भूमाफिया वक्फ बोर्ड के पर वो कतर दिए गए हैं, किंतु उसके चंगुल में फंसी जमीनों को मुक्त कराना आवश्यक है। मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड कानून में सुधार कर मुस्लिम समाज के हित में बड़ा ही सराहनीय व साहसिक कदम उठाया है।
पिछले कुछ वर्षों से देशभर में वक्फ सम्पत्ति से जुड़े कई विवाद चल रहे हैं। वक्फ बिल वक्फ अधिनियम की कमियों को दूर करने और वक्फ सम्पत्ति का सही तरीके से उपयोग करने के उद्देश्य से लाया गया बिल है। इस बिल के पास हो जाने के बाद देशभर में राजनीतिक वातावरण गर्माया हुआ है। हालांकि सरकार के अनुसार इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ सम्पत्तियों के प्रबंधन में आने वाली समस्याओं को दूर करके, पारदर्शित प्रबंधन शुरू करना है, परंतु विपक्षी दलों ने इस बिल को असंवैधानिक और मुस्लिम हितों के विरुद्ध बताते हुए इसकी आलोचना की है।
वक्फ संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों से स्वीकृति मिलने से यह धारणा फिर से गलत सिद्ध हुई कि बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा के 240 सीटों पर सिमट जाने से मोदी सरकार अपनी तीसरी पारी में अपने राष्ट्रीय हितों से जुड़े हुए एजेंडे के अनुरूप कार्य करने में सक्षम नहीं होगी। वक्फ संशोधन विधेयक पर संसद की मुहर इसलिए लग सकी क्योंकि भाजपा के सभी सहयोगी दलों ने उसका साथ दिया। स्पष्ट है कि विरोधी दलों का यह दांव काम नहीं आया कि यदि भाजपा के सहयोगी दलों ने वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन किया तो उन्हें राजनीतिक हानि उठानी पड़ेगी। यह सारे दावे अत्यंत खोखले, पुराने और घिसे-पिटे हैं। नितीश कुमार, तेलुगु देशम, चिराग पासवान और एच. डी. देवेगौड़ा की पार्टियों ने बिल के संशोधन विधेयक का समर्थन किया। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे बिहार के राजनीतिक दलों ने अपना हिसाब लगा लिया है। एनडीए की अगुवाई वाला महागठबंधन अब पहले की तुलना में अधिक मजबूत हो जाएगा। साथ में यह बिल एनडीए के वोटों में वृद्धि करेगा। जेडी(यू) से कोई बड़ा चेहरा पार्टी नहीं छोड़ रहा है, इसलिए यहां कोई अंतर नहीं पड़ेगा। हालांकि वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करने वाले यह बताने में सक्षम नहीं थे कि आखिर वक्फ बोर्डों ने गरीब मुसलमान के लिए कितने स्कूल, अस्पताल आदि बनवाए। बावजूद इसके मुस्लिम नेताओं की और विरोधी पक्ष की जिद यही थी कि पुराने वक्फ कानून में किसी तरह के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है।
अनेक विपक्षी नेताओं ने वक्फ संशोधन विधेयक के कानून बनने पर उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा कर दी है। ऐसा करना उनका अधिकार है, किंतु यह कोई आदर्श स्थिति नहीं कि संसद से पारित हर कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाए। जब-जब संसद में कानून पारित होता है तो उसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाती है और जब उच्च न्यायालय में कोई कानून पारित होता है तो उसे संसद में चुनौती दी जाती है। यह आलेख लिखकर छपाई के लिए जाने तक वक्फ कानून के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर और सरकार की ओर से दोनों दलिले सुप्रिम कोर्ट सुन ली है। कोर्ट ने जमिनी हालात में कोई बदलाव न करने का आदेश देकर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और वक्फ बोर्ड से एक हप्ते तक अपने अपने जवाब देने का आदेश देकर कानूनी निर्णय प्रक्रिया 5 मई तक जाने की सम्भावना है।
