न फूल चढ़ा न, न दीप जला,
न उनकी कोई स्मृति शेष!
बस दु: खद कहानी बंटवारे की
गुमनामों की याद दिलाती।
पुछो उस की पीड़ा
जिसने झेला विस्थापन का दंश!
काँप उठता है अंतस्तल;
जब आता है आजादी का पूर्व दिवस॥
देश के विभाजन पर एक कवि ने कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया हुआ हम भारतीयों का दर्द है। हम भारतीयों को प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस के पूर्वसंध्या पर देश के विभाजन कि दर्द भरी याद गहराइयों से भरा दंश देती है। हम भारतीय आज़ादी का शुद्ध आनंद नहीं ले पा रहे हैं। कारण 15 अगस्त 1947 को, आज़ादी का जश्न मनाते समय भारत का एक बड़ा हिस्सा रक्तरंजित इतिहास लिख रहा था। तत्कालीन पश्चिमी पंजाब, सिंध, पूर्वी बंगाल जैसे प्रांतों से, हज़ारों शरणार्थी अपना सब कुछ छोड़कर
क्योंकि, कई हिंदू वही पाकिस्तान में या यात्रा के दौरान ही मारे गए। कई महिलाओं का अपहरण, बलात्कार कर लिया गया, जबकि कईयों ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के हाथों में पड़ने के बजाय शहादत स्वीकार कर ली। कई हिंदू- सिख युवाओं को निर्ममता से मारा गया।
यह बहुत भयानक एवं मानवता को कलंकित करने वाली घटन थी। लगभग 20 से 25 लाख हिंदू – सिख मारे गए थे। डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना सब कुछ छोड़कर अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा।
आज़ादी के बाद इस पूरे रक्तरंजित इतिहास को हमारे सामने आने ही नहीं दिया गया। ऐसा माहौल जान-बूझकर किया गया था, यह इतिहास धीरे-धीरे भुलाया जा रहा था। नई पीढ़ी विभाजन, उसके कारण भारत को मिले दर्दनाक आघात, विस्थापित परिवारों, हमसे बिछड़े हमारे ‘पूजा स्थलों’ को भूलती जा रही थी। किसी भी आत्मनिर्भर राष्ट्र में, ऐसे इतिहास को भुलाना उचित नहीं है। इसी के कारण गत ४ सालों से देश में विभाजन विभाषिका आंदोलन के माध्यम से विभाजन के समय के सत्य को समाज के सामने प्रस्तुत करने का काम समाज के माध्यम से ही हो रहा है । आज की वर्तमान युवा पीढ़ी को सत्य मालूम होना चाहिए कि इस खूनी बंटवारे के लिए कौन जिम्मेदार है?
इतिहास को झुठला कर कोई भी व्यक्ति या देश कभी भी आगे नहीं बढ़ सकते।
जब यह विभाजन का सत्य की वर्तमान के युवाओं को जानकारी हो रही है की मुस्लिम तुष्टिकरण और कांग्रेसियों के सत्ता के लालच के कारण देश का विभाजन हुआ है । यह खतरनाक बात है की सत्ता के लिए कांग्रेस ने विभाजन का स्वीकार किया। कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग ने विभाजन के पत्र पर दस्तखत की है न की आरएसएस और हिंदू महासभा ने। देश का विभाजन यह दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी थी।
लेकिन आज जब बंटवारे के संदर्भ में कांग्रेस के उत्तरदायित्व को लेकर चर्चा चलती है, तो कांग्रेसियों का अजीबोगरीब दावा होता है कि आरएसएस और हिंदू महासभा बंटवारे के लिए जिम्मेदार है। इस प्रकार का आरोप कांग्रेस के नेता कर रहे हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजय ने कहा है कि विभाजन विभिषिका यह चर्चा सत्र का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का देश को बांटने का राजनीतिक एजेंडा है।
