नेपाल की नई सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। जेन जेड का उबाल, आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता को सम्भालना होगा। भारत का सहयोग, आर्थिक सहायता, युवा रोजगार योजनाएं और सीमा सुरक्षा नेपाल को नई दिशा दे सकता है।
नेपाल में हालिया राजनीतिक उथल-पुथल ने एक बार फिर हिमालयी राष्ट्र की अस्थिरता को उजागर किया है। जनरेशन जेड (जेन जेड) के नेतृत्व में चले आंदोलन ने प्रधान मंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार को गिरा दिया, और अब पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार सत्ता संभाल रही है। मार्च 2025 में होने वाले आम चुनावों तक यह सरकार देश को स्थिरता प्रदान करने का प्रयास करेगी। लेकिन भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता और युवाओं की निराशा जैसी चुनौतियां नई सरकार के सामने एक कठिन परीक्षा के रूप में खड़ी हैं। भारत, नेपाल का सबसे करीबी पड़ोसी, इस पूरे घटनाक्रम पर सतर्क नजर रखे हुए है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्की की नियुक्ति का स्वागत करते हुए कहा, भारत नेपाल के भाइयों-बहनों की शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है। भारत का कूटनीतिक रास्ता इस संकट को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से हल करने का समर्थन करता है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आवश्यक है।
जेन जेड: एक नई पीढ़ी की ताकत
जेन जेड, जिसे पीढ़ी जेड भी कहा जाता है, वह युवा वर्ग है जो मुख्य रूप से 1997 से 2012 के बीच पैदा हुआ है। है। यह पीढ़ी डिजिटल युग की संतान हैं स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और इंटरनेट उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। वैश्विक स्तर पर जेन जेड को सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक समानता और पारदर्शिता जैसे मुद्दों पर सक्रिय माना जाता है। वे पारम्परिक राजनीतिक व्यवस्था से असंतुष्ट हैं और बदलाव की मांग करते हैं। नेपाल जैसे विकासशील देशों में यह पीढ़ी बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और असमान अवसरों से जूझ रही है। नेपाल की जनसंख्या का औसत आयु 25 वर्ष है, यानी जेन जेड यहां बहुमत में है, और वे देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा बनाते हैं। नेपाल जैसे विकासशील देशों में यह पीढ़ी बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और असमान अवसरों से जूझ रही है। नेपाल की जनसंख्या का औसत आयु 25 वर्ष है, यानी जेन जेड यहां बहुमत में है, और वे देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा बनाते हैं।
नेपाल का जेन जेड आंदोलन इसी पीढ़ी की निराशा का प्रतीक था। सितंबर 2025 की शुरुआत में सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप और एक्स पर प्रतिबंध लगा दिया। आधिकारिक तौर पर इसे ‘नियमों का पालन न करने’ के कारण से लागू किया गया, लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। यह आंदोलन ‘नेपो किड्स’ (राजनेताओं के बच्चों की लग्जरी लाइफस्टाइल) के खिलाफ ऑनलाइन अभियान से शुरू हुआ था, जहां युवा सोशल मीडिया पर नेताओं के परिवारों की फिजूलखर्ची को उजागर कर रहे थे, जबकि देश की प्रति व्यक्ति आय मात्र 1,400 डॉलर है। इन आंकड़ों की विश्व बैंक और अन्य स्रोतों से भी पुष्टि होती है, जो इसे दक्षिण एशिया के सबसे गरीब देशों में से एक के रूप में दर्शाता है।’