राज्यसभा में इस पर लगभग 13 घंटे की लम्बी बहस हुई। सरकारी पक्ष ने अपने मुद्दे को अधिक दावेदारी के साथ लोकसभा और राज्यसभा में रखा। यहां आशा थी कि विपक्ष वक्फ बोर्ड की कमियों का समुचित उत्तर देंगे, जो कमियां इस विधेयक को लाने का कारण बनीं, परंतु मुस्लिम वक्ताओं के साथ-साथ विपक्षी नेता भी इसे असंवैधानिक बताते रहे। इसी तर्क की पुष्टि करते रहे कि वक्फ बोर्ड अल्लाह के लिए है, इस्लामी कानून के अंतर्गत है, शरीयत की विधियों से संचालित है। इसलिए इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस बहस ने कथित धर्मनिरपेक्षता का चेहरा फिर से उजागर कर दिया। इससे ही विरोधी पक्ष की बुरी तरह पराजय हुई है। इस संदर्भ में डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर का वह वक्तव्य स्मरण हो रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘इस्लाम सुधार पसंद नहीं है बल्कि वह अपनी पुरानी प्रथाओं से चिपका रहना चाहता है।’
इस्लाम तथा मुसलमान पर अत्याचार हो रहा है, ऐसा आरोप लगा कर विपक्षियों का गठबंधन इस बात को प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं। ध्यान रखना चाहिए कि मुस्लिम राजनीति गरीब मुसलमानों की आंख पर पट्टी बांधकर उनका दोहन-शोषण करती रही है। उन्हें अपने राजनीतिक हितों का मोहरा बनाती रही है। मुसलमानों को कट्टरपंथी और स्वार्थी समूहों के चंगुल से बाहर निकलना समय की मांग है। पुराने वक्फ कानून के तानाशाही रवैए के विरुद्ध सरकार ने एक उचित पहल की है, किंतु इसका भी विरोध मुस्लिम समाज के सधन वर्ग द्वारा किया जा रहा है। जुम्मे की नमाज में मुल्ले-मौलवी खूब तकरीर करते हैं कि सभी मुसलमानों की जमीन और घर छिना लिया जाएगा। टीवी वार्ता में चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं कि हमारे बाप-दादाओं की जमीनें सरकार ले लेगी, मुस्लिमों पर बहुत अत्याचार हो रहा है। कुछ वर्षों पूर्व दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन विधेयक पर भी खूब शोर-शराबा हुआ था। उस समय भी मुस्लिम मुल्लाओं द्वारा यही भ्रम फैलाने का प्रयास हो रहा था कि मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी। आज नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू हुए भी बहुत समय हो गया, परंतु क्या किसी मुस्लिम की नागरिकता छीनी गई है? इसका अर्थ है कि मुस्लिम परस्त राजनीति करने वाले वही मुस्लिम नेताओं ने अपनी राजनीति को ध्यान में रखकर यह विरोध किया।
ऐसे ही तलाक कानून मुस्लिम महिलाओं के हित में है, किंतु देश के मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम वोट की लालची विपक्षी पार्टियों ने इसका भी विरोध किया। मुस्लिम महिला को न्याय मिले, तलाक का अधिकार उसको भी हो, वह तलाक के बाद मुआवजे की हकदार बने, मुस्लिम महिला का भी अधिकार अपने पिता की सम्पत्ति में हो, यह सब इस तीन तलाक कानून के समाप्ति से ही हो गया है। दुख तो इस बात का है कि इसका भी विरोध किया गया।
आखिर यह वक्फ है क्या? इस्लाम के अनुसार वक्फ का अर्थ दान है। उनके अनुसार वक्फ की सम्पत्ति अल्लाह की सम्पत्ति है। यह सम्पत्ति लोगों के दान से बनती है। वक्फ इस्लाम में दान के रूप में देखा जाता है, परंतु भारत में आए विदेशी मुगलों की कोई जमीन ही भारत में नहीं थी तो वह दान कैसे कर सकत थे। वास्तव में अनेक इस्लामिक देशों में वक्फ बोर्ड नहीं है। भारत में वक्फ बोर्ड की स्थापना करके मुस्लिम समुदाय को जमीन दी गई। वर्तमान में देश में 32 अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं, जो वक्फ सम्पत्तियों का पंजीकरण, प्रबंधन और निगरानी करते हैं।
