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अप्रैल में लाहौर पर दोहरी विजय की कीर्ति गाथा

अप्रैल में लाहौर पर दोहरी विजय की कीर्ति गाथा

by हिंदी विवेक
in सामाजिक
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लाहौर पर सात सौ वर्षों के दमनकारी विदेशी आक्रान्ताओं के शासन के बाद, अठारहवीं सदी में 4 दशकों के अन्तराल पर अप्रैल मास में ही मराठा सेनापति रघुनाथ राव और महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर विजय के बाद अप्रैल मास में ही उनके सार्वजनिक अभिनन्दन की दोहरी गौरव गाथा स्वराज के इतिहास की अपूर्व घटनाएँ हैं। लाहौर के विगत 1000 वर्षों के इतिहास में समाज की पहल पर ऐसे नागरिक अभिनन्दन कभी नहीं हुए।

लाहौर विजय पर 12 अप्रैल 1801 को महाराजा रणजीत सिंह के अभिनन्दन के 225 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। पेशावानीत हिन्दवी स्वराज के परिसंघ की अप्रैल, 1758 में लाहौर विजय के बाद 20 अप्रैल 1758 को वहाँ की जनता द्वारा विजयी मराठा सेनापति रघुनाथ राव और मल्हार राव का अभूतपूर्व नागरिक अभिनंदन किया गया। इसके 43 वर्ष बाद ही 12 अप्रैल 1801 को ऐसा ही अभिषेक व नागरिक अभिनंदन महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर विजय के बाद किया गया था।

जुलाई 1799 में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर विजय कर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था। स्वराज के मराठा सेनापतियों द्वारा अब्दाली को हटा सरहिन्द, लाहौर, मुलतान, पेशावर व अटक पर 1758 में पेशवानीत स्वराज परिसंघ का भगवा ध्वज फहराने के 41 वर्ष बाद महाराजा रणजीत सिंह का माँ दुर्गा सहित हनुमान जी व लक्ष्मण जी की छवि से युक्त युद्ध ध्वज का लाहौर पर फहराना दूसरी रोमांचक व गौरवमयी घटना थी। महाराजा रणजीत सिंह के युद्ध के प्रयुक्त ध्वज में मध्य में दश भुजा माँ दुर्गा व उनके आगे व पीछे क्रमशः वीरवर हनुमान जी व लक्ष्मण जी की छवि अंकित हुआ करती थी।

चित्र : महाराजा रणजीत सिंह जी का युद्धकालीन सैन्य ध्वज-‘मध्य में
दश-भुज माँ दुर्गा के साथ हनुमान जी और धनुर्धर लक्ष्मण जी’

सरहिन्द, लाहौर, पेशावर मुल्तान व अटक पर भगवा ध्वज
दिल्ली को अफगानों से मुक्ति दिलाने के लिए 11 अगस्त 1757 को स्वराज की मराठा सेना ने दूसरी बार दिल्ली पर ऐतिहासिक विजय पायी थी और अन्ताजी मानकेश्वर को दिल्ली का सर्वाधिकारी बना कर वे सिन्धु पार खैबर के दर्रे तक स्वराज का ध्वज फहराने आगे बढ़ गये थे।

मार्च 1758 में स्वराज की सेनाओं ने सरहिन्द के किले पर भगवा ध्वज फहरा दिया था, जहाँ गुरु गोविन्द सिंह के 7 व 5 वर्ष आयु के साहेबजादों जोरावर सिंह व फतेह सिंह को इस्लाम कबूल न करने पर 26 दिसम्बर, 1704 को जीवित दीवार में चिनवा दिया था। अप्रैल, 1758 में मल्हार राव होलकर व रघुनाथ राव ने लाहौर पर भी विजय पा कर लाहौर के किले पर स्वराज का भगवा ध्वज फहरा दिया था। लाहौर विजय पर अप्रैल 20, 1758 को वहाँ के नागरिकों ने रघुनाथ राव का वहाँ शालीमार बाग में ऊँचे मंच पर भव्य नागरिक अभिनंदन किया। इसके बाद विद्युत गति से आगे बढ़कर तुकोजी होल्कर ने अटक एवं पेशावर को विजय कर खैबर के दर्रे तक सिन्धु पार स्वराज का भगवा ध्वज लहरा दिया था। तब दक्षिण एशिया के आधे से अधिक भाग पर पेशवानीत स्वराज का भगवा ध्वज फहराने लगा था।

महाराजा रणजीत सिंह द्वारा लाहौर में राजधानी बनाना
महाराजा रणजीत सिंह ने 7 जुलाई 1799 को लाहौर पर विजय पाई और तब 12 अप्रैल 1801 को उनका वहाँ अत्यन्त भव्य अभिषेक हुआ। लाहौर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया और पश्चिम में खैबर के दर्रे तक एवं उत्तर में जम्मू कश्मीर तक अपना राज्य विस्तार किया। उन्होंने भी पचास वर्ष तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सतलज से आगे नहीं बढ़ने दिया और उनके बाद ही 1838 में उनके अल्पवयस्क पुत्र को अपदस्थ करके ही अंग्रेज लाहौर पर नियन्त्रण कर पाये थे।

-प्रोफेसर भगवती प्रकाश

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