“संघ की शाखा केवल एक कार्यक्रम स्थल नहीं, बल्कि वह प्रयोगशाला है जहां एक साधारण व्यक्ति को एक अनुशासित, राष्ट्रभक्त, नेतृत्व-क्षम और संवेदनशील नागरिक बनाकर उसके व्यक्तित्व को निखारने का काम होता है। संघ व्यक्ति निर्माण के माध्यम से समाज निर्माण और समाज निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण की बात करता है।”
दुनिया भर में विस्तृत और वर्तमान काल में सर्वाधिक शक्तिशाली गैर-सरकारी संगठन रा.स्व.संघ अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष को एक अभियान के रूप में मना रहा है। संघ और आरएसएस जैसे संबोधनों से चर्चित इस संगठन की अनूठी कार्यपद्धति और उसकी अप्रत्याशित सफलता को लेकर प्रायः कौतुहूल बना रहता है कि ऐसा कैसे संभव हो गया? देश की मुख्यधारा के विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय कीर्तिमान स्थापित करने वाले संघ के स्वयंसेवक कैसे तैयार होते हैं?
रा.स्व.संघ की शक्ति का मूल स्रोत क्या है और यह संगठन इसके लिए क्या करता है? इन सारे प्रश्नों का उत्तर है- शाखा। संघ के बौद्धिकों और जिज्ञासा समाधान सत्रों में वरिष्ठ अधिकारी इनके बारे में कहते हैं, ‘संघ शाखा के अलावा कोई दूसरा काम नहीं करेगा और स्वयंसेवक राष्ट्र निर्माण का कोई काम नहीं छोड़ेगा।’ इसका साफ अर्थ है कि संघ सदैव शाखा केंद्रित रहा है और आगे भी रहेगा। शाखा लगाना, उसे मजबूत करना और उसकी संख्या बढ़ाना ही संघ के प्रचारकों का प्रमुख दायित्व होता है। प्रत्येक दिन सुबह और शाम लगने वाली एक घंटे की शाखा ही संघ गंगा की गंगोत्री है। इसी शाखा में संस्कारित और प्रशिक्षित स्वयंसेवक राष्ट्र और समाज की भलाई के लिए आवश्यकता और योजना के अनुसार जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर निरंतर काम करते रहते हैं। राष्ट्र को परमवैभव तक पहुंचाने के ध्येय, संघ की प्रेरणा और वरिष्ठों के मार्गदर्शन के साथ सक्रिय ये स्वयंसेवक अपने-अपने निर्धारित क्षेत्रों में पुरुषार्थ और परिणाम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। शाखा में जाने से उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास ही इन सब कल्पनातीत सफलताओं का सबसे बड़ा आधार होता है।
डॉक्टरजी की अनूठी कार्यपद्धति- शाखा:-
रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों और उन्हें नजदीक से जानने वाले लोगों के लिए यह प्रश्न समय के साथ शांत होने लगा है, लेकिन समाज के बड़े वर्ग की यह जिज्ञासा समय-समय पर सामने आती रहती है कि शाखा के माध्यम से करोड़ों कार्यकर्ता कैसे गढ़े जाते हैं? सिर्फ एक घंटे की शाखा जाने से किसी स्वयंसेवक के व्यक्तित्व का चतुर्दिक विकास कैसे संभव हो पाता है? क्रांतिकारी, सत्याग्रही, कांग्रेस के अधिकारी आदि विभिन्न रूपों में स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के बाद हिंदुओं को संगठित करने के लिए संघ की शुरुआत करने वाले डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार की शाखा कार्यपद्धति में ऐसा क्या है कि एक सौ वर्ष बाद भी उसका जादू लगातार बढ़ता जा रहा है? रा.स्व.संघ की पहचान और रीढ़ की हड्डी कही जाने वाली और काफी सरल दिखने वाली इस शाखा के माध्यम से स्वयंसेवकों में कौन-कौन से गुण बढ़ते हैं और कैसे बढ़ते हैं? नियमित शाखा जाने से ऐसा क्या परिवर्तन होता है कि हर साल ऐसे लाखों स्वयंसेवक, हजारों गृहस्थ कार्यकर्ता और सैकड़ों पूर्णकालिक तैयार हो जाते हैं, जो संसार के सभी आकर्षणों को छोड़कर राष्ट्रसेवा का महान उद्देश्य पूरा करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। इसके साथ ही यह प्रश्न भी उठता है कि कोई नया व्यक्ति संघ की शाखा में जाए तो उसके व्यक्तिव में किन गुणों का और कैसे विकास होना प्रारंभ हो जाएगा?
…………………………………………………………. – केशव कुमार
संघ शाखा : एक घंटे में व्यक्तित्व विकास व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में संघ की १०० साल की यात्रा के बारें में जाननें के लिए हिंदी विवेक द्वारा प्रकाशित “दीपस्तम्भ” ग्रथ को खरीदें.