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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वतंत्रता आंदोलन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वतंत्रता आंदोलन

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
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संघ की प्रतिज्ञा थी- “मैं हिन्दूराष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ का घटक बना हूँ”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक के बारे में अज्ञानता से घिरे लोग अकसर यह प्रश्न पूछते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में संघ की क्या भूमिका रही है? कुछ लोग इससे भी आगे बढ़ जाते हैं और पूछते हैं कि संघ के किसी एक कार्यकर्ता का नाम ही बता दीजिए, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया हो? संघ की स्थापना जिन्होंने की, वे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार स्वयं ही जन्मजात देशभक्त थे। डॉ. हेडगेवार क्रांतिकारी भी रहे, कांग्रेस में रहकर राजनीतिक संघर्ष किया और जेल भी गए। बाद में, देश की सर्वांग स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को स्थायी बनाने के उद्देश्य से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।

डॉ. हेडगेवार अकेले नहीं हैं, अपितु स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेनेवाले संघ के ज्ञात-अज्ञात कार्यकर्ताओं की लंबी शृंखला है। जो संगठन अपने कार्यकर्ताओं को यह शपथ दिलाता हो कि “मैं हिन्दूराष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ”, उसने कितने ही लोगों के मन में स्वतंत्रता प्राप्ति का भाव भरा होगा, उसकी सहज कल्पना की जा सकती है।

भारत में प्रतिज्ञा का बहुत महत्व है। हमें भीष्म प्रतिज्ञा का स्मरण है। राजा हरिशचंद्र की सत्य बोलने की प्रतिज्ञा ध्यान है। मुगलिया सल्तनत के अत्याचार के विरुद्ध महाराण प्रताप की प्रतिज्ञा को कौन भूल सकता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने शिव को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा करके ‘स्वराज्य’ की नींव रखी, जिसे साकार करने में संपूर्ण समाज प्राणपण से जुट गया। संघ के स्वयंसेवक भी इसी भाव के साथ प्रतिज्ञाबद्ध होते हैं कि वह जो प्रतिज्ञा ले रहे हैं, उसको पूर्ण करने में अपना सर्वस्व देंगे और प्रतिज्ञा को आजन्म निभाएंगे।

मार्च 1928 में नागपुर के निकट एक पहाड़ी पर स्वयंसेवकों को एकत्र करके, भगवाध्वज के समक्ष प्रतिज्ञा का पहला कार्यक्रम सम्पन्न कराया गया था। देश की पूर्ण स्वतंत्रता एवं विकास के लिए स्वयंसेवकों को वीरव्रती बनाने के निमित्त आयोजित इस प्रथम कार्यक्रम में 99 स्वयंसेवकों ने प्रतिज्ञा की थी। इस अवसर पर डॉ. हेडगेवार ने संघ के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए जो भाषण दिया, वह स्वतंत्रता प्राप्ति की संघ की आकांक्षा को स्पष्ट तौर पर व्यक्त करता है। उन्होंने कहा- “हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वाधीनता है। संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य के लिए हुआ है”। इस स्पष्ट अभिव्यक्ति के बाद कहने के लिए कुछ और भी बचता है क्या? यह भी समझना होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता अपनी नित्य प्रार्थना में कहते हैं कि इस राष्ट्र को परम वैभव पर लेकर जाना है। क्या कोई पराधीन राष्ट्र परम वैभव पर जा सकता है? स्पष्ट है कि भारत की स्वतंत्रता का लक्ष्य संघ की स्थापना में निहित था।

डॉक्टर साहब ने 1929 में वर्धा में आयोजित प्रशिक्षण वर्ग में भी स्वयंसेवकों एवं नागरिकों की एक सभा में प्रखरता के साथ कहा- “ब्रिटेन की सरकार ने अनेक बार भारत को स्वतंत्र करने का आश्वासन दिया है, परंतु वह झूठा साबित हुआ। अब यह साफ हो गया कि भारत अपने बल पर स्वतंत्रता प्राप्त करेगा”। याद रहे कि डॉ. हेडगेवार ने महात्मा गांधी के आह्वान पर ‘नमक सत्याग्रह’ में शामिल होकर विदर्भ प्रांत में 1930 में ‘जंगल सत्याग्रह’ किया। इस आंदोलन में उनके साथ अनेक प्रमुख स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया। सत्याग्रहियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। डॉक्टर साहब को नौ माह का कठोर कारावास दिया गया। इससे पूर्व 1921 के आंदोलन में भी डॉक्टर साहब को जेल की सजा हुई थी। महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को मध्य भारत में सफल बनाने के लिए स्वयंसेवकों ने अथक प्रयास किया। संघ के सरकार्यवाह जीएम हुद्दार, नागपुर के संघचालक अप्पा साहेब हलदे, सिरपुर के संघचालक बाबूराव वैद्य, संघ के सरसेनापति मार्तंडराव जोग के साथ संघ के अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं के आंदोलन में शामिल होने के कारण उन्हें चार-चार माह का कारावास मिला।

