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जनजातीय गौरव दिवस : विरासत, विकास और युवा भारत

जनजातीय गौरव दिवस : विरासत, विकास और युवा भारत

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
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जनजातीय गौरव दिवस भारत की गौरवशाली जनजातीय विरासत को समर्पित एक सजीव श्रद्धांजलि है — साहस, सादगी और प्रकृति के साथ सामंजस्य का वह प्रतीक जिसने सदैव राष्ट्र की आत्मा को समृद्ध किया है। आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत 2021 में प्रारंभ किया गया यह वार्षिक उत्सव हर वर्ष 15 नवम्बर को मनाया जाता है — इस दिन भारतभूमि के महान जननायक भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।

भारत सरकार ने यह दिन जनजातीय समुदायों के असाधारण बलिदानों और उनकी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को सम्मान देने के लिए समर्पित किया। 15 नवम्बर 2021 को प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने भगवान बिरसा मुंडा को समर्पित एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी कर राष्ट्र की ओर से जनजातीय शौर्य और विरासत के प्रति सामूहिक श्रद्धा को अभिव्यक्त किया। तब से जनजातीय गौरव दिवस गौरव, प्रगति और सशक्तिकरण का राष्ट्रीय उत्सव बन चुका है।

Birsa Munda Jayanti: PM Modi announces Rs 24,000 cr schemes for tribals | India News - Business Standard

भगवान बिरसा मुंडा : उलीहातू से उलगुलान तक
15 नवम्बर 1875 को छोटा नागपुर पठार (वर्तमान झारखंड) के उलीहातू गाँव में जन्मे भगवान बिरसा मुंडा भारत के सर्वाधिक पूज्य जनजातीय क्रांतिकारियों में से एक हैं। मुंडा जनजाति से संबंधित बिरसा का बचपन कठिनाइयों, विस्थापन और अन्याय के अनुभवों से भरा था। 1793 के स्थायी बंदोबस्त अधिनियम (Permanent Settlement Act) ने पारंपरिक खुंटकाटी भूमि व्यवस्था को नष्ट कर दिया, जिससे साहूकारों और ज़मींदारों को जनजातीय भूमि पर कब्ज़े का अवसर मिला।

1886 से 1890 के बीच चाईबासा में बिताए वर्षों ने बिरसा की चेतना को जागृत किया। मिशनरी प्रभाव और औपनिवेशिक अन्याय से विमुख होकर उन्होंने औपचारिक शिक्षा छोड़ दी और रामायण व महाभारत जैसे भारतीय ग्रंथों से आत्मिक प्रेरणा ली। 1895 तक वे अपने लोगों के स्वाभिमान और भूमि पुनः प्राप्ति के लिए एक निर्भीक नेता के रूप में उभरे। उन्हें ब्रिटिश शासन ने गिरफ्तार कर हजारीबाग केंद्रीय जेल में दो वर्ष तक रखा। रिहा होने पर हजारों लोगों ने उन्हें “धरती आबा”— अर्थात धरती के पिता के रूप में सम्मानित किया।

उन्होंने बिरसाइट संप्रदाय की स्थापना की, जिसने जनजातीय समाज में आत्म-सम्मान, एकता और आस्था का संचार किया तथा शोषण और धर्मांतरण से मुक्ति का मार्ग दिखाया। 1899–1900 का उलगुलान (महाविद्रोह) उनकी इस चेतना का चरम बिंदु था, जिसने झारखंड, ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। इस आंदोलन ने “मुंडा राज” अर्थात स्वशासन की मांग की। यद्यपि बिरसा मुंडा को ब्रिटिशों ने पकड़ लिया और 9 जून 1900 को रांची जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में 25 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया, पर उनके विचार अमर हो गए। उनके संघर्ष का परिणाम छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (1903) के रूप में सामने आया, जिसने जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा की। 2000 में उनके जन्मदिवस पर झारखंड राज्य की स्थापना कर राष्ट्र ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

सशक्त होता जनजातीय भारत : शिक्षा से उद्यमिता तक
भगवान बिरसा मुंडा के समानता और स्वाभिमान के सपने को साकार करने के लिए भारत सरकार ने शिक्षा, उद्यमिता, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्र में अनेक परिवर्तनकारी पहलें की हैं।
2023 में जनजातीय गौरव दिवस पर प्रारंभ किया गया प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM–JANMAN) इसका एक ऐतिहासिक कदम है। ₹24,000 करोड़ की लागत वाले इस कार्यक्रम का उद्देश्य 18 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश के 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) को आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और संपर्क सुविधाएँ प्रदान करना है। इसी दिशा में 2 अक्टूबर 2025 को भगवान बिरसा मुंडा की भूमि से “धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA)” की शुरुआत की गई — ₹80,000 करोड़ के बजट के साथ यह योजना 63,000 जनजातीय गाँवों को सड़कों, मोबाइल नेटवर्क और पक्के मकानों से जोड़ेगी, जिससे 5 करोड़ से अधिक जनजातीय नागरिकों को सीधा लाभ मिलेगा।

