हमारे राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का जन्म 7 नवंबर 1876 को बंगाल के कान्तल पाड़ा गांव में हुआ, इसकी रचना भारत के प्रसिद्ध कवि, स्वतंत्रता सेनानी माननीय बैंकिम चंद्र चटर्जी जी ने की। वंदे मातरम को 1896 में गुरु रवींद्रनाथ टैगोर जी द्वारा लयबद्ध किया और गाया गया था।
वंदे मातरम गीत महाकवि बैंकिमचंद्र चटर्जी की आनंद मठ पुस्तक से लिया गया है। 24 जनवरी 1950 को वंदे मातरम को राष्ट्रीत गीत और जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में भारत की आत्मा में शामिल किया गया। वंदे मातरम गीत को लिखे हुए 150 वर्ष हो गए, ये हम सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।
युवा साथियों, वंदे मातरम संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है मातृ भूमि को वंदन, मातृ भूमि को नमन। वंदे मातरम का अर्थ है कि जो भारत भूमि हमें जीवन देती है, हम उसको वंदन करते है। इस गीत के पहले दो पैरा संस्कृत में थे और बाद के पैरा बांग्ला भाषा में रचे गए थे। वंदे मातरम गीत ने देश की आजादी के आंदोलन में न जाने कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों में जोश भरने का कार्य किया था, आज भी जब हम वंदे मातरम गीत गाते है तो हमारे रौंगटे खड़े हो जाते है।
वंदे मातरम का अर्थ है देश की मिट्टी को नमन करना, राष्ट्र को प्रथम मानना, राष्ट्र ही सर्वोपरि रहे, ऐसा विचार मन में रखना। वंदे मातरम सबसे उच्च धर्म है अर्थात यह हर नागरिक का सबसे बड़ा कर्तव्य है, यह हम सब की आत्मा को झकझोरने वाली प्रेरणा है।
वंदे मातरम केवल एक नारा या गीत नहीं है यह वंदन है राष्ट्र की माटी को, यह वंदन है भारतीय संस्कृति को, यह वंदन है भारत के खेतखलिहनों को, यह वंदन है हमारे संस्कारों को। यह वंदन है भारत भूमि के सुंदर धरातल को, जिसमें पवित्र नदियां बहती है, घने जंगल है, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ पर्वत है। यह वंदन है भारत के प्रहरियों को, जिन्होंने देश की रक्षा में प्राण न्यौछावर किए है। यह वंदन है भारतीय ऋषि-मुनियों को जिन्होंने इतने सुंदर ग्रंथ दिए है, जिनसे मानवता पल्लवित और पुष्पित होती है। यह वंदन है हमारे सभी स्वतंत्रता सेनानियों को जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान राष्ट्र के लिए किया है। यह वंदन उन सभी महापुरुषों को जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए फांसी के फंदे चूमकर सर्वोच्च बलिदान किया है।
वंदे मातरम हमारी रगो में बहने वाला रक्त है, यह हमारी हर नाड़ी को चलाने वाला पवित्र स्पंदन है। वंदे मातरम भारत भूमि की खुशबू है, सुगंध है, सुंदरता है, वंदे मातरम भारत भूमि का मुकुट है। हमारे शरीर के कतरे-कतरे में समाई हुई ऊर्जा है वंदे मातरम। हमारा ध्येय व उद्देश्य वंदे मातरम से तय होते है।
भारतीय युवाओं समेत भारत के सभी नागरिकों को यह समझने की आवश्यकता है कि इस पवित्र गीत का उद्देश्य केवल नारा लगाने से या राष्ट्र गीत के गायन से पूरा नहीं होगा, यह तो हमारी प्रेरणा तथा ऊर्जा के प्रतीक के रूप में है, जो नित नए आयाम गढ़ता है, जो नित नई प्रेरणा का द्योतक है। जब हम वंदे मातरम कहते है तो बहुत सी जिम्मेदारियां हमारे कंधे पर आती है, जिन्हे स्पष्ट संकल्प के साथ पूर्ण करना ही हम सभी का कर्तव्य है।
जब हम वंदे मातरम का गायन करते है तो खुद को उन सभी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए तैयार करते है जो इस राष्ट्र के स्वतंत्रता सेनानी हमारे लिए छोड़कर गए है। वो अपने अधूरे सपने हम सभी के कंधों पर छोड़ गए थे, जो पवित्र थे और आज भी पवित्र है।
महान बलिदानी हुतात्मा भगत, राजगुरु, सुखदेव, महानायक सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस, महान क्रांतिकारी मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, टंट्या टोपे, राव तुलाराम, कुंवर सिंह के बलिदान हम सभी को बहुत कुछ कहते है, बहुत कुछ याद दिलाते है। उनकी मनःस्थिति में चल रहे सभी सपनों को पूरा करना आजाद भारत में रह रहे हम सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है। इस भारत भूमि को बेइमानों से बचाना भी तो हमारी जिम्मेदारी है।
राष्ट्र को सत्य के मार्ग पर चलाना, देश को तप-तपस्या के रास्ते पर आगे बढ़ाना हम सभी की जवाबदेही है और कर्तव्य है। राष्ट्र को पाखंड से बचाना भी तो वंदे मातरम की लौ है।
