भारत की समुद्री शक्ति लगातार नई ऊंचाईयों को छू रही है। 31 जुलाई को जब भारतीय नौसेना को स्वदेशी रूप से निर्मित शक्तिशाली मल्टी-रोल स्टील्थ गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट ‘आईएनएस हिमगिरि’ सौंपा गया तो भारत की समुद्री ताकत को और निर्णायक बढ़त मिली। नौसेना में ‘हिमगिरि’ युद्धपोत के शामिल होने से न केवल भारत की ब्लू-वॉटर नौसेना बनने की दिशा में प्रगति और तेज हुई है बल्कि चीन तथा पाकिस्तान की संयुक्त समुद्री रणनीतियों के समक्ष भी एक मजबूत जवाब तैयार हुआ है। आज भारत केवल एक सैन्य शक्ति नहीं बल्कि समुद्री शक्ति बनने की दिशा में भी आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है, जहां सुरक्षा के साथ-साथ घरेलू औद्योगिक और तकनीकी क्षमता का विस्तार हो रहा है।
‘आईएनएस हिमगिरि’ प्रोजेक्ट-17ए के तहत विकसित किए जा रहे सात अत्याधुनिक युद्धपोतों में से तीसरा है, जिसे कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जीआरएसई) ने तैयार किया है। प्रोजेक्ट-17ए भारत की नौसैनिक शक्ति को आत्मनिर्भर और अत्याधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है, जिसकी कुल अनुमानित लागत 45,000 करोड़ रुपये है और इसके अंतर्गत कुल सात स्टील्थ फ्रिगेट्स का निर्माण किया जाना है, जिसमें चार मझगांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल), मुंबई में और तीन जीआरएसई, कोलकाता में बनाए जा रहे हैं। इनमें से आईएनएस नीलगिरी और आईएनएस उदयगिरि को पहले ही नौसेना को सौंपा जा चुका है, शेष चार युद्धपोतों को 2026 के अंत तक सौंप दिया जाएगा।
जहां तक ‘हिमगिरि’ की बात है, यह भारत के शिपबिल्डिंग इतिहास में एक मील का पत्थर है। आईएनएस हिमगिरि जीआरएसई द्वारा तैयार किया गया 801वां पोत है, जो इस सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी का अब तक का सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से सबसे परिष्कृत पोत भी है। 149 मीटर लंबा और 6670 टन वजनी यह युद्धपोत न केवल भारत की तकनीकी क्षमता का प्रतीक है बल्कि आत्मनिर्भर भारत अभियान का भी जीवंत उदाहरण है। इसमें 75 प्रतिशत से अधिक उपकरण भारत में ही निर्मित किए गए हैं और इसका डिजाइन नौसेना के वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो द्वारा पूरी तरह स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। यह न केवल सतह से सतह और सतह से हवा में मार करने की क्षमता रखता है बल्कि इसकी गहराई में हमला करने की क्षमताएं भी इसे समुद्री युद्ध के हर पहलू के लिए तैयार बनाती हैं। इसे सबसे नवीनतम हथियार प्रणालियों, अत्याधुनिक सेंसर और उन्नत प्लेटफॉर्म मैनेजमेंट सिस्टम से लैस किया गया है। इसका डिजाइन ऐसा रखा गया है, जिससे इसकी रडार दृश्यता अत्यंत कम हो और यह आसानी से दुश्मन की नजरों से बचा रह सके।
आईएनएस हिमगिरि एडवांस गाइडेड मिसाइलों से लैस है, जिसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और बराक-8 लॉन्ग रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल प्रणाली शामिल है। साथ ही यह वरुणास्त्र टॉरपीडो और एंटी-सबमरीन रॉकेट लॉन्चर से भी सुसज्जित है, जिससे यह सतह, वायु और पनडुब्बी हमलों का जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है। इसके अलावा अत्याधुनिक इलैक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम, टारगेट एक्विजिशन रडार, आधुनिक सोनार सिस्टम, कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम और एईएसए रडार तकनीक इसे एक अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म बनाते हैं। यह युद्धपोत पूर्णतः स्वचालित युद्ध प्रबंधन प्रणाली से लैस है। इस युद्धपोत की मारक क्षमता का सबसे प्रमुख स्तंभ है ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, जिसकी नवीनतम संस्करण की रेंज 450 किलोमीटर तक बढ़ा दी गई है। वायु रक्षा के लिए तैनात की गई इस्राइली मूल की बराक-8 मिसाइल प्रणाली 70 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन के विमानों, ड्रोन, हेलीकॉप्टरों और क्रूज मिसाइलों को निशाना बना सकती है। थ्री-डायमेंशनल युद्ध क्षमता से लैस यह फ्रिगेट जमीनी लक्ष्यों पर हमले, वायु रक्षा और पनडुब्बी रोधी अभियानों को अंजाम देने में सक्षम है। साथ ही, इसमें अत्याधुनिक हेलीकॉप्टर हैंगर और डेक भी है जहां से मल्टी-रोल नौसेना हेलीकॉप्टर संचालित किए जा सकते हैं।
‘हिमगिरि’ में कम क्रू के साथ संचालन के लिए ऑटोमेशन पर विशेष ध्यान दिया गया है।