अपनी स्थापना के कई वर्षों बाद कांग्रेस को जनमानस के दबाव के कारण 31 दिसंबर, 1929 को लाहौर में रावी के तट पर पहली बार ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पारित करना पड़ा। याद रहे कि डॉ. हेडगेवार ने 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में ही पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित कराने का प्रयास किया था। उन्होंने कांग्रेस की प्रस्ताव समिति के सामने सुझाव रखा था कि कांग्रेस का उद्देश्य भारत को पूर्ण स्वतंत्र कर भारतीय गणतंत्र की स्थापना करना और विश्व को पूंजीवाद के चंगुल से मुक्त करना होना चाहिए। बहरहाल, सम्पूर्ण स्वतंत्रता का उनका सुझाव कांग्रेस ने 9 वर्ष बाद 1929 के लाहौर अधिवेशन में स्वीकृत किया। कांग्रेस का यह निर्णय संघ के घोषित उद्देश्य के अनुरूप था। इसलिए इससे आनंदित होकर प. पू. सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं को 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस का अभिनंदन करने, राष्ट्रध्वज का वंदन करने और स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए निर्देशित किया। साथ ही यह भी कहा कि शाखाओं पर भाषण करके स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थ एवं महत्व को समझाया जाए। प. पू. सरसंघचालक के निर्देशानुसार संघ की सभी शाखाओं पर 26 जनवरी, 1930 को सायं 6 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।

संघ के स्वयंसेवकों ने 1942 के ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलन में भी सहभागिता की। 8 अगस्त, 1942 को मुंबई के गोवलिया टैंक मैदान पर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधीजी ने आंदोलन की घोषणा की। दूसरे दिन से ही देशभर में आंदोलन प्रारंभ हो गया। विदर्भ में बावली (अमरावती), आष्टी (वर्धा) और चिमूर (चंद्रपुर) में हुए आंदोलनों में संघ के स्वयंसेवकों ने ही नेतृत्व किया। चिमूर के समाचार बर्लिन रेडियो पर भी प्रसारित हुए। यहां के आन्दोलन का नेतृत्व कांग्रेस के उद्धवराव कोरेकर और संघ के अधिकारी दादा नाईक, बाबूराव बेगडे, अण्णाजी सिरास ने किया। चिमूर के इस आन्दोलन में अंग्रेज की गोली से एकमात्र मृत्यु बालाजी रायपुरकर की हुई, जो संघ स्वयंसेवक थे। इस आंदोलन के अंतर्गत राजस्थान में प्रचारक जयदेवजी पाठक, आर्वी (विदर्भ) में डॉ. अण्णासाहब देशपांडे, जशपुर (छत्तीसगढ़) में रमाकांत केशव (बालासाहब) देशपांडे, दिल्ली में वसंतराव ओक एवं चंद्रकांत भारद्वाज और पटना (बिहार) में अधिवक्ता कृष्ण वल्लभप्रसाद नारायण सिंह (बबुआजी) ने भाग लिया।

अंग्रेज सरकार संघ के बढ़ते प्रभाव से घबरा गई थी। इसलिए उसने संघ पर आंशिक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए ताकि संघरूपी आंदोलन को रोका जा सके। गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेज सरकार ने सबसे पहले 15 दिसंबर, 1932 को एक सर्कुलर निकालकर सरकारी कर्मचारियों को संघ में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया। वहीं, 5 अगस्त, 1940 को ब्रिटिश सरकार ने संघ की सैनिक वेशभूषा और प्रशिक्षण पर पूरे देश में प्रतिबंध लगा दिया। क्योंकि सरकार को गुप्तचर रिपोर्ट में यह जानकारी मिलने लगी थी कि संघ के स्वयंसेवक पूर्ण स्वतंत्रता की ओर तेजी से अग्रसर हैं। राष्ट्रीय आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर सहभागिता कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संघ के प्रचारक बाबा साहब आप्टे ने 12 दिसंबर, 1943 को जबलपुर में गुरुदक्षिणा उत्सव पर स्वयंसेवकों से कहा- “अंग्रेजों का अत्याचार असहनीय है, देश को स्वतंत्रता के लिए तैयार हो जाना चाहिए”। संघ अपनी स्थापना के समय से ही देश की स्वतंत्रता का स्वप्न लेकर चल रहा था। भारत की सर्वांग स्वतंत्रता के लिए संघ के स्वयंसेवक प्रतिज्ञाबद्ध थे इसलिए अवसर आने पर उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में सहभागिता की, जेल गए और बलिदान भी दिया।

-लोकेन्द्र सिंह

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