जम्मू के वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी कुमार ने जो लिखा है, एकबार पढ़िए और सबसे साझा करिए। अश्विनी जी लिखते हैं, “पिक्चर बोलती है। कैप्शन लगाना मुश्किल है। पिछले 35 सालों से मैंने कई पहलगाम जैसे कत्लेआम देखे भी है और आजतक टीवी और इंडिया टुडे में रिपोर्ट भी किए है। जनवरी 1990 में कश्मीरी पंडितों के घाटी से विस्थापन और 1990 के बाद डोडा, किश्तवाड़, भद्रवाह, रामबाण, पूंछ, राजौरी, रियासी और उधमपुर में भी इस तरह के कत्लेआम देखे और रिपोर्ट भी किए। इस तरह से कश्मीर में छत्तीस सिंह पूरा और बंधहमाहा में भी आतंकवादियों ने नरसंहार किया, लेकिन आज जो आतंकवादियों ने चुन-चुन कर टूरिस्ट्स को गोलियों से भूना वह काफी दुखी करने की बात है।
आखिर टूरिस्ट्स ने आतंकवादियों का क्या किया। वह तो यही जमीन खरीदने नहीं आए थे। कुछ घूमने आए थे और कुछ शादी करके हनीमून मनाने आए थे। कोई भी धर्म निहिते टूरिस्टों को मारने को नहीं कहता है। क्या पाकिस्तान और वहां से भेजे गए आतंकवादी यह बता पाएंगे कि यह कौन सा धर्म है। इस कपल का पिक्चर देखकर रोना आता है कि यह लोग हनीमून क्यों मनाने यहां आए थे।
पहलगाम में 28 टूरिस्ट्स को आतंकवादियों द्वारा मारे जाने इस बार पहली बार कश्मीर की जनता खुलकर आतंकवादियों के खिलाफ खुल कर बोल रही है। पहलगाम और कश्मीर के कई इलाकों में आतंकवादियों के खिलाफ प्रदर्शन किए जा रहे है। जम्मू के बाद कश्मीर घाटी में सभी ऑपोजिशन पार्टी ने भी कल घाटी को बंद करने का आह्वान किया है। पहले ऐसा नहीं होता था। कश्मीर के लोगों का कहना है कि यह इंसानियत कत्ल है। कश्मीरी लोगों की मेहमान नवाजी का कत्ल हैं यह। आज जम्मू के साथ-साथ कश्मीर के लोगों का भी मानना है कि शर्म के नाते वह रो रहे है। पीडीपी के प्रधान और पूर्व मुख्य मंत्री, महबूबा मुफ्ती और मीरवाइज उमर फारूक ने भी पहली बार कश्मीर बंद का ऐलान किया है।
हम सबको मिलकर इस कातिलाना हमले की पुरजोर मज़मत करनी चाहिए और सुरक्षा बलों की मदद करके इन पाकिस्तानी आतंकवादियों को मरवाना चाहिए। कश्मीर की आवाम के लिए यह सही मौका है कि इन पाकिस्तानी एजेंटों का खत्मा करवाना चाहिए, जिस तरह से पंजाब के लोगों ने वहां आतंकवाद खत्म करवाया था।