विभाजन विभिषिका पर हो रही चर्चा और कांग्रेस के आरोपों को लेकर देश के विभिन्न टीवी चैनलों पर विशेष कर युवाओं के सम्मुख कुछ मान्यवरों की उपस्थिति में चर्चा चलवाई जा रही है ,चलाई नहीं लड़वाई जा रही है, ऐसा कहना उचित होगा। लेकिन हिंदी चैनलों पर विभाजन की त्रासदी को लेकर संपूर्ण देश के सम्मुख यह चर्चा उपस्थित हो रही है, यह अच्छी बात है।
14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ पर विभाजन के दर्द को याद किया जाता है। इस चर्चा सत्र में वर्तमान कांग्रेस के इतिहास को ठीक से न जानने वाले उतावले नेता प्रश्न उपस्थित कर रहे हैं की आजादी के समय संघ क्या कर रहा था? साथ में कांग्रेसी नेता यह सवाल खड़ा कर रहे हैं कि इस विभाजन के दर्द के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिम्मेदार है। तो इस संदर्भ में सही प्रकार से जानकारी आज के युवाओं को होनी आवश्यक है।
1933 में, अंग्रेजों ने लंदन में एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया था। उस समय, लंदन में पढ़ रहे रहमत अली ने एक आलेख प्रकाशित किया था। इस में, एक अलग इस्लामी राज्य का विचार सबसे पहले प्रस्तावित किया गया था। फिर 1940 में जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का प्रस्ताव रखा? फिर रहमत अली के उस पत्र के पूरे दस साल बाद 1943 में मोहम्मद अली जिन्ना ने सार्वजनिक रूप में पाकिस्तान की घोषणा की थी। जिन्ना सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान की घोषणा करने वाले पहले व्यक्ति थे, 1933 के बाद भारत में मुस्लिम आक्रमक हुए और मुस्लिम आक्रामकता के बाद कांग्रेस द्वारा शुरू किया गया। खासकर जब से महात्मा गांधी ने ‘खिलाफत आंदोलन’ का समर्थन किया है तब से निरंतर मुस्लिम तुष्टिकरण को मज़बूत करने की भूमिका में कांग्रेस रही है। लगभग 1920 से 1947 तक का 27 साल कांग्रेस का सफ़र मुस्लिम तुष्टिकरण का ही रहा है। जो अब तक दिनों दिन बढ़ता गया है। स्वतंत्रता के पूर्व के 27 वर्ष कांग्रेस मुस्लिम प्रभाव के चरम पर रही थी। इसीलिए मदन मोहन मालवीय जैसे बुद्धिमान और प्रतिभाशाली नेता आज़ादी तक कांग्रेस के निर्णय लेने वाले समूह में कभी शामिल नहीं हो पाए। इसके विपरीत कांग्रेस ने मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद जैसे नेताओं को आगे बढ़ाया। मौलाना आज़ाद कांग्रेस के ‘पोस्टर बॉय’ थे, जिन्हें जिन्ना के मार्ग में गतिरोध निर्माण करने के उद्देश्य से मुस्लिम नेता के रूप में पिट्टू बनाकर कांग्रेस के माध्यम से ही आगे बढ़ाया गया था। और आज़ादी के बाद 11 साल वही स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। पाठक अभी समझे गए होंगे की हमें गलत या विकृत इतिहास क्यों पढ़ाया जाता रहा है?
