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वैश्विक चुनौतियों के साये में  भारत की यात्रा

वैश्विक चुनौतियों के साये में भारत की यात्रा

by अमोल पेडणेकर
in ट्रेंडींग
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विकसित भारत की ओर मार्गक्रमण करते समय अनेक वैश्विक महाशक्तियां हमारी प्रगति की राह में रोड़े अटकाने का भरपूर प्रयास अवश्य करेंगी, अत: भारत को सम्भावित संकटों को ध्यान में रखते हुए आनेवाले चुनौतियों का सामना करना होगा। जीडीपी के आंकड़ों से आगे बढ़कर वास्तविक विकास के मुद्दों को गम्भीरता से देखा जाना आवश्यक है।

 

कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में भारत ने पाकिस्तान को धोबी पछाड़ दी। इसलिए पूरी दुनिया ऑपरेशन सिंदूर को भारतीय युद्ध के एक नए युग की शुरुआत मान रही है। यदि हम युद्ध के उन चार दिनों पर दृष्टि डालें, तो भारतीय सैनिकों का युद्ध कौशल सामने आता है। उन्होंने पाकिस्तान को जिस प्रकार प्रभावी उत्तर दिया, उससे यह स्पष्ट है कि भारत ने अत्याधुनिक युद्ध के युग में प्रवेश किया है। कोई भी सैनिक युद्ध के लिए सीमा या नियंत्रण रेखा पर नहीं गया था किसी भी विमान ने शत्रु के हवाई क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया। भारत के मुख्य हथियार मिसाइल और सशस्त्र ड्रोन ही थे। संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को भारी क्षति उठानी पड़ी। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाकर अपनी शताब्दी की ओर बढ़ रहे भारत के लिए यह सम्मानजनक बात है।

इस सम्मान के साथ और एक सम्मान भारत से जुड़ रहा है। भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। कुछ वर्ष पूर्व भारत इंग्लैंड को पीछे छोड़ते हुए पांचवें स्थान पर पहुंच गया था। अब यह जापान को पीछे छोड़ते हुए चौथे स्थान पर पहुंच गया है। केवल 11 वर्षों में भारत दुनिया में 11वें स्थान से चौथे स्थान पर पहुंच गया है। केंद्र में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने ‘2047 विकसित भारत’ का लक्ष्य निर्धारित करते हुए यह छलांग लगाई है। जिसके कारण भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में वैश्विक क्षितिज पर गर्व के साथ विराजमान हुआ है।

ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने पाकिस्तान को अच्छा सबक सिखाया है। वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत का लगातार मार्ग क्रमण हो रहा है। आज महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि जैसे भारत के सामने भविष्य की उपलब्धियां हैं, वैसे ही चुनौतियां भी हैं। यदि हम आज दुनिया भर की स्थिति देखें, तो विश्व महाशक्ति अमेरिका कर्ज के पहाड़ के नीचे दब गया है। चीन भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएं डांवाडोल हो गई हैं। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व रैंकिंग में एक कदम आगे बढ़कर चौथे स्थान पर पहुंच गई है। साथ में भारत ने चंद्रयान-1 (2008), मंगलयान (2014) जैसे मिशनों की योजना बनाई, मिशन मंगलयान, जो पहले प्रयास में सफल रहा, सबसे कम लागत वाला मंगल मिशन बन गया और नासा ने भी ‘इसरो’ की प्रशंसा की। भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना। जब हम भारत की वर्तमान वास्तविकता को देखते हैं, तो एक बात निश्चित है कि भारत के विकास की गति को रोकने के लिए वैश्विक महाशक्तियां अवश्य ही प्रयास कर रही हैं। इसलिए पाकिस्तान और चीन से आगे वैश्विक स्तर पर अपनी आर्थिक एवं सामरिक चुनौतियों के बारे में भारत को सोचना उचित होगा।

भारत को पाकिस्तान अपना पारम्परिक शत्रु मानता है। इस कारण पाकिस्तान को भारत से जिस संकट का भय होता है, वह उसके अस्तित्व से जुड़ा है। साथ ही, भारत का मुख्य शत्रु चीन है। पाकिस्तान की समस्या गौण है। भारत के समक्ष सुरक्षा चुनौतियां केवल पाकिस्तान और चीन तक ही सीमित नहीं हैं, आज भारत दक्षिण एशिया से आगे विकास करने के बारे में सोच रहा है, इसलिए भारत के समक्ष चुनौतियां केवल पड़ोसी देशों से ही नहीं हैं बल्कि एशियाई स्तर पर तथा वैश्विक स्तर पर भी हैं।

