धर्म के नाम पर छले गए समाज को योगी ने दिलाया न्याय
यह कथा है उस सांस्कृतिक युद्ध की, जिसमें बंदूकें नहीं चलीं, पर आत्मा छलनी हुई। यह वृत्तांत है उस विभाजनकारी षड्यंत्र का, जहां गरीब की दवा, बेटी की शादी और असहाय की मजबूरी को ईश्वर बदलने का बहाना बना दिया गया। अवैध धर्मांतरण की यह आग गुप्त थी, गहरी थी और गिरोहबद्ध थी। लेकिन जब शासन आंखें खोल दे, और प्रशासन हिम्मत बांध ले तो छल का चेहरा बेनकाब होता है और मजहबी मास्क के पीछे छिपी मंशा सलाखों के पीछे पहुंचती है। यह वह कटु यथार्थ है जिसे योगी सरकार ने दस्तावेज में बदला, अदालत में खड़ा किया और देश को बताया कि ‘दीन की दलाली’ अब दण्ड के दरवाजे पर पहुंच चुकी है।
इस्लामिक दावा सेंटर नहीं, यह ईमान की एंटी शॉप थी
उत्तर प्रदेश पुलिस, STF और ATS ने जिस जाल को पकड़ा, वह केवल अवैध धर्मांतरण नहीं कर रहा था, उनकी भारत की बहुलतावादी आत्मा को बंधक बनाने की योजना थी।
450 धर्मांतरण प्रमाण-पत्र, FCRA रहित विदेशी चंदे की फाइलें, सैकड़ों ‘भूप्रिय’, ‘कुणाल’, ‘प्रसाद’ जो अब ‘अब्दुल्ला’, ‘फराज’, ‘आदम’ बन चुके हैं। यह धर्म की नहीं, संस्कार की तस्करी थी। जहां ‘संवेदना’ के नाम पर ‘संविधान’ को कुचला गया। जहां ‘भूख’ के बहाने ‘भारत’ के बहुलतावादी स्वरूप को जख्मी किया गया।
यह धर्मांतरण नहीं, असहाय संवेदनशीलता का सुनियोजित अपहरण था। यह धर्म परिवर्तन नहीं, बहुसंख्यक समाज के मनोबल को तोड़ने की सुनियोजित चाल थी।
वे रोटी की जगह किताब पकड़ाते थे, दवा की जगह दुआ और पहचान की जगह एक नया नाम, साथ में एक कागज, जिसे कहते थे ‘धर्मांतरण प्रमाण-पत्र’। यह प्रमाण-पत्र न मन की सहमति से आया था, न आत्मा की पुकार से यह तो केवल लाचारी का दस्तावेज था।
डीजीपी राजीव कृष्णा ने बताया कि ये सिर्फ उत्तर प्रदेश में सक्रिय नहीं थे। ये दिल्ली से महाराष्ट्र, गुजरात से हरियाणा तक जनसंख्या संतुलन और सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने की साजिश कर रहे थे। ये लोग आईडीसी (इस्लामिक दावा सेंटर) जैसी संस्थाओं के जरिए निर्धन, अशक्त, दिव्यांग और असहाय लोगों को बहलाकर, आर्थिक लालच देकर, धर्म बदलवाते हैं।
ज्ञात हो वे कोई सामान्य मौलाना नहीं, वे आस्था के एजेंट, चंदे के संचालक और जनसांख्यिकी के जिहादी आर्किटेक्ट थे। उन्होंने धर्मांतरण को ‘पैकेज ऑफ पिटी’ बना दिया, जिसमें नौकरी, इलाज, शादी, पैसा और वीडियो मॉडलिंग की सुविधा शामिल थी। मूल्य नहीं, मोल-भाव था। धर्म नहीं, धंधा था।…
शासन मौन नहीं रहा, योगी ने संकल्प लिया
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा को प्रशासनिक परिपालन में ढाल दिया। उन्होंने सांस्कृतिक छल के विरुद्ध शंखनाद किया। न भाषण से, न बयान से बल्कि साक्ष्य, सतर्कता और संकल्प से। उन्होंने आदेश दिया कि धर्म की दलाली को अपराध घोषित करो और अवैध धर्मांतरण के आकाओं को दंडित करो।
एटीएस ने दस्तावेज जुटाए, एसटीएफ ने नेटवर्क तोड़ा, अभियोजन विभाग ने वैज्ञानिक साक्ष्य और कानूनी करारेपन से न्यायालय को वह तस्वीर दी, जो वर्षों तक सेक्युलर पर्दे के पीछे छुपी रही।
16 साजिशकर्ता, 16 सजाएं और एक संदेश
12 को आजीवन कारावास, 4 को 10 वर्ष की कठोर सजा और सभी पर अर्थदंड। इनमें थे उमर गौतम, मौलाना कलीम सिद्दीकी, फराज शाह, अर्सलान उर्फ भूप्रिय, प्रसाद उर्फ आदम, मन्नू, राहुल भोला… ये सब धर्म के नहीं, गिरोह के प्रचारक थे।
इनकी प्रेरणा कोई आध्यात्मिक यात्रा नहीं थी। यह आतंकी संगठनों से प्रभावित, प्रेरित और प्रायोजित सामाजिक-धार्मिक छद्म आक्रमण था।
यह निर्णय कोई न्यायालयी खबर नहीं, यह भारत की बहुसंख्यक चेतना को मिले न्याय का जीवंत प्रमाण है। अब संदेश स्पष्ट है कि नाम बदलोगे, चलेगा पर यदि नीयत बदलकर देश के खिलाफ चाल चलोगे तो जेल की कालकोठरी तुम्हारा नया मजहब होगी।
यह समूची न्यायिक कथा केवल 16 दोषियों की नहीं, यह उस दर्शन की पराजय है, जिसमें मजहब के मायने सत्ता हथियाना और आत्मा पर नियंत्रण बनाना था।
जो सरकारें ‘धर्मनिरपेक्षता’ की ओट में वोट तुष्टिकरण का व्यापार चलाती थीं, योगी ने उन्हें आईना दिखा दिया। यह केवल कानून की जीत नहीं है, यह न्याय की रक्षा में रचा गया राजनीतिक-सांस्कृतिक यज्ञ है, जिसमें साक्ष्य की समिधा, पैरवी की प्रज्वलना और शासन की तपस्या के साथ साजिशकर्ताओं की आहुति दी गई है।
अब अगर कोई फिर से धर्म के नाम पर फरेब फैलाने की कोशिश की मंशा रखता हो तो उसे याद रखना चाहिए कि यह उत्तर प्रदेश है, यहां तुलसी के भाव भी हैं और त्रिशूल की धार भी है। लिहाजा अवैध धर्मांतरण के दलदल का कोई दलाल नहीं बचेगा।
-प्रणय विक्रम सिंह