आज़ादी से पहले मुस्लिम लीग पाँच-छह साल तक सत्ता में रही थी। इन वर्षों में मुस्लिम नेताओं से घोर आक्रामकता की नीति अपनाई गई। पूरे देश में हिंदुओं पर आक्रमण करना उनका सूत्र था, इन दंगों के माध्यम से हिंदुओं पर लगातार दबाव डालने का उद्देश्य था। दुर्भाग्य से, अंग्रेज मुसलमानों के पक्ष में थे, उन्हें लगा कि भारत छोड़ने से पहले इस विशाल देश को दो या तीन भागों में विभाजित करना आवश्यक है। इसलिए यह महसूस किया गया कि ‘मुस्लिम लीग’ के बिना भारत का विभाजन संभव नहीं होगा। माउंटबेटन का झुकाव ‘मुस्लिम लीग’ की ओर था। इसीलिए 1947 में हुए दंगों के दौरान पश्चिमी पंजाब, सिंध, पूर्वी बंगाल आदि जगहों पर हिंदुओं को प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली।
मुस्लिम नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की घोषणा कर दी। तब लगभग दो महीने पहले से, जिन्ना समेत ‘मुस्लिम लीग’ के सभी नेता चेतावनी दे रहे थे कि, ‘विभाजन को मान्यता दो, वरना हम दिखा देंगे कि मुसलमान क्या हैं।’ 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग ने कोलकाता में पाँच हज़ार से ज़्यादा हिंदुओं का कत्लेआम किया। दो महीने बाद 10 अक्टूबर को बंगाल के चटगाँव संभाग के नोवाखली ज़िले में ‘मुस्लिम लीग’ द्वारा यही बात दोहराई गई। यहाँ कोलकाता से भी ज़्यादा खून-खराबा हुआ। अनुमान है कि लगभग 30 से 40 हज़ार हिंदुओं की हत्या हुई। हालाँकि, यह सच है कि नवंबर 1946 के बाद नोवाखली ज़िले में एक भी हिंदू नहीं बचा था ।
मौका परस्त कांग्रेस पार्टी विभाजन के लिए तैयार बैठीं थी, हालाँकि, विभाजन को मंज़ूरी देते समय कांग्रेस ने कुछ अक्षम्य गलतियाँ कीं। यह सच है कि विभाजन मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र की माँग के कारण हुआ था। लेकिन, ऐसी स्थिति में, कांग्रेस ने जनसंख्या परिवर्तन का समर्थन तो दूर, उसका विरोध भी किया। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर तार्किक ढंग से समझा रहे थे कि ‘जनसंख्या की अदला-बदली कैसे सही है।’ जिन्ना स्वयं जनसंख्या की अदला-बदली पर अड़े थे। ऐसे में कांग्रेस द्वारा जनसंख्या की अदला-बदली का विरोध करना न केवल समझ से परे था, बल्कि एक भयंकर भूल भी थी।
आजादी के समय संघ क्या कर रहा था ? इस प्रकार का सवाल उठाने का कांग्रेस को कोई हक नहीं है। आज जब कांग्रेस इस प्रकार का सवाल करती है तो ऐसा लगता है कि, आजादी मिली वह कांग्रेस के कारण ही मिली हुई है , इस प्रकार की स्वतंत्रता आंदोलन की ठेकेदारी वाला बयान कांग्रेस बार-बार करती है । कांग्रेस की इसी ठेकेदारी के कारण भारत की जनता कांग्रेस को ही पूछ रही है की देश को स्वतंत्रता देने का ठेका कांग्रेस पार्टी ने ले रखा था, तो कांग्रेस पार्टी ही हमें इस प्रश्न का उत्तर दीजिए की विभाजन के दौरान कांग्रेस क्या कर रही थी? विभाजित आजादी को कांग्रेस के नेता जवाहरलाल नेहरू ने क्यों स्वीकार किया? इस सवाल का उत्तर वर्तमान में जनता कांग्रेस से जानना चाहती है। जब देश की जनता आजादी के लिए लड़ाई लड़ रही थी तब अवसर का फायदा उठाकर नेहरू अपने प्रधानमंत्री पद की कुर्सी का ताना-बाना बून रहे थे? स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पद को पाने की आत्यंतिक तृष्णा के कारण पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विघटित भारत का स्वीकार किया? जब आजादी के आंदोलन के ठेकेदारी गत 79 सालों से कांग्रेस ले रही है, तो कांग्रेसियों देश की जनता को यह भी बता दो की यह आधी अधूरी स्वतंत्रता का आपने क्यों स्वीकार किया है ? महायुद्ध के कारण ब्रिटिश टूट चुकी थी , कांग्रेस और थोड़ा दबाव देती तो ब्रिटिश उस दबाव में आ जाती। इतनी कांग्रेस को क्या जल्दी थी कि उन्होंने टूटे हुए भारत का स्वीकार किया?
