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अस्मिता का अपहरण: ‘लव जिहाद’ की ISIS शैली

अस्मिता का अपहरण: ‘लव जिहाद’ की ISIS शैली

by प्रणय विक्रम सिंह
in ट्रेंडींग
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‘मिशन अस्मिता’ उस अदृश्य मजहबी युद्ध के विरुद्ध उद्घोष है, जिसमें पंथ, प्रेम और पैसे की तिकड़ी से बेटियों को फंसाकर उनका धर्मांतरण कराया जा रहा था। यह अभियान केवल वैचारिक आक्रमण पर प्रहार नहीं, भारत की सांस्कृतिक भूगोल को अपवित्र करने की साजिश का विध्वंस है।

 

ब्रह्मा बिष्नु महेसु नहिं जानाँ, असि माया जग तें निधानाँ
जब त्रिदेव भी मायाजाल के रहस्य को न समझ सकें, तो सोचिए, जब आधुनिक युग में यह मायाजाल मजहब के मुखौटे में मोहब्बत का स्वांग रचाए, तब एक सामान्य नारी कितनी असहाय होगी। ध्यातव्य है कि जब नारी की पहचान को मिटाने का षड्यंत्र रचा जाता है, तब उसकी मर्यादा, उसके मान, उसके नाम, उसकी पूजा और पहचान पर संकट आता है और वह संकट केवल एक व्यक्ति या एक परिवार का नहीं होता, वह संकट पूरे समाज का, पूरे धर्म का, पूरे राष्ट्र का होता है।

उत्तर प्रदेश में ‘मिशन अस्मिता’ की गूंज आज उसी संकट के विरुद्ध संवैधानिक और सांस्कृतिक शंखनाद है। एक ऐसा उद्घोष जिसमें मर्यादा की रक्षा के लिए राज्य, राष्ट्र और धर्म एक ही रेखा में खड़े हो जाते हैं। ‘मिशन अस्मिता’ मुख्यमंत्री योगी के नेतृत्व में इसी धर्म-ध्वंसकारी साजिश के विरुद्ध एक राष्ट्रधर्मी रिएक्शन है। यह केवल ‘लव जिहाद’ के अभियानों पर ‘लॉ-एनफोर्समेंट स्ट्राइक’ नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की आत्मा पर हो रहे ‘साइकोलॉजिकल वारफेयर’ के विरुद्ध संविधान और संस्कृति की संयुक्त प्रतिज्ञा है।

‘मिशन अस्मिता’ उस अदृश्य मजहबी युद्ध के विरुद्ध उद्घोष है, जिसमें पंथ, प्रेम और पैसे की तिकड़ी से बेटियों को फंसाकर उनका धर्मांतरण कराया जा रहा था। यह अभियान केवल वैचारिक आक्रमण पर प्रहार नहीं, भारत की सांस्कृतिक भूगोल को अपवित्र करने की साजिश का विध्वंस है।

‘प्रेम’ के नाम पर पहचान की लूट: मजहबी गिरोह का नंगा सच
जब आगरा की दो बहनों के लापता होने की सूचना पुलिस के पास पहुंची, तब शायद ही किसी को अनुमान रहा होगा कि यह मामला केवल गुमशुदगी का नहीं, बल्कि भारत की बेटियों को धर्मांधता की दलदल में धकेलने का एक वैश्विक षड्यंत्र। नाम बदले गए, ईश्वर बदला गया और सबसे अंत में बदली गई पहचान। छांगुर बाबा उर्फ जमालुद्दीन जैसे तत्व उस मजहबी मशीनरी के दलाल हैं, जिनका मकसद मात्र कन्वर्जन नहीं, संस्कृति का संहार है। ये केवल बेटियां नहीं थीं, ये सीता की संततियां थीं, जिन्हें किसी ‘रावण’ ने नहीं, बल्कि आधुनिक माया-मोह और मजहबी मार्केटिंग रूपी ‘कालनेमि’ द्वारा अगवा किया।

