हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
शिखर ध्वज सांस्कृतिक पुनर्प्रतिष्ठा का क्षण

शिखर ध्वज सांस्कृतिक पुनर्प्रतिष्ठा का क्षण

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग
0

अयोध्या का ध्वजारोहण इस सांस्कृतिक भूगोल की पुनर्स्मृति का पहला चरण है। यह केवल एक मंदिर की पुनर्स्थापना नहीं, बल्कि उन सभी स्थलों के लिये एक संकेत है जहाँ इतिहास के साथ न्याय होना अभी शेष है

 

अयोध्या में राममंदिर के शिखर पर हुआ ध्वजारोहण किसी सामान्य अनुष्ठान का परिणाम नहीं है। यह एक ऐसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अनुभव का निष्कर्ष है, जो लगभग एक सहस्राब्दी तक समाज की स्मृति में जीवित रहा। इस स्मृति का स्वरूप केवल धार्मिक नहीं था, बल्कि वह भारतीय सभ्यता की निरंतरता, उसके आघातों और उसके धैर्य— तीनों को एक साथ प्रतिबिंबित करता है।
भारतीय इतिहास का वास्तविक आधार उसके राजवंश नहीं, बल्कि उसका समाज रहा है— वह समाज जिसने अपने धर्मस्थलों, शिक्षास्थानों और सांस्कृतिक केन्द्रों को अपने जीवन का मूल माना। मंदिर इस समाज के लिये केवल उपासना-स्थल नहीं थे। वे शिक्षा, कला, दान, संवाद और सामाजिक संरचना के केन्द्र थे। इसलिए जब इन स्थलों पर आक्रमण हुए, तो उसका प्रभाव केवल भौतिक विनाश तक सीमित नहीं रहा; यह समाज के मानसिक और सांस्कृतिक ढाँचे पर गंभीर चोट थी।

सोमनाथ से लेकर काशी और मथुरा तक होने वाली घटनाएँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारतीय सभ्यता पर यह दबाव एक लंबे समय तक निरंतर रहा। ऐतिहासिक ग्रंथों, यात्रावृत्तों और फारसी अभिलेखों में मंदिरों के विध्वंस और उनके स्थान पर मस्जिदों के निर्माण के वर्णन मिलते हैं। इन घटनाओं को केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं कहा जा सकता; वे सभ्यतागत संघर्ष के उदाहरण हैं, जहाँ धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान स्वयं लक्ष्य बन जाती है।

PM Modi Ayodhya Ram Mandir Flag Hoisting Live: 'भारत के कण-कण में राम, मैकाले वाली मानसिकता से मुक्ति जरूरी...', अयोध्या में धर्म ध्वजारोहण कर बोले पीएम मोदी - pm modi ...

अयोध्या का प्रसंग इसी लम्बी ऐतिहासिक धारा का महत्वपूर्ण तत्व है। अयोध्या से संबंधित वर्णन 18वीं शताब्दी के यूरोपीय यात्रियों से लेकर ब्रिटिश गजेटियरों तक में मिलते हैं। इनमें यह स्वीकार किया गया कि यहाँ पूर्वकाल में रामजन्मभूमि का मंदिर था। 2003 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई खुदाई ने इस स्मृति को वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान किया। उत्खनन में प्राप्त स्तम्भ, आधार, अलंकरण और गर्भगृह-संरचना ने यह स्पष्ट किया कि विवादित ढाँचे के नीचे एक सुसंरचित मंदिर की उपस्थिति थी।

2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने उपलब्ध साक्ष्यों, पुरातात्त्विक निष्कर्षों और निरंतर पूजा की परम्परा को ध्यान में रखते हुए इस स्थल की प्राचीन पहचान को स्वीकार किया। यह निर्णय किसी पक्ष की विजय नहीं, बल्कि एक लंबे समय से चले आ रहे विवाद का न्यायसंगत समाधान था। साथ ही यह भारतीय सभ्यता की उस स्मृति का सम्मान भी था, जिसे समाज ने लंबी अवधि तक बिना तोड़े सँजोए रखा।
अयोध्या में राममंदिर बन चुका है, शिखर उठ चुका है,

पर इसके बावजूद माहौल पूरी तरह शांत नहीं कहा जा सकता। कई बार खुले मंचों पर, जुलूसों में या किसी भीड़ के बीच यह सुनाई दे जाता है कि “मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाएँगे” या “जहाँ बाबरी थी, मस्जिद वहीं बनेगी।” ये बातें किसी कल्पना की उपज नहीं हैं। समय-समय पर कुछ मुस्लिम नेताओं के बयान, कुछ मौलवियों की सभाएँ और मुस्लिम समुदाय की भीड़ में चलने वाली नारेबाज़ी— ये सब रिकॉर्ड में मौजूद हैं। ये आवाज़ें यह एहसास कराती हैं कि मंदिर बन जाने के बाद भी विवाद की जड़ें कुछ मनों में अब भी बची हुई हैं।

