अहिल्याबाई होलकर ने ‘धर्म’ को अपने जीवन में उतारा। हिंदू संस्कृति में धर्म, संस्कृति और जीवन इन तीनों का विस्तार व महत्व समान है। एक को हटाने से दूसरा नहीं रहता। धर्म और जीवन का मेल हिंदू संस्कृति के आग्रह का विषय है। अहिल्याबाई के जीवन का प्रत्येक क्षण व प्रत्येक कार्य पूर्ण धर्ममय व आध्यात्मिक था। धर्म और ईश्वर की श्रद्धामय व निष्ठामय भावना को ही आध्यात्मिकता कहते हैं। यह आध्यात्मिकता ही हिंदू संस्कृति की आधार-शिला है। इसके कारण ही जीवन सार्थक व सुखद बनता है। अहिल्याबाई का जीवन पूर्णरूप से आध्यात्मिक था। इसलिए उनका जीवन इतना महान, सार्थक व अनुकरणीय बन सका।
वे सच्चे अर्थों में धार्मिक थीं इसलिए उनका जीवन इतना कर्ममय था। कर्म को हिंदू संस्कृति में बड़ा महत्व दिया गया है। कर्म को जीवन का आवश्यक लक्षण माना गया है। कर्म के बिना जीवन की स्थिति असंभव है, परंतु कर्म का धर्म के साथ मेल होना आवश्यक है। जिस कर्म में धर्म का भाव न हो, वह कर्म स्वार्थ में सना हुआ होगा और वह जीवन को सुखद नहीं बना सकेगा। ठीक विधि से किए गए धर्ममय कर्म को भारत में योग कहा गया है। इसी दृष्टि से देखा जाए तो मालूम होगा कि एक महान कर्मयोगी के समान ही अहिल्याबाई का जीवन था।
अहिल्याबाई के जीवन में जितने दुख व तूफान आए बहुत कम के जीवन में आए होंगे। उन्होंने असह्य दुख बड़े धैर्य व शांति के साथ सहन किए, क्योंकि भगवान पर उनकी अविचल श्रद्धा थी। उन पर जितने भी दुख व संकट आए, उन्हें प्रभु की इच्छा समझकर उन्होंने ग्रहण किया।
अहिल्याबाई शैव मत को मानती थीं। भगवान शिव की वे बड़ी भक्त थीं। महेश्वर में उनके घर में भी एक सुंदर शिव मंदिर था। महेश्वर में तथा देश में उन्होंने असंख्य शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार व निर्माण कराया था।
उनका राज्य भगवान श्री शंकर को समर्पित होने के कारण उनकी समस्त राजकीय आशाओं पर अपने हस्ताक्षर के बदले वे ‘श्री शंकर’ लिखती थीं। श्री शंकर आज्ञा से ही सारा राजकाज चलता था। स्वयं को वे एक निमित्त मात्र ही मानती थीं। वे एक विशाल राज्य की समस्त अधिकार संपन्न शासिका होने पर भी मन से परम विरागी थीं।
मुसलमान शासकों ने भारत के असंख्य मंदिरों व मूर्तियों को नष्ट कर अनेक तीर्थ स्थानों को भ्रष्ट कर दिया था व हिंदुओं पर भीषण अत्याचार किए थे। पर अहिल्याबाई ने मुसलमानों को अपने राज्य में किसी भी तरह का दुख नहीं होने दिया। अन्य प्रजाजनों को प्राप्त समस्त अधिकार व सुविधाएं मुसलमानों को भी प्राप्त थीं। वे अपने मत के अनुसार चलने में पूर्ण स्वतंत्र थे। अहिल्याबाई ने कई मसजिदों व मजारों का निर्माण कराया था, उन्होंने मुसलमानों को सब तरह की सहायता दी थी। कई मुसलमान फकीरों व मौलवियों को उन्होंने भूमि, मकान आदि वंश परंपरा तक की सनदों सहित दान दिए थे। राज्य की मसजिदों व मजारों को भी वे आर्थिक सहायता देती थीं। उनकी महान उदारता की कीर्ति दूर दूर तक फैल गई थी।
सच्चे अर्थों में परम धार्मिक होने के कारण उन्होंने अपने जीवन में कभी कोई अधर्म, अन्याय व अत्याचार नहीं किया। उनके जैसी धर्मपरायण, पर दुख-कातर व दोनों लोक सुधारने वाली महिलाएं इतिहास में कम ही हुई हैं। अहिल्याबाई का जीवन भारतीय नारीत्व का एक श्रेष्ठतम उदाहरण है। सर्व-कल्याणकारी हिंदू संस्कृति के पूर्ण दर्शन उनके जीवन में होते हैं।
-विचार विनिमय न्यास, केशवकुंज, झंडेवाला-दिल्ली