कांग्रेस सरकार द्वारा गठित इस मुस्लिम वक्फ बोर्ड को समय-समय पर असीमित शक्तियां दी गई; जिसमें केंद्रीय वक्फ समिति, राज्य के वक्फ बोर्ड के सदस्य सभी केवल मुस्लिम होंगे। वक्फ की सम्पत्तियों का विवरण एकत्रित करने का कार्य वक्फ बोर्ड द्वारा नियुक्त सर्वे कमिश्नर करेगा। वक्फ को किसी भी जमीन पर अधिकार जमाने का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में असीमित अधिकार था। यदि किसी की जमीन पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर दिया तो वह जमीन अल्लाह की हो गई। 1995 में वक्फ ट्रिब्यूनल आ गया जो पहले के कानून से और ज्यादा शक्तिशाली हो गया। अब जमीन किसी की भी हो यदि वक्फ बोर्ड ने कह दिया कि यह हमारी है तो आप केवल ट्रिब्यूनल में ही जा सकते हैं और ट्रिब्यूनल वर्षों तक विषय को लटकाए रखता था। आज देशभर में वक्फ बोर्डों के पास लगभग 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन है। 2009 में ये संख्या 4 लाख एकड़ थी, वर्तमान में 15 वर्षों में दोगुनी से अधिक हो गई है।
इसी का परिणाम है कि केरल के मुनंबम गांव की 400 एकड़ से ज्यादा भूमि पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा कर दिया, वही तमिलनाडु में 1000 वर्ष पुराने मंदिर को वक्फ सम्पति बता दिया। इसमें सबसे हास्यास्पद बात तो तब हुई जब वक्फ बोर्ड ने कुंभ मेले की जमीन को भी वक्फ की सम्पति करार दे दिया, जबकि इस्लाम के जन्म से लाखों वर्षों पूर्व से कुंभ का आयोजन होता आ रहा है। इसके साथ ही भारत की संसद, कई प्राचीनतम मंदिर, दिल्ली के 123 महत्वपूर्ण स्थान सभी वक्फ सम्पति है, इसकी घोषणा भी वक्फ द्वारा कई बार की गई। इसी का परिणाम है कि इंडियन आर्मी और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा लगभग 9.4 लाख एकड़ जमीन वक्फ के पास है। अब सोचिए इतनी बड़ी जमीन के मालिक मुस्लिम समाज का वक्फ बोर्ड है। ऐसे में कांग्रेस सरकार द्वारा गठित सच्चर कमीशन कहता है कि देश में मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी दयनीय है। जब बोर्ड के पास दो लाख करोड़ से अधिक की जमीन-जायदाद है तो आम मुसलमान गरीबी में क्यों जी रहा है? मुस्लिम बच्चों को अच्छी शिक्षा क्यों नहीं मिलती? मुसलमानों को बेहतर रोजगार क्यों नहीं? हर राज्य में वक्फ बोर्ड है, किंतु उन्हें अपने समाज पर ध्यान देने का समय नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति और धन में लाखों-करोड़ों की बढ़ोत्तरी हो रही है और देश का आम मुसलमान गरीब बना हुआ है। एक ओर वक्फ बोर्ड और बोर्ड के सदस्य मालामाल हो रहे हैं, वही दूसरी ओर वक्फ की जमीन की हेराफेरी कर देश में ऊंची-ऊंची इमारतें और पांच सितारा होटल बोर्ड के सदस्यों द्वारा खड़े किए जा रहे हैं। मुसलमानों के हितों के सम्बंध में चिल्लाने वाले आकाओं का यह विरोधाभास समझ से परे है।
