किसान आंदोलन का नक्सली एंगल

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किसान आंदोलन को लेकर उसके नेतृत्वकर्ताओं पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन अब खालिस्तानी अलगाववादी, मिशनरी, जिहादी गठजोड़ के बाद नक्सली एंगल भी सामने आया है। यह राष्ट्रविरोधी गतिविधि देश को हिंसा और अराजकता की आग में झोंकना चाहती है।

राष्ट्रीय एकात्मता का आधार

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500 सालों से ज्यादा की प्रतीक्षा अब खत्म होने जा रही है। वह समय आ गया है जब पूरे वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ कपाट खुलते ही भक्त भगवान श्रीराम के दर्शन कर सकेंगे। पूरे हर्षोंउल्लास के साथ आगामी 22 जनवरी की लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं। आस्था के साथ अयोध्या अब पर्यटन का केंद्र भी बन गया है। 

मेवात: आतंक का गढ़

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भारत में अन्य बातों की तरह ही दंगों का भी ‘अपग्रेडेशन’ हो रहा है। मेवात में हुए साइबर दंगे इसकी बानगी कहे जा सकते हैं। जिस तरह से इसकी तैयारी की गई थी, जिस तरह से इसके लिए मोबाइल और सोशल मीडिया का प्रयोग किया गया था, उससे यह सिद्ध होता है कि धीरे-धीरे दंगे भड़काना उंगलियों पर खेलने जैसा हो जाएगा। इसकी भयावहता को समझकर आवश्यक कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।

हरित क्रांति का अगुआ जैविक खेती में पिछड़ा

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अधिकाधिक अनाज की पैदावार के चक्कर में पंजाब के किसानों ने इतनी अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया कि आज वहां की मिट्टी अपनी गुणवत्ता खो रही है। साथ ही, प्रदेश में कैंसर के रोगियों की संख्या में भी बड़ी मात्रा में बढ़ोत्तरी हुई है।

ब्रिटेन जैसी कार्रवाई भारत में कब?

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पाकिस्तानी मुस्लिमों का गैंग, जिसे ‘ग्रूमिंग गैंग’ कहा जाता है, समूचे ब्रिटेन में गैर मुस्लिम लड़कियों का यौन शोषण कर रहा है। वहां की सरकारें जागी है और इन मामलों में तेजी से कार्रवाई कर रही है। भारत को भी ऐसे मामलों के लिए कड़ा कानून बनाना चाहिए। भारत में…

भारतविरोधी शक्तियों का इकोसिस्टम

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अमेरिका में 2008 की भांति बैंकों का डूबना शुरू होने के कारण मंदी की शुरुआत की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करना खतरनाक है। सोरोस के एनजीओ से फंड पाने वालों पर नजर रखी जानी चाहिए क्योंकि वे…

भारत के अमृतकाल का शुभारम्भ

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राष्ट्रपति भवन के गार्डन का नाम बदलकर ‘अमृत उद्यान’ किए जाने पर कुछ लोगों को तकलीफ हो रही है। पूरा देश जानता है कि मुगल और अंग्रेजकालीन नाम देश की गुलामी के प्रतीक हैं इसलिए उनको मिटाया जाना आवश्यक है। अभी बहुत सारे प्रतीक देशभर में बिखरे पड़े हैं, जिन…

दिल्ली दंगों का तीसरा साल, जख्म जो अब तक नहीं भरा

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यह दिल्ली दंगे का तीसरा साल है। अब लोग धीरे धीरे उसे भूलने लगे हैं लेकिन जिन परिवारों को इस दंगे ने जख्म दिए हैं। वे भूलने की कोशिश करते हैं और फरवरी का महीना हर साल सबकुछ फिर से याद दिला देता है। 22 फरवरी 2020 तक सबकुछ सामान्य…

नृशंस हत्या के पीछे की संस्कृति

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पूर्वनियोजित योजना और समाज के सहयोग से हिंदू लड़कियों को बरगलाकर आबादी बढ़ाने की परम्परा मुस्लिम समाज की सहज प्रवृत्ति बन चुकी है। इसी कड़ी में एक पैंतरा जुड़ गया है, शादी की बात करने वाली लड़की की नृशंस हत्या कर देना। इस तरह के मामलों में चाहे लड़का हो या लड़की, शिकार हिंदू ही होता है।

अभिव्यक्ति निष्पक्ष तो लड़ाई पक्षीय क्यों?

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भारत देश में एक चलन सा बन गया है कि हिंदू देवी-देवताओं को लेकर किया गया आपत्तिजनक व्यवहार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मान लिया जाता है, जबकि इस्लाम को लेकर कही गई सामान्य बात भी अपमान मान ली जाती है। देश का तथाकथित बौद्धिक वर्ग इस पर चुप रहता है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर यह दोहरी मानसिकता बंद होनी चाहिए।

सरकता जाए है नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता

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लगातार पड़ रहे छापों से भ्रष्टाचारियों में खलबली मची हुई है। ईमानदारी का ढोल पीटने वाली आम आदमी पार्टी के मंत्रियों के भी सैकड़ों करोड़ के घोटाले पकड़ में आ रहे हैं। इनसे लोगों की नजर में केद्र सरकार की विश्वसनीयता बढ़ी है क्योंकि 8 सालों से केंद्र में घोटालाविहीन सरकार चल रही है।

हिंदू भारतीय मुसलमानों के विरुद्ध नहीं है

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''एक इतिहास तो है, उसको हम बदल नहीं सकते। वह इतिहास हमने नहीं बनाया। ना आज के खुद को हिन्दू कहलाने वालों ने बनाया। ना आज के मुसलमानों ने बनाया, उस समय घटा। इस्लाम बाहर से आया, आक्रामकों के हाथ से आया। उस आक्रमण में भारत की स्वतंत्रता चाहने वाले…

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