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विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष

विश्व पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष

by हिंदी विवेक
in विशेष
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आधुनिकता की आग में झुलसती पृथ्वी

पूरे विश्व में तापमान में निरंतर हो रही वृद्धि और मौसम की लगातार बदलती करवटें आज सबसे गंभीर वैश्विक संकट के रूप में उभरकर सामने आ रही हैं। वर्ष 2025 के लिए ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ की थीम ‘हमारी शक्ति, हमारी ग्रह’ स्पष्ट रूप से इस बात का आह्वान है कि यह धरती हमारी सामूहिक शक्ति का प्रतीक है और इसे संरक्षित रखना हमारा साझा दायित्व है। यह विषय हमें याद दिलाता है कि हमने अपने विकास की दौड़ में जिस पृथ्वी को निरंतर क्षतिग्रस्त किया है, अब उसे बचाने की शक्ति भी हमारे ही हाथों में है। हालांकि विगत वर्षों में दोहा, कोपेनहेगन, कानकुन, ग्लासगो, शारम-अल-शेख जैसे अनेक वैश्विक जलवायु सम्मेलन हुए हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन की गंभीरता पर गहन चर्चा हुई और विभिन्न संकल्प भी पारित हुए किंतु जब धरातल पर इन संकल्पों के क्रियान्वयन की बात आती है तो अधिकांश देश आर्थिक विकास, औद्योगिक प्रगति और रोजगार सृजन के नाम पर उन प्रतिबद्धताओं को भूल जाते हैं।

सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ और उपभोग की संस्कृति ने पृथ्वी की प्राकृतिक संरचना को गहरा आघात पहुंचाया है। इसी का परिणाम है कि पृथ्वी आज तरह-तरह के संकट झेल रही है, कभी भीषण लू के थपेड़ों के रूप में तो कभी अप्रत्याशित वर्षा या हिमपात, भूस्खलन और समुद्री तूफानों के रूप में।हाल के वर्षों में उत्तरी ध्रुव जैसे अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों में तापमान में 30 डिग्री सेल्सियस तक की असामान्य वृद्धि दर्ज की गई, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पृथ्वी पर कुछ बड़ी गड़बड़ अवश्य हो रही है।

विभिन्न क्षेत्रों में मौसम के मिजाज में अचानक हो रहे परिवर्तन, कभी सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में बर्फबारी, बेमौसम ओलावृष्टि या एक साथ अनेक मौसमों की अनुभूति, ये सभी घटनाएं प्रकृति के बिगड़ते संतुलन की ओर स्पष्ट इशारा कर रही हैं। वन क्षेत्रों में बढ़ती आग की घटनाएं, हिमालयी क्षेत्रों की गर्माहट और शहरी ताप द्वीप प्रभाव जैसी समस्याएं, सभी इस ओर संकेत करती हैं कि यदि हमने अभी से चेतना नहीं दिखाई तो भविष्य और भी भयावह हो सकता है।
विकास के नाम पर पहाड़ों का सीना चीरकर, जंगलों को काटकर जो कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं, वे असल में विकास नहीं बल्कि विनाश की नींव रख रहे हैं। पेड़-पौधों का विनाश, जो पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, अब हमारे शहरों की अनदेखी का शिकार हो रहे हैं। कार्बन डाईऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोत्तरी, जो पैट्रोल, डीजल, कोयले और औद्योगिक अपशिष्टों से उपजी है, जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्तमान में वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा पूर्व की तुलना में 30 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है।

‘हमारी शक्ति, हमारी ग्रह’ की भावना यही कहती है कि यदि हमने इस समस्या को जन्म दिया है तो समाधान भी हमारे पास ही है। हम सभी के पास यह सामर्थ्य है कि हम न केवल अपने उपभोग के स्तर को नियंत्रित करें बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाने की दिशा में ठोस कदम भी उठाएं। यह शक्ति हमारे छोटे-छोटे प्रयासों में छिपी है, जैसे ऊर्जा की बचत, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, सौर ऊर्जा का उपयोग, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, वृक्षारोपण और प्लास्टिक के उपयोग को कम करना।
सदी की शुरुआत में वैश्विक आबादी जहां 1.7 अरब के आसपास थी, आज वह 8 अरब से अधिक हो चुकी है। इतने विशाल जनसंख्या दबाव के साथ जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवनशैली में अधिकतम सुख-सुविधाएं चाहता है तो स्वाभाविक है कि प्राकृतिक संसाधनों पर जबरदस्त दबाव पड़ेगा। यह सोच बेहद आवश्यक है कि धरती का क्षेत्रफल तो सीमित है लेकिन हमारी आवश्यकताएं असीमित होती जा रही हैं। यही कारण है कि एक तरफ जल संकट गहराता जा रहा है, दूसरी ओर भोजन और ऊर्जा की आपूर्ति में असंतुलन पैदा हो रहा है।