मुस्लिम समाज के तथाकथित नेताओं एवं मुल्लों के चंगुल में फंसी लाखों एकड़ जमीन गरीब मुस्लिम समाज के कल्याण के प्रयोग में कैसे लाई जा सकती है, इस पर मोदी सरकार काम कर रही है। वक्फ की सम्पतियों के सर्वेक्षणों की निगरानी अब बोर्ड द्वारा नियुक्त सर्वे कमिश्नर से न होकर जिलाधिकारी द्वारा होगी। सरकारी सम्पतियों पर से वक्फ का नियंत्रण हटाया जाएगा या यूं कहें अनेक वक्फ सम्पतियों का पुनः निरक्षण किया जाएगा, जो सम्पत्ति जिलाधिकारी के अधीन होगी, उन पर मुस्लिम समाज कल्याण के कार्य होंगे। इसी प्रकार वक्फ जमीन से सम्बंधित किसी विवाद के लिए सीधे उच्च न्यायालय या अन्य किसी न्यायालय में याचिका के लिए स्वतंत्र है। संशोधित कानून के अंतर्गत ऐसी सम्पत्ति लेनदेन की अधिक पारदर्शी तरीके से जांच की जानी है। वर्तमान में वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम पुरुष सदस्य हैं। संशोधित कानून के अनुसार बोर्ड में मुस्लिम महिलाएं और दूसरे समुदाय के लोगों को भी नियुक्त किया जा सकेगा। इस प्रकार से पुराने वक्फ एक्ट के तानाशाही रवैए के विरुद्ध सरकार ने एक उचित पहल की है, किंतु इसका भी विरोध मुस्लिम समाज के सधन वर्ग द्वारा किया जा रहा है।
वक्फ बिल में और दो महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं जिनकी कम चर्चा हो रही है। पहला यह है कि किसी भी आदिवासी की भूमि को वक्फ भूमि घोषित नहीं किया जा सकेगा। इसका अर्थ यह है कि वनवासी क्षेत्र में आदिवासियों की जमीन पर वक्फ के नाम पर कब्जा नहीं हो सकेगा और आदिवासियों के हितों की रक्षा होगी। दूसरा यह है कि किसी भी संरक्षित स्मारक या संरक्षित भूमि को वक्फ की भूमि घोषित नहीं किया जा सकेगा। केवल यही नहीं, अभी तक जितने भी संरक्षित स्मारक या भूमि को वक्फ भूमि घोषित किया गया है, वे सब अब कानून लागू होने के बाद रद्द हो गए हैं। इसका अर्थ यह है कि जितने भी स्मारक भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित घोषित किए गए है, उन्हें वक्फ भूमि नहीं माना जाएगा। देश भर में करीब 200 ऐसे स्मारक हैं जिन पर वक्फ ने दावा किया था और वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति बताया गया था।
असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में बिल की कॉपी फाड़ते हुए आरोप लगाया कि वक्फ संशोधन बिल देश के मुसलमानों का अपमान है, जो उन्हें दोयम दर्जे की नागरिकता देता है। प्रश्न उठता है कि इतने वर्षों में औवेसी को कभी वक्फ बोर्ड का भ्रष्टाचार और मनमाना प्रबंधन दिखाई नहीं दिया? अब वक्फ सुधार बिल, जिसे लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित किया गया था, मुस्लिम समुदाय के लाभ के लिए है। इस बिल से गरीब मुसलमानों को लाभ होगा। यह बिल मुसलमानों के हित में है। जैसा कि सीएए बिल और तलाक के विरोध में मुस्लिम समाज को भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा था, वही फार्मूला अब भी चल रहा है। ‘इस्लाम खतरे में है’ कहो और गरीब मुस्लिम जनता को भ्रमित रखो।
इस सम्पूर्ण चर्चा में एक बात सामने आई कि इस देश की मोदी सरकार देशहित और जनहित में अत्यंत दक्ष होकर कार्य कर रही है तथा साहसिक निर्णय ले रही है। लोकसभा और राज्यसभा में जिस प्रकार से देश के गृह मंत्री अमित शाह और अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजीजू के साथ भाजपा की पूरी टीम ने यह मोर्चा सम्भाला, वह प्रशंसनीय है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ यह बात एक बार फिर सिद्ध हो गई। लेकिन अब, भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय करणे और सुपर संसद के रूप मे काम करने को लेकर सवाल उठाये है। उन्होने कहा की सुप्रीम कोर्ट लोक तांत्रिक ताकतों पर परमाणु मिसाईल नही दाग सकता। बात यह है कि वक्त बोर्ड का गलत धोरण सुधारने के लिए लाये हुये वक्फ संशोधन विधेयक की गर्माहट न्यायपालिका और सांसद निर्णय प्रक्रिया इस विवाद की ओर मार्गक्रमण ना करें, इस बात पर ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। वक्फ बोर्ड कि कुरीतियों से मुस्लिम समाज को योग्य दिशा में ले जाने का मुख्य उद्देश्य मन में लेकर इस विधेयक को स्थापित करने का प्रयास किया गया है। वह संदेश मुस्लिम समाज तक सही रूप में पहुंचना अत्यंत आवश्यक है।