धर्मांतरण नहीं, राष्ट्रांतरण DGP राजीव कृष्ण का वक्तव्य केवल एक पुलिसिया रिपोर्ट नहीं, एक सांस्कृतिक मैनिफेस्टो है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह गतिविधि सिर्फ भारतीय दंड संहिता की धारा 366 का उल्लंघन नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा पर मजहब के मुक्के का प्रहार है।
यह वास्तविक रूप से ‘हिंदू घटा, देश बंटा’ की वैश्विक साजिश का हिस्सा है। यह मामला छद्म प्रेम का मुखौटा पहनकर कनाडा, दुबई और अमेरिका से फंडिंग प्राप्त करने वाले स्लीपर मॉड्यूल्स का है, जो ‘मुस्तफा उर्फ मनोज’, ‘अली हसन उर्फ शेखर रॉय’, और ‘एस.बी. कृष्णा उर्फ आयशा’ जैसे नामों के पीछे ISIS शैली में ब्रेनवॉश और रूपांतरण की फैक्ट्री चला रहे थे।

ISIS शैली में फैला मजहबी मायाजाल
ADG अमिताभ यश के शब्दों में, ‘इस नेटवर्क की कार्यप्रणाली ISIS की सिग्नेचर स्टाइल से मेल खाती है।’ यह केवल अंतर-धार्मिक विवाह नहीं, बल्कि ब्रेनवॉश और रैडिकलाइजेशन का सुनियोजित षड्यंत्र था। गोवा की आयशा उर्फ एस.बी. कृष्णा, कोलकाता का अली हसन, दिल्ली का मुस्तफा उर्फ मनोज, आगरा के ओसामा व रहमान कुरैशी, इन सभी की योजना एक थी कि पहचान मिटाओ, पूजा बदलो, पंथ बदलो। यह कथा किसी ‘सीता’ की अपहरण-गाथा है, जहां कोई ‘हनुमान’ न होता तो वे लौट भी न पातीं।

रावण नहीं, कूटनीतिक कालनेमि
यह सीता का अपहरण नहीं, बल्कि सहमति से अपहरण की साजिश थी, जिसमें नारी की स्वतंत्रता का ढोल पीटकर उसकी संस्कृति को जकड़ने वाले ‘कालनेमि’ आजकल ‘प्रेमी’ का वेश धर रहे हैं। इनका मकसद ‘मंदिर की लड़की’ को ‘मस्जिद की बंदी’ बनाना है।
लेकिन ‘हनुमान’ की शक्ति जब ‘योगी’ के आदेश पर प्रशासन का रूप लेती है, तब “भय बिनु होई न प्रीति” की चौपाई स्वयं ‘मिशन अस्मिता’ का प्रस्थान बिंदु बन जाती है।
उत्तर प्रदेश का ‘विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021’ अब कानून नहीं, क्रांति है। यह कानून कहता है कि प्रेम की परिणति यदि उपासना बदलवाने पर हो, तो वह प्रेम नहीं, जिहाद है। अब दस साल की सजा केवल ‘धर्मांतरण’ पर नहीं, बल्कि ‘सांस्कृतिक संहार’ पर लागू होगी। हर पीड़िता की आंखों में अब FIR नहीं, न्याय का दीप जलेगा।
उत्तर प्रदेश STF, ATS और स्थानीय पुलिस की 11 टीमें, जिनके दम पर 6 राज्यों से 10 अभियुक्त गिरफ्तार हुए, वे पुलिस नहीं, रामसेना थीं। हर गिरफ्तारी उस अभिशप्त पल का प्रतिकार है, जब कोई ‘रुक्मिणी’ सोचती थी कि क्या मेरी श्रद्धा अब मेरी सहमति से छीन ली जाएगी?