यह युद्धपोत डीजल इंजन और गैस टर्बाइन के संयोजन से संचालित होता है, जिससे यह लगभग 30 नॉट्स (करीब 55 किमी/घंटा) की रफ्तार प्राप्त कर सकता है। इसमें 225 नौसैनिकों और अधिकारियों के लिए आरामदायक आवास की व्यवस्था है और यह दो नौसैनिक हेलीकॉप्टरों को ले जाने और संचालित करने में सक्षम है। भारतीय नौसेना के अनुसार, ‘हिमगिरि’ भारत की नौसैनिक इंजीनियरिंग में आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। भारत की समुद्री रणनीति में ‘हिमगिरि’ की भूमिका केवल सामरिक नहीं, भू-राजनीतिक भी है। चीन द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में लगातार अपनी उपस्थिति बढ़ाने, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार और अफ्रीकी तटवर्ती देशों में पोर्ट्स और बेस स्थापित करने की रणनीति का भारत के पास एकमात्र संतुलित उत्तर है, अपनी नौसेना को इतना सक्षम बनाना कि वह किसी भी प्रकार की घेराबंदी या आक्रामक रणनीति का जवाब दे सके।
वर्तमान में चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी नौसेना है, जिसमें 370 से अधिक युद्धपोत हैं। वहीं पाकिस्तान, चीन के सहयोग से आधुनिक फ्रिगेट्स, पनडुब्बियों और ड्रोन युक्त नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ा रहा है। इन दोनों देशों के गठबंधन ने भारतीय रणनीतिक हलकों में चिंता की लहरें पैदा की हैं। ऐसे में हिमगिरि जैसे फ्रिगेट्स भारतीय नौसेना को केवल तकनीकी बढ़त ही नहीं, हिंद महासागर में संतुलन साधने के लिए ताकत भी प्रदान करते हैं। ये युद्धपोत समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा, समुद्री डकैती रोकने, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत अभियानों में भी उपयोगी सिद्ध होते हैं। भारत 95 प्रतिशत से अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्री मार्गों के माध्यम से करता है, ऐसे में सुरक्षित समुद्री गलियारे न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक प्राथमिकता भी हैं। भारतीय नौसेना के पास आज कुल 140 युद्धपोत हैं, जिनमें विमान वाहक पोत, विध्वंसक, फ्रिगेट्स, कोरवेट्स, पनडुब्बियां और सहायक पोत शामिल हैं। आने वाले वर्षों में इसमें और तेजी से वृद्धि होगी, क्योंकि 58 से अधिक युद्धपोत और पनडुब्बियां वर्तमान में निर्माणाधीन हैं। इन पर कुल 1.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की लागत आने वाली है जबकि 31 और युद्धपोतों के लिए योजना बनाई जा रही है।
यह विस्तार और आधुनिकीकरण केवल सैन्य बल बढ़ाने तक सीमित नहीं है बल्कि इससे रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी बल मिल रहा है। रक्षा मंत्रालय और नौसेना द्वारा अब जो भी नए पोत और प्रणाली बनाई जा रही हैं, उनमें ‘मेड इन इंडिया’ को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है, जिसका असर यह हुआ है किजीआरएसई, एमडीएल और गोवा शिपयार्ड लिमिटेड जैसे भारतीय शिपयार्ड्स वैश्विक मानकों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। हिमगिरि को नौसेना में शामिल करना इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह केवल एक युद्धपोत नहीं बल्कि भारतीय रक्षा निर्माण की क्षमता, नौसैनिक डिजाइन में नवाचार और संचालनात्मक दक्षता का प्रतीक है। यह भविष्य के समुद्री युद्धों के स्वरूप को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, जहां साइबर अटैक, ड्रोन, हाइपरसोनिक मिसाइलें, पनडुब्बियों के जरिए घातक हमले, समुद्री निगरानी, और ब्लॉकिंग रणनीतियां जैसे बहु-आयामी खतरे होते हैं।
भारत अब केवल हिंद महासागर क्षेत्र में ही नहीं, अफ्रीका से लेकर दक्षिण चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत तक अपनी नौसेनिक उपस्थिति मजबूत कर रहा है। फ्रांस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ साझा नौसैनिक अभ्यास, संयुक्त निगरानी अभियान, समुद्री सहयोग और क्वाड जैसी रणनीतिक साझेदारियों ने भारत की स्थिति को एक जिम्मेदार और शक्तिशाली समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित किया है। कुल मिलाकर, ‘हिमगिरि’ का भारतीय नौसेना में शामिल होना केवल एक सैन्य उपलब्धि नहीं, राष्ट्रीय आत्मबल, तकनीकी श्रेष्ठता और आत्मनिर्भरता की मिसाल है। यह भारत की उस रणनीतिक सोच का प्रतिबिंब है, जिसमें शक्ति प्रदर्शन के साथ संतुलन साधना, सहयोग के साथ प्रतिस्पर्धा करना और सुरक्षा के साथ आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देना शामिल है। आने वाले वर्षों में जब ‘उदयगिरि’, ‘धौलागिरि’, ‘शिवालिक’ जैसे अन्य प्रोजेक्ट-17ए फ्रिगेट्स नौसेना में शामिल होंगे, तब यह पूरी श्रृंखला भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा में एक अभेद्य दीवार बनकर उभरेगी।
– योगेश कुमार गोयल