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पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद से लेकर 24 परगना तक दंगा करने वाले मुसलमानों को यह बात समझनी चाहिए कि इस वक्फ विधेयक में पूरी तरह से मुसलमानों के भविष्य की ही चिंता की हुई है। पश्चिम बंगाल में मुसलमानों के कारण हिंसा पीड़ित हिंदुओं का दर्द ममता बनर्जी को नहीं दिखाई देता। चुन-चुन कर हिंदुओं के घरों में आगजनी और हिंसा सिर्फ ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में हो रही थी। वहां सेकुलरिज्म के नाम पर दंगाइयों को पूरी छूट दी गई है। दंगाइयों को दंगा करने की छूट क्यों? सम्पूर्ण देश देख रहा था, केवल पश्चिम बंगाल जल रहा था। मुर्शिदाबाद में हिंदुओं का जो पलायन हुआ, इस पर ममता चुप्पी साधे हुए है। ऐसा होते हुए भी पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी मुसलमानों को शांतिप्रिय कहती है। उन्हें पश्चिम बंगाल के हिंदुओं की चिंता नहीं है। केवल मुसलमान को भड़का कर अपनी वोट बैंक बनाने की चिंता है। ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में हिंदू होना अपराध है। यह बात पश्चिम बंगाल में पहली बार नहीं हो रही है।
मुर्शिदाबाद में मुस्लिम इकट्ठा होते हैं और वहां वक्फ बोर्ड के साथ गुजरात के गोधरा दंगों का भी उल्लेख किया जाता है। मुस्लिम समाज को दंगा करने के लिए उत्साहित किया जाता है। इसके पीछे किसका षडयंत्र है। स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में यह सारा कांड ममता बनर्जी के संकेत पर हो रहा है। इस दंगे के बाद ममता बनर्जी को पीड़ित हिंदुओं से मिलना चाहिए था, परंतु ममता बैनर्जी मुस्लिम मुल्ला-मौलानाओं से मिलने पहुंचती हैं, ऐसा क्यों? यह प्रश्न देश की जनता के मन में उठ रहा है।
तथ्यपरक, संतुलित एवं सकारात्मक लेख
बहुत ही परिपक्व को लेख है।।
साधुवाद!
मगर यह है कौम ऐसी है ही नहीं कि उनके हित का कोई भी काम किया जाए जो कि सामाजिक ताने-बाने के अनुरूप हो परंतु उनकी किताब से मिलना खता हो- तो इन्हें स्वीकार्य हो जाए, कत्तई नहीं होगा।।
एक मानवता के नाते उनकी सुविधाओं का ख्याल रखना संभवत: है एक आदर्श सरकार की जिम्मेदारी हो सकती है- मगर भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में तकरीबन हर प्रकारकी समस्याओं के मूल में आपको उनके ही चिन्ह दिखाई देंगे।।
और हम ऐसे राष्ट्र में रहते हैं हिंदुत्व एक समावेशी उदार विचारधारा है- अतः इसे छुटकारा तो हम नहीं पा सकते परंतु इनका नियंत्रित करना हमारे आपके आने वाली पीढ़ी के हित में होगा।।
#जनसंख्या नियंत्रण विधेयक- इकलौता उपाय है जो आपको हमको हमारे आने वाली पीढ़ी के अस्तित्व को बचाए रखने में मदद कर सकता है।। मगर इनके प्रावधान भी इस प्रकार होने चाहिए कि कोई भी इस विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे सामाजिक सुविधाओं के साथ-साथ मां-बाप दोनों को, मतदान के अधिकार से हाथ धोना पड़ेगा और इस बच्चे को भी।।
सिर्फ यही एक रास्ता होगा जब यह बच्चे पैदा करना भी बंद करेंगे और राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक भी ना होंगे।।
धन्यवाद
धन्यवाद