स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार हेतु 23 मोबाइल मेडिकल यूनिट्स (MMUs) और 30 नई इकाइयाँ DAJGUA के अंतर्गत जोड़ी गईं। विकसित भारत 2047 की परिकल्पना के अंतर्गत सिकल सेल एनीमिया के पूर्ण उन्मूलन का भी लक्ष्य रखा गया है।

शिक्षा जनजातीय उन्नति की आधारशिला है। राष्ट्रभर में 700 से अधिक एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय स्थापित किए जा रहे हैं, ताकि जनजातीय बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। सरकार ने विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा के क्षेत्र में जनजातीय युवाओं को आगे बढ़ाने पर बल दिया है। 30 लाख से अधिक छात्रवृत्तियाँ दी जा रही हैं, जिनमें से कई विद्यार्थी विदेशों में भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित कर जनजातीय युवाओं को आत्मविश्वास और वैश्विक अवसर प्रदान कर रही है।

उद्यमिता के क्षेत्र में वन धन मिशन ने जनजातीय स्वावलंबन की दिशा में क्रांति लाई है। 3,000 से अधिक वन धन विकास केंद्र (VDVKs) पारंपरिक वनोपज को आधुनिक विपणन और मूल्यवर्धन से जोड़ रहे हैं। 90 से अधिक लघु वनोपज (MFP) वस्तुओं को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के दायरे में लाया गया है, जिससे जनजातीय उत्पादकों को न्यायपूर्ण मूल्य मिल रहा है। भारत द्वारा मनाया गया अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) जनजातीय किसानों की पारंपरिक कृषि-बुद्धि और पोषक अन्नों के संरक्षण का उत्सव भी है।

आज 50,000 से अधिक वन धन स्व-सहायता समूह (SHGs) और 80 लाख समूहों में सक्रिय 1.25 करोड़ से अधिक सदस्य ग्रामीण समृद्धि के प्रेरक बन चुके हैं। इनमें अधिकांश समूह जनजातीय महिलाओं द्वारा संचालित हैं, जो आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। पीएम-विश्वकर्मा योजना पारंपरिक कारीगरों को वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण और विपणन सहयोग देकर उनके पारंपरिक शिल्प को नए अवसर प्रदान कर रही है।
आदि महोत्सव जैसे उत्सवों के माध्यम से जनजातीय कला, संस्कृति और हस्तकला को राष्ट्रीय पहचान मिली है। रांची का बिरसा मुंडा जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, राष्ट्रपति भवन का जनजातीय दर्पण संग्रहालय तथा छिंदवाड़ा और जबलपुर में नए केंद्र इस गौरवशाली धरोहर को सहेज रहे हैं। श्रीनगर और गंगटोक में स्थापित जनजातीय अनुसंधान संस्थान जनजातीय भाषा, कला और ज्ञान परंपरा के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

जनजातीय क्षेत्रों तक योजनाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए विकसित भारत संकल्प यात्रा की शुरुआत खूँटी, झारखंड से की गई, जिसमें एकलव्य विद्यालय नामांकन, सिकल सेल परीक्षण और वन धन उद्यमिता पर विशेष ध्यान दिया गया।

सरकार की इस प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि 2024–25 में जनजातीय कार्य मंत्रालय का बजट 74% बढ़कर ₹13,000 करोड़ हो गया है। पिछले दशक में 100 से अधिक जनजातीय व्यक्तित्वों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है — यह जनजातीय उत्कृष्टता और नेतृत्व की राष्ट्रीय स्वीकृति का प्रतीक है।

विरासत से नेतृत्व तक
जनजातीय गौरव दिवस केवल एक वार्षिक उत्सव नहीं है — यह भारत की विविधता को एक सूत्र में पिरोने वाला आंदोलन है। यह भगवान बिरसा मुंडा सहित उन सभी वीरों के बलिदान को नमन करता है जिन्होंने राष्ट्र की नियति को गढ़ा और आज की युवा पीढ़ी को बड़े सपने देखने, लगन से सीखने और निर्भीक होकर नेतृत्व करने की प्रेरणा देता है।

जब भारत विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ रहा है, तब उसके जनजातीय पूर्वजों की अजेय भावना प्रगति के मार्ग को आलोकित कर रही है। सच्चा विकास वही है जहाँ परंपरा और परिवर्तन, जड़ें और आकांक्षाएँ, दोनों साथ चलें। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का स्वप्न तभी साकार होगा जब जनजातीय समाज भी समान गति से आगे बढ़े क्योंकि उनका उत्थान ही राष्ट्र की शक्ति है, उनका गौरव ही उसकी विरासत।
जनजातीय गौरव दिवस केवल भारत के गौरवशाली अतीत का उत्सव नहीं, बल्कि एक जीवंत और आत्मविश्वासी भविष्य का वंदन भी है — जहाँ हर जनजातीय स्वर भारत की एकता, गरिमा और प्रगति की जीवंत तस्वीर में अपनी विशिष्ट पहचान जोड़ता है।

-डॉ. शिवानी कटारा

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Tags: #BirsaMunda #TribalHero #IndianHistory #FreedomFighter #AdivasiPride #Jharkhand #IndigenousRights #CulturalHeritage #SocialJustice #Inspiration #hindivivekmagazine

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