महात्मा गांधी जी के संपन्न भारत के सपने को हम सभी को पूर्ण करना है। वंदे मातरम का अर्थ सभी को समझना भी आज की आवश्यकता है क्योंकि कुछ लोग इसे केवल नारा समझते है, जबकि यह हमारा सबसे उच्च कर्तव्य है, यह हमारा सबसे उच्च धर्म है, जिसे अपनी ईमानदारी, मेहनत, सच्चाई, निष्पक्षता, न्याय, समरसता, अहिंसा, समानता, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, निर्भयता के साथ पूरा करना है।
यहां वंदे मातरम एक गीत के रूप में, एक नारे के रूप में सभी को प्रेरणा देता है, यह हमारे लिए दुरुस्तंभ है कि हम सभी जो ड्यूटी हमें मिली हुई है उसे सच्चाई वा ईमानदारी से पूर्ण करें। वंदे मातरम एक कर्तव्य है नागरिकों के लिए, वंदे मातरम हमारी जिम्मेदारी है, वंदे मातरम हमारी जवाबदेही है। वंदे मातरम हमारे मुख से निकली हुई सच्ची वाणी है। वंदे मातरम हमारे हाथों से की जाने वाली मेहनत है। वंदे मातरम हमारे द्वारा किया जाने वाला न्याय है। वंदे मातरम हमारी कर्मठता है, वंदे मातरम किसानों वा मजदूरों को दिया जाने वाला सम्मान है, आदर है।
वंदे मातरम माता-पिता की सेवा है, हर बुजुर्ग का सम्मान है। वंदे मातरम, वंदे मातरम विद्यार्थियों के लिए अच्छी शिक्षा ग्रहण करना है, ब्रह्मचर्य का पालन करना है। खिलाड़ियों के लिए वंदे मातरम देश के लिए मैडल जीतना है, किसानों के लिए वंदे मातरम जहरमुक्त, पेस्टिसाइडमुक्त खेती करना है। पशुपालकों के लिए वंदे मातरम शुद्ध दूध, घी, दुग्ध पदार्थ उपलब्ध कराना है। शिक्षकों के लिए वंदे मातरम का अर्थ समय पर शिक्षण संस्थानों में जाना तथा विद्यार्थियों को मन लगाकर अच्छी शिक्षा देना है।
चिकित्सकों के लिए मानव को रोगमुक्त करना है, ना कि उन्हें लूटना है। सड़क पर वाहन चलाने वालों के लिए वंदे मातरम का अर्थ नियम से सड़क पर चलना है, नशे में गाड़ी नहीं चलाना है। शिक्षण संस्थानों के लिए वंदे मातरम का अर्थ कम धन में शिक्षा देना है, शिक्षा को व्यवसाय नहीं बनाना है। अस्पतालों और निजी शिक्षण संस्थानों के लिए वंदे मातरम का अर्थ व्यवसाय नहीं है, बल्कि विद्यार्थियों को ज्ञानवान बनाना है।
सरकारी नौकरी करने वालों के लिए वंदे मातरम का अर्थ ईमानदारी से समय पर कार्यालय जाना और ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करना है। राजनीतिक महानुभावों के लिए वंदे मातरम का अर्थ पार्टी से अधिक राष्ट्रहित में विमर्श करना है। राष्ट्रहित में कार्य करना है, नागरिकों की सच्ची सेवा करनी है। अपनी वोट से अधिक देश के नागरिकों का भला सोचना है।
देश के ब्यूरोक्रेट के लिए वंदे मातरम का अर्थ कार्यपालिका को ईमानदारी से चलाना है। न्याय पालिका के लिए वंदे मातरम का अर्थ है कि न्याय की कुर्सी पर बैठकर न्याय ही करना है और न्याय होते हुए दिखना भी आवश्यक है। नागरिकों के लिए वंदे मातरम का अर्थ राष्ट्र को विकसित करने में अथक मेहनत करनी है। राष्ट्र सर्वप्रथम ही हमारे लिए वंदे मातरम है। सभी नदियों को पवित्र रखना, सभी वनों को सुरक्षित रखना, अधिक से अधिक शिक्षण संस्थानों का निर्माण करना ही वंदे मातरम का गीत है। जीवन का हर पल राष्ट्र को न्यौछावर कर देना ही वंदे मातरम है।
किसानों के लिए पराली ना जलाना भी वंदे मातरम है, अपनी संस्कृति-संस्कारों को जीवंत रखना ही हमारे लिए वंदे मातरम का नारा है। वंदे मातरम हम सभी के लिए कर्तव्य है, जिम्मेदारी है तथा जवाबदेही है, ये कोई प्रतीक नहीं है कि नारा लगाया या राष्ट्र गीत गया और हो गई जिम्मेदारी पूरी। वंदे मातरम भारत भूमि का वंदन करना है, भारत माता का वंदन करना है, भारत माता का मस्तक ऊंचा रहे, उसके लिए कार्य करने है।
वंदे मातरम के लिए हम सभी की पूजा की थाली में हमारे मानव मूल्यों की माला हो, नैतिक मूल्यों के पुष्प हो, हमारी पूजा की थाली में ईमानदारी से कर्तव्य का पालन हो, सच्चाई का संकल्प सूत्र हो। हमारी पूजा की थाली में तप हो, यज्ञ हो, न्याय हो, निष्पक्षता हो, निडरता हो, सत्य बोलने का साहस हो, उत्साह हो, हिम्मत हो, भाईचारा हो, सत्य की सुगंधि वाली धूपबत्ती हो, ज्ञान का बड़ा दीपक हो, मानव की मेहनत के पसीने की खुश्बू हो, तभी तो हम भारत माता का वंदन कर पाएंगे।
झूठ फरेब, बेईमानी, षडयंत्र, आलसीपन, बिना ध्येय के, बिना उद्देश्य तथा निकम्मेपन से हम कैसे भारत माता का वंदन अर्थात पूजन करेंगे। इसलिए हर नागरिक वंदे मातरम का सच्चा अर्थ समझकर पूर्ण ईमानदारी व सच्चाई से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करें, वहीं सच्चा वंदे मातरम है, वही वंदे भारतम है।
जय हिंद, वंदे मातरम
– नरेंद्र यादव


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