और जब कोई यह कहता है कि “अवसर मिला तो फिर राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाएँगे,” तो वह बात सीधे-सीधे इतिहास की याद दिलाती है। क्योंकि भारत ने वही बात पिछले हजार वर्षों में बार-बार देखी है—
काशी में, मथुरा में, राजस्थान, गुजरात और कश्मीर में, और देश भर के उन हजारों स्थानों पर जहाँ मंदिरों को बदल दिया गया।
इतिहासकारों ने इन मंदिरों की संख्या करीब 30,000 से 40,000 बताई है।
यह कोई बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात नहीं,

पुरातत्व और अभिलेखों की भाषा है। सिर्फ भारत ही नहीं, जहाँ-जहाँ मुस्लिम जनसंख्या बहुसंख्यक बनी—
पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया—
वहाँ पुराने मंदिरों का स्वरूप बदलना या उनका पूरी तरह मिट जाना, एक आम बात बन गया। पाकिस्तान के कराची और सिंध में, अफ़ग़ानिस्तान में काबुल और जलेलबाद में, बांग्लादेश के कई जिलों में—पुराने मंदिर अब सिर्फ यादों में रह गए।

हागिया सोफ़िया का हाल ही का बदलना यह समझने के लिए काफी है कि
धार्मिक और सांस्कृतिक स्थान हमेशा अपने मूल रूप में सुरक्षित नहीं रहते। यह जगह बहुत साल तक संग्रहालय रही, लेकिन 2020 में तुर्की सरकार ने उसे फिर से मस्जिद में बदल दिया। यह कोई अचानक किया गया बदलाव नहीं था। समाज की आबादी, राजनीतिक परिस्थितियाँ और धार्मिक नेतृत्व — इन तीनों ने मिलकर वह रास्ता तैयार किया, जिसके बाद उसका स्वरूप बदल गया। इससे एक सरल बात सामने आती है — जहाँ समाज और सत्ता एक दिशा में खड़े हो जाएँ, वहाँ पुराने धार्मिक ढाँचों का बच पाना कठिन हो जाता है।
इसी तरह के बदलाव भारतीय उपमहाद्वीप में भी देखने को मिलते हैं। पाकिस्तान में 1947 के बाद अधिकांश मंदिर या तो टूट गए या धीरे-धीरे गायब कर दिए गए।
कई शहरों में मंदिरों की जमीनों पर नई इमारतें खड़ी की गईं और कई पुराने मंदिरों का नाम तक नहीं बचा।

अफ़ग़ानिस्तान का बामियान इस बात का बड़ा उदाहरण है कि जब किसी क्षेत्र में समाज और सत्ता दोनों एक दिशा में बदल जाते हैं, तो वहाँ की सांस्कृतिक चीज़ें भी नहीं बच पातीं। बामियान की हज़ारों साल पुरानी बुद्ध प्रतिमा
सदियों से खड़ी थीं। वह न किसी पर बोझ थीं, न किसी को नुकसान पहुँचाती थीं। लेकिन 2001 में उन्हें विस्फोटक लगाकर गिरा दिया गया। यह घटना दुनिया के लिए बड़ी थी, क्योंकि इससे साफ़ समझ आया कि जब मजहबी कट्टरता हावी हो जाती है तो इतिहास, कला और संस्कृति किसी की नहीं रहती।
बांग्लादेश में भी 1971 के बाद से हिंदू समाज पर हमले, मंदिरों में तोड़फोड़,
मूर्तियों का खंडन और धार्मिक शोभायात्राओं पर हिंसा —
ये घटनाएँ आज तक रुक नहीं पाईं।

अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में हर साल दर्ज होता है कि कहीं मूर्तियाँ तोड़ी गईं, कहीं मंदिर जला दिए गए और कहीं पूजा रोक दी गई। यह स्थिति पूरी तरह भारत से अलग नहीं है। भारत के कई मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में समय-समय पर मंदिरों पर हमले हुए हैं। कई जगह छोटे मंदिरों की दीवारें गिरा दी गईं, मूर्तियों को खंडित किया गया और कुछ स्थानों पर नव-निर्मित मंदिरों पर भी आपत्ति जताई गई। कई बार यह घटनाएँ धार्मिक शोभायात्रा के रास्ते पर हुईं, कई बार किसी विवाद के नाम पर अचानक भीड़ इकट्ठी हुई और मंदिर को नुकसान पहुँचा दिया गया। ये घटनाएँ पुलिस रिपोर्टों और स्थानीय समाचारों में बार-बार दर्ज होती हैं। भारत ने यह बात आधुनिक समय में भी देखी है कि मंदिरों पर हमला केवल इतिहास की बात नहीं, आज के दौर की भी वास्तविकता है। 1980 से 2014 के बीच वाराणसी, जयपुर, दिल्ली, अहमदाबाद और मुंबई जैसे शहरों में मंदिरों के पास बम धमाके हुए। इनमें से कई मामलों में जाँच एजेंसियों ने पाया कि लक्ष्य जान-बूझकर मंदिर क्षेत्र को बनाया गया था।

