हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
संघ का कार्य शुद्ध सात्त्विक प्रेम और समाजनिष्ठा पर आधारित है – पू. सरसंघचालक जी

संघ का कार्य शुद्ध सात्त्विक प्रेम और समाजनिष्ठा पर आधारित है – पू. सरसंघचालक जी

by हिंदी विवेक
in संघ
0

अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्वेच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं – डॉ. मोहन जी भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने कहा कि समाज और जीवन में संतुलन ही धर्म है, जो किसी भी अतिवाद से बचाता है। भारत की परंपरा इसे मध्यम मार्ग कहती है और यही आज की दुनिया की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया के समक्ष उदाहरण बनने के लिए समाज परिवर्तन की शुरुआत घर से करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन बताए हैं – कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व-बोध (स्वदेशी) और नागरिक कर्तव्यों का पालन। आत्मनिर्भर भारत के लिए स्वदेशी को प्राथमिकता दें तथा भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं।
पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ के दूसरे दिन संबोधित कर रहे थे। इस दौरान सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, उत्तर क्षेत्र के प्रांत संघचालक पवन जिंदल और दिल्ली प्रांत संघचालक डॉ. अनिल अग्रवाल मंच पर उपस्थित रहे।

संघ कार्य कैसे चलता है

डॉ. मोहन जी भागवत ने कहा कि संघ का कार्य शुद्ध सात्त्विक प्रेम और समाजनिष्ठा पर आधारित है। “संघ का स्वयंसेवक कोई व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा नहीं रखता। यहाँ इंसेंटिव नहीं हैं, बल्कि डिसइंसेंटिव अधिक हैं। स्वयंसेवक समाज-कार्य में आनंद का अनुभव करते हुए कार्य करते हैं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि जीवन की सार्थकता और मुक्ति की अनुभूति इसी सेवा से होती है। सज्जनों से मैत्री करना, दुष्टों की उपेक्षा करना, कोई अच्छा करता है तो आनंद प्रकट करना, दुर्जनों पर भी करुणा करना – यही संघ का जीवन मूल्य है।
हिन्दुत्व क्या है.

हिन्दुत्व की मूल भावना पर कहा कि हिन्दुत्व सत्य, प्रेम और अपनापन है।’ हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया कि जीवन अपने लिए नहीं है। यही कारण है कि भारत को दुनिया में बड़े भाई की तरह मार्ग दिखाने की भूमिका निभानी है। इसी से विश्व कल्याण का विचार जन्म लेता है।

दुनिया किस दिशा में जा रही है-

पू. सरसंघचालक ने चिंता जताई कि दुनिया कट्टरता, कलह और अशांति की ओर जा रही है। पिछले साढ़े तीन सौ वर्षों में उपभोगवादी और जड़वादी दृष्टि के कारण मानव जीवन की भद्रता क्षीण हुई है। उन्होंने गांधी जी के बताए सात सामाजिक पापों, “काम बिना परिश्रम, आनंद बिना विवेक, ज्ञान बिना चरित्र, व्यापार बिना नैतिकता, विज्ञान बिना मानवता, धर्म बिना बलिदान और राजनीति बिना सिद्धांत” का उल्लेख करते हुए कहा कि इनसे समाज में असंतुलन गहराता गया है।

धर्म का मार्ग अपनाना होगा-

पू. सरसंघचालक जी ने कहा कि आज दुनिया में समन्वय का अभाव है और दुनिया को अपना नजरिया बदलना होगा। दुनिया को धर्म का मार्ग अपनाना होगा। “पूजा-पाठ और कर्मकांड से परे धर्म है। सभी प्रकार के रिलिजन से ऊपर धर्म है। धर्म हमें संतुलन सिखाता है – हमें भी जीना है, समाज को भी जीना है और प्रकृति को भी जीना है।” धर्म ही मध्यम मार्ग है जो अतिवाद से बचाता है। धर्म का अर्थ है मर्यादा और संतुलन के साथ जीना। इसी दृष्टिकोण से ही विश्व शांति स्थापित हो सकती है।
धर्म को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा, “धर्म वह है जो हमें संतुलित जीवन की ओर ले जाए, जहाँ विविधता को स्वीकार किया जाता है और सभी के अस्तित्व को सम्मान दिया जाता है।” उन्होंने बल दिया कि यही विश्व धर्म है और हिन्दू समाज को संगठित होकर इसे विश्व के सामने प्रस्तुत करना होगा।

विश्व की वर्तमान स्थिति और उपाय-

वैश्विक संदर्भ में उन्होंने कहा कि शांति, पर्यावरण और आर्थिक असमानता पर चर्चा तो हो रही है, उपाय भी सुझाए जा रहे हैं, लेकिन समाधान दूर दिखाई देता है। “इसके लिए प्रमाणिकता से सोचना होगा और जीवन में त्याग तथा बलिदान लाना होगा। संतुलित बुद्धि और धर्म दृष्टि का विकास करना होगा।”

