हमारी बातचीत में, लिखने में, बोलने में, व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक हो, हमको भारत को भारत ही कहना चाहिए। अंग्रेजी में किसी का नाम गोपाल है तो Gopal remains Gopal. इसलिए Bharat must remain Bharat. भारत को भारत ही रहना चाहिए, क्योंकि भारत, भारत है तो ही इसकी पहचान है, तभी इसका सम्मान है।
अब हमें सोने की चिड़िया नहीं, सोने का शेर बनाना है – राजेंद्र अर्लेकर जी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने कहा कि आज का विषय़ है शिक्षा में भारतीयता। भारत एक प्रॉपर नाउन है और इसका ट्रांसलेशन नहीं करना चाहिए। फिर भी इंडिया देट इज़ भारत है। लेकिन भारत, भारत है। इसीलिए हमारी बातचीत में, लिखने में, बोलने में, व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक हो, हमको भारत को भारत ही कहना चाहिए। अंग्रेजी में किसी का नाम गोपाल है तो Gopal remains Gopal. इसलिए Bharat must remain Bharat. भारत को भारत ही रहना चाहिए, क्योंकि भारत, भारत है तो ही इसकी पहचान है, तभी इसका सम्मान है। यदि हम हमारी पहचान भूल जाते हैं, तो जो भी विशिष्ट गुण आप में है, इसके बावजूद आपको कभी सम्मान नहीं मिलेगा, सुरक्षा नहीं मिलेगी। यही नियम है। आप जो हैं, उसमें उत्कृष्ट करो। हमको भारतीयता शिक्षा में लानी है तो भारत को पहले जानना पड़ेगा और हमें हमारी identity पर भरोसा करना पड़ेगा। इसीलिए भारत को जानो, भारत को मानो, भारत के बनो – यही भारतीयता है।
पू. सरसंघचालक जी शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़, केरल में शिक्षा में भारतीयता विषय पर आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रम में स्थानीय शिक्षाविदों व नागरिकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देखा जाए तो Earning and Learning का बहुत संबंध नहीं है। शिक्षा क्यों चाहिए? मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए। मनुष्य के मन, वचन, कर्म से जो express होता है वो शिक्षा है।
पू. सरसंघचालक जी ने कहा कि शिक्षा अपना पेट ठीक से भरना, अपने परिवार का पालन करना, ये तो सिखाती ही है, लेकिन भारत की शिक्षा मनुष्य को अन्य लोगों के लिए जीना सिखाती है। शिक्षा का अर्थ केवल विद्यालय ही नहीं है, वह घर के संस्कारों पर भी निर्भर करती है। समाज का भी महत्वपूर्ण दायित्व है। इसीलिए संस्कार बहुत महत्वपूर्ण हैं, संस्कारों से आचरण बनता है, आचरण से जीवन की उन्नति होती है।
केरल के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर जी ने कहा कि हम सभी यहाँ विकसित भारत के मार्ग पर कैसे चलेंगे, उस पर चर्चा करने आए हैं। विकसित भारत की हमारी संकल्पना केवल आर्थिक से संबंधित नहीं है, यह सर्वांगीण विकास की बात है और इसमें शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इतने वर्षों से हम कोलोनियल थॉट (औपनिवेशिक विचार) लेकर आगे बढ़ रहे थे, अब यह शिक्षा नीति भारत की शिक्षा को डिकोलोनाइज़ करने का पहला प्रयास है। परिवर्तन तो आ रहा है, बस हमें सोचना है कि हम इस परिवर्तन का हिस्सा हैं या नहीं। हमें स्वयं से प्रश्न करना है, नहीं तो विकसित भारत का सपना, सपना ही रहेगा।
उन्होंने कहा कि ऐसा कहते हैं कि भारत पहले सोने की चिड़िया था, और इसे फिर से सोने की चिड़िया देखना चाहते हैं। लेकिन मेरा विचार थोड़ा अलग है। हमने देखा है कि भारत ने सोने की चिड़िया बनकर क्या झेला, बाहर से लोग आए, आक्रमण किया और हमारी संस्कृति को नष्ट किया। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी भारत को सोने की चिड़िया नहीं, सोने का शेर देखना चाहती है। और इस शेर की दहाड़ पूरी दुनिया सुनेगी।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि केरल में हम इसीलिए कार्यक्रम कर रहे हैं क्योंकि यह भूमि देश को सनातन संस्कृति से जोड़ने वाले आदि शंकराचार्य तथा नारायण गुरु की जन्मस्थली है। भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना है तो उसका रोडमैप शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 ने यह स्पष्ट किया है, यह स्वतंत्र भारत की पहली पॉलिसी है जिसका आधार भारतीयता है। किसी भी देश की शिक्षा नीति का आधार उसका कल्चर और डेवलपमेंट ही होना चाहिए।
ज्ञान सभा का उद्देश्य शिक्षण संस्थाओं को – Come Together, Think Together and Work Together की कल्पना के साथ जोड़ना है और आज केरल के शिक्षाविद और केरल की सरकार से आह्वान करता हूँ कि हम आपके साथ देश की शिक्षा में परिवर्तन लाने के लिए तैयार हैं। आप भी साथ आइए।
न्यास के राष्ट्रीय संयोजक ए विनोद ने बताया कि आयोजन में केरल के प्रमुख शिक्षाविद, प्राध्यापक, शिक्षक, छात्र उपस्थित थे। कार्यक्रम में मुख्य रूप से भारतीय विश्वविद्यालय संघ की महासचिव व न्यास की अध्यक्षा डॉ. पंकज मित्तल, कोचीन शिपयार्ड के सदस्य मधु नायर, एआईसीटीई के चेयरमैन सीतारामन जी उपस्थित रहे।