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इज़राइल-गाज़ा युद्धविराम समझौता :  शांति या नया कूटनीतिक खेल?

इज़राइल-गाज़ा युद्धविराम समझौता : शांति या नया कूटनीतिक खेल?

by अमोल पेडणेकर
in ट्रेंडींग
4

दो वर्षों तक चले लगातार रक्तपात, उजड़े हुए शहरों की राख और हवाई हमलों की चीख-पुकार के बीच आखिरकार इजराइल और हमास के बीच युद्धविराम हो गया है। गाजा पट्टी में चला यह संघर्ष न केवल मध्यपूर्व को, बल्कि पूरे विश्व के अंतर्मन को झकझोर गया। लाखों लोग बेघर हुए, हजारों ने अपनी जान गंवाईं और दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की गहरी खाई बन गई। अब इसी पृष्ठभूमि में तैयार हुई 20 सूत्रीय शांति योजना। क्या वास्तव में स्थायी शांति की शुरुआत है या फिर यह किसी नए राजनीतिक खेल का आरंभ भर है?

यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पहल पर मिस्र, कतर और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में यह 20 सूत्रीय योजना आकार में आई। इस योजना का उद्देश्य था युद्ध रोकना, गाजा को फिर से खड़ा कर देना और दोनों राष्ट्र के लोगों को, समाजों को एक-दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करने की दिशा में आगे बढ़ाना। इस समझौते का सबसे अहम पहलू यह था कि दोनों पक्षों के बीच बंदियों की अदला-बदली करना। इजराइल के नागरिक वापस लाए गए और हमास द्वारा पकड़े गए इस्राइली नागरिकों को रिहा किया गया।

युद्धविराम की औपचारिक घोषणा और इजरायली सेना की सीमित क्षेत्रों से वापसी ने गाजा के लोगों को पहली बार राहत मिली। लेकिन इस सबके बीच, इजराइल ने गाजा को लगभग खंडहर बना दिया। हवाई हमलों ने शहरों को जमींदोज कर दिया, अस्पताल, स्कूल, बिजली व्यवस्था सब ध्वस्त हो गईर्ं। इस विध्वंस के बाद इजराइल ने इसे आत्मरक्षा का अधिकार बताया, जबकि हमास ने इसे नरसंहार करार दिया। अंततः यह युद्धविराम दोनों पक्षों की विकृत्तता से थकी हुई मानसिकता और वैश्विक दबाव का परिणाम बनकर सामने आया। इस समझौते से इजराइल को अस्थायी राजनीतिक से राहत मिली है। दो सालों तक चले युद्ध ने इस्राइली जनता को थका डाला था। हर घर में कोई बंदी, लापता रिश्तेदार या शहीद सैनिक था। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर अंदरूनी दबाव बढ़ता जा रहा था कि इजरायली लोगों को वापस लाओ, युद्ध बंद करो। इस समझौते ने उन्हें कुछ समय के लिए राहत दी।

अब इज़राइल यह कह सकता है कि हमने अपने नागरिकों को सुरक्षित लौटाया, हमास को कमजोर किया और गाजा पर फिर नियंत्रण प्राप्त किया। दूसरी ओर, गाजा के लाखों नागरिक बेघर हो चुके हैं। गाजा अब एक विशाल मलबे का ढेर बन चुका है। वहां के बच्चों का बचपन, युवाओं की शिक्षा और महिलाओं की सुरक्षा सब कुछ नष्ट हो गया है। हमास के नियंत्रण वाले इस क्षेत्र में अब एक तकनीकी प्रशासनिक समिति गठित की जाएगी, जिसमें हमास का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं होगा। परंतु, सभी जानते हैं कि इसके पीछे कौन-सी शक्तियाँ हैं। गाज़ा में सत्ता संघर्ष केवल इजराइल-हमास तक सीमित नहीं, बल्कि इसमें ईरान, तुर्की, क़तर और अन्य क्षेत्रीय देश भी गहराई से जुड़े हैं।

Gaza's War and Egypt's Self-Inflicted Conundrum | ISPI

हमास को इस समझौते से कुछ कूटनीतिक लाभ अवश्य मिले। बंदियों की अदला-बदली से उन्हें राजनीतिक इकाई के रूप में स्वीकार्यता मिली। अब उन्हें केवल आतंकी संगठन नहीं कहा जा सकता। कई मानवाधिकार संगठनों ने यह रुख अपनाया कि हमास से संवाद ही रास्ता है। गाजा की जनता को भी अस्थायी राहत मिली। सहायता पहुँचने लगी, सीमाएँ खुलीं, और बिजली-पानी-खाद्य आपूर्ति आंशिक रूप से बहाल हुई.

लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि हमास की सैन्य क्षमता लगभग नष्ट हो गई हैं। उनके भूमिगत सुरंग नेटवर्क, हथियार निर्माण केंद्र और संचार प्रणाली सब ध्वस्त हो चुकी हैं। अब सवाल यह है कि क्या हमास फिर से अपना प्रभाव जमा पाएगा या कोई नया नेतृत्व उभरेगा? दुनिया ने इस युद्धविराम को शांति समझौता कहकर प्रस्तुत किया पर वास्तविकता यह नहीं है। जब दो पहलवान लड़कर थक जाते हैं तब कुछ क्षणों के लिए विराम लेते हैं। यह शांति समझौता युद्ध का थका हुआ विरामचिह्न है, पूर्णविराम नहीं। दोनों पक्ष पहले ही एक-दूसरे पर उल्लंघन के आरोप लगाने लगे हैं। सीमाओं पर छिट-पुट झड़पें शुरू हो चुकी हैं और पुराने शब्द फिर गूंज रहे हैं। शांति के लिए भरोसे के पुल अभी भी अधूरे हैं। हमास ने पूरी तरह से अपने हथियार नहीं छोड़े हैं और इजराइल ने गाजा पर अपना नियंत्रण और कड़ा कर लिया है। इस स्थिति में शांति फिलहाल एक कागजी सच्चाई है, जो कभी भी जल सकती है।

डोनाल्ड ट्रम्प की भूमिका भी केवल शांति तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह एक राजनीतिक निवेश था। अमेरिकी चुनावों की पृष्ठभूमि में ट्रम्प खुद को शांति दूत के रूप में स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने इजराइली प्रधानमंत्री पर यह दबाव बनाया कि समझौता स्वीकार करो, बंदियों को रिहा करो, युद्ध रोक दो।

साथ ही, उन्होंने पाकिस्तान, मिस्र और कई अरब देशों पर भी यह प्रभाव डाला कि वे इस योजना का समर्थन करें। इस प्रकार ट्रम्प-नेतन्याहू-कतर त्रिकोण से यह योजना आकार में आई। ट्रम्प का उद्देश्य स्पष्ट था अमेरिका को पुनः मध्यपूर्व में निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित करना और चीन-रूस जैसी शक्तियों के प्रभाव को सीमित करना।

Shahbaz Sharif Trump flattery at Gaza Summit sparks media backlash

दो दिवस पूर्व गाजा पर आयोजित शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का भाषण विशेष रूप से चर्चा में रहा। उनके भाषण में अमेरिका की नीति की प्रशंसा करते हुए ट्रम्प के नेतृत्व का खुला समर्थन किया था। कुछ विश्लेषकों ने इसे राजनैतिक चाटुकारिता कहा, तो कुछ ने स्मार्ट डिप्लोमेसी। वास्तव में, पाकिस्तान की यह भूमिका उसकी विदेश नीति का संतुलन दिखाती हैं। एक ओर इस्लामी देशों के सामने स्वयं को फिलिस्तीनी समर्थक दिखाना और दूसरी ओर अमेरिका से आर्थिक तथा कूटनीतिक संबंध मजबूत रखना। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था संकट में है और उसे सहायता के लिए अमेरिका का समर्थन अत्यावश्यक है। अतः यह भाषण निष्ठा नहीं, बल्कि राजनीतिक व्यावहारिकता थी।