चीन और पाकिस्तान दोनों से भारत के लिए अलग-अलग प्रकृति के सम्भावित संकट हैं। चीन के सम्बंध में चुनौती एक स्तर पर दोनों देशों की सीमाओं के सम्बंध में है, किंतु यदि हम उससे आगे देखें, तो हमें अनुभव होगा कि चीन से चुनौती कहीं अधिक व्यापक है। चीन ने दक्षिण एशियाई देशों के साथ राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक सम्बंधों को व्यवस्थित रूप से बढ़ाने का प्रयास किया है। इनमें मालदीव और म्यांमार से चीन की निकटता, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह पर उसका नियंत्रण, नेपाल में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी में उसका हस्तक्षेप, पाकिस्तान में स्वात बंदरगाह पर उसका नियंत्रण, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में पाकिस्तान का उपयोग, अब बांग्लादेश की नई सरकार के साथ सैन्य सम्बंध स्थापित करने का उसका प्रयास शामिल है। दूसरी ओर चीन भारत में वामपंथी समूहों को वैचारिक बीज और हथियार आपूर्ति करना जारी रखता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में राष्ट्र-विरोधी समूहों को उसका समर्थन प्राप्त है। चीन कभी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का समर्थन नहीं करेगा, इसका हालिया अनुभव पाकिस्तान द्वारा पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद देखा गया। यह सच है कि चीन वैश्विक राजनीति और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी और सुरक्षा चुनौती है, पर भारत में आज उस चुनौती का सामना करने की क्षमता प्रबल है।

पाकिस्तान से संकट की प्रकृति बहुत अलग है। भारत जानता है कि पहलगाम जैसी आतंकवादी घटनाएं फिर से हो सकती हैं। अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के मामले में पाकिस्तान और आतंकवादी समूहों के बीच घनिष्ठ सम्बंध देखा है, पर वह पहलगाम जैसी घटना को आतंकवाद कहने को तैयार नहीं है, इसे हिंसक समूहों द्वारा किया गया हमला बताता है। कश्मीर पाकिस्तान के लिए एक अधूरा एजेंडा है और पाकिस्तान में सरकार और जन नेता हमेशा कहते रहे हैं कि वे कश्मीर के लिए हमेशा लड़ेंगे। भारत यह भी जानता है कि यह नहीं माना जा सकता है कि पश्चिमी देश या अमेरिका पाकिस्तान के विरुद्ध भारत की सहायता करेंगे क्योंकि उन देशों को लगता है कि उनके राष्ट्रीय हित के लिए पाकिस्तान को करीब लाना आवश्यक है।

ऐसी स्थिति में कोई यह नहीं कहेगा कि चौथे या तीसरे स्थान पर पहुंचने का मतलब है कि भारत सामने आने वाली सारी चुनौतियां समाप्त हो गई हैं। आज भी हमारे सामने चुनौतियों की एक लम्बी श्रृंखला है। वहीं, भारत में आईटी जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर काफी कम हो रहे हैं। अर्थव्यवस्था का आकार चाहे जो भी हो, देश में निवेश वांछित दर से नहीं बढ़ रहा है। विदेशी निवेश तेजी से घट रहा है। घरेलू उद्योग से निवेश पर्याप्त गति से नहीं हो रहा है। यह दुष्चक्र बन रहा है। भारत के चौथी अर्थव्यवस्था बनने, तीसरी बनने और 2047 तक विकसित देश बनने का सपना देखते समय वर्तमान में, देश में 80 करोड़ लोगों को सरकार द्वारा मुफ्त अनाज दिया जाता है। कहीं यह हमें अपने सपनों से जगाने वाली स्थिति तो नहीं है?

विशेषकर आज भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,880 रुपए है, जो चीन के 13,690 और जापान के 33,960 से बहुत कम है। ‘विकसित भारत’ बनने के लिए हमें इस आय को 18,000 से आगे ले जाना होगा। पिछले 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय लगभग दोगुनी हो गई है। इसलिए भारत उस दिशा में आगे बढ़ रहा है। हालांकि इस वृद्धि को स्थिर और टिकाऊ बनाने के लिए निरंतर आर्थिक सुधार, सतत और समावेशी आर्थिक विकास के संदर्भ में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि प्रति व्यक्ति आय में उल्लेखनीय वृद्धि कैसे प्राप्त की जाए। इसका मतलब है उत्पादकता, मजदूरी और घरेलू आय में वृद्धि करना और अच्छे रोजगार पैदा करना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं होता है, तो भले ही हम 2047 तक विकसित भारत बन जाएं और दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बन जाएं, बावजूद इसके प्रति व्यक्ति आय 10,000 डॉलर से कम रह सकती है और हम ‘मिडिल इनकम के जाल’ में फंस सकते हैं। यदि इस विकास का वास्तविक लाभ आम लोगों तक पहुंचाना है, तो युवाओं के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने, एक मजबूत विनिर्माण क्षेत्र बनाने और सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम करने के लिए नीतिगत प्रयास करना आवश्यक है।