इन सब बातों को साथ रखकर देखें तो एक सीधी बात समझ में आती है —धार्मिक स्थल सिर्फ इसलिए सुरक्षित नहीं हो जाते कि वे पुराने हैं या उनके पीछे अदालत का फैसला है। उनकी सुरक्षा समाज की जागरूकता पर भी निर्भर होती है। यदि समाज ढीला पड़े या परिस्थितियाँ अचानक बदल जाएँ, तो कोई भी पवित्र स्थान अपना स्वरूप खो सकता है।
हागिया सोफ़िया इसका ताजा उदाहरण है, और पाकिस्तान–अफ़ग़ानिस्तान–बांग्लादेश इसका स्थायी प्रमाण।

भारतीय समाज इन घटनाओं को देखते हुए स्वाभाविक रूप से यह मानता है कि मंदिरों और मूर्तियों की रक्षा सिर्फ ईंट–पत्थर की नहीं, बल्कि स्मृति और सतर्कता की भी जिम्मेदारी है। क्योंकि जहाँ स्मृति कमजोर पड़ती है, वहाँ इतिहास बदलने में देर नहीं लगती। अयोध्या की पुनर्प्रतिष्ठा इस दृष्टि से अनोखी है कि यहाँ परिवर्तन राजनीतिक बल या धार्मिक वर्चस्व के आधार पर नहीं हुआ। यह एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसमें पुरातत्व, इतिहास, न्याय और समाज— सभी समान रूप से जुड़े। इस प्रकार अयोध्या का ध्वजारोहण विश्व इतिहास में सांस्कृतिक पुनरुद्धार का एक दुर्लभ उदाहरण है। भारतीय सांस्कृतिक भूगोल में ऐसे अनेक स्थल हैं जिनकी स्मृति समय के साथ धूमिल हुई या जिनकी संरचना परिवर्तित हो गई। विभिन्न अध्ययनों और सर्वेक्षणों में यह उल्लेख मिलता है कि भारत में लगभग 30,000 से 40,000 तक प्राचीन मंदिरों के अवशेष पाए जाते हैं। ये स्थल केवल धार्मिक महत्व के नहीं, बल्कि इस बात का प्रमाण हैं कि भारत का सांस्कृतिक केन्द्रित समाज कितना व्यापक और जीवंत था।

अयोध्या का ध्वजारोहण इस सांस्कृतिक भूगोल की पुनर्स्मृति का पहला चरण है। यह केवल एक मंदिर की पुनर्स्थापना नहीं, बल्कि उन सभी स्थलों के लिये एक संकेत है जहाँ इतिहास के साथ न्याय होना अभी शेष है। यह संकेत किसी प्रतिशोध का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का है।

‘सनातन’ शब्द का अर्थ केवल एक आस्था परम्परा नहीं, बल्कि एक सभ्यता का जीवन-सूत्र है। यह सत्य, कर्तव्य, संयम, करुणा और निरंतरता पर आधारित एक दृष्टि है। इस दृष्टि पर जब आघात हुए, तो वह केवल धार्मिक विघ्न नहीं थे— वे मनुष्य की आत्मचेतना पर चोट थे। आज का ध्वजारोहण यह स्वीकार करता है कि यह आत्मचेतना जीवित है और अब पुनः सक्रिय हो रही है।
अखंड भारत का भाव भी इसी सांस्कृतिक दृष्टि से समझा जाना चाहिए। इसका संबंध राजनीतिक सीमाओं से अधिक सांस्कृतिक एकात्मता से है— एक ऐसी एकात्मता जो अयोध्या, काशी, मथुरा, कांची, द्वारका, पुरी, श्रीनगर और पूरे भारतीय भूभाग को एक ही सांस्कृतिक धारा में जोड़ती है। जब सभ्यता अपनी मूल स्मृतियों से जुड़ती है, तभी यह एकात्मता संभव होती है।
इस प्रकार अयोध्या का ध्वजारोहण सभ्यतागत संघर्ष का अंत नहीं, एक व्यापक सांस्कृतिक प्रक्रिया की शुरुआत है। समाज अब उन सभी स्थलों की ओर देख रहा है, जिनकी स्मृति इतिहास में दब गई, जिनका स्वरूप बदला गया या जो कालांतर में उपेक्षित हो गए। यह प्रक्रिया न हिंसा की माँग करती है, न विरोध की; यह केवल स्मृति, शोध, न्याय और पुनःस्थापना की माँग करती है।
आज अयोध्या में उठता हुआ ध्वज हमें यह स्मरण कराता है कि इतिहास तब तक समाप्त नहीं होता जब तक एक सभ्यता अपनी स्मृति को पुनः स्थापित नहीं कर लेती। यह ध्वज उसी स्थापना का प्रतीक है— शांत, स्थिर, संयमित और गहरे अर्थों से भरा हुआ।

– दीपक कुमार द्विवेदी

 

‘ इस आर्टिकल को अपने दोस्तों संग शेयर करें’

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #mohanbhagwat#rammandir #ayodhya #pmmodi #yogi #aditynath

हिंदी विवेक

Next Post
राम मंदिर के ध्वज से अखण्ड भारत की दिशा

राम मंदिर के ध्वज से अखण्ड भारत की दिशा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0