बढ़ते तापमान का एक अन्य गंभीर प्रभाव यह भी है कि ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ लगातार पिघल रही है, जिससे समुद्रों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है और दुनिया के अनेक तटीय शहरों के अगले कुछ दशकों में जलमग्न हो जाने की आशंका जताई जा रही है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि यही स्थिति बनी रही तो बांग्लादेश, मालदीव, इंडोनेशिया जैसे देशों के अनेक हिस्से पूरी तरह समुद्र में समा सकते हैं। भारत के कोलकाता, मुंबई, चेन्नई जैसे तटीय महानगर भी गंभीर संकट की जद में आ सकते हैं। धरती के बढ़ते तापमान के कारण खेती-बाड़ी भी संकट में है। मौसम की अनिश्चितता के कारण फसलें प्रभावित हो रही हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा का संकट गहराने लगा है। मानसून का चक्र गड़बड़ाने से सूखा और बाढ़ जैसे दो विपरीत रूप एक ही मौसम में देखने को मिल रहे हैं। ‘हमारी शक्ति, हमारी ग्रह’ की थीम हमें यह भी बताती है कि जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित वे समुदाय हैं, जो सबसे कम जिम्मेदार हैं, जैसे ग्रामीण किसान, आदिवासी समाज, द्वीपीय देश, गरीब आबादी। इसलिए यह अनिवार्य है कि जलवायु न्याय की भावना को भी साथ लेकर चला जाए।

ब्रिटेन के प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने चेतावनी दी थी कि यदि मानव जाति ने अपनी जीवनशैली और ऊर्जा की खपत के तरीकों में परिवर्तन नहीं किया तो आगामी 600 वर्षों में पृथ्वी आग के गोले में तब्दील हो जाएगी। जब इतनी स्पष्ट चेतावनियां मौजूद हैं तो सवाल उठता है कि हम किस ओर जा रहे हैं? क्या यही विकास है कि हम अपने ही अस्तित्व को संकट में डाल दें? वातावरण में संतुलन बनाए रखने वाले पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई, नदी-तालाबों को भरकर उन पर इमारतें बनाना, प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग, गाड़ियों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं को अनदेखा करना, ये सभी हमारी रोजमर्रा की गतिविधियां हैं, जिन्हें सुधारने की जिम्मेदारी हमारी है। हम सबके पास यह शक्ति है कि हम अपने ग्रह को फिर से हरा-भरा और सुरक्षित बना सकें। ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ हमें यह आत्ममंथन करने का अवसर देता है कि हमने प्रकृति से कितना लिया है और बदले में उसे क्या लौटाया है? यदि हमने उसका विनाश किया है तो अब समय है कि उसे संवारने की ओर कदम बढ़ाएं। यही ‘हमारी शक्ति, हमारी ग्रह’ का मूल मंत्र है कि धरती को बचाना केवल सरकारों या संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं बल्कि हर व्यक्ति की भागीदारी आवश्यक है।

प्रकृति का नियम है कि वह समय-समय पर चेतावनी देती है, कभी सुनामी के रूप में, कभी भूकंप, कभी भयंकर गर्मी या बर्फबारी तो कभी ग्लेशियर फटने जैसी घटनाओं से। ये सब संकेत हैं कि प्रकृति अब सहनशीलता की सीमाओं को पार कर चुकी है। यदि हमने अभी से अपने कदम नहीं रोके, अपने दृष्टिकोण और नीतियों में बदलाव नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं, जब यह सुंदर पृथ्वी हमारे लिए रहने योग्य नहीं रहेगी। जिस धरती ने हमें जीवन, वायु, जल, भोजन और संस्कृति दी है, उसका ऋण हम तभी उतार सकते हैं, जब हम उसे बचाने की दिशा में गंभीर प्रयास करें। आज आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक नागरिक अपने स्तर पर यह निर्णय ले कि वह प्रकृति से नहीं बल्कि प्रकृति के साथ जीएगा। तभी हमारी शक्ति इस ग्रह को पुनर्जीवित कर सकेगी। ‘हमारी शक्ति, हमारी ग्रह’ केवल एक थीम नहीं बल्कि एक आंदोलन है, एक ऐसा वैश्विक आंदोलन, जिसमें हर किसी को शामिल होना ही होगा क्योंकि यदि धरती सुरक्षित है, तभी जीवन सुरक्षित है और यदि जीवन सुरक्षित है, तभी भविष्य सुरक्षित है।

 

– योगेश कुमार गोयल

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