अगले पांच वर्ष बिहार के सशक्तिकरण के होंगे— जहां हर गांव चमकेगा, हर युवा उड़ेगा। जैसा कि मोदी जी ने कहा, “बिहार का भविष्य उज्ज्वल है।” यह उज्ज्वलता केवल राजनीति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की साझा जिम्मेदारी है। बिहार अब बदलाव की मिसाल बनेगा और देश इसे गर्व से देखेगा।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने न केवल राजनीतिक समीकरणों को नया आकार दिया है, बल्कि पूरे देश को एक संदेश भी दिया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की शानदार जीत ने साबित कर दिया कि बिहार की जनता अब पुरानी राजनीति के जाल में फंसने को तैयार नहीं है। इंडिया गठबंधन (आईएनडीआईए) द्वारा चलाए गए नकारात्मक चुनाव प्रचार—चौकीदार चोर हो या वोट चोरी के आरोप को बिहार की धरती ने ठुकरा दिया। यह जीत केवल संख्याओं की नहीं, बल्कि एक सकारात्मक दृष्टिकोण की विजय है। जहां विपक्ष ने विकास के मुद्दों को नजरअंदाज कर व्यक्तिगत हमलों पर जोर दिया, वहीं एनडीए ने बिहार के भविष्य को केंद्र में रखा। अब अगले पांच वर्ष बिहार के हैं— विकास, सशक्तिकरण और समावेशी प्रगति के। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में, “बिहार के लोगों ने जो विश्वास एनडीए पर जताया है, हम उस पर खरा उतरेंगे।” यह वादा केवल शब्द नहीं, बल्कि एक संकल्प है जो बिहार को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।
चुनावी मैदान में इंडिया गठबंधन का नकारात्मक अभियान शुरू से ही विवादास्पद रहा। 2014 के ‘चौकीदार चोर है’ जैसे नारों को दोहराते हुए, विपक्ष ने केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जो बिना ठोस प्रमाण के थे। बिहार में यह प्रचार ‘वोट चोरी’ तक पहुंच गया, जहां ईवीएम पर सवाल उठाए गए और एनडीए को ‘लोकतंत्र का हनन’ करने वाला बताया गया। लेकिन बिहार की जनता ने इसे नकार दिया। क्यों? क्योंकि बिहार अब बदल रहा है।

2020 के चुनावों से ही यहां विकास की लहर तेज हो रही थी और 2025 में यह चरम पर पहुंच गई। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी केंद्रों तक, मतदाताओं ने सवाल किया: “भ्रष्टाचार के आरोपों से हमारा भविष्य कैसे सुधरेगा?” एनडीए ने इसी सवाल का जवाब दिया— कंक्रीट के कामों से। गंगा पर बने पुल, पटना मेट्रो का विस्तार, और ‘हर घर जल’ योजना जैसी योजनाओं ने लोगों का विश्वास जीता। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, मतदान प्रतिशत 68% रहा, जो दर्शाता है कि बिहार की जनता सक्रिय और जागरूक हो चुकी है। नकारात्मकता की बजाय, सकारात्मक एजेंडे ने काम किया। यह जीत एनडीए की रणनीति की सफलता है, लेकिन साथ ही एक बड़ी जिम्मेदारी भी लाई है।

एनडीए पर अब बिहार के जनता के विश्वास की पूरी जिम्मेदारी है। पच्चीस साल पहले, जब नीतीश कुमार की अगुवाई में गठबंधन ने सत्ता संभाली, तो बिहार सूखे और बाढ़ की मार झेल रहा था। आज, राज्य में जीडीपी वृद्धि दर 10% से ऊपर पहुंच चुकी है, जो राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। लेकिन चुनौतियां बाकी हैं— बेरोजगारी, प्रवासन और शिक्षा का स्तर। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पटना रैली में कहा था, “बिहार का बेटा अब गांव में ही रोजगार पाएगा।” यह दृष्टि अब कार्यान्वयन की बारी है। अगले पांच वर्षों में बिहार को सशक्त बनाने के लिए एनडीए को कई मोर्चों पर काम करना होगा। सबसे पहले, युवाओं के लिए रोजगार सृजन। बिहार, देश का सबसे युवा राज्य होने के नाते, जहां 60% आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है, यह अवसर है।
स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं को बिहार-केंद्रित बनाना होगा। पटना और भागलपुर जैसे शहरों में आईटी हब स्थापित हो चुके हैं, लेकिन इन्हें ग्रामीण स्तर तक विस्तार देना जरूरी है। बिहार में नए उद्यमियों के लिए चनपटिया एक मॉडल बना, जहाँ सरकार के सहयोग से एक कैंपस के अंदर दर्जनों कारोबार फल फूल रहे हैं।
दूसरा, कृषि सुधार। बिहार की 80% आबादी कृषि पर निर्भर है। जैविक खेती को बढ़ावा देकर और सिंचाई नेटवर्क मजबूत करके किसानों की आय दोगुनी की जा सकती है।
तीसरा, स्वास्थ्य और शिक्षा। कोविड के बाद बिहार ने स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में सुधार किया, लेकिन अब ‘आयुष्मान भारत’ को पूर्ण रूप से लागू करना होगा। स्कूलों में डिजिटल शिक्षा लाकर बिहार के युवाओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना होगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने जीत के बाद दिए भाषण में इन बिंदुओं को दुहराया। दिल्ली से लाइव संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,
“बिहार ने न केवल एनडीए को चुना, बल्कि विकास का मार्ग चुना है। हमारा संकल्प है कि हर बिहारी का सपना साकार हो।”
यह भाषण केवल औपचारिकता नहीं था; यह एक रोडमैप था। मोदी ने बिहार को ‘विकास का इंजन’ बनाने की बात की, जो पूर्वोत्तर राज्यों के लिए मॉडल बने। केंद्र से बिहार को मिलने वाले फंड्स— जैसे पीएम किसान और उज्ज्वला को और प्रभावी बनाना होगा। लेकिन यह जिम्मेदारी केवल एनडीए की नहीं, यह दोनों गठबंधनों के लिए एक परीक्षा है।
विपक्ष, यानी इंडी गठबंधन को अब भूमिका बदलनी होगी। चुनावी मैदान से बाहर आकर वे विकास की राह में सहयोगी बनें। जहां सरकार गलती करे, वहां राह दिखाएं। उदाहरण के लिए, यदि कोई नीति किसानों को नुकसान पहुंचाए, तो विपक्ष को संसद में बहस छेड़नी चाहिए, न कि सड़कों पर अनावश्यक आंदोलन। यह समय डिजिटल है। सड़क के आंदोलन का स्वरूप बदलने पर भी विचार किया जाना चाहिए जिससे पब्लिक के लिए हो रहे कथित आंदोलन का पीड़ित भी पब्लिक ही ना बने।

