बेंगलोर। सहज स्मृति योग मार्ग के प्रणेता तथा उरिगम स्थित दर्पण आश्रम के संस्थापक गुरुजी श्री नंदकिशोर ने विश्वविख्यात चिंतक, टिप्पणीकार एवं पचास से अधिक पुस्तकों के लेखक मकरंद आर. परांजपे की सद्य प्रकाशित कृति ‘हिन्दुत्व तथा हिन्द स्वराज’ का विमोचन किया। यह समारोह दो चरणों में संपन्न हुआ। पहले चरण में मीनाक्षी रेजीडेंसी सभागार में गुरुजी के जन्म दिवस पर विशेष रूप से आयोजित कार्यक्रम में पुस्तक विमोचन के उपरांत अपने उद्गार व्यक्त करते हुए गुरुजी श्री नंदकिशोर ने कहा कि मकरंद परांजपे की अंग्रेजी भाषा में लिखी यह पुस्तक महात्मा गाँधी और वीर सावरकर के विचारों में एकत्व दर्शाने वाले तथा विरोधी दिखने वाले, दोनों ही बिंदुओं पर नवीन दृष्टि से प्रकाश डालती है।

गुरुजी ने कहा कि हरेक राष्ट्रवादी देशप्रेमी व्यक्ति को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की आधार भूत संकल्पनाओं पर जन मानस में जितनी अधिक एकता होगी उतनी ही ज्यादा देश में एकजुटता होगी। इस एकता का बीज सदैव इतिहास से लिया जाता है किंतु उस बीज को बोया और सींचा सदैव वर्तमान में ही जाता है। इसमें बुद्धिजीवियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और डॉक्टर परांजपे अपनी इस पुस्तक के माध्यम से यह भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आत्म-संवाद शैली में लिखी यह पुस्तक वर्तमान समय में देश में सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू, सनातन-हिंदू इन शब्दों और संकल्पनाओं को लेकर सर्वत्र जो चर्चा हो रही है उसके अनेक बिंदुओं को स्पष्ट करने में समर्थ है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक वर्तमान समय में भारत में इतिहास की पुनर्व्याख्या पर छिड़ी बहस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में अपना योगदान देने को तत्पर दिखते हैं।
समारोह में बड़ी संख्या में सहज स्मृति योग साधक सत्संग हेतु एकत्र हुए, मकरंद परांजपे ने एक साधक के रूप में गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त किया और उनके कर-कमलों से अपनी पुस्तक का विमोचन होने पर प्रसन्नता व्यक्त की। आयोजन के दूसरे चरण में रविवार को डोमलूर स्थित बेंगलूरू अंतर्राष्ट्रीय केंद्र सभागार में लेखक के एक व्याख्यान और प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन हुआ, जिसमें पेंग्विन रैंडम हाउस इण्डिया से प्रकाशित तीन सौ छिहत्तर पेज की केसरिया रंग में सजी सजिल्द और आकर्षक नवीनतम पुस्तक का परिचय देते हुए डॉक्टर मकरंद परांजपे ने कहा कि उनकी यह पुस्तक विषय वस्तु की समीचीनता के साथ ही अपनी अन्वीक्षकी और इंटरमीडियल हरमेन्यूएटिक्स की दुहरी तकनीक से विषय वस्तु को देखने के लिए प्रेरित करने की दृष्टि से विशेष रूप से पठनीय है।
महात्मा गाँधी और विनायक सावरकर दोनों ही हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के उन नायकों में से हैं, जिनकी दृष्टि और स्मृति को भुलाया नहीं जाना चाहिए। क्योंकि दोनों के चिंतन और चरित्र से ही वर्तमान में हमारी दिशा स्पष्ट होती है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के आवरण पर अंकित शब्द हाल ही में दिवंगत कन्नड़ के प्रसिद्ध लेखक एवम् साहित्यकार एस. एल. भैरप्पा के अंतिम लिखित शब्द हैं। इस अर्थ में यह पुस्तक उनके प्रति दी अनायास सहज श्रद्धांजलि भी बन गई है। समारोह के दूसरे चरण में गुरुजी श्री नंदकिशोर, महात्मा गांधी जी के पौत्र श्री कृष्ण कुलकर्णी सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति बड़ी संख्या में मौजूद थे। दोनों ही सत्रों में श्रोताओं को प्रश्नोत्तरी के लिए विशेष समय दिया गया और श्रोताओं ने उसका भरपूर लाभ भी लिया।