अब STF केवल स्पेशल टास्क फोर्स नहीं बल्कि यह ‘संस्कृति ट्रस्ट फोर्स’ बन चुकी है। STF की टीमें केवल धरपकड़ नहीं कर रही थीं, वे डिकॉय ऑपरेशंस, डिजिटल लोकेशन ट्रेसिंग और डार्क फंडिंग लिंक की परतें भी खोल रही थीं। ट्रैपिंग से ट्रैकिंग और ट्रांसफर तक, पूरे मिशन का संचालन ‘ऑपरेशन लिंकेज’ नामक इंटरलिंक्ड मैनुअल पर आधारित था, जिसके तहत नेटवर्क में प्रयुक्त ड्यूल आइडेंटिटी डॉक्युमेंट्स, फेक सोशल प्रोफाइल्स, और बैंकिंग चैनलों की फोरेंसिक छानबीन की गई।

यह वही STF है, जिसने बीहड़ों में बागी ढूंढे थे, अब वही शहरी जंगल में जिहादी नेटवर्क का डिजिटल चेहरा उजागर कर रही है।
जिस तरह हनुमान जी अशोक वाटिका से माता सीता का समाचार लाए थे, उसी तरह STF की टीमें आज उन बेटियों को चुपचाप मौत की ओर बढ़ते रास्तों से खींचकर जीवन के आलोक में वापस ला रही हैं।

यह कोई फिल्म नहीं, फाइल नहीं, यह एक नई रामकथा का आधुनिक संस्करण है। जहां हर वर्दी एक वानर है, हर वायरटैप एक संजीवनी और हर आरोपी कालनेमि का एक मायावी रूप।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इसी संकट के समाधान हेतु ‘मिशन अस्मिता’ को लॉन्च किया गया है। यह कोई चुनावी चक्रव्यूह नहीं, यह चेतना की चौकसी है। यह वह नैतिक नरसिंह अवतार है, जो मजहबी हिरण्यकश्यप के ‘डार्क वेब’ किले को फाड़कर अस्मिता की रक्षा करेगा।

लव जिहाद नहीं, लॉस ऑफ जनरेशन

आम जन को भी यह समझना होगा कि धर्मांतरण केवल किसी और की बेटी, किसी और के घर, या किसी और की आस्था का संकट नहीं है। यह पूरे समाज की जड़ पर कुठाराघात है। यदि हम अब भी मौन रहे, यदि हम यह सोचते रहे कि यह हमारे साथ नहीं हो रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी संतानों की पहचान, परंपरा और पुरखों की पूजा सब कुछ मिट जाएगा। घर रहेगा पर गृहदेवता नहीं, नाम रहेगा पर कुलगौरव नहीं, शरीर रहेगा पर आत्मा नहीं। इसीलिए हर नागरिक को सजग प्रहरी बनना होगा, अपने परिवार, मोहल्ले, गांव, और समाज के हर कोने में यह संदेश फैलाना होगा कि यह ‘प्रेम’ नहीं, यह पहचान का प्रलय है।

जिस दिन समाज ने चुप रहना बंद किया, उसी दिन मजहबी मायाजाल का अंत आरंभ होगा। नहीं तो राम का देश रावणों की रणभूमि बन जाएगा, जहां चूड़ियां बिकेंगी, सिंदूर मिटेगा, और हवनकुंड पर हर शुक्रवार किसी नए ‘नाम’ का कब्जा होगा। अब चेतिए, नहीं तो अस्मिता का अस्तित्व ही विलुप्त हो जाएगा।

याद रखिए, अब ‘उत्तर प्रदेश’ की पुलिस में केवल डंडा नहीं, ‘धर्मरक्षक ध्वज’ भी है। अब धर्मांतरण केवल अपराध नहीं, यह राष्ट्रघात की श्रेणी में आएगा, और जो इस पथ पर बढ़ेगा, वह कानून के कठोरतम प्रहार से बच नहीं सकेगा। यह चेतावनी सिर्फ़ अपराधियों को नहीं, उस पूरे मजहबी तंत्र को है, जो ‘लव’ के नाम पर ‘लॉस ऑफ आइडेंटिटी’ की साजिश रचता है। अब ना ‘शेखर रॉय’ की मुस्कान चलेगी, ना ‘मनोज मुस्तफा’ का छल। अब छद्म प्रेम के नाम पर ‘पाकिस्तान प्रेरित परियोजना’ नहीं चलेगी। सभी कालनेमियों, छांगुरों को अब समझ लेना चाहिए कि अब उत्तर प्रदेश ‘रामकाज कीन्हें बिना, मोहि कहां विश्राम’ की भावभूमि पर खड़ा है।

 

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प्रणय विक्रम सिंह

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