Friends and Family Celebrate Return of Israeli Hostage

इस युद्ध विराम के बाद मध्यपूर्व की सामरिक तस्वीर बदलती दिख रही है। अरब देशों में अब एक नया विचार उभर रहा है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, मुस्लिम विरोध नहीं है।
इजराइल से कूटनीतिक संबंध बनाए रखने वाले सऊदी अरब जैसे देशों को इस समझौते से राहत मिली है। कतर और मिस्र ने मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका फिर मजबूत कीं, जबकि ईरान ने तीखी प्रतिक्रिया दी। ईरान का कहना है कि यह शांति नहीं, बल्कि हमास को कमजोर करने की अमेरिकी षड़यंत्र है। रूस और चीन ने अब तक मौन साधे रखा है। यद्यपि वे पश्चिमी नीतियों के विरोधी हैं, फिर भी इस मुद्दे पर उन्होंने सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी हैं। भारत का मध्यपूर्व से सीधा संबंध है। तेल, ऊर्जा, व्यापार और वहां कार्यरत भारतीयों के माध्यम से। इसलिए गाजा युद्ध का विराम भारत के लिए आर्थिक और कूटनीतिक दृष्टि से सकारात्मक है। शांति बनी रही तो भारत के लिए तेल आपूर्ति स्थिर रहेगी और खपवळर-चळववश्रश एरीीं उेीीळवेी जैसे प्रोजेक्ट्स को नई गति मिल सकती है।

लेकिन इस समझौते से पाकिस्तान-अमेरिका की नजदीकियां बढ़ी हैं, जो भारत के लिए चेतावनी का संकेत है। यदि अमेरिका का झुकाव फिर इस्लामिक ब्लॉक की ओर बढ़ता है, तो दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है। चीन-पाकिस्तान गठबंधन और अब ट्रम्प-पाकिस्तान समीकरण से भारत को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। अतः भारत के लिए रणनीतिक संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। गाजा पट्टी का पुनर्निर्माण अब अगली बड़ी चुनौती है। इजराइल ने भले ही सेना पीछे खींच लिया हो पर नियंत्रण अभी भी उसके सुरक्षा तंत्र के पास है। पानी, भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास जैसे हर क्षेत्र में गाजा को फिर से खड़ा करने के लिए अरबों डॉलर की आवश्यकता होगी, लेकिन यदि यह सहायता भ्रष्ट तंत्र में के हाथों में गईं तो नया असंतोष भड़क सकता है।

यदि मानवता के नाम पर नया व्यापार, नई सत्ता और नया शस्त्र-राजनीति शुरू हुआ, तो गाजा फिर से युद्धभूमि बन जाएगा। इस समझौते ने विश्व के सामने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा किया है क्या शांति का अर्थ केवल युद्ध रोकना है या न्याय स्थापित करना?

यदि शांति का अर्थ केवल बंदूकों का शांत रहना है, तो वह क्षणिक है। लेकिन यदि शांति न्याय, विकास और परस्पर स्वीकार्यता पर आधारित है, तो वही सच्ची शांति है। इजराइल-गाजा युद्धविराम विश्व के लिए एक आईना है। जहाँ बदला, धर्म, राजनीति, क्रूरता और मानवता सब एक ही तस्वीर में दिखाई देते हैं। इस आईने में दुनिया को अपना चेहरा देखना होगा, क्योंकि इजरायल -गाजा युद्ध में जो क्रूर अमानवीय चेहरा विश्व के सामने आया हुआ है वह समूची मानवता की असफलता का चेहरा है।

लेखक:- अमोल पेडणेकर

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Comments 4

  1. Dr Ashok Kumar Tyagi says:
    1 week ago

    इस्लाम के विस्तार और उसकी शिक्षा / प्रेरणा से जन्मे , पोषित आंतंकवाद के बारे में कुछ उल्लेख करना और हमास की दूसरे मान्यता/ श्रद्धा के प्रति असहिष्णुता non tolerance और उसकी प्रतिक्रिया में पीड़ित पक्ष का भी हिंसा violance को अपनाने का चलन विश्व के अन्य ग़ैर मुस्लिम समाज में बढ़ सकता हे इजराइल की प्रतिक्रिया बाक़ी देशों के लिए role मॉडल बनने की भी संभावना हे ।
    आतंकवाद को इस्लाम से अलग करने का भी यह युद्ध milestone साबित हो सकता हे ।

    Reply
    • Anonymous says:
      1 week ago

      अंतर्मन से धन्यवाद।

      Reply
  2. Vidya sharaff says:
    1 week ago

    Nice article

    Reply
    • Anonymous says:
      1 week ago

      धन्यवाद

      Reply

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