आंदोलन को ‘जेन जेड’ क्यों कहा गया? क्योंकि यह पूरी तरह से युवाओं द्वारा संगठित था, कोई पारम्परिक नेता या राजनीतिक दल नहीं। वे डिस्कॉर्ड, इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर मोबिलाइज हुए, और ‘जेन जेड’ को अपना रैली क्राई बनाया। यह आंदोलन श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) के युवा विद्रोहों से प्रेरित था, जहां जेन जेड ने भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के खिलाफ सरकारें गिराईं। नेपाल में यह 8-9 सितम्बर को हिंसक हो गया, जब पुलिस ने गोलीबारी की, 51 से अधिक मौतें हुईं, संसद और सरकारी भवनों को आग लगा दी गई। ओली को त्यागपत्र देना पड़ा, और सेना ने कर्फ्यू लगाकर नियंत्रण सम्भाला।
युवाओं का उबाल: नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती
नेपाल के युवाओं में उबाल नई सरकार के लिए सबसे गम्भीर चुनौती है। देश में युवा बेरोजगारी 20.8% से अधिक है, और जीडीपी का एक तिहाई रेमिटेंस पर निर्भर है अधिकांश युवा विदेश भाग जाते हैं। जेन जेड आंदोलन ने भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और आर्थिक असमानता को लक्ष्य बनाया। प्रदर्शनकारियों ने कहा, राजनेता अमीर हो जाते हैं, जबकि हम संघर्ष करते हैं। अब अंतरिम सरकार को इन युवाओं को संतुष्ट करना होगा, वरना आंदोलन फिर भड़क सकता है। सुशील कार्की ने कहा, जेन जेड की मांगें – भ्रष्टाचार का अंत, अच्छी सरकार और आर्थिक समानता पूरी करनी होंगी। लेकिन चुनौतियां विशाल हैं: संसद भंग करने, संविधान संशोधन करने और भ्रष्टाचार जांच के वादे पूरे करने हैं। युवा अब जेन जेड प्रतिनिधित्व चाहते हैं, लेकिन कार्की की उम्र (73 वर्ष) और न्यायिक पृष्ठभूमि से कुछ असंतोष है। यदि सरकार युवाओं को रोजगार, शिक्षा और डिजिटल स्वतंत्रता न दे सकी, तो अगले साल मार्च में होने वाले चुनाव से पहले ही अस्थिरता बढ़ सकती है। इसके अलावा, नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों के बीच 12,500 से अधिक कैदी फरार हैं, जो कानून-व्यवस्था के लिए खतरा हैं।
सत्ता पलट के पीछे साजिश: चीन का हाथ?
नेपाल में इस सत्ता पलट के पीछे षड़यंत्र की गंध है। ओली सरकार चीन समर्थक थी, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही थी, जैसे पोखरा एयरपोर्ट, जहां 71 मिलियन डॉलर का घोटाला हुआ। सोशल मीडिया बैन को चीन की सेंसरशिप मॉडल से जोड़ा जा रहा है, जो असंतोष का ट्रिगर बना। लेकिन गहराई में, यह चीन की बढ़ती पैठ को रोकने की साजिश लगती है। नेपाल भारत-चीन के बीच बफर स्टेट है, और ओली का झुकाव बीजिंग की ओर भारत के हितों के खिलाफ था। 2020 के मैप विवाद और लिपुलेख पास पर भारत-चीन व्यापार ने नेपाल को उकसाया। प्रदर्शनों में कुछ तत्वों ने राजशाही की बहाली की मांग की, जो भारत के हिंदुत्व में विश्वास रखने वाले संगठनों से जुड़े हैं। लेकिन मुख्य रूप से, यह युवाओं का स्वतःस्फूर्त विद्रोह था, जो चीन-समर्थक तानाशाही से तंग आ चुका था।
भारत का कूटनीतिक स्टैंड: एक सफल रणनीति
भारत का इस पूरे मामले पर स्टैंड सराहनीय और सफल रहा है। नई दिल्ली ने हस्तक्षेप से परहेज किया, लेकिन लोकतंत्र और शांति का समर्थन किया। मोदी सरकार ने ओली के त्यागपत्र के बाद तुरंत कार्की को बधाई दी, और कहा कि भारत नेपाल की प्रगति के लिए प्रतिबद्ध है।