ भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने भी खूब सराहा था। उस फिल्म के गाने ‘ए वतन, ए वतन हमको तेरी कसम’, ‘सरफरोशी की तमन्ना’ और ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ बेहद पसंद किए गए थे। वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद स्वयं प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें लोकप्रिय नारे ‘जय जवान, जय किसान’ पर आधारित एक फिल्म बनाने को कहा था, जिसके बाद मनोज कुमार ने देशभक्ति फिल्म ‘उपकार’ फिल्म बनानी शुरू कर दी। हालांकि उस दौरान उन्हें फिल्म लेखन या निर्देशन का कोई अनुभव नहीं था। मनोज कुमार द्वारा बनाई गई ‘उपकार’ फिल्म 1967 में रिलीज हुई, जो न केवल उस वर्ष बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही बल्कि ‘ऑलटाइम ब्लॉकबस्टर’ बनकर भी उभरी। ‘उपकार’ फिल्म का संगीत उस दशक का छठा सर्वाधिक बिकने वाला हिंदी फिल्म एल्बम था।

Actor Manoj Kumar, patriot of Bollywood, dies at 87 in Mumbai - Culture - Images

‘उपकार’ फिल्म का एक गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ तो इतना चर्चित हुआ कि आज भी गणतंत्र दिवस तथा स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान बजाया जाता है। यह गीत आज भी सबसे बेहतरीन देशभक्ति गानों में गिना जाता है। यह गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि उस दौर में मीडिया ने मनोज कुमार को ही ‘भारत’ कहना शुरू कर दिया, जिसके बाद वे ‘भारत कुमार’ के नाम से भी जाने जाने लगे। हालांकि मनोज कुमार ने ‘उपकार’ फिल्म लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर बनाई थी लेकिन शास्त्री जी स्वयं यह फिल्म नहीं देख सके। दरअसल ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में इंडो-पाकिस्तान वॉर में शांति समझौता साइन करने के अगले दिन 11 जनवरी 1966 को उनकी मृत्यु हो गई थी और फिल्म उनकी मौत के डेढ़ साल बाद यानी 11 अगस्त 1967 को रिलीज हुई। शास्त्री जी को यह फिल्म नहीं दिखा पाने का अफसोस मनोज कुमार को जिंदगीभर सालता रहा। इसी फिल्म के लिए उन्हें 1968 में पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। यही नहीं, ‘उपकार’ फिल्म ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी और बेस्ट डायलॉग के लिए भी चार फिल्म फेयर जीते थे।

On Manoj Kumar's birthday, 5 powerful performances of Bollywood's resident patriot that are unmissable | Celebrities News – India TV

24 जुलाई 1937 को ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांत के एक शहर एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) में एक पंजाबी हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे मनोज कुमार जब 10 वर्ष के थे तो उनका परिवार बंटवारे के कारण जंडियाला शेर खान से दिल्ली आ गया था, जहां उनके परिवार ने दो महीने रिफ्यूजी कैंप में बिताए और बाद में पूरा परिवार जैसे-तैसे दिल्ली में बस गया। मनोज कुमार ने दिल्ली में स्कूली शिक्षा के बाद हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया और नौकरी की तलाश शुरू कर दी। मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गोस्वामी था। वे बचपन से ही उस जमाने के बॉलीवुड सुपरस्टार दिलीप कुमार के बहुत बड़े प्रशंसक थे। दिलीप साहब की 1949 में आई फिल्म ‘शबनम’ उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने उस फिल्म को कई बार देखा। उस फिल्म में दिलीप कुमार का नाम मनोज था। जब हरिकृष्ण गोस्वामी फिल्मों में आए तो उन्होंने दिलीप कुमार की फिल्म ‘शबनम’ में उनके नाम ‘मनोज’ पर ही अपना नाम ‘मनोज कुमार’ कर लिया। जो दिलीप कुमार कभी मनोज कुमार के आदर्श थे, उन्हें मनोज कुमार ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म क्रांति (1981) में डायरेक्ट भी किया।

 

मनोज कुमार के फिल्मी कैरियर की शुरूआत की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। मनोज कुमार एक दिन काम की तलाश में फिल्म स्टूडियो में टहल रहे थे। वहां काम करने वाला एक व्यक्ति उन्हें अपने साथ अंदर ले गया और वहां उन्हें लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले दूसरे सामानों को ढ़ोने का काम मिला। फिर वे लाइट टेस्टिंग के लिए कैमरे के सामने खड़े किए जाने लगे। दरअसल बड़े-बड़े कलाकार अपना शॉट शुरू होने से महज चंद मिनट पहले ही फिल्मों के सेट पर पहुंचा करते थे। ऐसे में हीरो पर फिल्माए जाने जाने शॉट के लिए सेट पर हीरो पर पड़ने वाली लाइट चेक करने के लिए उनके आने से पहले हीरो की जगह मनोज कुमार को खड़ा कर दिया जाता था। ऐसे ही एक दिन मनोज कुमार लाइट टेस्टिंग के लिए सेट पर हीरो की जगह खड़े हुए थे। जैसे ही उनके चेहरे पर लाइट पड़ी, फिल्म निर्देशक को कैमरे में उनका चेहरा इतना आकर्षक लगा कि उसने उन्हें 1957 में आई फिल्म ‘फैशन’ में एक छोटा सा रोल दे दिया। रोल भले ही छोटा था लेकिन मनोज कुछ मिनट के अभिनय में भी अपनी एक्टिंग की छाप छोड़ने में सफल रहे और वहीं से उनके फिल्मी सफर की शुरूआत हो गई।

Veteran actor Manoj Kumar passes; PM Modi pays tribute, says 'will continue to inspire generations' - Entertainment News | The Financial Express

मनोज कुमार के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ काफी अच्‍छे संबंध थे लेकिन जब इंदिरा ने देश में आपातकाल लगाया तो मनोज कुमार इंदिरा गांधी की सत्ता और शासन के मुखर आलोचक बन गए। सरकार के काम का विरोध करने वाले अभिनेताओं और उनकी फिल्‍मों पर आपातकाल के दौर में प्रतिबंध लगाया गया और उस दौरान मनोज कुमार की फिल्मों ‘दस नंबरी’ तथा ‘शोर’ के साथ भी ऐसा ही हुआ। मनोज कुमार की कुछ फिल्‍मों को तो उस दौरान सिनेमाघरों में रिलीज से पहले ही दूरदर्शन पर प्रसारित कर दिया गया। उन सरकारी कार्रवाइयों को उन्होंने अदालत में चुनौती दी और लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते हुए जीत भी हासिल की। उन्होंने न केवल कई देशभक्ति फिल्में बनाई बल्कि जिंदगीभर उसी देशभक्ति भावना के साथ जीवन भी जीया। एक बार उन्होंने कहा भी था कि देशभक्ति मेरे खून में है और मुझे देशभक्ति की भावना तथा साहित्य के प्रति प्रेम अपने पिता से और सही धार्मिक एवं नैतिक मूल्य अपनी मां कृष्णा कुमारी गोस्वामी से विरासत में मिले हैं।

भारतीय सिनेमा और कला में मनोज कुमार के उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें 1992 में पद्मश्री और 2015 में सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें कुल 7 फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिले थे।

– योगेश कुमार गोयल

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