यदि पब्लिक के साथ कोई ठगी हो— जैसे भूमि सुधार में भ्रष्टाचार तो उसे एक्सपोज करना विपक्ष का कर्तव्य है।
लोकतंत्र की सुंदरता यही है: सत्ता और विपक्ष का संतुलन। बिहार में तेजस्वी यादव जैसे युवा नेता हैं, जो यदि सकारात्मक रहें, तो राज्य को मजबूत बना सकते हैं। 2025 के चुनावों में विपक्ष की हार ने सिखाया है कि नकारात्मकता से कुछ हासिल नहीं होता, सहयोग से सबका भला होता है।
इस परिणाम की सबसे खुशी की बात बिहार से जातिवाद के कलंक का धीरे-धीरे समाप्त होना है। बिहार पर हमेशा से जाति की राजनीति का दाग लगा रहा। 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव की सरकार ने पिछड़ों को सशक्त किया, लेकिन इससे जातिगत विभाजन गहरा गया। 2025 के चुनावों में एनडीए ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ का मंत्र अपनाया, जो जाति से ऊपर उठा। सीटों के वितरण में भी संतुलन दिखा— ओबीसी, एससी-एसटी और सामान्य वर्गों को समान प्रतिनिधित्व।
मतदाताओं ने भी यही संदेश दिया। युवा वोटर, जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, ने जाति की बजाय विकास को वरीयता दी। पटना विश्वविद्यालय के एक सर्वे के अनुसार, 70% युवा मतदाताओं ने रोजगार को प्रमुख मुद्दा बताया, न कि जाति को। यह बदलाव बिहार को नई दिशा देगा। अब राज्य जातिगत गोलबंदी से ऊपर उठकर एकजुट हो रहा है। महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी— महिला आरक्षण विधेयक के प्रभाव से 40% महिलाएं मतदान केंद्रों पर पहुंचीं। यह सब मिलकर बिहार को एक आधुनिक, समावेशी राज्य बना रहा है।

बिहार, देश का सबसे युवा प्रदेश, अब ‘एस्पिरेशन कट्टा’ नहीं, बल्कि रोजगार और स्टार्टअप का केंद्र बनने को तैयार है। 25 करोड़ की जनसंख्या में अधिकांश युवा हैं, जो महत्वाकांक्षी हैं। पहले बिहार से युवा दिल्ली-मुंबई पलायन करते थे, लेकिन अब ‘बिहार फर्स्ट’ नीति ने स्थानीय रोजगार सृजित किए हैं। भागलपुर का सिल्क उद्योग और मुजफ्फरपुर का लीची निर्यात इसके उदाहरण हैं।
स्टार्टअप इकोसिस्टम में भी तेजी आई— पटना में 500 से अधिक स्टार्टअप रजिस्टर्ड हैं, जो एग्री-टेक और फिन-टेक पर फोकस कर रहे हैं। सरकार को अब इनका समर्थन बढ़ाना होगा- इंक्यूबेटर सेटअप, वेंचर कैपिटल फंड और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम। यदि बिहार इन युवाओं को सही दिशा दे, तो यह भारत की जीडीपी में 10% योगदान दे सकता है। कल्पना कीजिए- बिहार के आईआईटीयन स्टार्टअप चला रहे हों और गांव के किसान ड्रोन से खेती कर रहे हों। यह सपना अब हकीकत बनने को है।
बिहार चुनाव 2025 एनडीए की जीत का जश्न है, लेकिन यह बिहार की जीत है। नकारात्मक प्रचार को नकारकर जनता ने विकास चुना और अब एनडीए पर उस विश्वास को साकार करने की जिम्मेदारी है। विपक्ष को सहयोगी बनना होगा, जातिवाद को पीछे छोड़ना होगा और युवाओं को सशक्त करना होगा। अगले पांच वर्ष बिहार के सशक्तिकरण के होंगे— जहां हर गांव चमकेगा, हर युवा उड़ेगा। जैसा कि मोदी जी ने कहा, “बिहार का भविष्य उज्ज्वल है।” यह उज्ज्वलता केवल राजनीति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की साझा जिम्मेदारी है। बिहार अब बदलाव की मिसाल बनेगा और देश इसे गर्व से देखेगा।
आशीष कुमार अंशु