भारत ने नुकसान में भी संयम बरता-

भारत के आचरण की चर्चा करते हुए पू. सरसंघचालक ने कहा कि “हमने हमेशा अपने नुकसान की अनदेखी करते हुए संयम रखा है। जिन लोगों ने हमें नुकसान पहुँचाया, उन्हें भी संकट में मदद दी है। व्यक्ति और राष्ट्रों के अहंकार से शत्रुता पैदा होती है, लेकिन अहंकार से परे हिन्दुस्तान है।” उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को अपने आचरण से दुनिया में उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। उन्होंने कहा कि आज समाज में संघ की साख पर विश्वास है। “संघ जो कहता है, उसे समाज सुनता है।” यह विश्वास सेवा और समाजनिष्ठा से अर्जित हुआ है।

भविष्य की दिशा-

भविष्य की दिशा पर पू. सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ का उद्देश्य है कि सभी स्थानों, वर्गों और स्तरों पर संघ कार्य पहुँचे। साथ ही समाज में अच्छा काम करने वाली सज्जन शक्ति आपस में जुड़े। इससे समाज स्वयं संघ की ही तरह चरित्र निर्माण और देशभक्ति के कार्य को करेगा। इसके लिए हमें समाज के कोने-कोने तक पहुंचना होगा। भौगोलिक दृष्टि से सभी स्थानों और समाज के सभी वर्गों एवं स्तरों में संघ की शाखा पहुंचानी होगी। सज्जन शक्ति से हम संपर्क करेंगे और उनका आपस में भी संपर्क कराएंगे।
उन्होंने कहा कि संघ मानता है कि हमें समाज में सद्भावना लानी होगी और समाज के ओपिनियन मेकर्स से निरंतर मिलना होगा। इनके माध्यम से एक सोच विकसित करनी होगी। वे अपने समाज के लिए काम करें, उसमें हिन्दू समाज को अंग होने का अनुभव पैदा हो और वे भौगोलिक परिस्थितियों से जुड़ी चुनौतियों का स्वयं समाधान ढूँढे। दुर्बल वर्गों के लिए काम करें। संघ ऐसा करके समाज के स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहता है।

मोहन जी भागवत ने बाहर से आक्रामकता के कारण धार्मिक विचार भारत में आए। किसी कारण से उन्हें कुछ लोगों ने स्वीकार किया। “वे लोग यहीं के हैं, लेकिन विदेशी विचारधारा होने के कारण जो दूरियाँ बनीं, उन्हें मिटाने की ज़रूरत है। हमें दूसरे के दर्द को समझना होगा। एक देश, एक समाज और एक राष्ट्र के अंग होने के नाते, विविधताओं के बावजूद, समान पूर्वजों और साझा सांस्कृतिक विरासत के साथ आगे बढ़ना होगा। यह सकारात्मकता और सद्भाव के लिए आवश्यक है। इसमें भी हम समझ-बूझकर एक-एक कदम आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं।”

आर्थिक प्रगति के नए रास्ते-

आर्थिक दृष्टि पर उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे प्रयोग हुए हैं, लेकिन अब राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक प्रतिमान गढ़ना होगा। हमें एक ऐसा विकास मॉडल प्रस्तुत करना होगा, जिसमें आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और पर्यावरण का संतुलन हो, ताकि वे विश्व के लिए उदाहरण बने।
पड़ोसी देशों से रिश्तों पर उन्होंने कहा कि “नदियाँ, पहाड़ और लोग वही हैं, केवल नक्शे पर लकीरें खींची गई हैं। विरासत में मिले मूल्यों से सबकी प्रगति हो, इसके लिए उन्हें जोड़ना होगा। पंथ और संप्रदाय अलग हो सकते हैं, पर संस्कारों पर मतभेद नहीं है।”

पंच परिवर्तन – अपने घर से शुरुआत-

उन्होंने कहा कि दुनिया में परिवर्तन लाने से पहले हमें अपने घर से समाज परिवर्तन की शुरुआत करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन बताये हैं। यह हैं कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व की पहचान तथा नागरिक कर्तव्यों का पालन। उन्होंने उदाहरण दिया कि पर्व-त्योहार पर पारंपरिक वेशभूषा पहनें, स्वभाषा में हस्ताक्षर करें और स्थानीय उत्पादों को सम्मानपूर्वक खरीदें।

उन्होंने कहा कि हंसते-हंसते हमारे पूर्वज फाँसी पर चढ़ गए, लेकिन आज आवश्यकता है कि हम 24 घंटे देश के लिए जीएँ। “हर हाल में संविधान और नियमों का पालन करना चाहिए। यदि कोई उकसावे की स्थिति हो तो न टायर जलाएँ, न हाथ से पत्थर फेंकें। उपद्रवी तत्व ऐसे कार्यों का लाभ उठाकर हमें तोड़ने का प्रयास करते हैं। हमें कभी उकसावे में आकर अवैध आचरण नहीं करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों में भी देश और समाज का ध्यान रखकर अपना काम करना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम बढ़ाने होंगे और इसके लिए स्वदेशी को प्राथमिकता देनी होगी।
अंत में पू. सरसंघचालक जी ने कहा कि “संघ क्रेडिट बुक में नहीं आना चाहता। संघ चाहता है कि भारत ऐसी छलांग लगाए कि उसका कायापलट तो हो ही, पूरे विश्व में सुख और शांति कायम हो जाए।”

-विचार विनिमय न्यास, दिल्ली

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #rss#india #hindivivekmagazine #world #Wide #viral #reach #work

हिंदी विवेक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

1