शहरी क्षेत्रों में हुई प्रगति राष्ट्रीय आंकड़ों में परिलक्षित होती है, किंतु ग्रामीण क्षेत्र, विशेषकर कृषि पर निर्भर क्षेत्र, तेजी से पिछड़ रहे हैं। भारत की आर्थिक वृद्धि को वास्तविक सामाजिक प्रगति नहीं माना जा सकता है, यदि यह एक निश्चित वर्ग तक सीमित रहे। इसलिए यह आवश्यक है कि जीडीपी के आंकड़ों से आगे बढ़कर वास्तविक विकास के मुद्दों को गम्भीरता से देखा जाए और उनके समाधान के लिए नीतियां और योजनाएं बनाई जाएं।

कभी हिंद महासागर में अमेरिका और सोवियत रूस के बीच प्रतिस्पर्धा थी, आज चीन हिंद महासागर क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है, अमेरिका अपनी स्थिति बनाए हुए हैं। आज भारत ने अपनी नौसेना को सुसज्जित करने के लिए व्यवस्थित प्रयास किए हैं। भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रूप में उभरा है। यानी भारत आज जिस तेज गति से वैश्विक मंच पर खुद को स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, उसे वैश्विक महाशक्तियां रोकने का प्रयास अवश्य करेंगी। ये प्रयास विभिन्न प्रकार के होंगे, जिनमें नई आधुनिक तकनीकों के हस्तांतरण पर रोक लगाना, भारत की आंतरिक राजनीतिक या सामाजिक व्यवस्था में हस्तक्षेप करने का प्रयास, पड़ोसी देशों के माध्यम से भारत को भड़काने का प्रयास या मानवाधिकारों और लोकतंत्र का आकलन करने के लिए भारत की संस्थाओं द्वारा भारत की आलोचना करना शामिल है। वर्तमान समय में ‘ब्रिक्स, जी-20 और जी-7 जैसे वैश्विक मंच पर भारत को सम्मान का दर्जा मिला है। यदि हम इस बदली हुई ‘वैश्विक व्यवस्था’ को देखें तो हमें पता चलता है कि भारत के सामने आने वाली चुनौतियों को पाकिस्तान या चीन के सीमित दायरे से बाहर निकल कर व्यापक वैश्विक स्तर पर देखने की आवश्यकता है।

वर्तमान में सबसे बड़ा डर साइबर युद्ध का है। पहलगाम हमले पर हमारी कड़ी प्रतिक्रिया के बाद भारत में 10 लाख से ज्यादा साइबर हमले हुए। हालांकि इन हमलों का असर आम लोगों पर नहीं पड़ा, पर यह इस बात का ‘ट्रेलर’ था कि कैसे हैकर्स वास्तविक युद्ध के मैदान में गए बिना ही अपनी सीट पर बैठे-बैठे किसी देश की व्यवस्था को पंगु बना सकते हैं। इसलिए अब हमें साइबर युद्ध की आहट को ध्यान से सुनना होगा। देश की सभी डिजिटल प्रणालियों की उसी तरह सुरक्षा करनी होगी, जैसे हम देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं।

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भविष्य के साइबर युद्ध की चुनौती का सामना करने के लिए बड़ी तैयारी की आवश्यकता है। रुस-युक्रेन के युद्ध में यूक्रेन ने स्पाइडर वेब के माध्यम से 117 ड्रोन के द्वारा रुस के हवाई स्थान पर हमला बोलकर 40 से ज्यादा युद्ध विमान ध्वस्त कर दिए। यूक्रेन ने दुनिया के सामने यह बात स्पष्ट कर दी है कि आधुनिक युग में युद्ध की परिभाषा बदल रही है। इजरायल-गाजा, रूस-यूक्रेन युद्ध और अब इजरायल ने इरान पर किए हुए हमले, साथ में अमेरिका की इरान को दी गई सख्त चेतावनी के कारण सम्पूर्ण विश्व महायुद्ध की कगार पर खड़ा है। आने वाले भविष्य में यह सब शांत नहीं हुआ तो विश्व के साथ भारत को भी बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

भारत में विकास की उपलब्धियों का सार्वभौमिक आनंद तब तक नहीं दिखेगा, जब तक यहां संतुलित विकास नहीं होगा। हमारी यह कल्पना होती है कि जैसे-जैसे समय आगे निकलता जाता है शिक्षा के माध्यम से समाज प्रगल्भ होता है, लेकिन यह हमारा भ्रम है। आज जिस प्रकार से हमारे समाज में दहेज, अंधश्रद्धा, महिलाओं के अपराध, जातिगत विषयों को लेकर होने वाले दंगे… जैसी बातें कौन सा संदेश प्रसारित कर रहा है। विकास का मतलब अर्थव्यवस्था का परिवर्तन नहीं है बल्कि समाज के सभी स्तर के लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन है। वैश्विक आर्थिक महाशक्ति की ओर मार्गक्रमण करते समय हमें लगातार यह ध्यान रखना होगा कि क्या हमारी सभी नीतियां इस परिवर्तन को लाने के लिए अनुकूल हो रही हैं या नहीं?

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अमोल पेडणेकर

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