जब संपूर्ण देश विभाजन के संकट से देश को बचने में लगा हुआ था , तब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की धमकी देकर और उस धमकी पर अमल करके लाखों हिंदुओं की जान खतरे में डाल दी थी। तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुओं की सहायता के लिए हिंदुओं के साथ खड़ा था । तब कांग्रेसी नेतृत्व क्या कर रहा था? विभाजन के परिणाम स्वरुप पाकिस्तान में फंस गए लाखों हिंदू- दलितों को किसने पाकिस्तान में ही बेसहारा रहने के लिए मजबूर किया? यह सवाल कांग्रेस को देश कि वर्तमान जनता पूछ रही है । हिंदू- मुस्लिम आबादी के जनसंख्या अदला बदली के आधार पर विभाजन तय हो गया था ,तो मुसलमानों को भारत में संपत्ति सहित रहने क्यों दिया गया ? जब विभाजन आजादी के अदला बदली ट्रांसफर पर होना था तो कांग्रेस ने अदला-बदली का सही पक्ष क्यों नहीं लिया? कांग्रेस के इस गलती के कारण फिर से भारत में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या भयानक समस्या का कारण बनी हुई है।
आजादी के आंदोलन के वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या कर रहा था ? इस सवाल का जवाब है, हिंदुत्ववादी राष्ट्रवादी नेतृत्व यह टूटा-फूटा अधुरा स्वातंत्र्य नहीं चाहता था । संघ को यह गलत तरीके से हो रही अदला बदली मंजूर नहीं थी , पर अपनी सीमित शक्ति के अभाव में संघ कुछ नहीं कर पा रहा था । यह उसका सही उत्तर है। लेकिन संघ ने पीड़ित हिंदुओं की आकांक्षाओं को स्वर दिया। पीड़ित हिंदुओं के मनोभावों की अभिव्यक्ति को विराट मंच निर्माण करके दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उस समय राष्ट्रीय चिंता से संघर्ष कर रहा था । कांग्रेस पार्टी जैसी मौका परस्त राजनीति देश को और लाचार न बनाएं इसलिए हिंदुओं में देशभक्ति के भाव का जागरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा था। संघ क्या कर रहा था? कांग्रेस के इस प्रश्न का उत्तर यह है कि जिसका उत्तर वर्तमान में हिंदू समाज के जागरण से आज मिल रहा है। संघ क्या कर रहा था ?
इसका उत्तर तो समाज को मिल रहा है, लेकिन कांग्रेस ने जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन से लेकर अब तक मुसलमानों का तुष्टिकरण करके देश का इस प्रकार की हालत क्यों कर करके रखी है ? इसका उत्तर आज की युवा पीढ़ी जानना चाहती है । वर्तमान में विकसित भारत के उद्देश्य को लेकर 2047 की दिशा में मार्गक्रमण करते हुए देश का युवा विभाजन के समय 1947 मे कांग्रेस क्या कर रही थी? छिन्न – छिन्न भारत का स्विकार कांग्रेस ने क्यों किया? इस बात पर कांग्रेस से वर्तमान युवा उत्तर चाहता है। और आज की युवा पीढ़ी इस बात पर कांग्रेस के कान उखाड़ कर ही रहेगी। कांग्रेस अपने पापों का समर्थन करते समय रा स्व संघ पर झूठे दोषारोपण न करें।अपनी हुई गलती को स्वीकार कर आगे बढ़ी तो कांग्रेस में कुछ सुधारना होने की थोड़ी बहुत संभावना है। नहीं तो कांग्रेस को अपना कर्म ही इस देश की मिट्टी में मिला देगा। कारण स्वाधीनता संग्राम के आहुति के होम में। दो खंडों में विभक्त राष्ट्र की कल्पना नहीं थी। पर यह पाप कांग्रेसियों ने किया है। नियति इस कर्म की सजा कांग्रेस को बराबर दे रहीं हैं.
अभ्यासपूर्ण लेख 👌
सच हैं. गत ७५ वर्षां को निजी स्वार्थ के लिये एक व्यक्ती ने लिखा.
सियासी गटने इतिहास रचा, आओ हम उसे भूतकाळ बनादे.