हमको मिश्री खिलाने वाले, पाथेय कण का नवीनतम अंक बांटने वाले, युवावस्था से निरन्तर हमारे संरक्षक, सहज, सरल, सर्वथा उपलब्ध, निर्लिप्त, निस्पृह, निरंहकारी हमारे माणकजी भाईसाहब नहीं रहे। मन उद्विग्न है, पुरानी पीढ़ी के हमारे अधिकांश प्रचारक हमसे दूर हो रहे हैं। हमें संभालने वाले वरिष्ठ पीढ़ी के वयोवृद्ध माणक जी भाईसाहब जैसा स्नेह अब शायद मिल पाना इस जीवन में तो संभव नहीं है।
दो वर्ष पूर्व पाथेय कण कार्यालय पर तीन-चार घंटे के लिए गया था, वहीं अल्पाहार, भोजन इत्यादि भी किया। माणक जी भाईसाहब ने इतने उत्साह और प्रेम से स्वागत किया, बहुत सारी बातें की। पुरानी स्मृतियों से लेकर पाथेय कण से जुड़े नए कार्यकर्ताओं, प्रचारकों सहित आगे की योजनाओं पर उन्होंने बात की। मेरे बारे में कई चिंताएं और सलाह भी प्रकट की।
मुझे खूब आशीर्वाद, स्नेह और मार्गदर्शन दिया, पर अब एक ऐसा स्थान जहां से निरन्तर साधना, तपस्या तथा स्थिरप्रज्ञता की अविरल प्रेरणा प्राप्त होती थी, प्रेम, स्नेह और वात्सल्य का अभिभूत कर देने वाला प्रवाह हृदय को आत्मिक आनन्द की यथार्थ अनुभूति से अनुप्राणित करता था, वो हमने खो दिया है।
माणक जी भाईसाहब कभी नहीं भुलाए जा सकते हैं, संघ कार्य की नींव में विसर्जित अनाम पुष्प जब-जब भी स्मरण किए जाएंगे, माणक जी अपनी दैदीप्यमान आभा के साथ हमें संघ कार्य की सतत साधना, मौन तपस्या तथा आत्म विसर्जन की साकार प्रतिमा के रूप में खड़े नजर आयेंगे।
कोटि-कोटि नमन, मौन तपस्वी माणक जी भाईसाहब…
– अनुराग सक्सेना